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Updated: 29 नवम्बर, 2018 09:00 PM
नवेद शिकोह
नवेद शिकोह
  @naved.shikoh
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कहा जाता है कि मुसलमानों का शिया वर्ग अपने धार्मिक चरित्रों को लेकर जितना भावुक है इतने भावुक दुनिया के किसी धर्म के धार्मिक धर्मावलंबी नहीं हैं. जिसकी एक दलील है, शिया अपने धार्मिक चरित्रों की चौदह सौ साल पुरानी तकलीफों का एहसास करके अपने सिर पर तलवारें मारते हैं. या अली.. या अली.. कह कर अपने नंगे शरीर पर धारदार छुरियों से वार करते हैं. खून बहाते हैं. आग पर चलते हैं. सीना पीटते हैं. आशूर के दिन भूखे प्यासे रहकर रोते हैं. नंगे पैर चलते हैं. अपनी जान से प्यारे धार्मिक चरित्रों को अपनी जान से ज्यादा चाहते हैं. मोहम्मद साहब के कज़िन और दामाद. हजरत फातिमा जहरा के शौहर. इमाम हुसैन के वालिद पहले इमाम हजरत अली शिया मुसलमानों के सुपर हीरो हैं. इनके नाम का राजनीतिकरण करने का दुस्साहस कभी किसी ने नहीं किया था.

योगी आदित्यनाथ, अली, बजरंग बली, मौलाना याकूब अब्बासअब मौलाना खुद योगी आदित्यनाथ के विरोध में खड़े हो गए हैं

एक सियासी मंच पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा राजनीति प्रतिस्पर्धा की कटुता में हजरत अली का नाम इस्तेमाल करने को लेकर शिया कौम में आक्रोश बढ़ रहा है. अतीत में शिया कौम की रहनुमाई करने वाले सबसे बड़े मौलाना ने जब मुख्यमंत्री के इस बयान की मजम्मत नहीं की तो मौलाना को लेकर कौम में और भी नाराजगी बढ़ गयी. इसका फायदा उठाकर लड़खड़ायी शिया कयादत पर लपकने की कोशिश कर रहे दूसरे शिया मौलानाओं ने मुख्यमंत्री के अली संबधित बयान पर एतराज जताना शुरु कर दिया है. दुनियाभर के शिया मुसलमानों में ख्याति प्राप्त लखनऊ के बड़े उलमा के घरानों में स्वर्गीय मौलाना मिर्जा मोहम्मद अतहर साहब के पुत्र मौलाना यासूब अब्बास और बुजुर्ग मौलाना डा. कल्बे सादिक के पुत्र कल्बे सिब्तैन नूरी बड़े उलमा की दूसरी पीढ़ी के शामिल हैं.

ये नौजवान धार्मिक नेता कमजोर पड़ी शिया लीडरशिप में कौम की कयादत का हक हासिल करने की फिराक में हैं. मुख्यमंत्री के अली संबधित बयान पर जब मौलाना कल्बे जव्वाद ने कोई एतराज नहीं किया और कौम में मौलाना की खामोशी पर नाराजगी पर सुगबुगाहट सुनाई पड़ने लगी तो मौलाना यासूब और मौलाना कल्बे सिब्तैन नूरी ने इस बयान पर एतराज जताते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से माफी मांगने को कहा है.

गौरतलब है कि अक़लियत में अक़लियत मुसलमानों का शिया वर्ग एक जमाने में एक बड़ी ताकत था. इस वर्ग की कयादत करने वाले शियों के रहनुमा चट्टान की तरह मजबूत थे. नेतृत्व के एक इशारे में मिनटों में शहर में शियों की लाखों की आधी आबादी सड़कों पर उतर आती थी. सरकारें इनसे कांपती थीं. शियों के रहनुमा सत्ता के मुखिया की चौखट पर चक्कर नहीं काटते थे बल्कि हुकूमतें मौलाना की ड्योढ़ी में लाइन लगाती थीं. मौलाना का राजनीतिकरण होते ही सब कुछ खत्म हो गया. राजनीतिकरण का आशय है कि किसी दल को हराने-जिताने के फरमान जारी करना. हुकूमतों की बार-बार तारीफ करना. सियासी दलों का प्रचार करना. सरकार के मुखिया के दर पर दर्जनों चक्कर काटना. पहले ऐसा नही था. शिया कौम की हर जायज मांग मौलाना के एक इशारे पर पूरी हो जाती थी. बाइस वर्षों तक लखनऊ में मुसलमानों के धार्मिक जुलूसों की पाबंदी को शियों के नेतृत्व ने ही बहाल किया था.

अज़ादारी के जुलूसों की बहाली और अवकाफ बचाने के लिए एतिहासिक आंदोलनों से सरकारे हिल जाती थीं. शिया वक्फ बोर्ड की अरबों-खरबों की सम्पत्तियों को नाजायज कब्ज़े से मुक्त करने के लिए अपने रहनुमा के एक इशारे पर लाखों शिया सड़कों पर उतर आये थे. नतीजतन अधिकांश धार्मिक स्थलों को अवैध कब्जों से खाली करवा लिया गया था. रिकार्ड है कि यूपी की हर दौर की हुकूमतें नेतृत्वकर्ता मौलाना के इशारों पर ही शिया वक्फ बोर्ड का चेयरमैन तय करती थीं. विदित है कि बसपा सरकार के दौरान वसीम रिजवी को मौलाना के इशारे पर ही शिया वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बनाने के समीकरण बनाये गये थे. वक्त के साथ बहुत कुछ बदल गया. शिया कयादत अपने मिजाज के विपरीत ज्यों-ज्यों हुकूमतों में इन्वॉल्व होने लगी कौम अपने रहनुमा से दूर होती गयी.

अब आसार दिख रहे हैं कि शिया समुदाय अपनी कौम के नजदीक और सियासत/हुकूमतों से दूर रहने वाले किसी धर्म गुरु को रहनुमाई के लिये तलाश रही है. ऐसे में दूसरी पीढ़ी के युवा उलमा कौम का नेतृत्व लपकने के लिए सियासत से दूर और हुकूमतों की कमियों पर हमलावर तेवरों को पेश करने लगे हैं.

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नवेद शिकोह नवेद शिकोह @naved.shikoh

लेखक पत्रकार हैं

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