मोदी-शाह की जोड़ी का सबसे कठिन चुनाव
जहां कांग्रेस के लिहाज से वर्तमान परिस्थिति भाजपा को टक्कर देने के लिहाज से सबसे मुफीद है तो वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के चुनावी रण में यह सबसे मुश्किल चुनाव है.
-
Total Shares
निर्वाचन आयोग ने शनिवार को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के तारीखों का ऐलान कर दिया. छत्तीसगढ़ में चुनाव दो चरणों में 12 नवंबर और 20 नवंबर को, मध्यप्रदेश और मिजोरम में एक साथ एक ही चरण में 28 नवंबर को जबकि तेलंगाना और राजस्थान में एक साथ 7 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे. पांचों राज्यों में वोटों की गिनती एक साथ 11 दिसंबर को होगी. आयोग की इस घोषणा के साथ ही 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले आखिरी चुनावी दौर की भी शुरुआत हो चुकी है. कई मायनों में अहम इस चुनाव को आगामी लोकसभा चुनावों के सेमीफाइनल के रूप में में भी देखा जा रहा है, और इसमें बेहतर करने के लिए देश के दोनों ही प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस एड़ी, चोटी का जोर लगा रहे हैं.
नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने 2015 चुनावों को छोड़कर सभी जीते हैं, लेकिन 2018 और 19 उनके लिए मुश्किल होेने वाला है
जहां कांग्रेस के लिहाज से वर्तमान परिस्थिति भाजपा को टक्कर देने के लिहाज से सबसे मुफीद है तो वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के चुनावी रण में यह सबसे मुश्किल चुनाव है. वैसे तो मोदी और शाह की जोड़ी का चुनावी प्रदर्शन काफी बेहतर रहा और इस जोड़ी ने अपने नेतृत्व में लड़े ज्यादातर चुनावों में बेहतर नतीजे ही दिए है, हां साल 2015 जरूर इस जोड़ी को चुनावी जीत नहीं दिला सका था, जब भाजपा को बिहार और दिल्ली में मुंह की खानी पड़ी थी. और अगर इन दो चुनावों को छोड़ दें तो यह जोड़ी अपने नेतृत्व में कम से कम एक दर्जन राज्यों में भाजपा को सत्ता में लाने में कामयाब रही है. हालांकि, इन एक दर्जन राज्यों में 2 राज्य गुजरात और गोवा ही वो राज्य थे जहां भारतीय जनता पार्टी पहले से सत्ता में काबिज थी और बाकि अन्य राज्यों में अन्य पार्टियों की सरकारें थी. मगर हालिया चुनावी दौर में ऐसा पहली बार होगा जब 5 राज्यों के चुनावों में 3 राज्य भाजपा के कब्जे में हैं, जहाँ भाजपा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछले 15 सालों से सत्ता में है तो वहीं राजस्थान में भाजपा 2013 में कांग्रेस को हरा कर सत्ता में आयी थी.
यानी ऐसा पहली बार होगा जब मोदी और शाह की जोड़ी को 3 राज्यों में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा. इससे पहले गुजरात चुनावों में भी भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा था. उन चुनावों में भाजपा जीत जरूर गयी थी, मगर इसके लिए भाजपा को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. अब फिर से भाजपा को ऐसी ही चुनौतियों का सामना मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में करना पड़ रहा है. मोदी और शाह की जोड़ी के लिए परेशानी इस बात की भी है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद शायद ऐसा पहली बार हो रहा है जब देश के मध्यम वर्ग में केंद्र सरकार को लेकर रोष है. देश का मध्यम वर्ग जहाँ पेट्रोल, डीजल के बढ़ते दामों को लेकर नाराज है तो वहीं अगड़ी जातियों का एक तबका भी SC/ST एक्ट को लेकर सरकार से नाराज है और इसका असर राजस्थान और मध्य प्रदेश में देखने को भी मिल रहा है.
ऐसे में सत्ता में बने रहने के लिहाज से जहां भाजपा को इन राज्यों की सत्ता विरोधी लहर को शांत रखना होगा तो वहीं भाजपा को सर्वाधिक मदद करने वाले वोटबैंक मध्यम वर्ग को भी अपने साथ जोड़े रखने की चुनौती होगी. हालाँकि मोदी-शाह की जोड़ी के रिकार्ड्स देख कर यह जरूर कहा जा सकता है कि आने वाले चुनावों में तमाम दुश्वारियों के बावजूद भाजपा सत्ता बचा पाने में सफल रहे इसकी सम्भावना दिखती है मगर यह चुनाव इस जोड़ी की कड़ी परीक्षा लेने वाली है इस बात से कोई इंकार नहीं किया जा सकता.
ये भी पढ़ें-
युवा वाहिनी ने बागपत के मुस्लिम परिवार को हिंदू तो बनाया, लेकिन ठाकुर ही क्यों?
आपकी राय