पंजाब के चुनाव नतीजों में बीजेपी यूपी में अपने भविष्य की तस्वीर देख सकती है!
पंजाब के चुनावी नतीजे (Punjab Civic Body Poll Result) यूपी में बीजेपी (BJP) के भविष्य की ओर काफी हद तक इशारा कर रहे हैं - यूपी में होने जा रहे पंचायत चुनाव (UP Panchayat Election) में ही 2022 के विधानसभा चुनाव के अक्स भी देखे जा सकते हैं.
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2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे जो भी हों, लेकिन अभी तो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसान आंदोलन का पंजाब में पूरा फायदा उठा लिया है - पंजाब में हुए निकाय चुनाव के नतीजे (Punjab Civic Body Poll Result) बता रहे हैं कि कैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बीजेपी (BJP) को पूरी तरह हाशिये पर रखते हुए, अकाली दल और आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के आस पास फटकने तक नहीं दिया है. ये भी साफ हो चुका है कि किसान आंदोलन को लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह की सभी राजनीतिक चालें निशाने पर लगी हैं.
मालूम नहीं राहुल गांधी को पुडुचेरी में पंजाब के निकाय चुनाव के नतीजों की खुशी कितनी महसूस हो रही होगी. पुडुचेरी में वी नारायणसामी सरकार कांग्रेस के हाथ से विधानसभा चुनावों से पहले ही फिसल कर काफी दूर तक जाती नजर आने लगी है - और शायद हालात की हकीकत करीब से समझने के लिए ही राहुल गांधी खुद ग्राउंड जीरो पर पहुंचे हैं.
पुडुचेरी में भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने नये जुमले 'हम दो हमारे दो' को 'चौकीदार चोर है' और 'सूट बूट की सरकार' की तरह आगे बढ़ाते देखे गये. बेहतर तो ये होता कि राहुल गांधी अब भी कैप्टन अमरिंदर सिंह का लोहा मान लेते - और रवनीत बिट्टू, नवजोत सिद्धू और प्रताप सिंह बाजवा जैसे अपने मनपसंद नेताओं की क्षमता का नये सिरे से पैमाइश करते - मतलब, ये कि आज भी गांधी परिवार से इतर बीजेपी को सामने से चैलेंज करने की कुव्वत अगर किसी कांग्रेसी में है तो वो हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह और इसकी एक-दो नहीं बल्कि बहुत सी वजहें हैं.
पंजाब के निकाय चुनावों के ये नतीजे मोदी सरकार की तरफ से लाये गये कृषि कानूनों पर जनमत संग्रह न सही, लेकिन बीजेपी नेतृत्व के लिए जमीनी स्तर से महत्वपूर्ण फीडबैक तो हैं ही - चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि बीजेपी की केंद्र सरकार से पंजाब के किसान किस हद तक खफा हैं और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में भी उनको कोई उम्मीद नहीं दिखायी दे रही है. अरविंद केजरीवाल भी चाहें तो बीजेपी की ही तरह यूपी में होने जा रहे चुनाव नतीजों का बीजेपी की तरह ही पहले से सटीक अंदाजा लगा सकते हैं - वैसे भी नतीजे आने से पहले से ही बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और सीनियर बीजेपी नेता अमित शाह जिस तरीके से पश्चिम उत्तर प्रदेश और किसानों के प्रभाव वाले इलाकों के बीजेपी नेताओं के साथ माथापच्ची में जुट गये हैं, साफ साफ दिखाई दे रहा है कि बीजेपी यूपी में अपने भविष्य को लेकर किस कदर सशंकित हो चली है - और अप्रैल में होने जा रहे पंचायत चुनाव (UP Panchayat Election) अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों की तस्वीर पेश कर सकते हैं.
पंजाब से संदेशे आये हैं
किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद बीजेपी सांसद सनी देओल का नाम दोबारा सुर्खियों में आया है - और इस बार भी जो वहज है वो सनी देओल की सियासी सेहत के लिए कहीं से भी ठीक नहीं है. 26 जनवरी को हुई दिल्ली हिंसा में जिस दीप सिद्धू का नाम उछला उसने सिर्फ सनी देओल ही नहीं बल्कि पूरी बीजेपी को कठघरे में खड़ा कर दिया था. नौबत यहां तक आ गयी कि सनी देओल को सामने आकर दीप से सिद्धू से अपने रिश्ते को लेकर सफाई देनी पड़ी.
अब सनी देओल का नाम पंजाब में हुए निकाय चुनाव के नतीजों में बीजेपी की करारी हार को लेकर चर्चा में आया है. 14 फरवरी को पंजाब में 117 स्थानीय निकायों के चुनाव हुए थे - और 71.39 फीसदी मतदान दर्ज किया गया. इसमें 8 नगर निगम और 109 नगरपालिका परिषद और नगर पंचायत शामिल हैं.
किसान आंदोलन के जरिये कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अमित शाह को बड़ा अलर्ट भेजा है
कांग्रेस को जहां ज्यादातर नगर निगमों में जबरदस्त कामयाबी मिली है, वहीं अकाली दल दूसरी बड़ी पार्टी के तौर पर मौजूदगी दर्ज करा रही है, लेकिन बीजेपी और आम आदमी पार्टी को करारी शिकस्त मिली है - हैरानी की बात तो ये है कि सनी देओल के लोक सभा क्षेत्र गुरदासपुर में बीजेपी का खाता तक नहीं खुल सका है - बीजेपी को सभी 29 सीटों पर हार झेलनी पड़ी है.
साफ है नतीजों में किसान आंदोलन का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिल रहा है. पंजाब के किसानों ने राजनीतिक दलों के प्रति कृषि कानूनों पर उनके रुख को लेकर अपने तरीके से विरोध और समर्थन का इजहार किया है.
कृषि कानूनों के विरोध के चलते एनडीए में टूट भी हो गयी. अकाली दल ने केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर के इस्तीफे से शुरुआत की तो राजस्थान के हनुमान बेनीवाल ने भी बीजेपी से नाता तोड़ लिया. हालांकि, अकाली दल को उतना फायदा नहीं मिला जितना हरसिमरत कौर ने इस्तीफा देते वक्त और प्रकाश सिंह बाद ने अपना पद्म पुरस्कार लौटाते वक्त सोचा होगा.
कांग्रेस को सबसे बड़ी कामयाबी तो बठिंडा में मिली है जहां उसने पांच दशक बाद शिरोमणि अकाली दल को नगर निगम से बेदखल कर दिया है. अब बठिंडा में अकाली दल की जगह कांग्रेस का मेयर कुर्सी पर बैठने जा रहा है और कांग्रेस नेता मनप्रीत सिंह बाद ने ट्विटर पर अपनी खुशी का इजहार भी उसी अंदाज में किया है.
History has been made today! Bathinda will get a Congress Mayor for the 1st time in 53 years! Thank you to ALL Bathinda residents.
Congratulations to the people of Bathinda for a spectacular victory.Kudos to all Congress candidates and workers, who toiled for this day. pic.twitter.com/Xvczq5MjfU
— Manpreet Singh Badal (@MSBADAL) February 17, 2021
मनप्रीत सिंह बादल कोई और नहीं बल्कि शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर बादल के ही चचेरे भाई हैं और फिलहाल पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सरकार में मंत्री हैं. वो बठिंडा शहर विधानसभा क्षेत्र से ही कांग्रेस के विधायक हैं.
लगता है बीजेपी को पंजाब के किसानों के गुस्से का अंदाजा पहले ही हो गया था. तभी तो निकाय चुनाव के नतीजे आने से पहले ही बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पार्टी नेताओं की बैठक बुलानी पड़ी. बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तो मौजूद रहे ही, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी पहुंचे.
मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि बीजेपी नेतृत्व को अब किसान आंदोलन को लेकर फिक्र बढ़ने लगी है. बीजेपी को लग रहा है कि कम से कम 40 लोक सभा सीटों पर किसान आंदोलन का प्रभाव हो सकता है - और इसीलिए जेपी नड्डा चाहते हैं कि बीजेपी नेता अपने अपने इलाके में लोगों के बीच जायें और उनको कृषि कानूनों के बारे में सरकार का पक्ष समझायें.
असल में केंद्र सरकार और किसानों के बीच हुई बातचीत के 11 दौर के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकल सका है. यहां तक कि नरेंद्र सिंह तोमर के 'बस एक फोन कॉल दूर' वाला बयान प्रधानमंत्री की तरफ से दोहराये जाने के बावजूद किसानों पर कोई असर नहीं हुआ है.
पंजाब ने निकाय चुनाव के नतीजों के रूप में आये किसानों को संदेशे साफ साफ कह रहे हैं कि बीजेपी नेतृत्व अब भी अलर्ट नहीं हुआ तो आने वाले चुनावों में पार्टी को लेने के देने पड़ सकते हैं - और सबसे ज्यादा असर तो 2022 में पंजाब के साथ ही होने जा रहे यूपी चुनाव में उतरने जा रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भविष्य को लेकर भी है.
पंजाब के हिसाब से यूपी को कैसे देखें
बीजेपी में चुनावों से पहले और कई बार चुनावों के दौरान भी आंतरिक सर्वे हुआ करते हैं. देखा जाये तो पंजाब में हुए स्थानीय निकायों के चुनाव नतीजे उन आंतरिक सर्वे से भी कहीं ज्यादा सटीक रिजल्ट पेश कर रहे हैं.
बीजेपी चाहे तो निकाय चुनाव के नतीजों को तीनों कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन पर फीडबैक के तौर पर भी ले सकती है. ये भी हो सकता है कि किसान आंदोलन को लेकर कोई फैसला लेने से पहले बीजेपी नेतृत्व इन नतीजों का इंतजार भी कर रहा हो - और जैसे ही एहसास हुआ फटाफट आंदोलन प्रभावित क्षेत्रों के बीजेपी नेताओं को मीटिंग के लिए बुला लिया गया.
अमित शाह, जेपी नड्डा और नरेंद्र सिंह तोमर के साथ हुआ मीटिंग में केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और बीजेपी सांसद सत्यपाल सिंह भी बुलाये गये थे - ये दोनों ही उन इलाकों से आते हैं जहां बीजेपी को किसानों के गुस्से का अंदाजा हो चुका है.
28 जनवरी को राकेश टिकैत के आंसू नहीं छलके होते तो शायद पंजाब के इन नतीजों का उत्तर प्रदेश की राजनीति पर शायद ही कोई असर देखने को मिलता, लेकिन अब तो लगने लगा है कि यूपी में होने जा रहे पंचायत चुनाव के नतीजे भी मिलते जुलते हो सकते हैं - पूरा उत्तर प्रदेश न सही लेकिन पश्चिम उत्तर प्रदेश पर तो खासा प्रभाव पड़ सकता है.
मुजफ्फरनगर में हुई किसानों की महापंचायत भारतीय किसान यूनियन के नेता नरेश टिकैत ने दो बातें खास तौर पर कही थी. एक आरएलडी नेता अजीत सिंह का साथ छोड़ना उनकी सबसे बड़ी गलती थी - और दो, बीजेपी को आने वाले चुनावों में सबक सिखाना है. नरेश टिकैत, राकेश टिकैत के बड़े भाई हैं. दोनों भाइयों में हमेशा ही गहरा मतभेद देखने को मिला, लेकिन राकेश टिकैत की सिसकियां सुनने के बाद से नरेश टिकैत ने कहा था कि ये आंसू बेकार नहीं जाएंगे.
नरेश टिकैत के मुंह से अजीत सिंह का नाम सुन कर ये समझा गया कि वो बीजेपी की जगह अब आरएलडी को सपोर्ट करने का मन बना चुके हैं, लेकिन राकेश टिकैत की ताजा गतिविधियों से ऐसा नहीं नहीं लगता. अब ये लगने लगा है जैसे राकेश टिकैत सिर्फ किसानों नहीं बल्कि जाटों के नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं और वो पूरा इलाका जिसे जाटलैंड समझा जाता है पर फोकस होकर राजनीतिक जमीन तैयार करने में जुट गये हैं.
ये वही इलाका है जिसे लेकर बीजेपी नेतृत्व फिलहाल सबसे ज्यादा चिंतित है और अमित शाह और जेपी नड्डा ने बीजेपी नेताओं की जो बैठक बुलायी थी वे इसी इलाके से आते हैं.
और कुछ हो न हो पंजाब के निकाय चुनावों के नतीजे बीजेपी ही नहीं बल्कि सभी राजनीतिक दलों को नये सिरे से रणनीति तैयार करने पर मजबूर करने वाले हैं - विशेष रूप में योगी आदित्यनाथ के यूपी में!
सबसे दिलचस्प बात तो ये नजर आ रही है कि हैदराबाद में दिखे बीजेपी के हाई जोश की हवा पंजाब के किसानों ने निकाय चुनाव के नतीजे के जरिये पूरी तरह निकाल दी है.
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