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Updated: 08 नवम्बर, 2020 08:14 PM
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
  @siddhartarora2812
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नैतिकता वो चिड़िया है जो भूत की भांति अब सिर्फ फिल्मों-किताबों में दिखती है. मोहिनी की तरह फोटो खींचते वक़्त मिसिंग और खींचने के बाद बाल खोले डार्क सर्कल बनाए नज़र आती है. नैतिकता एक चुड़ैल का इनवर्टेड दर्जा रखने लगी है, चुड़ैल नहीं दिखनी चाहिए, नैतिकता दिखनी चाहिए, चाहिए शब्द किताबों से आया है क्योंकि न चुड़ैल दिखती है, न नैतिकता दिखती है. फिर कौन दिखती है? फिर मौकापरस्ती दिखती है, घृणा दिखती है. कांग्रेस जब सत्ता में न हो तो वहां अराजकता दिखती है. महाराष्ट्र कांग्रेस के लिए एक्सपेरिमेंट लैब बन गया है. वो वहां हैं भी और उनका कुछ भी अच्छा-बुरा किया उनके खाते में चढ़ना भी नहीं है. जैसा सीएम है, उनकी अलग परेशानी है. वो अपने बेटे को बचाएं या राज्य को? हमेशा कन्फ्यूज़ रहते हैं और उनकी कुर्सी हमेशा बेटे की तरफ झुक जाती है.

यहां हमें मौकापरस्ती का जोड़ीदार पक्षपात भी दिखता है. पक्षपात दोनों तरफ से हो तभी मज़ा आता है, इधर अर्नब साम-दाम-दंड-भेद में लगे थे कि सरकार पर अविश्वास बने, लोग प्रशासन को देखकर मुंह-नाक सिकोड़ें, महाराष्ट्र में फिर इलेक्शन हों और उनकी घरेलू पार्टी विजयी हो. जब आप कर्तव्य के बीच स्वार्थ घुसेड़ते हैं और उसके ऊपर मौकापरस्ती का तड़का लगाते हैं तब नैतिकता फोटो से भी धुंधली होने लगती है.

इस वक़्त महाराष्ट्र में ये चिंता किसी को नहीं है कि बिजली आई या नहीं, सड़क टूटी है या बनी है, पानी गंदा है या आ ही नहीं रहा, अभी चिंता इतनी है कि सुशांत को इंसाफ मिलना था उसका क्या हुआ? अर्नब बाहर आयेगा या covid सेंटर में ही मार दिया जायेगा. सूरज-आदित्य का कुछ बने-बिगड़ेगा या फिर ये लोग फिर किसी को जबरन ससुर बना देंगे?

Uddhav Thakarey, Aaditya Thackeray, Maharashtra, Shivsena, Chief Ministerआए रोज कोई न कोई घटना हो रही है जिससे महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे सुर्ख़ियों में आ रहे हैं

प्रथम विश्व युद्ध में जब रूस ऑस्ट्रिया-हंगरी को मार-मार भूत बना रहा था तब रूस के लोग चर्चा करके वक़्त ख़ुश होते एक दूसरे को बताते थे कि देखो, हमारी सेना क्या धो रही है, उस वक़्त तीन लोगों के हाथ में एक ब्रेड होती थी, जिसे वो शेयर करके गर्म पानी के साथ खा रहे होते थे. जब देश में जंग का माहौल हो तो आदमी 'जेब कट गयी' नहीं चिल्लाता, ‘जय-हे’ करने लगता है.

महाराष्ट्र हमारे देश की आंतरिक जंग का वो फ्रंट है जो सबसे ज़्यादा हाईलाईट हो रहा है. इस वक़्त सिम्पल सी जंग है कि बीजेपी अगेंस्ट आल. बीजेपी को केंद्र की सत्ता से हटाना है, चाहे इसके लिए दंगे कराने पड़ जाएं. चीन के लिए दरवाज़े खोलने पड़ जाएं या पाकिस्तान से किलो के भाव से न्यूक्लियर खरीदना पड़ जाए. कोई बड़ी बात नहीं अबतक पीएम पर हमला भी करवा दिया होता, लेकिन अभी मुसीबत ये है कि यहां टीम तैयार है, एक को असेसिन करने की कोशिश की तो दूसरा उससे ज़्यादा निर्दयी निकलेगा, तीसरा उन दोनों से ज़्यादा सख्त साबित होगा, सो इस बार प्रधानमंत्री को ज़हर देने से बेहतर है हवाओं में ज़हर फैलाओ.

नफ़रत भरो, झगड़े कराओ, जो विश्व भर के सामने आलरेडी बुरे चल रहे हैं; उनको उकसा के और मूर्खता करवाओ, जब लोग उनके ख़िलाफ़ होने लगें तो कहो ‘मोदी ने आपसी भाईचारा खत्म किया है.’ ये वो रेसिपी है जिसे देर तक पकाते रहना पड़ता है. मगर समस्या तब होती है जब आनन-फानन मध्यप्रदेश में सरकार पलट जाती है, राजस्थान में सरकार गिरते-गिरते बचती है. यहां डर सताता है कि आज नहीं कल महाराष्ट्र का नंबर भी लगना ही है, यहां भी सत्ता से उतरे तो क्या होगा? ऐसे तो इज्जत चली जाएगी ना?

महाराष्ट्र में ग़लत-सही से पहले अपने पराये की जंग है, यहां जीत हार फैसला करेगी कि नये नियम क्या बनते हैं, वही नये नियम सही ग़लत को अपने हिसाब से जस्टिफाई कर देंगे. जनता चाबी लगे बन्दर की भांति, अपनी फेवरेट टीम के जीतने पर ताली बजाती रहेगी.

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लेखक

सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' @siddhartarora2812

लेखक पुस्तकों और फिल्मों की समीक्षा करते हैं और इन्हें समसामयिक विषयों पर लिखना भी पसंद है.

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