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Updated: 26 सितम्बर, 2020 10:59 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) अपनी सरकार की उपलब्धियों और अपने 15 साल के कार्यकाल पर खूब बोल रहे हैं. अपने से पहले वाले लालू-राबड़ी के 15 साल के कार्यकाल पर भी खूब बोल रहे हैं - लेकिन सवाल जब भी एनडीए से जुड़ा होता है, बहुत कम बोलते हैं. चार-पांच शब्दों में निपटा देते हैं.

हाल ही में चिराग पासवान के आक्रामक अंदाज पर पूछे गये सवाल के लिए भी नीतीश कुमार ने महज पांच शब्दों का ही इस्तेमाल किया था - कोई खास बात नहीं है. एक बार फिर चिराग पासवान के बारे में पूछे जाने पर कहा है - ऐसी बात नहीं है.

ठीक ऐसा ही छोटा जवाब नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) को लेकर पूछे गये सवाल को लेकर दिया है - मुझे जानकारी नहीं है. नीतीश कुमार ने ये बात तब कही जब उनसे उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए (NDA) में आने को लेकर सवाल पूछा गया था - अब सवाल ये उठता है कि क्या नीतीश कुमार को उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए में वापसी की अगर कोई संभावना बनती है तो जानकारी होना जरूरी है?

उपेंद्र कुशवाहा वैसे किस मोड़ पर हैं?

राष्ट्रीय लोक समता पार्टी नेता उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति अक्सर ही किसी न किसी मोड़ पर नजर आती है. जहां कहीं भी रहते हैं वहीं से ऐसी बातें या हरकतें करते हैं कि वो साफ साफ अलग छोर पर खड़े नजर आ जाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार में उपेंद्र कुशवाहा मंत्री थे. मंत्री रहते ही बिहार में एक ऐसे मुद्दे पर मानव शृंखला में शामिल हुए थे जो एनडीए के खिलाफ रहा - और ये उनके एनडीए छोड़ने से काफी पहले का वाकया है.

अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को हाल ही में उपेंद्र कुशवाहा ने जिस अंदाज में संबोधित किया उससे तो यही समझा गया कि वो महागठबंधन छोड़ने का मन बना चुके हैं. बोले, 'लोग चाहे जो भी सोचें, लेकिन आज भी हमारे मन में है कि राष्ट्रीय जनता दल अगर तय करे कि हम अपना नेतृत्व बदल देंगे तो उपेंद्र कुशवाहा आज भी अपने लोगों को समझा लेगा.'

उपेंद्र कुशवाहा कह रहे हैं कि सीट शेयरिंग कोई मसला नहीं है, लेकिन जिसे वो मसला बता रहे हैं वो महागठबंधन के मौजूदा स्वरूप में तो नामुमकिन की कैटेगरी में ही आता है. उपेंद्र कुशवाहा की ये बातें सुनते ही आरजेडी नेता उनके खिलाफ टूट पड़े. आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहना शुरू कर दिया - जिन लोगों को एनडीए में दुत्कारा गया, उन्हें आरजेडी ने सम्मान दिया, लेकिन आज वही लोग तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं.

मृत्युंजय तिवारी ने यहां तक कह दिया कि जिस पार्टी के पास न संगठन है न ही इतने उम्मीदवार कि चुनाव ठीक से लड़ सके, वो भी अगर जाना चाहता है तो जाये. लोकतंत्र में कोई भी कहीं भी जा सकता है.

nitish kumar, upendra kushwahaनीतीश कुमार के लिए लालू यादव और जीतनराम मांझी को गले लगाने जैसा नहीं उपेंद्र कुशवाहा का मामला

उपेंद्र कुशवाहा लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं - और हर कोई ये समझने की कोशिश कर रहा है कि बिहार चुनाव में वो किस खांचे में फिट होंगे - या फिर अपना कोई नया खांचा गढ़ेंगे. अगर ऐसा कुछ करते हैं तो वो अकेले करेंगे या फिर उनके साथ और भी लोग होंगे.

अभी तक न तो उपेंद्र कुशवाहा की तरफ से और न ही तेजस्वी यादव की ओर से ऐसी कोई आधिकारिक घोषणा की गयी है कि वो महागठबंधन में नहीं है, लेकिन जिस तरह की बयानबाजी वो कर रहे हैं उससे उनके महागठबंधन छोड़ने के ही संकेत मिले हैं. माना ये भी जा रहा है कि जब तक तेजस्वी यादव कुछ नहीं बोलते उपेंद्र कुशवाहा के महागठबंधन में होने की संभावना पूरी तरह खत्म भी नहीं मानी जा सकती है.

NDA में नीतीश कुमार की बात कितना मायने रखती है

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रेस कांफ्रेंस में सवाल तो कई पूछे गये लेकिन उपेंद्र कुशवाहा को लेकर पूछा जाना काफी महत्वपूर्ण रहा. साथ में देखने को ये भी मिला कि उपेंद्र कुशवाहा पर जवाब देते वक्त नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी का भी स्टेटस अपडेट अपनेआप दे दिया.

सवाल था - क्या उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में आ रहे हैं?

नीतीश कुमार का दो टूक जवाब था - 'मुझे जानकारी नहीं है,' लगे हाथ ये जरूर जोड़ दिया, 'हां, जीतन राम मांझी महागठबंधन से अलग होकर एनडीए का हिस्सा बने हैं.'

चूंकि नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी का खुद ही जिक्र कर दिया था, लिहाजा एक सवाल और तो बनता ही था - अब जबकि जीतनराम मांझी एनडीए में आ गये हैं, फिर तो लोक जनशक्ति पार्टी की जरूरत नहीं रही?

नीतीश कुमार ने कहा - 'ऐसी बात नहीं है.'

नीतीश कुमार के लिए जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा एकबारगी तो एक ही जैसे हैं. बल्कि, जीतनराम मांझी तो दो कदम आगे बढ़ कर नीतीश कुमार से बगावत भी कर चुके हैं और मांझी से मुख्यमंत्री की कुर्सी वापस लेने के लिए नीतीश कुमार को एड़ी चोटी का जोर तक लगाना पड़ा है.

उपेंद्र कुशवाहा भी जीतनराम मांझी की ही तरह पहले जेडीयू में ही साथी रहे हैं, लेकिन मतभेद बढ़ने पर नीतीश कुमार से अलग होकर अपना नया राजनीतिक दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बना ली. दरअसल, पहले नीतीश कुमार की पार्टी का नाम समता पार्टी था.

उपेंद्र कुशवाहा, दरअसल, खुद को बिहार के मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानते हैं - और इसी वजह से उनकी नीतीश कुमार से कभी पटरी नहीं खायी. एक वजह ये भी है कि उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार का अपना जातीय वोट बैंक भी एक ही है. ऐसे में नीतीश कुमार एक बार जीतनराम मांझी की कड़वी यादें भुला भी सकते हैं लेकिन उपेंद्र कुशवाहा को गले लगा पाना उनके लिए काफी मुश्किल काम है.

2018 में जिस दिन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव के नतीजे आये उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए छोड़ने की घोषणा कर दी थी. हो सकता है उपेंद्र कुशवाहा को लगा हो कि एनडीए की सत्ता में तो वापसी होने से रही, लिहाजा पाला बदल लेना ही ठीक रहेगा, लेकिन दांव उलटा पड़ गया. आम चुनाव ने बीजेपी और नीतीश कुमार दोनों को पहले के मुकाबले ज्यादा मजबूत बना दिया.

लालू यादव की नजर में रामविलास पासवान राजनीति के सबसे बड़े मौसम वैज्ञानिक लगते हैं - और उस हिसाब से देखें तो उपेंद्र कुशवाहा ऐसे आकलन में चूक कर जाते हैं. अगर उपेंद्र कुशवाहा ने महागठबंधन भी छोड़ दिया और एनडीए में वापसी भी नहीं हो पायी तो उनका हाल भी शरद यादव जैसा हो सकता है.

अब सवाल ये है कि नीतीश कुमार के लिए उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए में आने की जानकारी होना जरूरी है भी या नहीं?

जीतनराम मांझी के एनडीए में आने की जानकारी चिराग पासवान को मीडिया के जरिये ही मिली. चिराग पासवान ये कह भी चुके हैं कि जीतनराम मांझी को लेकर उचित फोरम पर चर्चा होनी चाहिये थी. ऐसी हालत में उपेंद्र कुशवाहा को लेकर नीतीश कुमार के पास जानकारी न होना भी लाजिमी लगता है क्योंकि एनडीए में उचित फोरम पर ऐसी बातें तो हो नहीं रही हैं.

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जैसे नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी के बारे में बीजेपी से बात कर एनडीए में एंट्री करा ली, वैसे चिराग पासवान ने उपेंद्र कुशवाहा के लिए भी रास्ता निकाल लिया हो. और जैसे नीतीश कुमार ने मीडिया के जरिये जीतनराम मांझी के बारे में जानकारी दी है, चिराग पासवान भी उपेंद्र कुशवाहा के बारे में किसी दिन दे दें.

चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा में दोस्ती की बातें कोई जगजाहिर नहीं हैं. नीतीश कुमार से विरोध के चलते दोनों के करीब आ जाने की संभावना जरूर बनती है. चूंकि उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश कुमार के खिलाफ चिराग पासवान जैसे ही पेश आएंगे, इसलिए बीजेपी को भी इस बात से कोई खास विरोध नहीं होना चाहिये.

महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन के दौरान भी इस तरह का मामला देखने को मिला था. जब भी नारायण राणे बीजेपी के करीब आने की कोशिश करते शिवसेना बीच में दीवार बन कर खड़ी हो जाती रही. नारायण राणे पहले शिवसेना में ही रहे और पार्टी ने उनको महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री तक बनाया था, लेकिन बाद में वो छोड़ कर कांग्रेस में चले गये. यही वजह है कि सुशांत सिंह राजपूत केस को लेकर नारायण राणे और उनके बेटे नितेश राणे इन दिनों उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे के खिलाफ आक्रामक रूख अपनाये हुए हैं.

तब उद्धव ठाकरे की जो एनडीए में जो अहमियत रही, वो हैसियत आज नीतीश कुमार की तो नहीं लगती. बेशक नीतीश कुमार सीटों के बंटवारे में बारगेन कर सकते हैं. बीजेपी से बराबरी या ज्यादा सीटों की मांग कर सकते हैं और हो सकता है बीजेपी मान भी ले, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा की एनडीए में एंट्री रोक सकते हैं, ऐसा नहीं लगता. उपेंद्र कुशवाहा वैसे भी मौजूदा समीकरणों में बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकते हैं. टीडीपी और शिवसेना तो पहले ही एनडीए छोड़ चुके हैं, शिरोमणि अकाली दल भी दरवाजे तक जा चुका है - ऐसे में अगर उपेंद्र कुशवाहा वापसी करना चाहें तो बताने के लिए ही सही नंबर तो बढ़ेगा ही. उपेंद्र कुशवाहा के आने का मतलब महागठबंधन भी कमजोर होगा - और सबसे बड़ी बात उपेंद्र कुशवाहा के बहाने बीजेपी को एक और चिराग पासवान भी तो मिलेंगे.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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