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Updated: 22 फरवरी, 2019 03:48 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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पुलवामा हमले को लेकर कुछ दिन की खामोशी के बाद विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ पुराने तेवर दिखाने लगा है. ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू के बाद कांग्रेस तो ज्यादा ही आक्रामक नजर आ रही है.

विपक्षी नेता रैलियां तो कर रहे हैं. विपक्ष के सबसे बड़े पेंच को लेकर सभी कह रहे हैं कि 'प्रधानमंत्री कौन बनेगा' ये मुद्दा नहीं है. बावजूद इसके विपक्षी कोशिशों में इतने लोचे हैं कि लगता नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करने की स्थिति में कोई खड़ा होने की स्थिति में है.

ऐसी विपक्षी एकता किस काम की?

विपक्षी नेताओं की अब तक दो बड़ी रैलियां हो चुकी हैं. एक कोलकाता में और दूसरी दिल्ली में. अब जिसका नंबर है वो अमरावती में होनी है. संभव है उसके बाद वैसी रैलियां लखनऊ और पटना में भी हों. दिल्ली रैली के साथ ही विपक्षी नेताओं की मीटिंग में सत्ताधारी बीजेपी को घेरने को लेकर गंभीर चर्चाएं भी हुईं, लेकिन नतीजे में कुछ भी निकल कर नहीं आया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करने के लिए वैसे तो देश भर में विपक्ष एकजुट होने की कोशिश कर रहा है, लेकिन चार राज्य ऐसे हैं जहां से क्षेत्रीय नेताओं की आवाज थोड़ी बुलंद नजर आ रही है. ये राज्य हैं - उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और आंध्र प्रदेश. उत्तर प्रदेश इसलिए भी कि प्रधानमंत्री बनवाने में उसकी विशेष भूमिका मानी जाती है. बाकी तीनों राज्य अपने क्षत्रपों की बदौलत सीधे मोर्चे पर उतरे हैं.

ध्यान देने की बात ये है कि कांग्रेस भी इन चारों राज्यों के नेताओं के साथ यूनाइटेड इंडिया की रैलियों में मंच पर मौजूदगी दर्ज करा रही है. मंच पर नेताओं की जमघट देख कर तो ऐसा लगता है कि विपक्ष एकजुट हो चुका है - जमीन पर स्थिति बिलकुल अलग नजर आती है.

यूपी के सपा-बसपा गठबंधन में सीट का फैसला हो चुका है. गठबंधन से मुलायम सिंह खासे खफा लग रहे हैं. मुलायम कहते हैं, 'सुनने में आ रहा है कि सीटें आधी रह गई हैं. आधी सीट होने से हमारे अपने लोग तो खत्म हो गए. कोई मुझे बताये कि सीटें आधी किस आधार पर रह गईं?' मुलायम का इशारा है कि जब लड़ने से पहले ही सीटें आधी रह गयीं तो चुनाव नतीजों के बाद क्या हाल होगा?

यूपी गठबंधन बनने के बाद राहुल गांधी की ओर से अखिलेश यादव और मायावती को लेकर बड़ी ही सम्मानजनक बातें सुनने को मिलती रही हैं. अब तो अखिलेश यादव भी कांग्रेस को बीजेपी विरोधी गठबंधन का हिस्सा बताने लगे हैं. प्रियंका के रोड शो के बाद अखिलेश यादव ने कांग्रेस के पक्ष में टिप्पणी की थी. कहा ये भी जा रहा है कि कांग्रेस नेताओं को समाजवादी पार्टी के प्रति तेवर नरम रखने को कहा गया है. ये सब प्रियंका गांधी के मैदान में उतरने के प्रभाव के तौर पर देखा जा रहा है.

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बातें तो अच्छी अच्छी हो रही हैं लेकिन जमीनी स्थिति माकूल तो बिलकुल नहीं लग रही है. गठबंधन में कौन सी सीट पर समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार होगा और किस पर बीएसपी का ये भी साफ हो चुका है. पहले बराबर सीटों की बात थी लेकिन अब बीएसपी 38 सीटों पर जबकि समाजवादी पार्टी 37 पर चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस के लिए दो और आरएलडी के लिए मथुरा, बागपत और मुजफ्फरनगर सीटें तय हुई हैं. जहां तक हाई प्रोफाइल सीटों का सवाल है प्रधानमंत्री मोदी की वाराणसी सीट के साथ ही लखनऊ, गोरखपुर, कानपुर, फैजाबाद और गाजियाबाद समाजवादी पार्टी के हिस्से में आई हैं. बंटवारा कुछ ऐसे है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ज्यादातर सीटें सप तो पूर्वी यूपी की अधिकतर सीटें बीएसपी के खाते में गई हैं.

क्या अब भी अखिलेश यादव के बयान का कोई मतलब है कि कांग्रेस भी बीजेपी को हराने में उसी खेमे में खड़ी है जिसमें समाजवादी पार्टी? अगर गठबंधन 78 सीटों पर लड़ रहा है तो कांग्रेस की तैयारी 80 सीटों पर है. हो सकता है कांग्रेस भी बदले में अखिलेश और मायावती की सीटों पर प्रत्याशी न उतारे. मगर इतने से क्या होने वाला है. बाकी सीटों पर गठबंधन और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवार रहेंगे तो मुकाबला तो त्रिकोणीय ही होगा - और बीजेपी को फायदा मिलना तय है.

कमोबेश यूपी जैसा ही हाल दिल्ली, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में भी देखने को मिल रहा है. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि वो कांग्रेस को मना मना कर थक गये लेकिन वो गठबंधन के लिए तैयार ही नहीं है. पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में भी कांग्रेस की एक ही जैसी कहानी है. विपक्षी नेताओं के साथ राहुल गांधी बंद कमरे में तो मुलाकात कर ले रहे हैं, लेकिन मंच कम ही शेयर कर पाते हैं और यूनाइटेड इंडिया की अब तक हो चुकी दो रैलियों में से किसी में शामिल नहीं हुए हैं. इस परहेज के पीछे एक ही कारण है. यूपी में कांग्रेस को गठबंधन से दूर रखा गया है और बाकी तीन राज्यों में स्थानीय नेता वहां के क्षेत्रीय दलों से गठबंधन को राजी नहीं हैं. दिल्ली में आप की ही तरह पश्चिम बंगाल कांग्रेस ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ और आंध्र प्रदेश में टीडीपी के साथ हाथ मिलाने को तैयार नहीं है.

कहने को तो राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस विपक्षी खेमें सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन यूपी, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और दिल्ली सभी जगह आम चुनाव में अकेले उतरने जा रही है. साफ है कांग्रेस के इस रवैये से नुकसान साथी विपक्षी दलों का होगा और फायदा सबकी दुश्मन बीजेपी को.

मोदी अब भी सब पर भारी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलों के मामले में राहुल गांधी से टक्कर लेने वाले शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने अब समझौता कर लिया है. आक्रामक का फायदा ये रहा कि हिस्से में आयी सीटों की संख्या अच्छी हो गयी है. हालांकि, शिवसेना नेता संजय राउत का कहना है कि बीजेपी अगर 2014 से 100 सीटें कम जीती तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा ये फैसला एनडीए करेगा.

narendra modiताजा सर्वे में लोकप्रियता के मामले में मोदी चुनौती देने वाले नेताओं से काफी आगे

एकजुट विपक्ष का चैलेंज और एनडीए की अंदरूनी चुनौतियां अपनी जगह है - एक ताजा सर्वे बता रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकप्रियता के मामले में अपने प्रतिद्वंद्वियों से कहीं आगे हैं - बल्कि बहत ही आगे हैं. टाइम्स मेगा पोल के मुताबिक करीब 84 फीसदी लोगों ने मोदी को अपनी पहली पसंद बताया है. इसी तरह अभी चुनाव होने की स्थिति में 8.33 फीसदी लोग राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं. चाहने वाले तो ममता बनर्जी और मायावती को भी प्रधानमंत्री के दौर पर देखते हैं लेकिन उनकी संख्या क्रमशः 1.44 फीसदी और 0.43 फीसदी ही है.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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