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Updated: 09 मार्च, 2021 12:21 PM
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राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भरतपुर में अपने जन्मदिन के मौक़े पर जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मैं वही वसुंधरा राजे हूं जो पहले थी. काश़ वह समझ पाती कि BJP वह नहीं रही जो पहले थी. वसुंधरा राजे ने अगली लाइन में कहा कि वह कोई भी बड़ा काम करने से पहले पूजा पाठ कर उसकी शुरूआत करती है इसके बाद से ही राजस्थान में अटकलों का बाज़ार गर्म है कि पूजा पाठ हो गया अब कौन सा बड़ा काम होने वाला है? माना जा रहा है कि हाशिये पर चल रही वसुंधरा राजे अपने जन्मदिन पर धार्मिक यात्रा के बहाने राजस्थान में ताक़त दिखाना चाह रही थी और इसीलिए BJP के सभी सांसदों और विधायकों को भरतपुर में बुलाया था. मगर कहा जा रहा है कि BJP के केवल 27 विधायक ही वसुंधरा राजे के पास पहुंचे. वसुंधरा राजे का जन्मदिन है. मगर जिस तरह से उनके जन्मदिन के मौक़े पर बधाई देने वाले विधायक और सांसद ग़ायब रहे हैं यह दिखाने के लिए काफ़ी है कि राजस्थान BJP में अब बहुत कुछ बदल गया है. जानकार कह रहे हैं कि जो कुछ पिछले दो दिनों से वसुंधरा राजे भरतपुर में कर रही है उस तरह की राजनीति की संस्कृति कांग्रेस की है BJP की नहीं.

Vasundhra Raje, Rajasthan, Birthday, Chief Minister, BJP, Narendra Modi, Congressवसुंधरा राजे का शुमार भारतीय राजनीति के कद्दावर राजनेताओं में होता है

दरअसल वसुंधरा राजे राजस्थान में विपरीत परिस्थितियों में अपनी नई पारी खेलना चाहती हैं. मगर उन्होंने अलग पार्टी बनाने की अटकलों को यह कहकर ख़ारिज कर दिया कि उन में राजमाता विजयराजे सिंधिया का खून है और वह कभी कमल को कुम्हलाने नहीं देगी. वसुंधरा राजे के समर्थन में भरतपुर में कितने लोगों की भीड़ जुटी इसे लेकर लोगों की राय बंटी हुई है. कोई 5 हज़ार कह रहा है तो कोई 10, हज़ार कह रहा है मगर अधिकतम भीड़ के आंकलन को भी देखें तो कहा जा सकता हैकि वसुंधरा राजे के क़द के लिहाज़ से यह कम ही था.

BJP के केंद्रीय नेतृत्व के साथ वसुंधरा राजे के रिश्ते बहुत मधुर नहीं हैं. ऐसे में कहा जा रहा है कि राजेने अपने लिए कठिन राह चुनी है मगर वसुंधरा राजे की राजनीति को देखें तो राह राजे की कभी भी आसान नहीं रही है. वसुंधरा राजे का बचपन राज परिवार और राजनीतिक परिवार दोनों में हुआ. आठ मार्च 1953 को मुंबई में वो पैदा हुई. कोडईकनाल में उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई और उच्च शिक्षा मुम्बई में हुई.

राजनीतिक दल परिवार में पैदा लेने की वजह से उनके लिए चुनावी राजनीति में उतरना कोई मुश्किल भरा काम नहीं था. मगर राजनीति में अपने अदब और दबंगता के लिए जाने जाने वाली राजमाता विजय राजे सिंधिया और उस वक़्त के ग्वालियर के लिए इज़्ज़तदार अब स्वाभिमानी राजा जीवाजीराव सिंधिया की बेटी वसुंधरा राजे ने अपने लिए ही कठिन रास्ता चुना. राजमाता विजया राजे सिंधिया के इकलौते बेटे मारधाड़ और सिंधिया उनका साथ छोड़ कर कांग्रेसbका हाथ थाम चुके थे 1980 में बनी BJP के संस्थापक सदस्यों में विजया राजे सिंधिया शामिल थी.

चंबल के इलाक़े में माधवराव सिंधिया कांग्रेस का चेहरा बन रहे थे तब उनकी मां ने अपनी राजनीतिकbविरासत के तौर पर वसुंधरा राजे को आगे बढ़ाने के लिए तय किया.1984 में इंदिरा गांधी की हत्याके बाद कांग्रेस के पक्ष में लहर थी इसके बावजूद वसुंधरा राजे को भिण्ड लोक सभा क्षेत्र से BJP के टिकट पर चुनाव में उतार दिया. माधवराव सिंधिया समझते थे कि सिंधिया परिवार की विरासत तो एक ही संभाल सकता है लिहाज़ा भिंड में अपनी बहन वसुंधरा के सामने उन्होंने दतिया के महाराजा किशन सिंह जूदेव को उतार दिया.

ग़ैर राजनीतिक व्यक्ति किशन सिंह जूदेव के हर चौराहे पर ओले तहत है और जनता में इस क़दर सहानुभूति उनके लिए पैदा हुई वसुंधरा राजे बुरी तरह से चुनाव में पराजित हो गई. मां समझ गई कि चंबल के इलाक़े में सिंधिया परिवार की विरासत तो बेटा माधवराव सिंधिया ही संभालेगा लिहाज़ा वसुंधरा राजे को BJP की राष्ट्रीय कार्यसमिति में शामिल कर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ज़रिए राजस्थान के क़द्दावर नेता और पूर्व उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत से संपर्क 1985 में धौलपुर लोकसभा सीट से चुनाव में उतार दिया.

72 में धौलपुर के महाराजा हेमंत सिंह के साथ वसुंधरा राजे की शादी हुई थी मगर जब बेटे दुष्यंत सिंह पेट में थे तभी एक साल बाद ही पति से तलाक़ हो गया. वसुंधरा साहसी थी उन्होने कठिन रास्ता चुना.1985 में धौलपुर सेवा चुनाव जीत गई और पहली बार राजस्थान विधानसभा की सदस्य बनीं. वसुंधरा राजे कोराजस्थान की राजनीति में सक्रिय करने के लिए 1987 में युवा मोर्चा का उपाध्यक्ष बनाया गया. राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत राजनीति के धुरंधर थे उन्होंने तुरंत भांप लिया कि वसुंधरा राजे उनके लिए राजस्थान की राजनीति में बड़ी चुनौती हो सकती हैं.

लिहाज़ा 1989 के लिए लोक सभा चुनाव में उन्हें मध्य प्रदेश से लगती हुई झालावाड़ ज़िले में लोक सभा की टिकट पर चुनाव लड़वा दिया.1990 में भैरो सिंह शेखावत ख़ुद धौलपुर विधानसभा से चुनाव लड़े और सरकार बनी तब वसुंधरा राजे सांसद थी लिहाज़ा मंत्री बनने का मौक़ा नहीं मिला.1993 में फिर चुनाव हुए तो विजया राजे जी का मन था कि वसुंधरा राजे राजस्थान की राजनीति में रहें क्योंकि केंद्र की राजनीतिमें ख़ुद सक्रिय थी लिहाज़ा धौलपुर से एक बार फिर उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ाया गया.

मगर कहाजाता है कि भैरो सिंह सिंह शेखावत नहीं चाहते थे कि 1993 में जब भारी बहुमत के साथ BJP कीसरकार बन रही हो तो वसुंधरा राजे राज्य की राजनीति में सक्रिय रहें लिहाज़ा BJP की बड़ी जीत के बावजूद वसुंधरा राजे धौलपुर विधानसभा का चुनाव हार गई. इसके बाद विजया राजे समझ गई कि जब तक भैरो सिंह शेखावत यहां पर हैं वसुंधरा राजे का कोई भविष्य नहीं है. लिहाज़ा वह केंद्र कीराजनीति में लगातार सक्रिय रही और झालावाड़ से सांसद बनकर केंद्र में विदेश राज्यमंत्री से लेकर लघु उद्योग तक मंत्रालय संभाला. इस बीच BJP में केंद्र में राजस्थान का एक नया नेता स्थापित हो चुका था.

पूर्व विदेश मंत्री जसवंतसिंह की पत्नी और सिंधिया परिवार के क़रीबी सरदार आग्रें के परिवार के बीच क़रीबी रिश्ता था और विजया राजे अटल बिहारी वाजपेयी से कहकर जसवंत सिंह को BJP की राजनीति में लेकर आयी. 1998 में प्रचंड बहुमत के साथ ही राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत युग की शुरुआत हुई थी.तब पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रमोद महाजन को यह ज़िम्मेदारी दी है कि वसुंधरा राजे को राजस्थान की राज जीत में स्थापित करें.

भैरों सिंह शेखावत एकबार फिर से मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लिहाज़ा राजस्थान की राजनीति छोड़कर उप राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते थे मगर BJP के केंद्रीय नेतृत्व के आगे उन्हें झुकना पड़ा और वो दिल्ली गए इधर BJP केप्रदेश अध्यक्ष के तौर पर 2002 में वसुंधरा राजे स्थापित हो गई. राजपूत की बेटी जात की बहू और गुज्जर की सास का BJP का फ़ॉर्मूला इतना हिट हुआ कि 2003 में अशोक गहलोत बुरी तरह से पराजित हुए और फिर राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा युग की शुरुआत हो गई.

चुनाव ख़त्म होनेके बाद एक बार जब हम लोग प्रमोद महाजन के साथ खाना खा रहे थे तो उन्होंने कहा था कि हमने वसुंधरा राजे की आंखों में भी यह राजे सिंधिया की झलक देखी थी जिसमें ग़ज़ब का सम्मोहन था और हमें यक़ीन था कि राजस्थान की जनता इस सम्मोहन में बंध जाएगी.भिंड मुरैना का पानी पियें वसुंधरा राजे कहा किसी की ग़ुलामी बर्दाश्त करने वाली. जल्दी ही प्रमोद महाजन से उनके रिश्ते बहुत मधुर नहीं रहे और उनके पुराने दोस्त ललित मोदी राजस्थान की राजनीति के चर्चित चेहरा बन गए थे.

इस बीच राजस्थान में गुर्जर आंदोलन हुए जिसकी वजह से वसुंधरा राजे से एक बड़ा समुदाय नाराज़ हो गया. कहा जाता है कि भैरो सिंह शेखावत के कहने परकैलाश मेघवाल ने विधायक दल की मीटिंग में ही वसुंधरा राजे पर हज़ारों करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार का आरोप लगा दिया. उसे लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ख़ूब बनाया और चुनावों में भ्रष्टाचारका यह आरोप चर्चित विषय रहा.

कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी ने एकबार तो वसुंधरा राजे को हटाने का मूड बना लिया था मगर लाल कृष्ण आडवाणी बीच में आ गए. मगर 2008 में वसुंधरा राजे की अगुवाई में BJP चुनाव हार गई. ऐसा लगा कि वसुंधरा राजे का युग राजस्थान में ख़त्म हो जाएगा मगर वसुंधरा लड़ना जानती है औरलड़ कर जीतना जानती है. वसुंधरा राजे हारने के बाद भी नेता प्रतिपक्ष बनना चाहती थी मगर उससमय के तत्कालीन BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह उन्हें नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाना चाहते थे लिहाज़ा विधायकों को लेकर वसुंधरा राजे ने मोर्चा खोल दिया और राजनाथ सिंह को झुकना पड़ा.

चुनाव से ठीक पहले BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष की गद्दी पर नितिन गडकरी बैठे थे और यह तय हुआ किचुनावी यात्रा पर गुलाबचंद कटारिया निकलेंगे मगर तभी वसुंधरा राजे ने पार्टी छोड़ने की धमकी दे दी और नितिन गडकरी को झुकना पड़ा. आखिरकार 2013 वसुंधरा राजे की अगुवाई में एक बार फिर से BJP चुनाव में उतरी और इस बार वसुंधरा राजे ने BJP के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी जीत दिलायी जिसमें अंत में 165 BJP विधायक BJP के थे.

इस बार वसुंधरा राजे का प्रशासन शानदार रहा और भामाशाह योजना,जल स्वालंबन योजना, अन्नपूर्णा रसोई योजना, किसानों की कर्ज़ माफ़ीसमेत किसानों के बिजली बिल माफ़ी सहित कई क्रांतिकारी योजनाएं लागू हुई. प्रशासन की दृष्टि से या कार्यकाल जीतना शानदार था राजनीतिक दृष्टि से उतना ही असफल रहा. कहते हैं कि इस बार वसुंधरा राजे की राजनीति उनके बेटे सांसद दुष्यंत सिंह तय कर रहे थे.वसुंधराराजे के अंदर जिस तरह से लोगों से बातचीत करने में एक नैसर्गिक प्यार है उसी तरह से राजा साहब में लोगों से बातचीत करने में एक नैसर्गिक अहंकार है.

राजेंद्र राठौड़,गजेन्द्र सिंह, भूपेन्द्र यादव औरलोक सभा अध्यक्ष ओम बिड़ला जैसे राजनीतिक सूझ-बूझ वाले वसुंधरा राजे के क़रीबी नेता दूर होतेचले गए. उनकी जगह पर यूनुस ख़ान अशोक परनामी और राजपाल सिंह जैसे नेताओं ने ले लियाजिनमें राजनीतिक समझ की भारी कमी थी. शानदार प्रशासन देने के बावजूद वसुंधरा राजे कांग्रेस सेकुल एक लाख बयालीस हज़ार कम मत पाकर चुनाव हार गई. लोग कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उस वक़्त के BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से ही अगर वसुंधरा राजे अच्छे संबंध रखती तो शायद इतने वोट तो वही जुटा लेते.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच वह सियासी ड्रामे में वसुंधरा राजे की निष्ठापर कई तरह के सवाल उठे. उसके बाद BJP में उनके लिए हालात बहुत अच्छे नहीं रह गए हैं. वहBJP की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तो है मगर उन्हें पार्टी ने कोई काम नहीं दिया है. दो साल से ज़्यादा का वक़्त हो गया है मुख्यमंत्री के पद से हटे हुए मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिलने तक का वक़्त नहीं दिया है.

अब लोगों की भीड़ जुटाकर वसुंधरा राजे अपना ताक़त दिखाकर BJP को झुकाना चाहती है जैसे पहले कर चुकी है मगर न तो अब वह BJP रही नहीं और न हूं अब वह BJP के नेता रहे.हर सफ़रमें एक मोड़ आता है, वसुंधरा राजे अपने सियासी सफ़र में आज उसी मोड़ पर खड़ी है जहां से वहकिस रास्ते जाती है इस पर सभी की नज़रें इसी पर टिकी है.वसुंधरा अपने मिज़ाज से राजनीति करने के लिए जानी जाती है.

कहते हैं कि भले ही BJP में नरेंद्र मोदी और अमित शाह का युग की शुरूआत हो गई हो पर वसुंधरा राजे ने कभी घुटने नहीं टेके हैं.आज तक उन्होने नोट बंदी को लेकर कोई बयान नहीं दिया तो नहीं दिया और कृषि बिल को लेकर जनसभा में कुछ बोलना तो छोड़िए ट्विट तक नहीं किया तो नहीं किया. राजनीतिक गलियारों में तो चर्चा इस बात को लेकर भी है कि केंद्र में भी BJP में बहुत कुछ ठीक नहीं है इसलिए वसुंधरा राजे बेहतर मौकों के तलाश में इन्तज़ार कर रही है वसुंधरा को जानने वाले कहते हैं कि इतनी आसानी से उन्हें ख़ारिज नहीं माना जाना चाहिए.

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