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Updated: 11 जून, 2021 10:55 PM
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बीजेपी नेताओं (BJP) को आने वाले चुनावों (Assembly Elections 2022) के लिए मोदी का मंत्र मिल गया है - और उसके हिसाब से भारतीय जनता पार्टी की चुनावी मुहिम में आगे से काफी बदलाव देखने को मिल सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने पुरानी गलतियां न दोहराये जाने की जो नसीहत दी है वो तो ठीक है, लेकिन नेताओं को बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने के लिए जो भी टास्क दिये हैं, वे भारी पड़ सकते हैं. ऐसा भी हो सकता है कि निशाना चूके तो बुरी तरह बैकफायर भी कर सकते हैं.

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा के बाद 2022 में भी पांच राज्यों में होने जा रहे चुनावों तैयारी की रणनीति तैयार की है. बीजेपी नेतृत्व की चुनावी रणनीति के तहत ही संगठन महासचिव बीएल संतोष चुनाव वाले राज्यों का दौरा कर जमीनी हालात का जायजा ले रहे हैं और उसी के हिसाब से आगे की रणनीतियों में जरूरत के मुताबिक से बदलाव किया जा रहा है.

चुनावी राज्यों के दौरे बीएल संतोष की लखनऊ यात्रा ज्यादा चर्चित रही है - और अब तो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दिल्ली दौरा भी उसी को आगे बढ़ा रहा है. योगी आदित्यनाथ दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने वाले हैं.

कोरोना काल में पहला चुनाव बिहार में हुआ - और बिहार विधानसभा के लिए पहले से ही कोविड 19 प्रोटोकॉल लागू कर दिया गया था. चुनाव आयोग ने छोटी छोटी चीजें पहले से ही तय कर दी थी, लेकिन पश्चिम बंगाल चुनाव आते आते लगा जैसे सारी गाइ़़डलाइन सिर्फ कागजों पर सिमट कर रह गयी हो. आखिरी चरण आते आते धीरे धीरे करके सभी राजनीतिक दलों ने अपनी चुनावी रैलियां रद्द कर दी - फिर भी चुनाव आयोग विपक्ष के इस आरोप से नहीं बच सका कि पाबंदियां लगायी तो गयीं, लेकिन बीजेपी की तरफ से रैलियां रद्द कर दिये जाने के बाद.

हालांकि, अब बीजेपी नेतृत्व पहले से ही अलर्ट मोड में नजर आने लगा है. चुनाव वाले राज्यों में बीजेपी अभी से वर्चुअल रैलियों की तैयारी कर रही है. बिहार चुनाव की तो अमित शाह ने शुरुआत ही इसी तरीके से की थी - बिहार संवाद के नाम से जून, 2020 में डिजिटल रैली करके. अमित शाह की डिजिटल रैली की हर विधानसभा में लाइव स्ट्रीमिंग की गयी थी और बूथ लेवल तक लोगों को जुटा कर सुनने का इंतजाम भी किया गया था.

वैसे भी कोरोना संकट को देखते हुए वर्चुअल रैलियों के अलावा कोई रास्ता भी न बचा लगता है क्योंकि अब तो तीसरी लहर की आशंका जतायी जाने लगी है - और अगर ये सितंबर से ही शुरू भी हो गया तो चुनाव की तारीख नजदीक आते आते क्या स्थिति होगी कहा नहीं जा सकता. अगर दूसरी लहर के अनुसार कल्पना करने तो बहुत विकराल संकट की आशंका बनती है.

बाकी सब तो ठीक है, लेकिन, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी नेताओं को 'लोगों के दिलों में जगह बनाने' का जो टास्क दिया है वो तो असंभव ही लगता है - देखते हैं, मोदी है तो क्या क्या मुमकिन है?

बंगाल की गलतियां यूपी में नहीं दोहराएगी बीजेपी

बंगाल चुनाव की हार से बीजेपी को जो सबक मिले हैं उसका तो सीधा असर देखने को मिलेगा - क्योंकि अब तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी बीजेपी वालों को साफ कर दिया है कि गलतियों से हमें सीख लेनी चाहिये और सुनिश्चित करना चाहिये कि आने वाले चुनाव में वे दोहरायी न जायें.

अब तक बीजेपी ने पश्चिम बंगाल चुनाव में जो सबसे बड़ी गलती खोजी है, वो है - मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण, फिर तो मान कर चलना होगा कि उत्तर प्रदेश या दूसरे किसी भी राज्य में जहां कहीं भी इसकी जरा सी भी संभावना होगी बीजेपी दोबारा ऐसी गलती नहीं होने देगी. वैसे ऐसी गलतियों से बचने का तो बीजेपी के पास एक ही कारगर हथियार है - श्मशान और कब्रिस्तान विमर्श. उत्तर प्रदेश के लोगों को तो पहले से ही मानसिक रूप से इसके लिए तैयार हो जाना चाहिये.

जहां तक बाकी भूल सुधार कार्यक्रमों का सवाल है तो बीजेपी चुनावी राज्यों में जल्दी ही वर्चुअल रैलियां करने जा रही है - और ऐसी रैलियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट साथियों के साथ साथ बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी संबोधित करने वाले हैं.

खबर ये भी आ रही है कि बिहार की पहली डिजिटल रैली की ही तरह बीजेपी की प्रस्तावित वर्चुअल रैलियों को भी ठीक उसी वक्त चुनावी राज्यों के विधानसभाओं तक लाइव स्ट्रीमिंग के जरिये पहुंचाने की कोशिश होगी. पश्चिम बंगाल चुनाव के आखिरी चरण में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड 19 पर उच्च स्तरीय बैठक बुलायी तो उससे पहले अपनी रैलियां रद्द कर दी थी - मीटिंग के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने वर्चुअल रैलियों को ही संबोधित किया था.

narendra modiकोविड 19 की मुश्किल घड़ी में लोगों को जो जख्म मिले हैं, अब कोई भी सहानुभूति घाव भर पाएगी - मुश्किल लगता है

असल में कोरोना वायरस की दूसरी लहर में कोविड 19 के तेजी से फैलाव के पीछे जो दो बड़े कारण माने गये उनमें एक तो चुनावी रैलियां ही हैं. चुनावी रैलियों में जुटने वाली भीड़ को लेकर चुनाव आयोग ने भी नाराजगी जतायी कि कोविड 19 प्रोटोकॉल का अनुपालन नहीं हुआ. जब मद्रास हाईकोर्ट ने इसके लिए चुनाव आयोग के ही जिम्मेदार लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की बात की तो आयोग ने सीधे पल्ला झाड़ लिया. चुनाव आयोग का कहना रहा कि वो तो सिर्फ गाइडलाइन बनाता है, लागू कराने की जिम्मेदारी तो राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग पर होता है.

बहरहाल, बीजेपी को अब ये बात अच्छी तरह समझ में आ गयी है कि बंगाल और बाकी राज्यों की तरह चुनावी रैलियां करने का फैसला खतरनाक हो सकता है, लिहाजा हालात को देखते हुए अभी सिर्फ वर्चुअल रैलियों पर ही जोर रहने वाला है.

आने वाले चुनावों में एक फर्क और भी देखने को मिलने वाला है और वो 2019 के आम चुनाव के बिलकुल उलटा हो सकता है. आम चुनाव के वक्त समझा गया था कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं थी, लेकिन स्थानीय स्तर पर सांसदों को लेकर लोगों में जगह जगह गुस्सा महसूस किया गया था. ऐसी सत्ता विरोधी लहर को काउंटर करने के लिए ही प्रधानमंत्री मोदी ने अपने नाम पर वोट मांग लिये - पूरे चुनाव प्रचार में मैसेज यही रहा कि लोगों सांसदों के नाम और काम पर न जाकर मोदी के नाम पर वोट दें - तब तो ये प्रयोग सफल भी रहा, लेकिन आने वाले विधानसभा चुनावों में तो ऐसा बिलकुल नहीं होने जा रहा है.

मौका पड़ा तो मदद करने लायक रहे नहीं - अब दिलों में जगह कैसे बनायें?

जब पूरा देश कोरोना वायरस का तांडव झेल रहा था तो ऐसा लगा जैसे देश में सरकार या लोगों की मदद के लिए सरकारी मशीनरी जैसी कोई चीज ही नहीं है. तब तो लोगों के ये भी नहीं मालूम था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता को 'आत्मनिर्भर' होने का जो मंत्र दिया था वो ऐसे ही मुश्किल दौर के लिए था - और 'आपदा में अवसर' का फॉर्मूला भी.

कहीं कोई ऑक्सीजन सिलिंडर लिये भाग दौड़ कर रहा था तो कोई जरूरी दवाओं के लिए - और कोरोना संक्रमित मरीजों को भर्ती कराने के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक भटकते रहे. कुछ भाग्यशाली रहे जिनको अस्पतालों में दाखिला मिल गया, लेकिन कई लोग तो अस्पतालों के गेट पर ही दम तोड़ दिये. अस्पतालों में एडमिशन पा जाने वाले भी सभी भाग्यशाली नहीं रहे क्योंकि कहीं ऑक्सीजन की सप्लाई खत्म हो जा रही थी तो कई जगह आग लगने की घटनाएं भी हुईं. बड़े किस्मत वाले ही कोरोना से जंग जीत कर अपनों के बीच लौट सके.

लंबी खामोशी के बाद एक बार प्रधानमंत्री मोदी टीवी पर आये भी तो लगा जैसे एक झलक दिखा कर निकल लिये - बड़े दिनों बाद गुजरात में वाराणसी मॉडल की चर्चा की और फिर वाराणसी में अपने इलाके के लोगों से मुखातिब हुए तो कैमरे पर जैसे तैसे आंसू रोकते देखे गये - आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कैमरे पर दुखी होने की जरूरत क्यों आ पड़ी?

साफ है बीजेपी को मालूम हो गया है कि लोगों में कोरोना काल की बदइंतजामियों को लेकर काफी गुस्सा है - और लोगों के गुस्से के एवज में बीजेपी को आने वाले चुनावों में भारी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है. पंजाब और यूपी में हुए पंचायत चुनावों के नतीजों में तो ऐसी ही झलक देखने को मिली है.

अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अब जोर इस बात पर है कि 'लोगों के दिलों में जगह बनाने की आवश्यकता है ताकि कोविड 19 के प्रकोप से सरकार और पार्टी को हुए नुकसान को खत्म किया जा सके.'

रिपोर्ट में प्रधानमंत्री की बातों को सूत्रों के हवाले से पेश किया गया है, जिसमें वो कहते हैं, 'वोट मांगने के लिए राजनीतिक संबंध ठीक होते हैं लेकिन उससे आगे बढ़ कर लोगों के दिलों में जगह बनाने की जरूरत है - और ये तभी संभव है जब आप लोगों से जुड़े रहेंगे और उनकी जरूरत के वक्त काम आएंगे.'

देखा जाये तो प्रधानमंत्री मोदी ने कोई अतिशयोक्ति पूर्ण बातें नहीं कही हैं. ऐसा ही होता है और बीते चुनावों में होता भी आया है. अगर ऐसा नहीं होता तो बीजेपी पहले के मुकाबले ज्यादा सीटों के साथ 2019 में सत्ता में वापसी नहीं की होती, लेकिन प्रधानमंत्री का ये मंत्र हकीकत को मुंह चिढ़ाने जैसा ही लगता है.

मालूम तो प्रधानमंत्री को भी होगा ही कि कोरोना संकट की तबाही के दौर में कैसे बीजेपी नेता खुद को असहाय महसूस कर रहे थे. सार्वजनिक तौर पर तो कम ही नेताओं ने मुंह खोला लेकिन मीडिया से ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में बगैर किसी संकोच के स्वीकार करते कि वो अपने इलाके के लोगों की कौन कहे पार्टी कार्यकर्ताओं की भी मदद नहीं कर पा रहे हैं.

अब इसे कैसे समझा जाये कि उस दौर में भी सोनू सूद और पप्पू यादव जैसे लोग जिस किसी को भी ऑक्सीजन सिलिंडर और दवाइयों की जरूरत हो रही थी, उपलब्ध करा देते रहे. लोग सोशल मीडिया पर अपडेट शेयर करते और एक दूसरे की मदद करते देखे गये - क्या सरकारी मशीनरी ऐसी निकम्मी थी कि वो किसी की मदद न कर सके?

अस्पतालों को ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए अदालतों के चक्कर लगाने पड़े थे - और कई दिनों तक देश के कई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक सरकार को फटकारते और सवाल पूछते देखे गये.

रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री की सलाहियत के बाद बीजेपी नेतृत्व अपने युवा मोर्चा, किसान मोर्चा, महिला मोर्चा, OBC मोर्चा, SC-SC मोर्चा और अल्पसंख्यक मोर्चा को भी सक्रिय होने जाने का फरमान जारी करने जा रहा है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पहले तो चुनावी राज्यों के प्रभारी महासचिवों और संबंधित नेताओं से खुद बात की, उसके बाद वो उनके साथ प्रधानमंत्री के पास लेकर पहुंचे और उसी दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी तरफ से दिशानिर्देश दिये.

मीटिंग के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर बीजेपी के बड़बोले नेताओं को आगाह करने की कोशिश की. मोदी ने समझाया भी कि कैसे उनकी बयानबाजी के चलते लोग उसी पर चर्चा करने लगते हैं और सरकार के कामकाज की बातें पीछे छूट जाती हैं. प्रधानमंत्री ने साफ साफ बोल दिया है कि बीजेपी नेता लोगों के बीच मौजूदगी दर्ज करायें और उनके लिए मौके पर खुद को मददगार साबित करने की कोशिश करें.

रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने बीजेपी नेताओं से कहा - "अगर किसी को कोई परेशानी हो तो सबसे पहले उन्हें आपका ध्यान आना चाहिये कि आप उनकी मदद कर सकते हैं. उनके दुख के समय में आप उनके साथ रहें - फिर वो आपको कभी नहीं भूलेंगे!"

बिलकुल सही बात कह रहे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. मुसीबत में साथ खड़े लोगों को कोई भी ताउम्र नहीं भूलता, भले ही वो कभी उनका दुश्मन ही क्यों न रहा हो.

लेकिन क्या प्रधानमंत्री मोदी ने ये नहीं सोचा है कि दुख के समय में साथ न देने वालों को भी लोग नहीं भूलते - और कोरोना महाआपदा में लोगों को अपने इलाके के प्रतिनिधियों से लेकर सारे सरकारी मुलाजिम एक ही जैसे नजर आये हैं. ये बात वे तो कभी नहीं भूलने वाले जिन्होंने इलाज के अभाव में अपनों को गंवाया है.

क्या वो मां कभी ये भूल सकती है कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में उसका बेटा एक ई-रिक्शे पर इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया?

क्या खुद प्रधानमंत्री वाराणसी से बेटे की लाश के साथ अपने घर जौनपुर लौटी उस मां को कभी यकीन दिला सकते हैं कि मुसीबत के वक्त वो उसके आस पास मदद के लिए खड़े मिलेंगे - और अगर ऐसा नहीं है तो बेचारे बीजेपी के बाकी नेताओं के लिए तो ऐसा करना पाना असंभव ही है. है कि नहीं?

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