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Updated: 20 जून, 2019 10:35 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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एक समय था जब PM Narendra Modi 'कांग्रेस मुक्त' भारत का नारा दिया करते थे. उनके अनुसार कांग्रेस मुक्त भारत का नारा राजनीतिक रूप से मुख्य विपक्षी दल को समाप्त करने का नहीं, बल्कि देश को कांग्रेस संस्कृति से छुटकारा दिलाने के लिए था. एक बार तो मोदी ने यहां तक कहा था कि कांग्रेस के एक नेता ने उन्हें गंदी नाली का कीड़ा कहा, दूसरे न तेली, तीसरे ने पागल कुत्ता कहा और एक ने भस्मासुर की उपाधि दी. तो किसी ने बंदर कहा तो किसी ने वायरस कहा. लेकिन इन सारे आरोपों के बाद अपनी दूसरी पारी में वो बदले-बदले से नजर आ रहे हैं. इस बार वो विपक्षी दलों को भी साथ लेकर चलने की वकालत कर रहे हैं.

इसका ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब 17वीं लोकसभा के पहले सत्र की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 'लोकतंत्र में विपक्ष का होना, सक्रिय होना और सामर्थ्यवान होना अनिवार्य शर्त है. मैं आशा करता हूं कि प्रतिपक्ष के लोग नंबर की चिंता छोड़ दें. हमारे लिए उनका हर शब्द मूल्यवान है, हर भावना मूल्यवान है.'  

PM modi 'सबका साथ सबका विकास' के नारे से शुरु हुआ पीएम मोदी का सफर अब 'सबका विश्वास' हासिल करने की मंजिल तक पहुंच गया

अल्पसंख्यकों के प्रति उमड़ा प्रेम

विपक्षी पार्टियों के प्रति मोह मोदी के बदले हुए स्वरूप का पहला मामला नहीं था. इससे पहले इसकी पहली झलक तब मिली थी जब वो संसदीय दल का दूसरी बार नेता चुने गए थे. इस अवसर पर उन्होंने कहा था कि 'अल्पसंख्यकों के साथ किए गए छल में भी छेद करना है, हमें विश्वास को जीतना है, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में सभी ने भाग लिया था, किसी के साथ कोई विभेद नहीं करना है सबको साथ लेकर चलना है.'

और इस बदलाव की दिशा में सरकार के कदम तुरंत ही बढ़ गए. सरकार ने ईद के दिन यह घोषणा कर डाली कि अल्पसंख्यकों के लिए अगले पांच साल में 5 करोड़ छात्रों को स्कॉलरशिप दिया जायेगा जिनमें आधी लड़कियां होंगी. साथ ही मदरसों को आधुनिक बनाने का ऐलान हुआ ताकि उनमें हिंदी अंग्रेजी गणित विज्ञान कंप्यूटर इत्यादि की पढ़ाई हो सके.

यानी पांच साल पहले 'सबका साथ सबका विकास' के नारे से शुरु हुआ प्रधानमंत्री मोदी का कामयाब सफर अबकी बार 'सबका विश्वास' हासिल करने की मंजिल तक पहुंच गया.

सरकार कामकाज की नई परिभाषा लिख रही है

सरकार के तेवर में बदलाव सिर्फ अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर ही नहीं आया है बल्कि कामकाज की नई परिभाषा ये नई सरकार लिख रही है. इस बार वो अपने मंत्रीमंडल में ब्यूरोक्रेट्स को ज़्यादा तरजीह भी दी है. इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमाम केंद्रीय सचिवों की बैठक बुलाई थी जिसमें उनको ये भरोसा दिया था कि वो खुद को मोदी समझकर काम करें और अगर उनसे अनजाने में कोई गलती होती है तो घबराएं नहीं. किसी प्रधानमंत्री की ओर से शिखर के नौकरशाहों को ऐसा भरोसा शायद ही पहले कभी दिया गया हो.

modi cabinetनरेंद्र मोदी सरकार कामकाज की नई परिभाषा लिख रही है

रोजगार और निवेश के लिए दो मंत्रिमंडलीय समिति बनाई

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में रोजगार और निवेश को लेकर काफी किरकिरी हुई थी. विपक्ष रोजगार के मुद्दे को लेकर काफी हमलेवार रहा था. इसी के मद्देनजर सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके के लिए दो मंत्रिमंडलीय समिति बनाई जिसकी अध्यक्षता वो खुद करेंगे क्योंकि प्रधानमंत्री प्राय: सभी समितियों के प्रमुख होते हैं. प्रधानमंत्री ने पिछले कार्यकाल के दौरान ऐसी कोई समिति नहीं बनाई थी.

हालांकि प्रधानमंत्री की विपक्ष के प्रति नरमी का संकेत कितना मददगार सिद्ध होगा वो तो इस बजट सत्र में ही देखने को मिल जायेगा लेकिन इतना तो तय है कि इस सरकार का बदलता स्वरूप कायम रहता है तो यह आनेवाले समय में देशहित में कारगार साबित होगा.

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अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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