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Updated: 25 मार्च, 2021 03:44 PM
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रूस और अमेरिका के बिगड़ते रिश्तों के बीच भारत के लिए परेशानियां बढ़ती जा रही हैं. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान अमेरिका के साथ भारत के संबंध नई ऊंचाईयों तक पहुंच गए थे. नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी भारत के प्रति सकारात्मक रुख अपना रखा है. लेकिन, भारत के लिए अमेरिका के साथ ये अच्छे रिश्ते ही अब गले की फांस बनते नजर आ रहे हैं. हाल ही में भारत दौरे पर आए अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने सहयोगी देशों से रूसी तकनीक न खरीदने की बात दोहराई. ऑस्टिन ने भारत और रूस के सौदे पर तुर्की की तरह प्रतिबंध लगाने के सवाल पर कहा कि भारत को अभी तक यह तकनीक नहीं मिली है, तो प्रतिबंध का सवाल ही नहीं उठता है. अमेरिकी रक्षा मंत्री का ये बयान भारत के लिए चिंता बढ़ाने वाला हो सकता है. इसी साल के अंत तक भारत को रूस की ओर से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्‍टम मिलने की उम्मीद है. इस स्थिति में भारत के सामने नए (अमेरिका) और पुराने (रूस) दोस्त में से किसी एक को चुनने की स्थिति बन सकती है. सवाल उठना लाजिमी है कि भारत इस मौके पर क्या करेगा या कैसी रणनीति अपनाएगा?

अमेरिका और भारत के हितों में समानता की वजह है चीन

भारत हमेशा से ही अमेरिका और रूस के साथ अपने संबंधों में संतुलन बनाता हुआ आगे बढ़ा है. अमेरिका और रूस के बीच बढ़ती तल्खी ने भारत के सामने एक बड़ी चुनौती पैदा कर दी है. इस पूरे तानेबाने में सबसे अहम भूमिका चीन की है. भारत को चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ से निपटने के लिए अमेरिका का साथ चाहिए. चीन की चुनौती से निपटने के लिए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत ने मिलकर क्वाड (QUAD) समूह बनाया है. चीन के मामले में इन सभी देशों के हितों में समानता है. इस समूह की वजह से अमेरिका से भारत के संबंधों में और ज्यादा नजदीकियां आई हैं. भारत के लिए भी चीन पर अपनी निर्भरता खत्म करने के लिए क्वाड समूह बहुत जरूरी है. भारत के लिए यही सबसे बड़ी वजह है कि वह इस समूह में अहम किरदार निभा रहा है. भारत को पाक अधिकृत कश्मीर और चीन से सीमा तनाव के दौरान लगातार अमेरिका से समर्थन मिलता रहा है. इस स्थिति में भारत के लिए अमेरिका को पूरी तरह से नजरअंदाज कर पाना मुश्किल होगा.

भारत हमेशा से ही अमेरिका और रूस के साथ अपने संबंधों में संतुलन बनाता हुआ आगे बढ़ा है.भारत हमेशा से ही अमेरिका और रूस के साथ अपने संबंधों में संतुलन बनाता हुआ आगे बढ़ा है.

रूस के साथ सैन्य संबंध नहीं बिगाड़ना चाहेगा भारत

हथियारों की खरीद के मामले में भारत लंबे समय से एक बड़ा बाजार रहा है. भारत के रक्षा आयात में 56 फीसदी हिस्सा रूस के खाते में जाता है. बीते कुछ वर्षों में भारत ने अपने सामरिक हितों को बड़े स्तर पर साधने के लिए अन्य देशों की भागीदारी इसमें बढ़ाने के प्रयास किए हैं. भारत एक रणनीति के साथ इस मामले में आगे बढ़ रहा है और कामयाब होता भी दिख रहा है. लेकिन, रूस के साथ भारत ने अपनी भागीदारी को कम नहीं किया है. रूस के साथ भारत के सैन्य संबंधों का इतिहास काफी पुराना है. दोनों ही देशों के बीच अब तक किसी भी मामले पर टकराव की स्थिति नहीं रही है. बीते साल जून में कोरोनाकाल के दौरान भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रूस की विजय दिवस परेड में शामिल होने के लिए तीन दिवसीय यात्रा की थी. भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को किसी भी हाल में कमजोर नहीं पड़ने दिया है.

भारत एक उभरती हुई शक्ति

एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्‍टम को लेकर भारत और रूस के बीच हुए सौदे में अमेरिका लगातार भारत पर दबाव बनाने की कोशिशें करता रहा है. ट्रंप के कार्यकाल के दौरान भी ऐसी कोशिशें की गई थीं. उस समय भारत ने किसी भी तरह के दबाव को कोई तवज्जो नहीं दी थी. वर्तमान परिदृश्य में अमेरिका और रूस के बीच संबंधों में आई कटुता में भारत किस तरह से संतुलन बनाएगा, ये देखने वाली बात होगी. दरअसल, अमेरिका की सुपरपावर इमेज से निपटने के लिए भारत को रूस जैसा साथी भी चाहिए. इसी वजह से अमेरिका को नियंत्रित करने के लिए ही भारत ने ब्रिक्स (BRICS) समूह में अपना स्थान रूस और चीन के साथ बनाया हुआ है. भारत ने अपनी नीतियों के सहारे दुनिया में एक उभरती हुई शक्ति के रूप में अपनी जगह बनाई है. रूस और अमेरिका दोनों को ही अपने हितों के अनुसार भारत की जरूरत है.

इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आने वाले समय में अमेरिका और रूस के संबंधों की स्थिति भी भारत का रुख तय कर सकती है. हालांकि, भारत लंबे अरसे से इस मामले पर बनाए जा रहे अमेरिकी दबाव को नजरअंदाज करता आ रहा है. फिलहाल, कहा जा सकता है कि एस-400 सौदे पर अमेरिका की घुड़की से भारत को बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. इसकी साफ और स्पष्ट वजह ये है कि चीन को कमजोर दिखाए रखने के लिए अमेरिका को भारत की जरूरत है.

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