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Updated: 23 मार्च, 2019 05:51 PM
सुजीत ठाकुर
सुजीत ठाकुर
  @sujeet.thakur.313
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बिहार पांच साल पहले जिस मोदी लहर पर सवार था वह अब गुजर चुका है. सुशासन बाबू कहे जाने वाले नीतीश कुमार का पैनापन पहले जैसा नहीं रहा और लालू यादव की लालटेन (राजद का चुनाव चिन्ह) की रौशनी धीमी पड़ चुकी है. यह साबित करने के लिए सिर्फ इतना कहना ही पर्याप्त है कि किसी भी दल ने बिहार में अपने दम पर चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखायी है. यदि मोदी का निर्णायक और मजबूत नेतृत्व और केंद्र सरकार की योजनाओं में भाजपा इतना दम देखती तो नीतीश कुमार को बराबरी की संख्या (17-17) में सीट नहीं देती.

पिछले चुनाव में भाजपा राज्य की 40 में से 23 सीट जीत चुकी थी और भागलपुर सीट महज 10 हजार वोटों से हारी थी. नीतीश कुमार को अपने काम (अच्छा प्रशासन और शराबबंदी) पर भरोसा होता तो भाजपा उनके लिए मजबूरी नहीं थी. रही बात राजद की तो लालू यादव के जेल जाने से लगभग पस्त हुई पार्टी कांग्रेस और दूसरी पार्टियों को साधने के लिए अपनी आधी सीटों (20) में साझेदारी के लिए मजबूर है.

modi nitishबिहार का चुनावी गणित सिर्फ आंकड़ों पर आधारित है

कुल मिलाकर 2019 के लिए बिहार का निहितार्थ यह है कि यहां का चुनावी गणित केमेस्ट्री की जगह अर्थमैटिक यानी आंकड़ों पर आधारित होता दिख रहा है. जिस पार्टी या गठबंधन ने अर्थमैटिक को साध लिया बाजी उसके हाथ लग सकती है. मुस्लिम-यादव के मजबूत वोट बैंक के साथ राजद राज्य में महागठबंधन की अगुवाई कर रही है. लेकिन सिर्फ यही दो समुदाय मिलकर राजद की नैया पार लगा सकते हैं ऐसा नहीं है. इसी तथ्य को देखते हुए राजद ने दलित चेहरा जीतनराम मांझी, कुशवाहा जाति के राज्य के सबसे मजबूत नेता बन चुके उपेंद्र कुशवाह और वीआईपी पार्टी (मल्लाह जाति के) के मुकेश साहनी को साथ लिया है.

भाजपा का मुख्य वोट बैंक अगड़ी जाति है. नीतीश के पास 1.5 फीसदी कुर्मी और कुछ हद तक महादलित और आर्थिक रूप से कमजोर जाति का कुनबा है. साथ ही राम विलास पासवान के रूप में दलित जाति में प्रभावशाली माने जाने वाले पासवान समुदाय का भी साथ एनडीए को है. जातियों के आंकड़ों के हिसाब से दोनों गठबंधनों में मुकाबला बराबरी का है, लेकिन एनडीए के लिए जो सबसे अधिक खतरा है वह है कांग्रेस का महागठबंधन का हिस्सा होना. एनडीए के नेता प्रत्यक्ष रूप से यह कहते हैं कि कांग्रेस का जीतना कठिन है लेकिन परोक्ष रूप से वह स्वीकार करते हैं कि कांग्रेस, भाजपा का वोट काट कर उसे नुकसान पहुंचाने का माद्दा रखती है. बिहार में कांग्रेस भले लचर स्थिति में है लेकिन काफी सारे इलाके (खासकर मिथिला) में हर परिवार में कांग्रेस का नामलेवा अभी तक बचा हुआ है.

NDA list

NDA list

भाजपा ने जिन लोगों को टिकट दिया है उनमें 5 राजपूत, 3 यादव, 2 वैश्य, 2 ब्राम्हण, 2 अति पिछड़ा, 1 दलित, 1 कायस्थ  और 1 भूमिहार है. लेकिन पटना साहिब सीट से कायस्थ चेहरा रहे शत्रुघ्न सिन्हा पार्टी छोड़ गए हैं. उनकी जगह रविशंकर प्रसाद को उम्मीदवार बनाया गया है. इसलिए यह सीट भाजपा के लिए आसान नहीं रही. इसी तरह दरभंगा सीट से भाजपा सांसद रहे कीर्ति आजाद भी पार्टी छोड़ चुके हैं. यहां से गोपालजी ठाकुर को टिकट दिया गया है. इसलिए यह सीट भी भाजपा के लिए कठिन है. मधुबनी सीट से पूर्व सांसद हुकुमदेव नारायण यादव की जगह उनके बेटे अशोक यादव को टिकट दिया गया है. मधुबनी में मैथिल ब्राम्हणों का संख्या काफी है. ऐसे में अशोक यादव की सीट पर भी मुकाबला कठिन होगा.

भाजपा सूत्रों का कहना है कि राज्यों से पार्टी सांसदों को लेकर जो फीडबैक भेजा गया था उसमें कई सांसदों के टिकट कटने की बात हुई थी लेकिन पार्टी ने मौजूदा सभी सांसदों (जिन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी) को टिकट देकर असंतोष नहीं बढ़े यह सुनिश्चित करना ही बेहतर समझा. राज्य में अगड़ी जातियों में भूमिहार काफी प्रभावशाली माने जाते हैं लेकिन भाजपा ने सिर्फ एक भूमिहार (गिरिराज सिंह) को ही टिकट दिया है वह भी सीट बदल कर बेगूसराय से. गिरिराज सीट बदले जाने से नाराज तो हैं ही भूमिहार समुदाय भी सिर्फ एक सीट मिलने से खफा है.

कुल मिलाकर स्थित यह है कि बिहार में न वो माहौल है न वह मुद्दा जो एनडीए या यूपीए के माकूल है. ऐसे में अर्थमैटिक ही इस चुनाव का रुख तय करता दिख रहा है. अर्थमैटिक भी सिर्फ वोट फीसदी का नहीं बल्कि जातियों का और जज्बातों का भी.

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लेखक

सुजीत ठाकुर सुजीत ठाकुर @sujeet.thakur.313

लेखक इंडिया टुडे मैगज़ीन से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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