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Updated: 25 अगस्त, 2015 12:21 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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भारत और पाकिस्तान की हालिया बातचीत को लेकर हकीकत में होने का अहसास शायद ही कभी हो पाया. उफा के फौरन बाद ही पाकिस्तान से जो संकेत दिए थे - वही सच साबित हुआ.

उफा के तराने

कुछ तुम चलना. कुछ मैं चलूंगा. फिर कुछ दूर हम चलेंगे. बात करेंगे. वॉक द टॉक साथ करेंगे.

लेकिन उससे पहले एक छोटा सा ब्रेक लेते हैं - और इस ब्रेक में आपके अजीज सरताज और हमारे अजीज डोभाल बात करेंगे.

आठ मिनट की उस कॉल और उफा की मुलाकात की बस यही छोटी सी कहानी थी.

ये कहानी जहां ठहर गई थी. जहां से शुरू होनी थी. जहां से आगे बढ़नी थी. वहीं की वहीं रह गई.

लोग भी वही थे. हालात भी वही थे. जिद भी वही थी.

न तुम चले. न मैं चला.

फिर हम साथ कैसे चलते? फिर बात कैसी? फिर वॉक द टॉक का क्या मतलब?

शरीफ कौन

पाकिस्तान में दो शरीफ हैं. एक हैं प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और दूसरे, सेना प्रमुख राहील शरीफ. माना जाता है कि फौज पाकिस्तानी हुकूमत पर हमेशा भारी पड़ती है. इस मान्यता के पीछे सबसे बड़ी वजह पाकिस्तान में तख्तापलट का इतिहास है.

उफा की मुलाकात से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवाज शरीफ से फोन पर बात की थी जिसमें दोनों ने मुलाकात की उम्मीद जताई थी. वहां मुलाकात भी हुई - और बात भी हुई. सबसे अहम रहा ज्वाइंट स्टेटमेंट जारी किया जाना.

तय हुआ कि दोनों मुल्कों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बात करेंगे - और बात आतंकवाद के मुद्दे पर होगी. लेकिन ज्यादा देर नहीं बीता - इस्लामाबाद से बयान आ गया कि बगैर कश्मीर मुद्दे के बातचीत का कोई मतलब नहीं है.

तो क्या एक शरीफ की बात, दूसरे शरीफ को रास नहीं आई?

उफा की बात इस्लामाबाद में हवा में उड़ा दी गई.

रिंग मास्टर कौन

क्या नवाज शरीफ की बात पाकिस्तान में खास मायने नहीं रखती?

आखिर सरताज अजीज किसकी जबान बोल रहे थे? सरताज अजीज हैं तो नवाज शरीफ के सलाहकार, लेकिन जो कुछ भी वो बोल रहे थे - लग रहा था जैसे वो किसी और की सलाह पर बयान दे रहे हों.

ज्वाइंट स्टेटमेंट के बाद से लेकर बातचीत के रद्द होने तक की घटनाओं पर गौर करें तो काफी कुछ ऐसा ही लगता है.

किसकी स्ट्रैटेजी थी

प्रस्तावित बातचीत जिस मोड़ तक पहुंची उसमें किसकी सबसे बड़ी भूमिका रही? जो कुछ भी हुआ उसके पीछे क्या भारत की स्ट्रैटेजी रही? या पाकिस्तान इसे ये शक्ल देने के लिए शिद्दत से लगा हुआ था.

वैसे भी पाकिस्तान ने कोई कसर शायद ही बाकी रखी हो. गुरदासपुर से लेकर ऊधमपुर तक. सीमापार से गोलाबारी का मामला तो कुछ अलग ही रहा. भारत की ओर से दिए गए बयानों से तो यही लगता रहा कि बातचीत निश्चित रूप से होगी.

क्या पाकिस्तान को भी यकीन हो गया था कि इस बार भारत बातचीत पर आमादा है. बातचीत होकर ही रहेगी.

क्या इसीलिए पाकिस्तान ने हुर्रियत नेताओं को डिनर की दावत दी?

ये तो साफ है कि पिछले साल अगस्त में हुर्रियत नेताओं को लेकर ही सचिव स्तर की बातचीत रद्द कर दी गई थी. पाकिस्तान भी ये बखूबी जानता था कि हुर्रियत को न्योता ही तुरूप का वो पत्ता है जिसे आखिरी वक्त पर आजमाया जा सकता है.

ऐन वक्त पर पाकिस्तान ट्रंप कार्ड का इस्तेमाल किया.

तो जो कुछ हुआ उसका रिंग मास्टर कौन है? नवाज शरीफ? या फिर राहील शरीफ? या कोई और?

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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