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Updated: 10 सितम्बर, 2018 07:03 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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डीजल-पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के चलते सोमवार को कांग्रेस ने भारत बंद का आह्वान किया है. विपक्ष की अधिकतर पार्टियां एकजुट होकर कांग्रेस के इस बंद में उसका समर्थन कर रही हैं. जहां एक ओर भारत बंद के लिए कांग्रेस समेत अधिकतर विपक्षी पार्टियां कमर कस चुकी हैं, वहीं भारत बंद से एक दिन पहले ही पेट्रोल के दामों में तगड़ा उछाल देखने को मिला है. रविवार को दिल्ली में डीजल की कीमत 72.51 रुपए प्रति लीटर पर स्थिर रही, जबकि 31 पैसे के इजाफे के साथ पेट्रोल की कीमत 80.30 रुपए प्रति लीटर पर पहुंच गई है.

आपके सप्ताह की शुरुआत ही भारत बंद के साथ होगी. ये बंद डीजल-पेट्रोल के विरोध में है, लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा कि भारत बंद वाले दिन डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ते हैं, घटते हैं या फिर स्थिर रहते हैं. वैसे भारत बंद से एक दिन पहले ही पेट्रोल के दाम 31 पैसे बढ़ना दिखाता है कि इस आह्वान से भाजपा सरकार जरा भी नहीं डरी है. डीजल-पेट्रोल की बढ़ती कीमतों से जनता तो परेशान है, लेकिन क्या सरकार और राजनीतिक पार्टियों को भी इससे कोई दिक्कत है? या फिर डीजल-पेट्रोल की कीमतों में लगी आग पर सिर्फ सियासी रोटियां पकाई जा रही हैं?

भारत बंद, डीजल, पेट्रोल, कांग्रेस, मोदी सरकारभारत बंद के लिए कांग्रेस समेत अधिकतर विपक्षी पार्टियां कमर कस चुकी हैं.

भारत बंद में क्या-क्या रहेगा बंद?

कांग्रेस ने 10 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया है और साथ ही यह भी कहा है कि अगर बच्चे स्कूल ना जाएं तो बेहतर है. बिहार में तो सभी स्कूलों को बंद रखने के आदेश तक जारी कर दिए गए हैं और हर जिले में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत कर दिया गया है. बेंगलुरु में भी बहुत से स्कूल-कॉलेजों को सोमवार को बंद रखने के आदेश जारी कर दिए गए हैं. बंद के दौरान स्कूल-कॉलेज के अलावा देश भर में टैक्सी सेवाएं, मॉल्स, दुकानें और अन्य व्यवसायी संस्थान बंद रह सकते हैं. हालांकि, अस्पताल, आपातकालीन सेवाएं, दूध की सप्लाई, मेट्रो सेवा और मेडिकल की दुकानों पर भारत बंद का कोई असर नहीं होगा और ये सब पहले की तरह ही काम करेंगे.

डीजल-पेट्रोल हैं सियासी ईंधन?

अगर कहा जाए कि डीजल-पेट्रोल सियासी ईंधन हैं, तो कुछ गलत नहीं होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले कई सालों से जो ट्रेंड देखने को मिल रहा है, वह इसी ओर इशारा करता है. हर सरकार बढ़ती कीमतों का पूरी ठीकरा कच्चे तेल पर फोड़ देती है. लेकिन अगर पिछले कुछ सालों का ग्राफ देखें तो पता चलता है कि ये जरूरी नहीं कि कच्चे तेल की कीमत घटे तो उतना ही डीजल-पेट्रोल सस्ता हो और कीमत बढ़े तो डीजल-पेट्रोल भी महंगा हो.

भारत बंद, डीजल, पेट्रोल, कांग्रेस, मोदी सरकारकच्चे तेल की कीमतों में 2014 से लेकर अब तक कई उतार-चढ़ाव आए हैं.

ये ग्राफ देखकर तो अंदाजा हो ही गया होगा कि डीजल-पेट्रोल की कीमतें कच्चे तेल पर सीधे तौर पर निर्भर नहीं होती हैं. हां, अगर कीमतें बढ़ती हैं तो डीजल-पेट्रोल भी महंगा कर दिया जाता है, लेकिन कम हों, तो जरूरी नहीं कि डीजल-पेट्रोल कीमतें गिरें. ग्राफ में आप देख सकते हैं कि 2014 के दौरान कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल तक को छू गई थी, जबकि उस समय पेट्रोल की कीमतें 73 रुपए के करीब हो गई थीं, जबकि अभी कच्चे तेल की कीमत करीब 77 डॉलर प्रति बैरल है, लेकिन पेट्रोल की कीमत 80 रुपए के पार जा चुकी है. अब अगर दूसरे प्वाइंट को देखें तो 2016 में कच्चे तेल की कीमत गिरकर 30 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी, लेकिन पेट्रोल की कीमत में इतनी तेज गिरावट देखने को नहीं मिली. 2016 में पेट्रोल की कीमत करीब 56 रुपए प्रति लीटर तक ही पहुंची थी. दरअसल, कच्चे तेल के हिसाब से पेट्रोल की कीमत में गिरावट नहीं दिखाई दी, क्योंकि सरकार ने अपना खजाना भरने के लिए इस दौरान करीब 9 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई थी. इन आंकड़ों से एक बात तो साफ हो जाती है कि बढ़ती कीमतों का ठीकरा सिर्फ कच्चे तेल के सिर पर फोड़ देना भी राजनीति का एक हिस्सा है.

जो भाजपा ने किया, वहीं कांग्रेस कर रही

वहीं दूसरी ओर जो भी सरकार सत्ता में होती है वह डीजल-पेट्रोल की बढ़ती कीमतों का बचाव करती है, जबकि विपक्ष हमेशा हमलावर की भूमिका में रहता है. भले ही बात कांग्रेस की करें या फिर भाजपा की. अभी डीजल-पेट्रोल की कीमतों में लगी आग से कांग्रेस तिलमिलाई हुई है और भाजपा को आड़े हाथों ले रही है. वहीं दूसरी ओर, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और कांग्रेस सत्ता में थी, तो भाजपा भी डीजल-पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को सरकार की नाकामी कहती थी. कुछ दिन पहले ही कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने पीएम मोदी का एक पुराना वीडियो ट्वीट करते हुए अच्छे दिन पर तंज कसा था.

भारत बंद से पहले ही महाराष्ट्र में सत्ताधारी भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने भी डीजल-पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. शिवसेना ने मुंबई में कई जगहों पर पोस्टर लगाकर मोदी सरकार के अच्छे के वादों पर कटाक्ष किया है. कांग्रेस की सरकार में डीजल-पेट्रोल की कीमतों पर मनमोहन सिंह को आए दिन निशाने पर लेने वाली भाजपा फिलहाल विपक्ष और अपने ही सहयोगी का विरोध झेल रही है. जनता भी बढ़ती कीमतों के विरोध में है और सरकार लगातार खुद को सही साबित में जुटी हुई है.

अब इसे राजनीति नहीं तो फिर और क्या कहें? कल तक जो विपक्ष में रहकर डीजल-पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे थे, आज वही अपना बचाव करते दिख रहे हैं. जब 2014 में कच्चे तेल के दाम तेजी से गिरे थे और डीजल-पेट्रोल सस्ते हो गए थे, तब तो पीएम मोदी ने उस मौके को भुनाते हुए भाजपा सरकार और खुद को देश के लिए 'नसीबवाला' तक कह दिया था. वहीं दूसरी ओर, जब कांग्रेस खुद सरकार में थी तो डीजल-पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को सही बता रही थी, लेकिन अब मोदी सरकार का विरोध करने के लिए पूरा भारत बंद करने पर उतारू हो गई है. डीजल-पेट्रोल से आम जनता के घर की गाड़ी चलती होगी, लेकिन सियासी रथ तो इसे मुद्दा बनाने और उस पर बहस करते रहने से चलता है. भारत बंद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

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