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Updated: 25 अप्रिल, 2019 07:35 PM
गोपी मनियार
गोपी मनियार
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2014 में गुजरात की 26 में से 26 सीटों को हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी का इस बार भी टारगेट वही है, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और गुजरात के स्थानीय नेताओं ने प्रयास बहुतेरे किए हैं. लेकिन जानकार मानते हैं कि गुजरात में बीजेपी को इस बार चुनौती कांग्रेस से नहीं, बल्कि लोगों के गुस्से से है. जिसका प्रमुख कारण है सरकार से नाराजगी. नतीजा ये है कि जिस गुजरात के विकास मॉडल की बात कर 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी ने देश का चुनाव जीता था, वही बीजेपी इस बार 6 सीटों पर गुजरात में हार का मुंह देख सकती है. यही नहीं 6 सीटों पर कांटे की टक्कर भी बताई जा रही है.

सवाल यह उठता है कि क्या प्रधानमंत्री का राष्ट्रवाद और गुजरात की अस्मिता को वोट डालते हुए बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया? इन सवालों के सामने जवाब भी है. गुजरात में 27 साल से बीजेपी का शासन है, ऐसे में एन्टीइनकंबेंसी तो है ही. लेकिन इस चुनाव में एक बात और जुड़ गई है कि लोगों के बीच यह बात घर करने लगी है कि मोदी तो गुजरात को छोड़कर पूरी तर‍ह दिल्‍ली के हो गए हैं. वहीं दूसरी ओर गुजरात में बीजेपी के नेता खरे नहीं उतर रहे हैं. अब आइए, बारीकी से देखते हैं कि जानकार कौन सी 6 सीटें बीजेपी के लिए खतरे वाली बता रहे हैं, और किन 6 सीटों पर बीजेपी की हार को पक्‍के तौर पर तय मान रहे हैं:

1- पोरबंदर

गांधीजी की जन्मस्थली पोरबंदर में इस बार माना जा रहा है कि बीजेपी को यहां हार का सामना करना पड़ सकता है. वजह भी बेहद दिलचस्प है. दरअसल ये वो सीट है जहां से विठ्ठल रादडिया पिछली तीन बार से चुनाव जीते थे. 2009, 2013 (उपचुनाव) और 2014. दिलचस्प बात ये है कि 2009 में विठ्ठल रादडिया कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने थे, जिसके बाद 2013 और 2014 में बीजेपी से चुनाव लड़ा था, जिसमें वो 2.50 लाख लीड से चुनाव जीते थे. इस बार बीजेपी ने विठ्ठल रादडिया की खराब तबीयत के चलते उन्हें टिकट नहीं दिया. रादडिया के छोटे बेटे ने बीजेपी से टिकट मांगा, तो उसे इनकार कर दिया गया. इस सीट पर अच्छी पकड़ रखने वाले रादडिया परिवार को नजरअंदाज करते हुए रमेश धडुक को टिकट दिया गया. हकीकत ये है कि साफ छवि वाले रमेश धडुक के सामने गोडंल की एक विधानसभा सीट को छोड़ पहचान का संकट कायम रहा.

इसी सीट पर कांग्रेस ने धोराजी के विधायक ललित वसोया को टिकट दिया था. ललित वसोया पाटीदार आंदोलन से उभरे नेता हैं. इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही पाटीदार को टिकट दिया है. लेकिन ललित वसोया की पाटीदार समाज और किसानों के बीच अच्‍छी पकड़ है. उन्‍हें जमीन से जुड़े नेता के तौर पर माना जाता है. वहीं बीजेपी के ही लोग दबी जुबान में कहते हैं कि रादडिया परिवार भी इस बार चुनाव में ज्यादा सक्रियता नहीं दिखा रहा था. यही नहीं पाटीदार कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल ने यहां नोमिनेशन से लेकर आखिरी दिन तक कई रोड शो किए. यही नहीं कांग्रेस ने अपने स्टार प्रचार नवजोत सिद्धू ने पब्लि‍क मीटिंग भी की, जिसका असर इस सीट पर साफ देखने को मिल सकता है.

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2- पाटन

पाटन सीट पर ठाकोर समाज का प्रभुत्व है, कांग्रेस ने यहां से पूर्व सांसद जगदीश ठाकोर को मैदान में उतारा है. इस सीट का 1998 से इतिहास रहा है कि यहां हर पांच साल पर जनता पाला बदल देती है. 2009 में जहां जगदीश ठाकोर यहां से चुनाव जीते थे, तो वहीं 2014 में बीजेपी के लीलाघर वाघेला यहां से चुनाव जीते थे. हालांकि भाजपा ने इस बार यहां पर अपना उम्मीदवार बदल दिया ओर खेरालु के विधायक भरतजी डाभी को टिकट दिया है. भरतजी डाभी भी ठाकोर तो हैं, लेकिन लोग मानते हैं कि खेरालु के बाहर उनकी पकड़ नहीं है. जबकि जगदीश ठाकोर जमीन से जुड़े हुए नेता हैं और ठाकोर समाज का बडा नाम हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव को देखें तो यहां पर 7 विधानसभा में से 4 विधानसभा कांग्रेस ने जीती थी, तो वहीं 3 पर बीजेपी रही थी और जिस तीन सीटों पर बीजेपी है उसमें कोई ठाकोर समाज का बड़ा नाम नहीं है.

3- जूनागढ़

बीजेपी ने जूनागढ़ से अपने ही सांसद राजेश चुडासमा को टिकट दिया है. जूनागढ़ ऐसा चुनाव क्षेत्र है जहां पिछले 5 साल में किसान कई बार सड़क पर आए. किसानों ने सरकार के खिलाफ अपनी फसल के दाम को लेकर विरोध किया, फसल बीमा को लेकर बार-बार सरकार में अपनी मांग की, इसके बावजूद सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये. विधानसभा को देखें तो 2017 के चुनाव में जूनागढ़ क्षेत्र में आने वाली सभी 7 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. वैसे राजेश चुडासमा का प्रचार के दौरान भी गांव वालों की ओर से पानी और सड़क को लेकर विरोध कई जगहों पर देखा गया है. वहीं मतदान पैटर्न को भी देखा जाये तो ग्रामीण इलाकों में जूनागढ़ सीट के लिये काफी ज्यादा वोटिंग हुई है.

4- अमरेली

बीजेपी ने अमरेली की इस सीट से मौजूदा सांसद नारायण काछडिया को ही टिकट दिया है. जबकि कांग्रेस ने युवा नेता परेश धानानी को यहां से टिकट दिया है. वैसे इस सीट से कांग्रेस के जीतने की संभावना काफी ज्यादा है. क्‍योंकि परेश धानानी के लिये कहा जाता है कि वो जमीन से जुड़ा हुआ नेता है. कम उम्र की वजह से वो अक्सर अपने चुनाव क्षेत्र में कभी सडक पर तो कभी स्कूटर पर घूमते लोगों को मिल जाते हैं. परेश धानानी के लिये अमरेली से चुनाव जीतना इसलिये भी आसान माना जाता है, क्योंकि परेश धानानी एक तो पाटीदार हैं. खुद किसान होने की वजह से किसानों की समस्या को जानते हैं. वहीं नारायण काछडिया के लिये इस बार दिक्कत है, पिछले पांच साल में अपने चुनाव क्षेत्र में बीजेपी के नेताओ के साथ अंदरुनी लड़ाई. जानकार मानते हैं कि बीजेपी के स्थानीय नेताओं में नारायण काछडिया को लेकर काफी विरोध था, विरोध के बावजूद बीजेपी ने उन्हें यहां से टिकट दिया. जिस वजह से जो कार्यकर्ता सक्रियता से प्रचार में लगना था, वो नहीं लगा. ये भी हार की एक बड़ी वजह बन सकता है. साथ ही अगर विधानसभा चुनाव की बात करें तो, 2017 के चुनाव में 7 विधानसभा सीट में से कांग्रेस के खाते में 5 विधानसभा गयी थी. जबकि 2 विधानसभा बीजेपी के खाते में गयी थी. इसी बीच कांग्रेस के यहा के 5 विधायक आये दिन लोगों के साथ सड़कों पर आंदोलन करते भी दिखे हैं जो कि इस सीट को कांग्रेस की झोली में डालने के लिये काफी बड़ी वजह बन सकती है.

5- छोटा उदयपुर

मध्य गुजरात के आदिवासी इलाके में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति स्टेच्यु ऑफ यूनिटी का निर्माण तो कर दिया, लेकिन यहां के आदिवासियों की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है. यही नहीं, यहां का आदिवासी समुदाय बीजेपी से पिछले एक साल से काफी नाराज भी है, क्‍योंकि स्टेच्यु ऑफ यूनिटी का निर्माण करते वक्त जो वादे किये गये थे. वो वादे सरकार के जरिए पूरे नहीं किये गये हैं. बीजेपी ने यहां से तहसील पंचायत की सदस्य गीताबेन राठवा को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने इस बार यहां से रंजीत सिंह राठवा को टिकट दिया है जो कि कांग्रेस के बड़े आदिवासी नेता मोहन सिंह राठवा के बेटे हैं. स्टेच्यु ऑफ यूनिटी जब बन रहा था, उस वक्त आदिवासियों को वादा किया गया था कि इसके बनने के बाद आदिवासी युवाओं को रोजगार दिया जायेगा. लेकिन बाद में ये पूरा काम एजेंसी को दिया गया, जिसने आदिवासियों को नहीं, बल्कि बाहरी लोगों को काम दिया. आदिवासियों का तडवी समाज इस बार भाजपा से काफी नाराज है. तडवी हर बार भाजपा के साथ ही रहे हैं. लेकिन जब आदिवासी आंदोलन किया गया तो तडवी समाज के करीब 100 लोगों के खिलाफ पुलिस केस दर्ज किये गए. वहीं छोटा उदयपुर के आसपास के इलाके में बडे पैमाने पर तडवी समाज बसता है. तडवी के अलावा राठवा समाज भी यहां बड़े पैमाने पर बसता है. जबकि इस बार बीजेपी ओर कांग्रेस दोनों ही पार्टी ने राठवा समाज के नेता को टिकट दिया है. ऐसे में तडवी समाज के वोट निर्णायक साबित होंगे.

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6- बारडोली

बारडोली से कांग्रेस अपने बड़े आदिवासी नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री तुषार चौधरी को टिकट दिया है, तो वहीं बीजेपी ने बारडोली से मौजूदा सांसद प्रभु वसावा को टिकट दिया है. दिलचस्प बात तो ये है कि, जहां शहरी इलाकों में कम वोटिंग हुई है, वहीं आदिवासी इलाकों में सब से ज्यादा वोटिंग हुई है. कहा जाता है कि जिन आदिवासी सीट पर तुषार चौधरी का सब से ज्यादा प्रभुत्व है, ऐसी विधानसभा सीट में से व्यारा में 78.64 प्रतिशत मतदान हुआ है, मांडवी में 78.68%, निजार में 82.91%, महुआ 75.88%, वोटिंग हुआ है. और जिन विधानसभा सीट पर बीजेपी प्रभावित है ऐसी मांगरोल में 75.96%, मांडवी में 78.68% ओर बीजेपी के गढ़वाली कामरेज सीट में 62.60% वोटींग हुई है. वहीं प्रभु वसावा को लेकर भी यहां के स्थानीय लोग ज्यादा खुश नहीं थे. प्रभु वसावा भी आदिवासी होने के बावजूद आदिवासी उत्‍थान के लिये किसी भी तरह का कोई प्रयास ना करने की वजह से लोगों में उनके खिलाफ नाराजगी कांग्रेस के लिये फायदा बन सकती है.

वहीं जिन 6 सीटों पर कांटे की टक्कर मानी जाती है, वो है- बनासकांठा, महेसाना, सुरेन्द्रनगर, आणंद, दाहोद, और वलसाड. बनासकांठा में बीजेपी को रूपानी सरकार के मंत्री परबत पटेल को मैदान में उतारना पडा है. जबकि बनासकांठा में कांग्रेस ने सहकारी क्षेत्र के बड़े नाम परथी भटोल को टिकट दिया है, जो कि डेयरी उद्योग और सहकारी क्षेत्र की वजह से गांव-गांव के लोगों के परिचित हैं. महेसाना में भी बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही ने पाटीदार पर दाव खेला है. डॉ. एजे पटेल पाटीदार का जाना माना नाम हैं, जबकि गुजरात सरकार के पूर्व मंत्री अनिल पटेल की पत्नी शारदा पटेल को टिकट दिया है. वहीं सुरेन्द्रनगर में हार्दिक को बीजेपी के समर्थक के जरिये मारा गया चांटा कितना कांग्रेस के लिये वोट में तब्‍दील होता है, वो भी देखना दिलचस्प होगा. क्‍योंकि कांग्रेस ने यहां कोली समाज के बड़े चेहरे सोमा पटेल पर दाव खेला है, तो वहीं बीजेपी ने नये चेहरे डॉ. मुजपरा पर दाव खेला है. आणंद में भरतसिंह सोलंकी के सामने साफ चहेरे मितेश पटेल को उतारना भी बीजेपी के लिये फायदे का सौदा साबित हुआ. क्योंकि माना जाता है कि यहां 2014 को मोदी लहर में ही भरतसिंह सोलंकी महज 3 प्रतिशत वोट से हारे थे. दाहोद में आदिवासियों के बड़े नेता बाबू कटारा को कांग्रेस ने टिकट दिया है. जबकि बीजेपी MoS केन्द्रीय मंत्री जसंवतसिंह भाभोर को ही यहां से टिकट दी है. वलसाड बीजेपी ने सांसद केसी पटेल को ही यहां से टिकट दिया है, तो वहीं कांग्रेस ने यहां से जीतू चौधरी को टिकट दिया है. दोनों ही बड़े नेता इलाके में अच्‍छी छवि रखते हैं.

जानकार मानते हैं कि इस बार बीजपी के सामने कांग्रेस नहीं, बल्कि सरकार से लोगों की नाराजगी चुनाव लड़ रही थी. विकास की जिन बातों को प्रधानमंत्री कहते थे वो विकास का मॉडल 5 साल के भीतर धाराशायी हो गया है. यह भूकंप में जमींदोज उस इमारत की तरह है, जिसमें जमीन से जुडी इमारत तो बची है, लेकिन ऊपरी मंजिलें तबाह हो गयी हैं.

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लेखक

गोपी मनियार गोपी मनियार @gopi.maniar.5

लेखिका गुजरात में 'आज तक' की प्रमुख संवाददाता है.

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