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Updated: 03 दिसम्बर, 2018 05:10 PM
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विज्ञान का विद्यार्थी होना अच्छी बात है. स्कूल में न पढ़ा हो तो स्वाध्याय भी चलता है. राजनीति में भी विज्ञान फायदेमंद होता है. आईआईटी से पढ़े नेताओं की भी अच्छी खासी तादाद है जो राजनीति में सफल हैं. विकास की बात होती है तो राहुल गांधी एस्केप वेलॉसिटी की मिसाल देते हैं. गठबंधन की बात होती है तो केमिस्ट्री पर उतर आते हैं. चाहते क्या हैं?

तेलंगाना चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और टीडीपी नेता एन. चंद्रबाबू नायडू ने मंच साथ शेयर किया - और उसे लेकर राहुल गांधी का कहना है कि दोनों की केमिस्ट्री अच्छी है. अच्छी बात है. बल्कि, बहुत अच्छी बात है. मगर क्या केमिस्ट्री के साथ साथ दोनों की पॉलिटिक्स भी अच्छी है? गठबंधन के लिए दोनों की अलग अलग पॉलिटिक्स नहीं, आपसी पॉलिटिक्स महत्वपूर्ण होती है. खानदानी विरासत के बूते ताजपोशी के बाद भी राहुल गांधी अपने मुकाम के लिए जूझ रहे हैं - और 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टक्कर देने की तैयारियों में जुटे हैं. समझ में नहीं आता कि राहुल गांधी 'पॉलिटिक्स' को छोड़कर आखिर कब तक फिजिक्स-केमिस्ट्री में उलझे रहेंगे?

राहुल गांधी और नायडू को अभी साथ पसंद है

2019 के लिए गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस गठबंधन की पहल करने वाले प्रयासरत नेताओं की सूची में टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव ने भी अपना नाम दर्ज कराया था - कुछ दूर तक बाकियों से आगे भी बढ़े, लेकिन फिर हाथ और पैर दोनों खींच लिये. 1 नवंबर को दिल्ली में राहुल गांधी और आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की मुलाकात के बाद टीआरएस नेता ने तेलंगाना में अपनी रणनीति पर दोबारा सोचना शुरू किया और उसी के हिसाब से आगे बढ़ चले.

rahul gandhi, naiduये तो प्योर पॉलिटिक्स लगता है...

तेलंगाना में जब राहुल गांधी ने चंद्रबाबू नायडू के साथ मंच साझा किया तो ऐलान भी कर दिया - "पहले हम नरेंद्र मोदी की बी टीम के खिलाफ लड़ेंगे और इसके बाद हम ए टीम को मात देंगे.' राहुल गांधी टीआरएस को मोदी की बी टीम और एनडीए को ए टीम बता रहे हैं. रैली में ही राहुल गांधी इसे और स्पष्ट कर देते हैं, 'टीआरएस, तेलंगाना राष्ट्र समिति नहीं है, बल्कि यह तेलंगाना राष्ट्रीय संघ परिवार है. ये संघ और बीजेपी की बी टीम है.'

सिर्फ यही नहीं, जो इल्जाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस नेतृत्व पर लगाते हैं, टीआरएस नेतृत्व को भी राहुल गांधी उसी खांचे में फिट करने की कोशिश करते हैं, 'केसीआर ने वंशवाद की राजनीति की और उनकी सरकार का फायदा सिर्फ एक परिवार को ही मिला.'

केसीआर के साथ ही राहुल गांधी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को भी लपेटते हैं, 'टीआरएस और एआईएमआईएम का लक्ष्य है कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस भाजपा को हराने में सक्षम न हो पाये.'

केमिस्ट्री तो अच्छी है, पर पॉलिटिक्स

चंद्रबाबू नायडू की पार्टी के साथ राजनीतिक गठबंधन को लेकर राहुल गांधी का कहना है, 'हमारी केमिस्ट्री अच्छी है और हम एक दूसरे को पसंद भी करते हैं. हमें एक दूसरे के साथ काम करने में मजा आता है.'

यूपी चुनाव के दौरान भी राहुल गांधी इसी तरह अखिलेश यादव के साथ रोड शो किये थे. तब स्लोगन था - 'यूपी को ये साथ पसंद है'. चुनावों में यूपी को तो ये साथ पसंद नहीं आया, चुनाव बीतने के कुछ दिन बाद ही एक दूसरे के प्रति भी नापसंदगी बढ़ने लगी - और अब तो हालत ये है कि अखिलेश यादव कांग्रेस का बीएसपी के साथ भी गठबंधन नहीं होने देना चाहते हैं.

rahul gandhi, naiduसिर्फ केमिस्ट्री या थोड़ा पॉलिटिक्स भी...

मौजूदा गठबंधन क्या राष्ट्रीय शक्ल भी अख्तियार करेगा? ये बड़ा सवाल है. शरद पवार केंद्र में संभावित गठबंधन पर पर्दे के पीछे कड़ी मशक्कत कर रहे हैं. फिर भी वो राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे किसी गठबंधन की संभावना से साफ इंकार करते हैं. शरद पवार ये जरूर मानते हैं कि हर राज्य में अलग अलग तरीके के मॉडल बन सकते हैं, लेकिन नेशनल लेवल पर कोई तीसरा मोर्चा मुमकिन नहीं लगता. असल में ये थ्योरी बीजेपी के बागी नेता अरुण शौरी ने दी थी - यशवंत सिन्हा और ममता बनर्जी भी इससे इत्तेफाक रखते हुए अपने अपने स्तर पर काम कर रहे हैं.

जाहिर है राहुल गांधी और चंद्रबाबू नायडू के सामने भी ये सवाल होगा - और यही सबसे बड़ी चुनौती भी है. हालांकि, पूछे जाने पर दावे अलग तरीके से किये जा रहे हैं. असल में ऐसे दावों के पीछे तात्कालिक राजनीतिक मजबूरी भी होती है.

'क्या ये विचारों का मेल है? क्या आप बहुत सारी बातों पर एक राय हैं?'

एनडीटीवी के इस सवाल पर राहुल गांधी कहते हैं, 'हम एक दूसरे को पसंद करते हैं. हम सोचते हैं कि ऐसा बहुत कुछ है जो हम मिलकर कर सकते हैं, आप आने वाले चुनावों में ऐसा देख सकते हैं, हम चुनाव जीतने वाले हैं.'

एक और सवाल - 'आप लोगों में कैसी बन रही है? लंबे समय से आप दोनों एक-दूसरे के साथ नहीं थे - पहले दोस्ती की शुरुआत हुई और उसके बाद गर्मजोशी बढ़ी है.'

राहुल गांधी का जवाब होता है, 'हमारी कैमिस्ट्री बहुत बढ़िया है. मैं कुछ समय से नायडू जी के साथ काम कर रहा हूं. मैं कह सकता हूं कि हमारी सोच में बहुत कुछ एक जैसा है.'

आंध्र प्रदेश कांग्रेस का डर वाजिब है

तेलंगाना कांग्रेस के अध्यक्ष उत्तम कुमार रेड्डी ने राहुल गांधी और नायडू की पब्लिक मीटिंग को ऐतिहासिक बताया, लेकिन हाल ही में खबर आयी थी कि आंध्र प्रदेश कांग्रेस के नेता ऐसे गठबंधन से डरे हुए हैं. उनके डरे होने की वजह भी काफी हद तक वाजिब है. आंध्र प्रदेश कांग्रेस नेताओं का मानना है कि जिसके अब तो जो लड़ाई टीडीपी के खिलाफ लड़ते रहे आगे से लोगों को ये भी समझाना होगा कि अब साथ क्यों हो गये?

जहां तक टीडीपी की बात है तो 1982 में एनटी रामाराव ने पार्टी का गठन ही कांग्रेस के वर्चस्व को खत्म करने के लिए किया, लेकिन 36 साल बाद हालात बदल चुके हैं. वैसे टीडीपी के गठन के वक्त चंद्र बाबू नायडू कांग्रेस में रहे. नायडू ने 1978 में राजनीति की शुरुआत ही कांग्रेस के साथ की - और दो साल बाद ही कांग्रेस सरकार में मंत्री भी बने.

केमिस्ट्री जरूरी या पॉलिटिक्स

मालूम नहीं क्यों राहुल गांधी पॉलिटिक्स करते करते उसमें अक्सर फिजिक्स और केमिस्ट्री का तड़का लगाते रहते हैं. सियासी गठबंधन कभी नेताओं की आपसी केमिस्ट्री से नहीं चलता, बल्कि उसे ठोस पॉलिटिक्स का बॉन्ड मजबूत बनाता है.

क्या बगैर राजनीतिक स्वार्थ के कोई गठबंधन टिक सकता है? क्या अखिलेश यादव के साथ राहुल गांधी की केमिस्ट्री खराब थी? फिर भी गठबंधन ऐसे मोड़ पर पहुंच गया कि मैथ का पेपर भी खराब हो गया - और तमाम कोशिशों के बावजूद अब तक इम्प्रूवमेंट नहीं हो पा रहा है.

आखिर लालू प्रसाद और नीतीश कुमार में कौन सी केमिस्ट्री अच्छी थी कि महागठबंधन बना? बिहार चुनाव के दौरान ही हर रोज दोनों एक दूसरे के खिलाफ कमेंट करते रहे. एक बार बिगड़ कर फिर से मिलने को आतुर हैं. अब तो पॉलिटिक्स में केमिस्ट्री ही आड़े आ रही है. ये तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की केमिस्ट्री है, जिसकी प्रोफेसर राबड़ी देवी बनी हुई हैं. लालू प्रसाद लाख चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं.

ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी को लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी और चंद्रबाबू नायडू का साथ केमिस्ट्री अच्छी न होने के चलते छूटा है - अगर वो ऐसा समझ रहे हैं तो एक बार फिर वही भूल कर रहे हैं, जो यूपी में किया था.

mamata banerjee, naiduगठबंधन में केमिस्ट्री कितना कारगर...

अगर राहुल गांधी के लिए मोदी के खिलाफ 2019 के लिए गठबंधन का आधार केमिस्ट्री ही है तो कामयाबी को लेकर शक की गुंजाइश बन रही है - आखिर ममता बनर्जी और मायावती जैसे नेताओं से केमिस्ट्री कैसे कायम हो पाएगी - और अखिलेश यादव से फिर से केमिकल इक्वेशन कौन कायम कराएगा?

वैसे गजब हाल है. एक तरह, योगी आदित्यनाथ अपने गहन मानसिक शोध से बजरंगबली की दलित जाति भी मालूम कर लेते हैं - और राहुल गांधी हैं कि जैसे तैसे अपना कुल गोत्र ढूंढने के बाद तेलंगाना के चुनाव में उम्र में अपने से 20 साल बड़े नारा चंद्रबाबू नायडू के साथ केमिस्ट्री का पेपर सॉल्व कर रहे हैं. अब तो लगता है, कहीं ऐसा न हो राहुल गांधी की राजनीतिक कामयाबी के लिए भी जुपिटर के एस्केप वेलॉसिटी की जरूरत आन पड़े.

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