कांग्रेस अध्यक्ष पद की खोज आखिर प्रियंका गांधी तक आकर थम गई!
कांग्रेस के नए अध्यक्ष के लिए पार्टी के दो बड़े नेताओं शशि थरूर और कैप्टेन अमरिंदर सिंह का प्रियंका के नाम पर सहमती दर्ज करना ये बताता है कि पद पर प्रियंका की नियुक्ति उसी दिन हो गई थी जिस दिन राहुल ने इस्तीफ़ा दिया था और जो भी चल रहा है वो एक फॉर्मेलिटी से ज्यादा कुछ नहीं है.
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शशि थरूर और कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मिलकर आवाज लगाई है- 'हमारा नेता कैसा हो, प्रियंका गांधी जैसा हो'. इन दो नेताओं को कांग्रेस का सबसे तटस्थ नेता कहा जा सकता है, क्योंकि इन गांधी परिवार की भक्ति करने का ठप्पा नहीं है. और ये दोनों ही अपनी बात कहने के लिए हाई-कमान के इशारे का इंतजार नहीं करते. इन दोनों ही नेताओं ने जिस तरह से पार्टी नेतृत्व की जिम्मेदारी के लिए गांधी परिवार की ओर रुख किया है, उससे फिर राहुल गांधी के फैसले पर सवाल खड़ा हो गया है. यदि प्रियंका ही आखिरी उम्मीद हैं तो कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव का कितना महत्व रह जाता है?
बिना सिर की कांग्रेस कब तक?
लोकसभा चुनाव में मिली हार और उस हार के बाद जिस तरह 'नैतिक जिम्मेदारी' लेते हुए राहुल गांधी ने अपना इस्तीफ़ा दिया. कांग्रेस की मौजूदा स्थिति गंभीर है. कह सकते हैं कि वर्तमान में कांग्रेस पार्टी उस शरीर की तरह बन गई है, जिसके पास सब कुछ है बस सिर का आभाव है.
शशि थरूर और अमरिंदर सिंह का सामने आना और प्रियंका के नाम को लेकर सहमती जताना कई मायनों में दिलचस्प है
अतः कल अगर कांग्रेस को भाजपा से मोर्चा लेना है. 2024 के चुनावों के लिए रणनीति बनानी है. तो उसे अपनी इस कमी को दूर कर जल्द से जल्द अपने लिए एक कुशल अध्यक्ष का चयन करना होगा. कांग्रेस की दशा सारे देश के सामने है. दिशा इसे तभी मिल पाएगी जब अध्यक्ष पद को लेकर मचे इस ड्रामे पर अतिशीघ्र विराम लगे.
कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव सिर्फ आदर्श कल्पना?
हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल द्वारा मैदान छोड़ने के बाद कई नाम थे जो कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सामने आए. ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि एक ऐसी पार्टी जो अपनी कार्यप्रणाली से लगातार गर्त के अंधेरों में जा रही है. उसके अध्यक्ष का चयन महज एक 'आदर्श कल्पना' है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि जिस तरह मोदी 2.0 को पूर्व की सरकार के मुकाबले जनता से समर्थन मिला. साफ हो गया है कि देश की जनता भाजपा और मोदी सरकार पर भरोसा करती है. जैसे हालात हैं साफ ये भी है कि कांग्रेस की स्थिति बाद से बदतर होगी.
माना जा रहा है कि प्रियंका में वो गुण हैं जिनके दम पर डूबती हुई कांग्रेस का कल्याण हो सकता है
ऐसे में अगर कांग्रेस अपने अध्यक्ष का चुनाव कर रही है तो वो एक 'आदर्श कल्पना' से ज्यादा और कुछ नहीं है. बाक़ी बात प्रियंका की चल रही है तो जिस लिहाज से वो राजनीति कर रही हैं वो कई मायनों में राहुल गांधी की राजनीति से अच्छी है और ये राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद खुद तय हो गया था कि अध्यक्ष की कुर्सी पर प्रियंका ही बैठेंगी.
गांधी परिवार के बाहर कोई नेता कांग्रेस अध्यक्ष बनने की हिम्मत जुटा पाएगा?
ये सवाल वाकई दिलचस्प है. गांधी परिवार के अलावा जो नेता आज पार्टी में उनकी स्थिति किसी से छुपी नहीं है. बाक़ी बातें पंजाब के कद्दावर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के ट्वीट ने स्पष्ट कर दी है. कैप्टेन अमरिंदर ने अपने ट्वीट में कहा है कि INCIndia के रूप में प्रियंका गांधी सबसे योग्य उम्मीदवार हैं. और उन्हें चौतरफा समर्थन मिलेगा. साथ ही कैप्टेन ने थरूर को टैग करते हुए लिखा है कि वो थरूर से सहमत हैं कि प्रियंका में एक करिश्मा है जो रैलियों और पार्टी कार्यकर्ताओं को जोड़ता है. आशा है कि जल्द ही CWC इसपर फैसला लेगी.
.@priyankagandhi is an excellent choice for the next @INCIndia president who would enjoy all-round support. Agree with @ShashiTharoor that her natural charisma would galvanise & rally the workers and voters alike. Hope the CWC decides on it soon. pic.twitter.com/JAZRUnc1mY
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) July 29, 2019
यदि पंजाब के मुख्यमंत्री की इन बातों पर गौर करें तो ये अपने आप ही साफ हो जाता है कि कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए व्यक्ति का गांधी परिवार का होना जरूरी है. यानी ये अपने आप ही साफ हो गया है कि जब पार्टी के बड़े और कद्दावर नेता खुद गांधी परिवार से जुड़े सदस्य का नाम सामने रख रहे हैं तो शायद ही कोई बाहर का नेता इस पद को पाने के लिए हिम्मत जुटा पाए.
गांधी परिवार का पार्टी में रुतबा और अधिकार क्या होगा?
इस सवाल का जवाब हमें राहुल गांधी के पिछले कार्यकाल में मिल चुका है. अपने पिछले कार्यकाल में राहुल ने जिस तरह के फैसले लिए हैं उसे 2019 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के खराब प्रदर्शन और हार का एक बड़ा कारण माना जा सकता है. चाहे चौकीदार चोर हो या फिर राफेल जिस तरह राहुल गांधी ने जमीनी मुद्दों को छोड़ के उन मुद्दों को पकड़ा जिनका कोई महत्त्व नहीं था. और इसपर किसी का कुछ न बोलना ये बता देता है कि खुद गांधी परिवार का पार्टी में रुतबा और अधिकार क्या है.
यानी अगर व्यक्ति गांधी परिवार से है तो उस स्थिति में किसी की मजाल नहीं है कि उसके विरोध में आए और कोई बात कहे. अब क्योंकि प्रियंका के अध्यक्ष बनने पर बात हो रही है. तो पद पाने के बाद प्रियंका भी तबियत से अपने मन की बात कर सकती हैं और क्योंकि वो खुद गांधी परिवार का अहम हिस्सा हैं तो पार्टी के अन्य लोग चुपचाप इनकी बातों को बर्दाश्त कर लेंगे और वो विरला ही होगा जो इनके विरोध में सामने आएगा.
तो आखिरकार कांग्रेस वर्किंग कमेटी का कोई बाल बांका नहीं कर पाएगा
नए अध्यक्ष का चयन या ये कहें कि प्रियंका का अध्यक्ष बनना ये पूरा फैसला कांग्रेस वर्किंग कमेटी के हाथ में है. बात अगर इस कमेटी की हो तो इनमें वो लोग शामिल हैं जिन्होंने राजीव के साथ राजनीति की है. जिन्होंने सोनिया का उदय और उन्हें बढ़ते हुए देखा है. एक ऐसा वर्ग जिसमें सब बुजुर्ग हों सवाल ही नहीं उठता कि वो वर्ग नए लोगों को मौका देगा.
ज्ञात हो कि पूर्व में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी नाम सामने आ चुका है और कहा यहां तक गया था कि क्योंकि देश युवाओं का है CWC में युवाओं को मौका दिया जाएगा. दिलचस्प ये है कि इस विचार को बाद में पार्टी के बुजुर्गों ने पूरी तरह खारिज कर दिया था.
ऐसे में अब जब प्रियंका का मुकद्दर ये लोग तय करने वाले हैं तो साफ हो गया है कि इनके अच्छे दिन खत्म होने में अभी लम्बा वक्त लगेगा.
कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ और प्रभावशाली नेताओं ने जब प्रियंका गांधी के नाम पर ठप्पा लगाना शुरू कर दिया है, तो देखना होगा कि इस पर राहुल गांधी किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं. याद रखिए प्रियंका गांधी के नाम को तब आगे बढ़ाया जा रहा है जब राहुल गांधी अपना इस्तीफा देते हुए पहले ही साफ कर चुके हैं कि गांधी परिवार का कोई भी सदस्य कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी नहीं करेगा, और चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी ढंग से होगा.
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