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Updated: 22 फरवरी, 2019 12:37 PM
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पुलवामा हमले के बाद देश के राजनैतिक हालात अचानक से बदल गये. एक झटके में पूरा विपक्ष बैकफुट पर आ गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ सबसे ज्यादा शोर मचाने वाले राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल सरकार के सपोर्ट में खड़े हो गये और ममता बनर्जी कई दिनों तक खामोश रहीं.

विपक्षी खेमे की सबसे बड़ी मुश्किल ये रही कि जिस एक घटना ने उन्हें एक झटके में चुप करा दिया, उसी ने मोदी-शाह को बोलने का मौका दे दिया है. अचानक सब कुछ इतना बदल गया कि विपक्ष कुछ भी बोलना दूभर हो गया और प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के कार्यक्रम निर्बाध गति से चलते रहे.

कुछ दिन की चुप्पी के बाद ममता बनर्जी अपने तेवर में लौटने लगी हैं - और कांग्रेस भी खुद को बचाते हुए मोदी सरकार की आलोचना शुरू कर दी है. बात ये है कि पूरे विपक्ष के सामने अचानक सरवाइवल का संकट पैदा हो गया है.

पुलवामा के बाद थमी सियासत फिर से तेवर दिखाने लगी

पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों के काफिले पर हमले को हफ्ता भर होने को हैं. राजनीतिक स्थिति ये हो चली है कि नेताओं के लिए धैर्य बनाने रखना मुश्किल हो चला है. आखिर सवाल राजनीतिक अस्तित्व का जो है.

हमले के बाद सिर्फ दो ही नेता ऐसे रहे जिनके बयान बाकियों से अलग देखे गये - एक कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू और दूसरी पीडीपी लीडर महबूबा मुफ्ती. फिर समाजवादी पार्टी नेता अबू आजमी का कहना था कि ये सरकार चुनाव जीतने के लिए कुछ भी कर सकती है. ये बात अलग है कि समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव तो नरेंद्र मोदी को सत्ता में लौटने का आशीर्वाद पहले ही दे चुके हैं.

विपक्ष की ओर से पहली मुखर आवाज आयी है पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की और दूसरी आवाज है विपक्षी दलों को एकजुट करने में जुटे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की. ममता के बाद नायडू ने भी मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला है.

प्रेस कांफ्रेंस में ममता बनर्जी ने मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने से पूर्व एक डिस्क्लेमर भी सामने रखा. ममता का कहना रहा कि पुलवामा की घटना के बाद वो मोदी सरकार के खिलाफ बोलने से परहेज कर रही थीं, लेकिन मजबूरन उन्हें ऐसा करना पड़ रहा है, 'कुछ लोग ये सिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि देशभक्ति क्या होती है.'

अव्वल तो ममता बनर्जी ने घटना को ही आरएसएस, वीएचपी और बीजेपी का 'प्लांटेड खेल' करार दिया, फिर सवाल पूछा कि आखिर पाकिस्तान में इतना साहस कहां से आया... जबकि चुनाव नजदीक हों?'

mamata banerjee, naiduराजनीतिक अस्तित्व का संकट...

मोदी सरकार को टारगेट करते हुए ममता बनर्जी ने आरोप लगाया, 'जब चुनाव दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं तो ऐसे में आप युद्ध के हालात पैदा करना चाह रहे हैं... एक छाया युद्ध. अमित शाह और नरेंद्र मोदी राजनीतिक बयान दे रहे हैं... इतनी बड़ी दुखद घटना के बाद भी आप जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा नहीं दे रहे और ऐसा करने के बजाए राजनीतिक बयानबाजी कर रहे हैं.'

ममता बनर्जी सरकार पर आरोप और सवालों की बौछार कर रही थीं, 'सरकार मामले को जानती थी. खुफिया जानकारी भी थी. तब इतने अधिक लोग क्यों मरे? कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया?'

ममता बनर्जी की ही तरह चंद्रबाबू नायडू ने भी मोदी सरकार पर धावा बोला है. नायडू ने सरकार के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ने की बात कही और आरोप लगाया कि बीजेपी नेता अपनी हरकतों से देश को नीचा दिखा रहे हैं.

ममता बनर्जी की ही तरह नायडू ने भी कहा, 'हम सिर्फ निजी स्वार्थ के लिए देश की सुरक्षा को खतरे में डालना बर्दाश्त नहीं करेंगे. हम राजनीतिक फायदे के लिए सेना से खिलवाड़ भी बर्दाश्त नहीं करेंगे.'

रैली तो नहीं लेकिन ममता बनर्जी के धरने को महबूबा मुफ्ती ने समर्थन जरूर दिया था. पुलवामा हमले के बाद महबूबा मुफ्ती के कांग्रेस की ओर से नवजोत सिंह सिद्धू ने अकेले मोर्चा संभाला हुआ था. अब धीरे धीरे कांग्रेस भी सक्रिय होने लगी है.

आखिर बोलें भी तो क्या बोलें?

उरी हमले के बाद हुए सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर मोदी सरकार के दावों से राहुल गांधी आपे से बाहर हो गये थे. तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राहुल गांधी ने जवानों के खून की दलाली का आरोप लगाया था. राहुल गांधी ने इस बार सतर्कता बरती और सरकार को सपोर्ट करने की बात कही. आप नेता अरविंद केजरीवाल ने भी यही तरीका अपनाया. अरविंद केजरीवाल ने तब सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत भी मांगे थे.

हमले के बाद तीन दिन तक पूरी तरह चुप रहने के बाद कांग्रेस नेता मोदी सरकार को घेरने लगे हैं. कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी के पाकिस्तान जाकर झप्पी देने और सुरक्षा खामियों पर सवाल उठाया है. कांग्रेस का कहना है कि 2014 से पहले नरेंद्र मोदी छोटी छोटी घटनाओं पर भी भड़काऊ बयान देते रहे और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का इस्तीफा थे.

priyanka gandhi, rahul gandhiबड़ा सवाल सरकार को घेरें भी तो किस मुद्दे पर?

कांग्रेस का सबसे बड़ा सवाल यही है कि सुरक्षा बलों के काफिले के गुजरते वक्त आम लोगों की गाड़ियों को इजाजत क्यों दी गयी? जैश-ए-मोहम्मद की तरफ से हमले को लेकर खुफिया रिपोर्ट की अनदेखी क्यों की गई?

पुलवामा हमले से पहले विपक्ष जहां सत्ता पक्ष की नाक में दम किये हुए था - वहीं उसके बाद सारे किये धरे पर पानी फिर गया. बड़ी उम्मीदों के साथ रोड शो करते हुए प्रियंका गांधी लखनऊ पहुंची थीं. 16 घंटे लगातार मीटिंग और छोटे दलों से गठबंधन के प्रयास हो रहे थे - फिर सब कुछ छोड़ कर दिल्ली लौटना पड़ा.

दरअसल, विपक्ष के पास बोलने के लिए जो मुद्दे हैं वे हमले के बाद पूरी तरह अप्रासंगिक हो गये. राहुल गांधी राफेल के मुद्दे पर प्रधानमंत्री पर हमला बोलते रहे, पुलवामा अटैक के बाद बोलते भी तो क्या कहते? राहुल गांधी जगह जगह नारे लगवाते रहे कि 'प्रधानमंत्री चोर है', आखिर पुलवामा की घटना के बाद ये नारा भला कैसे लगवा पाते?

हमले के बाद पूरे देश का गुस्सा हमलावरों और हमले के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान पर फोकस हो गया - और लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपोर्ट में खड़े हो गये. हमलावरों को सजा देने की मांग होने लगी. कांग्रेस के सहयोगी स्टैंड के बावजूद सोशल मीडिया पर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी सहित कई विपक्षी नेताओं के खिलाफ अनर्गल प्रलाप और फोटोशॉप तस्वीरें वायरल होने लगी थीं. ऐसे विपक्ष खामोशी की सियासत से ज्यादा कर भी क्या सकता था?

राहुल गांधी सहित विपक्ष के तमाम नेता मोदी सरकार पर रोजगार न देने का आरोप लगाते रहे. जब नौजवान भूखे पेट सरहद पर जाकर दुश्मन से लड़ने को तैयार हों तो बेरोजगारी जैसे मुद्दे खत्म हो जाते हैं - और इसी स्थिति ने विपक्ष के सामने सरवाइवल का संकट पैदा कर दिया है.

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