बंगाल चुनाव: ममता बनर्जी के नारे में 'मां' मिसिंग है
नीले किनारों वाली सफेद साड़ी में ममता वात्सल्य और दया की मूर्ति मदर टेरेसा जैसी दिखती हैं. पर कहते हैं वह बड़ी कड़क हैं. होंगी. पर आंकड़े यही बताते हैं कि विधि-व्यवस्था पर ममता की पकड़ बदतर है.
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चुनाव में नारे चलते हैं, तथ्य पीछे रह जाते हैं. क्या ऐसे आरोप सिर्फ खास पार्टियों के नेताओं पर ही लगते हैं? नहीं. ममता बनर्जी इसकी एक खास और विशिष्ट किस्म की मिसाल हैं.
2011 में 'पोरिबोर्तन' (बदलाव) के नाम पर सत्ता में आईं ममता बनर्जी की वजह से पश्चिम बंगाल में 2014 तक क्या बदला था? राइटर्स बिल्डिंग का रंग. लाल रंग नीले और सफेद में बदल गया. और इस बदलाव को 2016 में भी हरी झंडी मिली. कुर्सी माकपा की बजाए फिर तृणमूल कांग्रेस को मिल गई. बंगाल नहीं बदला.
बंगाल सिर्फ कोलकाता नहीं है. कोलकाता से बाहर बांकुड़ा भी है. वीरभूम भी. वीरभूम में शांति निकेतन भी है और सुबलपुर भी. शांति निकेतन से सुबलपुर ज्यादा दूर नहीं है. मुख्य सड़क से बाईं तरफ मुड़ने पर एक नहर के किनारे-किनारे जंगल में दाहिनी ओर एक गांव है. वहां अब भी कुछ नहीं बदला बजाए इसके कि गांव में अब मीडिया वाले नहीं पहुंच रहे हैं. वहां कोई 2014 के जनवरी महीने में हुई घटना के बारे में बात नहीं करना चाहता. जो भी बात करता है फुसफुसाकर बात करता है. आखिर लव जिहाद जैसा मसला फुसफुसाने वाली चीज ही तो है. बंगाल तो पढ़े-लिखे लोगों का सूबा है. लव जिहाद यूपी को मुबारक. पर, सचाई है कि घटना हुई और बड़े घिनौने तरीके से हुई.
एक जनजातीय लड़की को समुदाय के बाहर के लड़के से प्यार हो गया. नतीजतन, सालिशी सभा बुलाई गई. सालिशी सभा यानी जनजातीय पंचायत, जिसे सुविधा के लिए आप इलाके की खाप पंचायत मान सकते हैं. यह खाप की तरह ताकतवर भी है. बंगाल जैसे राज्य में खाप? पर सच यही है. बहरहाल, प्रेम करने के एवज में उस आदिवासी लड़की पर पचास हजार रूपये का जुर्माना ठोंक दिया गया. लड़की गरीब थी, जुर्माना नहीं दे सकी तो सालिशी सभा के मुखिया के आदेश पर, बारह लोगों ने उस लड़की के साथ बलात्कार किया. बलात्कार करने वालों में मुखिया भी था. यह बात मीडिया की नजरों में आई और हंगामा हुआ तो छह महीने बाद कुछ गिरफ्तारी भी हुई. यह घटना पश्चिम बंगाल में तब हुई थी जब मुख्यमंत्री पद पर एक महिला थी.
ममता बनर्जी के राज में जो घटनाएं घटीं उनके लिए मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें शर्मसार होना चाहिए था
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सत्ता तक के अपने सफर में मां, माटी और मानुष का नारा दिया था. माटी और मानुष को छोड़ दीजिए, आज सिर्फ मां की बात करें.
नीले किनारों वाली सफेद साड़ी में ममता वात्सल्य और दया की मूर्ति मदर टेरेसा जैसी दिखती हैं. पर कहते हैं वह बड़ी कड़क हैं. होंगी. पर आंकड़े यही बताते हैं कि विधि-व्यवस्था पर ममता की पकड़ बदतर है. सालिशी सभा वाला सुबलपुर कांड सिर्फ एक मिसाल है. उसी दौर में कई ऐसी घटनाएं हुईं जिनके लिए ममता बनर्जी को एक मुख्यमंत्री के तौर पर शर्मसार होना चाहिए था.
जरा गिनिएगा-
- फरवरी 2012 में कोलकाता के पार्क स्ट्रीट में रेप कांड हुआ, ममता ने इस बलात्कार को झूठा बताया. वर्धमान के कटवा में रेप कांड हुआ जिसमें महिला का उसकी बेटी के सामने बलात्कार किया गया. मुख्यमंत्री ममता ने कहा- यह झूठी साजिश है. पीड़िता माकपा की सदस्या है.
- दिसंबर 2012 में उत्तरी 24 परगना में बारासात में सामूहिक बलात्कार हुआ, असली बलात्कारी के बजाए पुलिस ने ईंट भट्ठे के मजदूर को गिरफ्तार कर लिया.
- जुलाई, 2013 मुर्शिदाबाद के रानी नगर में शारीरिक रूप से अशक्त लड़की का रेप, आरोपी था तृणमूल का नेता-पुत्र.
- अक्तूबर, 2013 में उत्तरी 24 परगना में मध्यमग्राम में एक नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार, लड़की का परिवार डर कर मकान बदल लेता है, अपराधी वहां भी उसका पीछा करते हैं.
- जनवरी 2014 में दक्षिणी कोलकाता के फिटनेस सेंटर की कर्मचारी को ट्रक में अगवा कर लिया जाता है और 5 लोग उसके साथ रेप करते हैं.
- जून 2014 में कामदुनी में कॉलेज छात्रा का रेप कर उसकी हत्या कर दी जाती है. मुखालफत पर उतरी महिलाओं को ममता बनर्जी माओवादी बता देती हैं.
यह उन बलात्कारों की सूची है जो मीडिया की नजर में आए, और मीडिया के जरिए लोगों की निगाह-ज़बान पर चढे. पर 2014 के आंकड़े 2015 और 2016 में और भयावह होते जाते हैं. नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) का साल 2016 के आंकड़े पश्चिम बंगाल में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों की तरफ इशारा करते हैं. इन अपराधों में महिला तस्करी से जुड़े बढ़ते मामलों की फेहरिस्त भी है और यह खतरनाक ट्रेंड है.
महिला अपराधों में प.बंगाल देश में दूसरे नंबर पर है
जानकार कहते हैं कि पश्चिम बंगाली की राजनीति में तेज़ाबी बयानबाजियां होती हैं. पर वहां तेजाबी हमले भी उतने ही महिलाओं के खिलाफ उतने ही कारगर ढंग से इस्तेमाल में लाए जाते हैं. 2016 में, एनसीआरबी कहता है. देश भर के कुल एसिड अटैक के 283 में से 76 सिर्फ बंगाल में हुए. यानी 26 फीसदी.
महिलाओं के खिलाफ क्रूरता के देश भर में 1,10,434 मामले दर्ज किए गए हैं और उनमें से 19,305 मामले यानी करीब 17 फीसदी सिर्फ बंगाल में हुए हैं.
मानव तस्करी में भी बंगाल पीछे नहीं है और देश भर में मानव तस्करी का 44 फीसदी मामले बंगाल से ही हुए हैं. 2016 में देश भर में कुल 8,132 केस दर्ज किए गए और बंगाल में यह 35,79 केस थे.
महिलाओं के खिलाफ अपराधों में बंगाल ने हमेशा अपना नाम ऊंचे पायदान पर बरकरार रखा है. साल 2016 में, 32513 मामलों के साथ महिलाओं के खिलाफ अपराधों की ऊंची संख्या के साथ बंगाल में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का करीब 10 फीसदी (9.6 फीसदी) हिस्सा होता है. हालांकि तर्क यह होगा कि इस पायदान पर भाजपा शासित उत्तर प्रदेश पहले पायदान पर है और पश्चिम बंगाल दूसरे पायदान पर, लेकिन बंगाल में देश की कुल महिला आबादी का महज 7.5 फीसदी ही है, जबकि यूपी में देश की 17 फीसदी महिलाएं ही रहती हैं.
महिला अपराधों पर लगाम लगाने में नाकाम ममता की सरकार
बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के ऊंची दर के बावजूद प्रशासन ने इसे लेकर कुछ खास किया नहीं है. खतरनाक बात यह है कि पश्चिम बंगाल में न तो राज्य सरकार को इसकी परवाह है और न ही तृणमूल कांग्रेस को चुनौती दे रही भारतीय जनता पार्टी के लिए कोई चुनावी मुद्दा.
राज्य में पश्चिम बंगाल महिला आयोग और पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी इस दिशा में कुछ ठोस करने की पहल नहीं की है. भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में सजा देने की दर 18.9 फीसदी है, पर हैरतअंगेज तरीके से पश्चिम बंगाल में यह महज 3.3 फीसदी ही है.
पर हैरत यह है कि, जैसा मैंने शुरू में कहा, सियासत में नारे आगे चलते हैं तथ्य पीछे छूटते जाते हैं. भावनाएं भारी होती हैं और असलियत को दरकिनार कर दिया जाता है. बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध पर मैंने शांति निकेतन की एक प्राध्यापिका और कोलकाता में एक महिला पत्रकार से टिप्पणी चाही, तो दोनों ने एक ही जवाब के साथ बंगाल का बचाव किया- आखिर अपराध किस सूबे में नहीं होते?
मैंने कहा था न, सियासत में नारे तथ्यों पर भारी हों तो वैचारिकता की टेक लिए लोग उसकी हिमायत में आएंगे ही, बचाव में भी.
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