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Updated: 23 दिसम्बर, 2015 03:35 PM
विवेक शुक्ला
विवेक शुक्ला
  @vivek.shukla.1610
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सुनकर अच्छा लगा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने मंत्रियों और सहयोगियों को भारत के खिलाफ गैर-जिम्मेदराना और भड़काऊ टिप्पणी करने से बचने के निर्देश दिए. जाहिर है, नवाज शरीफ भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की हालिया पाकिस्तान यात्रा के बाद दोनों देशों के संबंधों को सुधारने का जो माहौल बना है उसको लेकर गंभीर हैं.

पर बेहतर होगा कि वे अपनी पाकिस्तान सेना के चीफ जनरल राहिल शरीफ की जुबान पर ताला लगवाएं. जनरल शरीफ भारत के खिलाफ भड़काऊ टिप्पणी करने के लिए बदनाम रहे हैं. वे भारत के खिलाफ अनाप-शनाप बयान देते रहते हैं.

स्वराज के पाकिस्तान दौरे से कुछ समय पहले आर्मी चीफ जनरल राहिल शरीफ ने जंग की सूरत में भारत को  अंजाम भुगतने की चेतावनी दी थी. जनरल शरीफ ने कहा था, 'हमारी सेना हर तरह के हमले के लिए तैयार है. अगर भारत ने छोटा या बड़ा किसी तरह का हमला कर जंग छेड़ने की कोशिश की तो हम मुंहतोड़ जवाब देंगे और उन्हें ऐसा नुकसान होगा जिसकी भरपाई मुश्किल होगी. राहिल शरीफ कश्मीर के मसले पर भी टिप्पणी करने से बाज नहीं आते. साफ है कि नवाज शरीफ अगर राहिल शरीफ पर लगाम कसें तो दोनों देशों के संबंधों में मिठास घुल सकती हैं.

राहिल शरीफ बहुत एंटी इंडिया स्टैंड लेते हैं. इसके पीछ एक बड़ी वजह भी है. दरअसल 1971 की जंग में उनके बड़े भाई मारे गए थे. वे पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथी थे. नामवर चिंतक राजमोहन गांधी ने अपनी किताब-Punjab: A History from Aurangzeb to Mountbatten में लिखा है कि पाकिस्तान की सेना पर पंजाबियों का वर्चस्व साफ है. उसमें 80 फीसदी से ज्यादा पंजाबी हैं. ये घोर भारत विरोधी हैं. इसके मूल में वे विभाजन के समय हुई मारकाट को दोषी मानते हैं. इसके अलावा, पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में इस्लामिक कट्टरपन सबसे ज्यादा है. वहां पर हर इंसान अपने को दूसरे से बड़ा कट्टर मुसलमान साबित करने की होड़ में लगा रहता है. इस परिप्रेक्ष्य में इस बात की उम्मीद करना बेवकूफी होगी कि भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्तों में सुधार होगा. यानी राहिल शरीफ का पंजाबी होना और पाकिस्तान सेना में पंजाबी वर्चस्व भारत-पाकिस्तान संबंधों को सुधारने के रास्ते में अवरोध साबित हो सकता है.

हालांकि नवाज शरीफ की पहल का स्वागत होना चाहिए. शरीफ ने अपने मंत्रियों और अधिकारियों को ऐसे बयान देने से रोका जिससे शांति प्रक्रिया को नुकसान पहुंच सकता है. शरीफ ने यहां तक कहा, ‘गड़े मुर्दे उखाड़ने की बजाय केवल ऐसे बयान देने होंगे जिनसे वार्ता प्रक्रिया प्रोत्साहित हो. एक राय ये भी है कि अब पाकिस्तान में निर्वाचित सरकार गुजरे दौर की तुलना नें कहीं ज्यादा शक्तिशाली है. उससे सेना भी पंगा लेने की हिम्मत नहीं करती. इस परिप्रेक्ष्य में नवाज शरीफ की अपने मंत्रियों-सहयोगियों को दी गई सलाह को गंभीरता से लेने की जरूरत है.

शरीफ की सलाह पर एक राय ये भी सामने आ रही है कि वे परोक्ष रूप से सेना को संदेश देना चाहते हैं कि अब उसे अनावश्यक रूप से निवार्चित सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. जो भी हो, जब तक नवाज शरीफ सेना चीफ राहिल शरीफ की जुबान पर ताला नहीं लगाते तब तक बात नहीं बनेगी.

लेखक

विवेक शुक्ला विवेक शुक्ला @vivek.shukla.1610

लेखक एक पत्रकार हैं.

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