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Updated: 08 फरवरी, 2022 07:00 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर लोगों में दिलचस्पी कुछ उसी तरह है जैसे यूपी के चुनाव को लेकर है. सबकी नजरें इस बात पर हैं कि आख़िरी वक्त में जिस तरह कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर चरणजीत सिंह चन्नी की ताजपोशी हुई, क्या वे कांग्रेस को दोबारा राज्य की सत्ता दिलवाने में कामयाब होंगे? हालांकि कैप्टन के हटाए जाने के पीछे सबसे बड़ी वजह पूर्व क्रिकेटर और पुराने भाजपाई नवजोत सिंह सिद्धू रहे. पूर्व क्रिकेटर का दुर्भाग्य कहें कि कैप्टन ने गद्दी तो छोड़ी मगर जाते-जाते इतने कांटे बिछा गए कि पंजाब कांग्रेस के मुखिया को कुर्सी मिलते मिलते निकल गई और सीन में चन्नी आ गए जिनकी दूर दूर तक चर्चा नहीं थी.

सिद्धू मन मसोसकर रह गए. तमाम मौकों पर चन्नी के साथ भी वे वैसा ही फील करते पाए गए जिस तरह का फील उन्हें कैप्टन के साथ हो रहा था. हालांकि चन्नी अब बहुत मजबूत दिखने लगे हैं. सिद्धू ने चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने का दबाव डाला था. राहुल गांधी ने फ़ॉर्मूला यह बनाया कि जिसे पंजाब कांग्रेस चुन लेगी, वही चुनाव में चेहरा होगा. चन्नी और सिद्धू ने किसी के भी पक्ष में आए जनादेश को मानने की रजामंदी दी और कहा कि जो भी चुना जाएगा दूसरा उसकी मदद करेगा. राहुल गांधी के पैंतरे पर पंजाब कांग्रेस ने भाजपा से कांग्रेस तक बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षा दिखा रहे सिद्धू को चन्नी के सहयोगी के रूप में चुना.

सिद्धू इसे मानें या ना मानें वे अपनी मर्जी के लिए स्वतंत्र हैं. वैसे भी उनके पास अब ज्यादा कुछ बचा नहीं दिखता. उन्हें तमाम चीजें साबित करनी हैं. हालांकि आशंका इस बात की ज्यादा है कि पूर्व भाजपा नेता ने जिस तरह की महत्वाकांक्षा दिखाई है उनके तेवर भविष्य में भी ठंडे होने वाले नहीं. पंजाब में कांग्रेस की वापसी के बाद शायद उनकी महत्वाकांक्षा एक बार फिर उन्हें दर बदर करे. सिद्धू का भविष्य में जो भी हो, लेकिन पूरे एपिसोड में राहुल गांधी ने यह साबित कर दिया कि कैप्टन के जाने के बाद पंजाब कांग्रेस अब पूरी तरह उनके नियंत्रण में हैं. वे पंजाब के सहारे निकट भविष्य में बहुत कुछ हासिल करने की एक बड़ी संभावना जगा चुके हैं.

 punjab electionचरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू.

चन्नी कांग्रेस की मजबूरी क्यों हैं?

पंजाब से कैप्टन के आउट होने के बाद चन्नी से बेहतर कांग्रेस के लिए शायद ही दूसरा कोई चेहरा हो सकता था. सिद्धू भले बड़ा चेहरा नजर आते हैं लेकिन वे ज्यादातर मीडिया के आकर्षण का विषय हैं. वे अपने दम पर पंजाब और उससे बाहर कांग्रेस का उतना भला कभी नहीं कर सकते जितना कि चन्नी करने में सक्षम दिखते हैं. पंजाब में चन्नी की ताजपोशी बहुत सोच समझकर हुई है. इसके मायने हैं जो ना सिर्फ पंजाब के विधानसभा चुनाव बल्कि आने वाले दिनों की कांग्रेसी राजनीति के लिए भी जरूरी है. एक तरह से चन्नी की ताजपोशी के साथ राहुल ने कई निशाने साध लिए हैं.

पंजाब में दलित मतदाताओं की संख्या करीब 32 प्रतिशत है. अकेले दलित मतदाता यहां किसी की भी सरकार बनाने या बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की जीत में दलित मतदाताओं की भूमिका अहम थी. पंजाब में सर्वाधिक दलित मतदाता कांग्रेस के साथ ही रहे हैं. इसके बाद वे आप, अकाली दल और भाजपा में बंटे नजर आते हैं. अकाली इस बार बसपा के सहारे सियासी तस्वीर बदलने की फिराक में है. बताते चलें कि बसपा संस्थापक कांशीराम मूल रूप से इसी राज्य से थे. यहां के दलितों में बसपा की तगड़ी घुसपैठ है. 2017 के चुनाव में शिरोमणि अकाली दल ने करीब 20 सीटें मात्र 1000 वोट से गंवा दी थी. 2022 में अकाली दल ने बसपा के साथ गठबंधन कर पुरानी गलती से सबक लेने की कोशिश में दिखती है. हालांकि अकाली दल के पैंतरे पर कांग्रेस की नजर है.

बसपा अकाली गठबंधन का दबाव

बसपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 111 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 1.59 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी तीन सीटों पर उम्मीदवार उतारकर तीसरे स्थान पर रही. 2014 के मुकाबले 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर बढ़ा और उसे 3.49 प्रतिशत मत मिले. जबकि 2014 में पार्टी 13 सीटों पर लड़ी थी. 2019 के चुनाव में बसपा का प्रदर्शन आम आदमी पार्टी से भी बेहतर था. स्वाभाविक है कि दलितों ने बसपा को वोट दिए. अकाली दल को लगता है कि बसपा का साथ लेकर वह राज्य में अपने पुराने रसूख को वापस पा सकती है. अंक गणित में तो कुछ कुछ ऐसा ही संकेत है.

चन्नी का चेहरा 32 प्रतिशत दलितों को आकर्षित करेगा

2022 में पंजाब का चुनाव मुख्य रूप से त्रिकोणीय है जो कांग्रेस, आप, अकाली दल और बसपा गठबंधन के बीच है. भाजपा कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ लड़ाई में चौथा कोण बनाने की भरसक कोशिश में है. सभी की नजर दलित मतदाताओं पर ही है. कहने की जरूरत नहीं कि दलित समुदाय से आने की वजह से चन्नी कांग्रेस की यूएसपी हैं जो राज्य के बाहर भी दलित मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में आकर्षित कर सकते हैं जो उसका पुराना वोट बैंक भी रहा है. चन्नी की ताजपोशी के वक्त से ही कांग्रेस बढ़ चढ़कर चन्नी की जाति को प्रचारित किया है.

इस वक्त देश में मायावती के अलावा कोई भी बड़ा दलित नेता नजर नहीं आता. इस बात की संभावना ज्यादा है कि अपने समुदाय से मुख्यमंत्री पाने की वजह से राज्य के 32 प्रतिशत दलित मतदाता दूसरे दल में जाने की बजाय कांग्रेस के पीछे गोलबंद हों. चन्नी के चेहरे से कांग्रेस अकाली दल की योजनाओं पर पानी फेरने का सपना गलत नहीं देख रही. कैप्टन के जाने के बावजूद अगर कांग्रेस पंजाब में मजबूत नजर आ रही है तो कहीं ना कहीं चन्नी का चेहरा ही उसकी सबसे बड़ी वजह है.

पंजाब से बाहर भी चन्नी कांग्रेस की जरूरत

पंजाब में कांग्रेस के जीतने और चन्नी के दोबारा सीएम बनने का मतलब है कि कांग्रेस पार्टी में एक बड़ा दलित चेहरा तैयार कर लेगी. जो निकट भविष्य में कांग्रेस और उसके भविष्य के लिहाज से गांधी परिवार का सबसे बड़ा हथियार बन सकते हैं. चन्नी का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश में देखा जा चुका है. उन्हें पंजाब के अलावा उत्तराखंड में भी इस्तेमाल किया जा रहा है और राजस्थान और हरियाणा के आगामी चुनावों में भी उपयोगी साबित हो सकते हैं.

अगर कांग्रेस की रणनीतियों को देखें तो वह दो मोर्चों पर लड़ रही है. एक तो पार्टी की अपनी स्थानीय राजनीति और उसकी जरूरतें हैं. साथ ही साथ पार्टी नए चेहरों और नेतृत्व को तैयार कर रही है. कांग्रेस इस रणनीति पर बहुत तेजी से काम कर रही है. यूपी, बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में कई युवा नेताओं को कांग्रेस के साथ जोड़ा जा चुका है और उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां दी गई हैं. यह अलग बात है कि उनमें कई गुमनाम चेहरे हैं लेकिन पार्टी का भरोसा और नेताओं के पीछे लगाया जा रहा संसाधन सबूत है कि कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर अपनी कोशिशों पर रणनीतिक रूप से काम कर रही है.

कांग्रेस की योजनाओं में सिद्धू के मुकाबले चन्नी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं.

लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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