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Updated: 07 अप्रिल, 2021 02:59 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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देश भले ही कोरोना की दूसरी लहर से बचने को आतुर हो मगर बंगाल का माहौल अलग है. जैसे हालात हैं ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि बंगाल की फिजा में इलेक्शन वायरस फैला है जो वहां पूर्ण रूप से रच बस गया है. बंगाल के मद्देनजर राजनीतिक पंडितों के बीच कयासों का दौर शुरू हो गया है. एक वर्ग है जो कह रहा है कि भाजपा चाहे कुछ कर ले लेकिन बंगाल और वहां की राजनीति को ममता से बेहतर कोई नहीं समझ सकता वहीं राजनीतिक पंडितों का एक वर्ग वो भी है जिसका कहना है कि पीएम मोदी, अमित शाह , कैलाश विजयवर्गीय, जेपी नड्डा, सुवेन्दु अधिकारी की तैयारी पूरी है. परिणाम कमल के पक्ष में होंगे. पूर्वी मिदनापुर का नंदीग्राम पश्चिम बंगाल की सभी लड़ाइयों का केंद्र रहा है. राज्य की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा को चैलेंज किया और सुवेन्दु अधिकारी को उनके घर में घुसकर चुनौती दी है और बता दिया है कि पश्चिम बंगाल में अगर किसी का सिक्का चलता है या फिर किसी का राजनीतिक वर्चस्व है तो वो सिर्फ और सिर्फ ममता बनर्जी हैं. बंगाल में अब 18 जिलों की शेष 234 सीटें ही इस बात का फैसला करेंगी कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल की तूती बोलेगी या फिर भाजपा का डंका बजेगा.

West Bengal Elections, West Bengal, Mamata Banerjee, TMC, BJP, Suvendu Adhikariबंगाल में भाजपा ने ममता बनर्जी पर चौतरफा हमला किया है जो उन्हें मुसीबत में डाल सकता है

बताते चलें कि 2019 में भाजपा ने 42 में से 18 संसदीय सीटें जीतीं और तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी को बड़ा संदेश देते हुए बताया कि मोदी लहर और अमित शाह की रणनीति के चलते बंगाल ने एक बड़े परिवर्तन के लिए अपने को तैयार कर लिया है. ध्यान रहे कि 2016 में भाजपा का मत प्रतिशत 10.16 था जिसने 294 में से विधानसभा की 3 सीटें जीती थीं. 2019 में बंगाल के मद्देनजर भाजपा के मत प्रतिशत में जबरदस्त उछाल देखने को मिला और पार्टी का वोट परसेंटेज 40.64 हुआ.

2019 में भाजपा ने बंगाल की 18 सीटों पर अपना कब्जा जमाया. भाजपा बंगाल के लिए कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बंगाल में भाजपा कम सीटें होने के बावजूद तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी के लिए मुख्य विपक्ष है. बंगाल में 8 में से तीसरे चरण का मतदान बहुत अहम माना जा रहा है जो तृणमूल कांग्रेस - ममता बनर्जी और भाजपा दोनों के लिए कई मायनों में निर्णायक होगा.

तीसरे चरण के मददेनजर भाजपा को बहुत उम्मीदें हैं जिसने 200 + सीटों का लक्ष्य रखा है तीसरे चरण में भाजपा को बहुत सावधानी से काम करना होगा और दक्षिण बंगाल की उन सीटों को निकालना होगा जिनपर 2016 में तृणमूल कांग्रेस ने अपना कब्जा जमाया था. तीसरे चरण में 31 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो पूर्ण रूप से ग्रामीण इलाकों में हैं.

सबसे ज्यादा उम्मीदें हावड़ा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सात सीटों को लेकर हैं जिनपर 2019 में तृणमूल कांग्रेस ने अपना झंडा बुलंद किया था. यहां भाजपा के लिए चुनौती इन सीटों को अपना बनाना है तो वहीं तृणमूल कांग्रेस की चुनौती इन सीटों को भाजपा से बचाकर रखना है. बंगाल में 6 अप्रैल को जो मतदान हुआ है उसमें 31 निर्वाचन क्षेत्रों में से 16 दक्षिण 24 परगना में हैं, जो कि ग्रामीण क्षेत्र है.

8 सीटें हुगली में हैं जोकि ग्रामीण हैं. 7 सीटें हावड़ा में हैं जोकि अर्बन हैं. भाजपा के बारे में दिलचस्प बात ये है कि शहरी सीटों पर उसकी गहरी पकड़ और मजबूत उपस्थिति और बेहतर संगठन है. बात तीसरे चरण की चल रही है तो इसे भाजपा का तुरुप का इक्का माना जा सकता है. ग्रामीण क्षेत्रों में तृणमूल का वर्चस्व है इसलिए ये चरण और इसमें हुआ मतदान अपने आप में बहुत कुछ कहता है.

सवाल ये है कि इस चरण के बाद जनता भाजपा पर भरोसा करती है या फिर जनता की उम्मीदों पर ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस ही खरे उतरेंगे. जवाब समय देगा.

बंगाल चुनाव के मद्देनजर तीसरे चरण में सभी की नजरें हुगली में तारकेश्वर और आरामबाग पर हैं. भाजपा ने यहां से जिस उम्मीदवार स्वपन दासगुप्ता पर अपना दांव खेला है वो एक बड़ा राजनीतिक चेहरा हैं. सवाल ये है कि ताकेश्वर से स्वपन जीतते हैं और भाजपा बंगाल में इतिहास रचने में कामयाब होती है तो क्या पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री बनाएगी? आरामबाग में सुजाता मंडल को तृणमूल कांग्रेस ने टिकट दिया है जोकि भाजपा के सौमित्र खान की पत्नी हैं जिन्होंने 2019 में बिष्णुपुर से तृणमूल के टिकट पर चुनाव जीता था.

बाद में इन्होंने स्विच मारा और ये घोषणा की कि यदि उनकी पत्नी ने ममता बनर्जी का समर्थन किया तो वो उन्हें तलाक दे देंगे. सुजाता मंडल राजनीति में नई हैं पर ये इन्हीं के प्रयास थे जिनकी बदौलत सौमित्र खान ने 2019 में बिष्णुपुर में जीत दर्ज की थी. सुजाता को एक मजबूत उम्मीदवार की तरह देखा जा रहा है. बात सीटें बचाने और शहरी मतदाताओं की हो तो भाजपा को एक बड़ा फायदा हावड़ा में मिल सकता है. जहां तीसरे चरण में 7 सीटों पर चुनाव होने हैं.

जबकि तीसरे चरण में 8 सीटें हुगली में हैं जिनमें सभी सीटें आरामबाग संसदीय क्षेत्र में आती हैं. दक्षिण 24 परगना में भले ही तृणमूल कांग्रेस का सिक्का चलता हो मगर माना यही जा रहा है कि इस बार यहां से ममता बनर्जी को हार का सामना करना पड़ सकता है. यहां तृणमूल पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं और बताया गया है कि ममता बनर्जी सिर्फ समुदाय विशेष के हितों का ध्यान रख रही हैं.

दक्षिण 24 परगना में ममता बनर्जी पर भ्रष्टाचार के आरोपों को भी हवा दी जा रही है और उन्हें घोटालों में लिप्त बताते हुए कहा जा रहा है कि उन्होंने अम्फन तूफान के वक़्त जो मदद राज्य को केंद्र से मिली उसे लोगों तक नहीं पहुंचाया. यहां सुंदरबन को भी एक बड़ा मुद्दा बनाया गया है. राज्य के इस हिस्से में भाजपा ने लोगों से किस्म किस्म के वादें किये हैं और उन्हें भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने की बात कही है. ध्यान रहे दक्षिण 24 परगना वो हिस्सा है जो प्रकृति की सबसे जुआड़5 मार सहता है और यहां की एक बड़ी आबादी बड़ी ही दयनीय स्थिति में जीवन यापन करती है.

ये इसी चरण में है कि चाहे वो घुसपैठ हो या फिर औधोगिकीकरण और प्रवास हर उस चीज को भाजपा ने मुद्दा बनाया है जो तृणमूल और ममता बनर्जी को मुसीबत में डाल सकती है. भाजपा ने यहां के लोगों को डबल इंजन की सरकार देने का वादा किया है. यहां लोगों के बीच भाजपा ने रोजगार को भी एक बड़े मुद्दे की तरह पेश किया है और लोगों से वादा किया है कि यदि राज्य में भाजपा की सरकार बनती है तो लोगों को बम्पर नौकरियां दी जाएंगी. चाहे वो नया कृषि कानून हो या फिर एमएसपी, लेबर लॉ हर मुद्दा अपने में एक बड़ा मुद्दा है.

तीसरे चरण में चाहे वो ग्रामीण क्षेत्र हों या फिर शहरी बस्तियां कहना गलत नहीं है कि यहां पूरा चुनाव बदला जा सकता है. बात बंगाल चुनाव और ममता बनर्जी बनाम भाजपा की हुई है तो हम किसी भी सूरत में मुस्लिम मतदाताओं को नकार नहीं सकते हैं. मुस्लिम मतदाता ममता से खुश हैं और माना यही जा रहा है कि मुस्लिमों का एकतरफा वोट तृणमूल के खाते में आएगा.

बताते चलें कि दक्षिण 24 परगना में मुस्लिम मतदाताओं की हिस्सेदारी 35.6 प्रतिशत है. हावड़ा में 26.20 प्रतिशत है. कह सकते हैं कि इन हिस्सों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. वहीं बात अगर भाजपा की हो तो उसने घुसपैठ को एक बड़ा मुद्दा बनाया है और पॉलिटिकल किलिंग और अराजकता पर ज़ोर दिया है. यानी भाजपा बंगाल में भी राष्ट्रवाद को एक बड़े मुद्दे की तरह पेश कर रही है.

बहरहाल हम फिर इस बात को दोहरा देना चाहेंगे कि चाहे वो तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी हों या फिर भाजपा और किसी ज़माने में ममता के खासमखास रहे सुवेन्दु अधिकारी जीत की डगर किसी के लिए भी सुगम नहीं है. फैसला जनता को करना है और चाहे वो तीसरा चरण हो या फिर बचे हुए 5 चरण जनता अपना फैसला कर चुकी है.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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