Lok Sabha Election 2019: एक वोट की कीमत तुम क्या जानो दिग्गी बाबू !
12 मई को हुई वोटिंग में दिग्विजय सिंह भोपाल में सारी व्यवस्थाएं देखते रहे और राजगढ़ जाकर वोट नहीं दिया. ये एक वोट कांग्रेस पर कितना भारी पड़ सकता है, उसकी शुरुआत हो चुकी है.
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हारते हुए नेता का अरमान होता है एक वोट, चंद वोटों से जीते हुए नेता की आन-बान-शान होता है एक वोट. लेकिन एक वोट की कीमत तुम नहीं समझोगे दिग्गी बाबू. ये एक वोट नहीं डालकर तुमने बहुत बड़ा नुकसान किया है. ये एक वोट कांग्रेस पर कितना भारी पड़ सकता है, उसकी शुरुआत हो चुकी है. पीएम मोदी ने वोट नहीं देने पर दिग्विजय सिंह को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है. इसे कांग्रेस का अहंकार और लोकतंत्र का मजाक तक कहा जा रहा है और अभी आखिरी चरण का चुनाव होना बाकी है.
12 मई को हुई वोटिंग में दिग्विजय सिंह भोपाल में सारी व्यवस्थाएं देखते रहे और राजगढ़ जाकर वोट नहीं दिया. दरअसल, भोपाल उनका लोकसभा क्षेत्र है, जबकि उनका वोट राजगढ़ में बना हुआ है. जब दिग्विजय सिंह से पूछा गया कि आपने वोट नहीं दिया तो उन्होंने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा- 'हां मैं वोट डालने राजगढ़ नहीं जा सका और इसका मुझे खेद है. अगली बार मैं अपना वोट भोपाल में रजिस्टर करवा लूंगा.'
दिग्विजय सिंह का एक वोट कांग्रेस पर कितना भारी पड़ सकता है, उसकी शुरुआत हो चुकी है.
दिग्विजय सिंह ने तो एक वोट को मामूली समझ लिया, लेकिन वह एक कहावत भूल गए कि बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता है. अब कांग्रेस के घड़े में एक-एक वोट नहीं आएंगे, तो वह भरेगा कैसे? ओर वोटों से घड़ा नहीं भरेगा तो सत्ता हाथ कैसे आएगी? शायद दिग्विजय सिंह 2004 के कर्नाटक चुनाव और 2008 के राजस्थान चुनाव भूल गए, जब सिर्फ एक वोट ने हार-जीत का फैसला किया था. ये तो हर कोई जानता है कि इतिहास दोहराता है, तो अगर इस लोकसभा चुनाव में एक वोट की वजह से वह खुद हार गए तो आइना भी उनसे सवाल करेगा.
खुद की बात पर ही नहीं किया अमल
दिग्विजय सिंह ने खुद भी एक ट्वीट किया था और लोगों से उनके वोट की अपील की थी, लेकिन उन्होंने अपनी खुद की बात पर ही अमल नहीं किया. उन्होंने लिखा था- 'आज़ादी के बाद हम सब ने मिल कर भारत को एक मज़बूत लोकतंत्र में विकसित किया है, जिसमें आप सर्वोपरी हैं. आपका हर वोट भारत की इस यात्रा को और मज़बूत और सुगम बनाए, यही मेरी कामना है.'
1/2आज़ादी के बाद हम सब ने मिल कर भारत को एक मज़बूत लोकतंत्र में विकसित किया है, जिसमें आप सर्वोपरी हैं। आपका हर वोट भारत की इस यात्रा को और मज़बूत और सुगम बनाए, यही मेरी कामना है।..
— digvijaya singh (@digvijaya_28) May 13, 2019
भाजपा ने घेरना शुरू कर दिया है
भले ही दिग्विजय को अपना एक वोट मामूली लगा हो, लेकिन इस एक वोट ने ही सियासी गलियारे में एक हलचल पैदा कर दी है. भाजपा ने इसे लेकर दिग्विजय को घेरना शुरू कर दिया है. पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के रतलाम में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा- इससे युवाओं में क्या संदेश जाएगा? दिग्गी राजा इतना क्यों डर गए? आप तो जाकिर नाइक से भी नहीं डरते हो. पीएम ने तो इसे कांग्रेस का अहंकार भी कह दिया है. उनके अलावा भोपाल से भाजपा की उम्मीदवार और दिग्विजय सिंह की प्रतिद्वंद्वी साध्वी प्रज्ञा ने कहा है कि दिग्विजय सिंह में जागरुकता की कमी है.
जब एक वोट के अंतर से हुई हार-जीत
देखा जाए तो एक वोट की कीमत कई बार 5 साल की सत्ता होती है, तो कई बार इसकी कीमत हारकर भी चुकानी पड़ती है. ये सब सिर्फ कहने की बातें नहीं हैं, बल्कि हकीकत है.
- 1999 में अटल बिहारी की सरकार 13 महीने बाद ही सिर्फ एक वोट से गिर गई थी. दरअसल, 1998 में हुए आम चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला था. एनडीए ने एआईएडीएमके के समर्थन से सरकार बनाई थी, लेकिन कुछ कारणों के चलते एआईएडीएमके ने अपना समर्थन वापस ले लिया. जब अटल बिहारी की सरकार ने बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट किया तो वह महज एक वोट से हार गए.
- 2004 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस के नेता एआर कृष्णमूर्ती (40,751 वोट) सिर्फ एक वोट से हार गए थे और इस एक वोट से ही कांग्रेस के आर ध्रुवनारायण (40,752 वोट) ने विजय पताका फहरा दी थी.
- 2008 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में नाथवाड़ा सीट पर कांग्रेस के सीपी जोशी महज एक वोट से हार गए थे. इस सीट पर लड़ रहे भाजपा के प्रत्याशी कल्याण सिंह चौहान को 62,216 वोट मिले थे, जबकि सीपी जोशी को 62,215 वोट मिले थे. जोशी के लिए यह बेहद हैरान करने वाला था, क्योंकि उस समय वह राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे. हालांकि, प्रदेश में वह अपनी पार्टी को जिताने में तो कामयाब रहे, लेकिन अपनी सीट पर महज 1 वोट से हार गए.
चंद वोट से भी हारे हैं प्रत्याशी
लोकसभा चुनाव में कोई एक वोट से अब तक तो नहीं हारा, लेकिन हैरानी की बात नहीं होगी अगर इस बार लोकसभा चुनाव में भी कोई महज एक वोट से हार जाए. पहले भी ऐसा हो चुका है कि लोकसभा चुनाव में महज चंद वोटों से कोई प्रत्याशी हार गया हो.
- 1989 में आंध्र प्रदेश की अनकपल्ली लोकसभा सीट से मैदान में उतरे कांग्रेस के प्रत्याशी कोनथाला रामकृष्ण महज 9 वोटों से चुनाव हार कर गए थे.
- बिहार की राजमहल लोकसभा सीट से मैदान में उतरे भाजपा प्रत्याशी सोम मरंडी 1998 में महज 9 वोटों से हार गए थे.
दिग्विजय सिंह को अगर एक वोट मामूली लगता है तो उन्हें एक बार जेडीएस के एआर कृष्णमूर्ती और कांग्रेस के सीपी जोशी से जरूर मिलना चाहिए. वो लोग एक वोट की कीमत अच्छे से जानते हैं और दिग्विजय सिंह को ये समझा भी सकते हैं. दिग्विजय सिंह को अगर इन सबके बावजूद एक वोट की कीमत समझ ना आए तो हो सकता है कि किसी चुनाव में वह खुद चंद वोटों से हारें या जीतें, तो वह सब कुछ समझ जाएंगे.
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