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Updated: 24 नवम्बर, 2018 04:26 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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चोर, नमक हराम, निकम्मा, नीच आदमी, अनपढ़, गंवार, कुत्ता, चू**या, गधा, बंदर, सांप-बिच्छू....चौंकिए नहीं...ये सब विशेषण गाली नहीं हैं, बल्कि हमारे माननीय राजनेताओं के बोल हैं. आजकल राजनीति के गलियारे में इस तरह की भाषा का इस्तेमाल आम हो चला है. खासकर जब चुनाव का माहौल हो. अभी पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और ठीक इसके बाद लोकसभा का चुनाव भी होनेवाला है, ऐसे में इस तरह की भाषा का प्रयोग होता रहेगा. हमारे माननीय नेतागण तो अपना परिचय आचरण से देते ही रहते हैं अब वो अपनी भाषा से भी जनता को रू-बरू करा रहे हैं.

वर्तमान राजनीतिक माहौल में आए दिन नेताओं द्वारा अमर्यादित और स्तरहीन भाषा का प्रयोग किया जा रहा है जिसे हमारे लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता है. आजकल नेतागण विकास की बातें करने के बजाय एक दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं और इस क्रम में अमर्यादित भाषा का उपयोग ज़्यादा करने में विश्वास रखते हैं.

rahul gandhiदेश के प्रधानमंत्री के लिए 'चोर' शब्द का इस्तेमाल करना बेहद शर्मनाक है

अभी हाल में ही देश के सबसे पुराने और बड़े पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री के लिए 'चोर' शब्द का इस्तेमाल किया. लेकिन शायद वो अपनी बात जो लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान नफरत को प्यार से जीतने की बात कही थी वो भूल गए. जिस प्रधानमंत्री को उन्होंने गले लगाया था, उन्हें ही चोर की उपमा दे डाली. तो क्या उनका यह महज़ छलावा या दिखावा था?

हालांकि राहुल गांधी बार-बार अपने नेताओं को ये नसीहत देते रहते हैं कि प्रधानमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी न करें. बावजूद इसके कांग्रेस के नेता देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक बात तो क्या गाली देने से भी बाज़ नहीं आ रहे.  

पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सीपी जोशी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री उमा भारती की जाति और धर्म पर सवाल उठाते हुए कहा "उमा भारतीजी की जाति मालूम है किसी को? ऋतंभरा की क्या जाति है, मालूम है किसी को? इस देश में धर्म के बारे में कोई जानता है तो पंडित जानते हैं. अजीब देश हो गया. इस देश में उमा भारती लोधी समाज की हैं, वह हिंदू धर्म की बात कर रही हैं. साध्वीजी किस धर्म की हैं? वह हिंदू धर्म की बात कर रही हैं. नरेंद्र मोदीजी किसी धर्म के हैं, हिन्दू धर्म की बात कर रहे हैं. तो क्या ब्राह्मण किसी काम के नहीं हैं, 50 साल में इनकी अक्ल बाहर निकल गई."

कांग्रेस नेता राज बब्बर ने डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वृद्ध माता की उम्र से तुलना कर दी.

यही नहीं मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम ने प्रधानमंत्री को 'अनपढ़, गंवार' कहा था. इससे पहले 2014 के महाराष्ट्र चुनाव के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री को बंदर तक कह दिया था -'जनता ने एक बंदर के हाथ में देश सौंप दिया है'

अपने विवादित बयानों के बादशाह कोंग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री मोदी को 'नीच आदमी' बोला था. बकौल मणिशंकर अय्यर- 'मुझको लगता है कि ये आदमी बहुत नीच किस्म का है, इसमें कोई सभ्यता नहीं है, और ऐसे मौके पर इस किस्म की गंदी राजनीति की क्या आवश्यकता है ?'

दूसरे विवादित कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी के लिए चू**या शब्द का इस्तेमाल किया था. दिग्विजय सिंह ने जो ट्वीट पोस्ट किया, उसमें मोदी की तस्वीर के साथ तीन लाइन लिखी गई थी. इसमें लिखा था, ‘मेरी 2 उपलब्धियां: 1- भक्तों को चू**या बनाया, 2- चू**या को भक्त बनाया.

ये सब केवल उदाहरण हैं जो आजकल नेतागण अपने विपक्षी नेताओं के लिए उपयोग कर रहे हैं. तो क्या इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल लोकतंत्र के लिए सही है? क्या राजनेताओं को अपने भाषण में संयम और शालीनता का परिचय नहीं देना चाहिए? क्या लोकतंत्र में शब्दों की मर्यादा अनिवार्य नहीं होना चाहिए? आखिर इनसे हमारी जनता क्या प्रेरणा ले सकती है? क्या जनता को ऐसे नेताओं को वोट देना चाहिए? क्या ऐसे नेताओं को सामाजिक बहिष्कार नहीं कर देना चाहिए? क्या इसके लिए चुनाव आयोग को कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं करना चाहिए? क्या इसे चुनावी आचार संहिता के उलंघन के दायरे में नहीं रखना चाहिए?

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लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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