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Updated: 21 जून, 2019 08:18 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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अभी हाल में ही 17वीं लोकसभा का गठन हुआ है. चुनाव आयोग ने 10 मार्च को सात चरणों में चुनाव की तारीखों का ऐलान किया था जिसका परिणाम 23 मई को आया. यानी करीब ढाई महीने तक देश में आचार संहिता लगी रही. यही नहीं इसके अलावा इस साल झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. हमारे देश में हर साल औसतन पांच राज्यों में चुनाव होते हैं. मतलब साफ है देश हमेशा ही 'इलेक्शन मोड' में रहता है. और जब तक चुनाव आचार संहिता लागू रहती है प्रशासनिक और नीतिगत फैसले प्रभावित होते रहते हैं. यही नहीं बार-बार चुनाव से देश पर भारी आर्थिक बोझ भी पड़ता है. चुनावी खर्च पर आई सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ की रिपोर्ट के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में 55,000 से 60,000 हज़ार करोड़ रुपये के बीच खर्च हुए.

इन्हीं वजहों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए विपक्षी पार्टियों के प्रमुखों की विचार-विमर्श के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई थी. लेकिन कांग्रेस, एसपी, बीएसपी, आम आदमी पार्टी, टीएमसी जैसी कई पार्टियों ने इस बैठक में शिरकत नहीं की. मतलब गैर एनडीए पार्टियों के प्रमुखों ने इसमें शामिल न होकर अपनी मंशा साफ कर दी.

narendra modi'एक देश एक चुनाव' के लिए नरेंद्र मोदी को विपक्षी पार्टियों का साथ नहीं मिला

सरकार द्वारा 40 पार्टियों के प्रमुखों को बैठक में बुलाया गया था जिसमें 21 ही आ पाए और तीन पार्टियों के अध्यक्षों ने पत्र के माध्यम से अपने विचारों से अवगत कराया. कारण चाहे जो भी हो, लगता है विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर सहमत नहीं हैं.

कांग्रेस- प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस शामिल नहीं हुई. कांग्रेस चाहती है कि अगर सरकार चुनाव सुधारों को लेकर कोई कदम उठानी चाहती है तो वह संसद में इस विषय पर चर्चा कराए. हालांकि इस मुद्दे पर इस पार्टी में मतभेद भी उभरकर सामने आया जब कांग्रेस की मुंबई इकाई के अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि 'भारत की 70 साल की चुनावी यात्रा ने हमें सिखाया है कि भारतीय मतदाता राज्य और केंद्रीय चुनावों में अंतर कर सकता है. हमारे लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि हम इस तरह का विचार कर सकते हैं.'

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी- हालांकि इसके नेता सीताराम येचुरी ने बहस में हिस्सा लिया लेकिन इसका विरोध करते हुए कहा - ''एक साथ चुनाव का विचार देश में संसदीय प्रणाली की जगह पिछले दरवाजे से राष्ट्रपति शासन लाने की कोशिश है. यह विचार असंवैधानिक और संघीय व्यवस्था के खिलाफ है."

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- भाकपा महासचिव एस सुधाकर रेड्डी भी इस बैठक में शामिल हुए लेकिन उनके अनुसार एक राष्ट्र, एक चुनाव भाजपा का फैंसी आइडिया है और यह न तो संभव है और न ही इसकी आवश्यकता है.

तृणमूल कांग्रेस- तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी ने निमंत्रण अस्वीकार करते हुए कहा कि इस पर विचार विमर्श के लिए केंद्र एक श्वेत पत्र तैयार करे.

बसपा- इसके अध्यक्ष मायावती ने इसे गरीबी एवं अन्य समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए किया जा रहा छलावा करार दिया.

समाजवादी पार्टी- इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि अब सरकार को चुनाव में किए हुए वादों को पूरा करने पर ध्यान लगाना चाहिए.

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने का विचार नया नहीं है. 1951-1952, 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा चुनाव के साथ ही सभी राज्यों की विधानसभा चुनाव एक साथ ही करवाए गए थे. लेकिन कुछ वर्षों के बाद कुछ राज्यों की विधानसभाओं को भंग कर दिया गया था जिससे इस प्रक्रिया पर असर पड़ा और इसका क्रम टूट गया था.

लेकिन एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे वापस लागू करने के लिए प्रयासरत हैं जिसके लिए वो चुनाव आयोग, नीति आयोग, विधि आयोग आदि से बातचीत कर चुके हैं. लेकिन इसे लगू करने के पक्ष में कुछ ही पार्टियां हैं और ज्यादातर पार्टियां इसके विरोध में हैं. ऐसे में इतना तो लगभग तय ही है कि जब तक इस पर सभी पार्टियों की सहमति नहीं होगी इसे अमली जामा पहनाना आसान नहीं होगा.

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अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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