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Updated: 15 दिसम्बर, 2018 04:18 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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मध्यप्रदेश में 15 सालों से राज करने वाले भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के बाद कांग्रेस के सामने मुख्य चुनौती मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा को लेकर थी. हालांकि चुनाव परिणाम तो 11 दिसम्बर को ही आ गए थे लेकिन मुख्यमंत्री के दो दावेदार- कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण नाम की घोषणा में दो दिन लग गए. वो भी तब जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और यहां तक कि प्रियंका गांधी को भी इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा. खैर, अब कमलनाथ के नेतृत्व में 15 सालों के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस को वनवास से वापसी हुई है.

वजह जिस कारण सिंधिया को पछाड़ते हुए कमलनाथ मुख्यमंत्री की दौड़ में आगे निकले

मध्यप्रदेश कांग्रेस में आपसी गुटबाज़ी काफी था लेकिन कमलनाथ को गुटबाज़ी से परे का नेता माना जाना उनके पक्ष में गया. कमलनाथ ही हैं जो प्रदेश के अनेक गुटों को साथ लेकर चल सकते थे. कमलमाथ को अनुभवी नेता के रूप में माना जाता है. सत्ता के गलियारों के अनुभव ने भी उनकी मुख्यमंत्री की दावेदारी को मजबूती प्रदान की. मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से उन्‍होंने लगातार नौ बार जीत दर्ज़ कराने का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया है.

kamalnathकमलनाथ ही हैं जो प्रदेश के अनेक गुटों को साथ लेकर चल सकते हैं

मध्यप्रदेश की रजनीति का चाणक्य समझे जानेवाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का भी समर्थन कमलनाथ को प्राप्त है जो कि गुटबाज़ी को रोकने में अहम भूमिका निभा सकती है. राजनीतिक जानकारों के अनुसार कमलनाथ का मुख्यमंत्री बनना 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को ज्यादा सीटें दिलाने में सहायक सिद्ध हो सकता है. लेकिन सबसे बड़ी बात जिसने कमलनाथ को इस दौड़ में आगे किया वो- गांधी परिवार से नज़दीकी होना है.

कमलनाथ के सामने चुनौतियां

अब चूंकि यह साफ हो गया है कि कमलनाथ ही मध्य्प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगें ऐसे में कमलनाथ के सामने चुनौतियां भी कम नहीं होंगी. कमलनाथ ने महज सात महीने पहले ही मध्य प्रदेश कांग्रेस का प्रभार संभाला और कांग्रेस को 15 सालों के वनवास से मुक्ति दिलाई. लेकिन उनके लिए आगे की राह इतनी आसान भी नहीं होने वाली है.

प्रदेश के नेताओं की गुटबाज़ी से निपटने के बाद कमलनाथ को अपने सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना सबसे बड़ी चुनौती होगी. कांग्रेस को इस चुनाव में 114 सीटें ही मिली हैं और दूसरे दलों के सहयोग से सरकार का गठन होगा. इसमें बसपा, सपा और निर्दलीय भी कांग्रेस को सपोर्ट दे रहे हैं. इसलिए अपने इन सहयोगी दलों को खुश रखते हुए सरकार को सुचारू रूप से चलाना मुख्य चुनौती होगी.

किसानों की ऋण माफी का मामला भी कमलनाथ के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा. राहुल गांधी ने साफ-साफ कहा था कि सरकार बनाने के दस दिन के अंदर ही किसानों का कर्ज माफ़ कर दिया जायेगा. मध्‍य प्रदेश में 62 लाख किसानों पर करीब 70 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इतनी भारी भरकम रकम आएगी कहां से? और वो भी 10 दिनों के अंदर?  ऐसे में कमलनाथ के लिए 'वचन पत्र' का वचन निभाना चुनौतीपूर्ण होगा.

पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार संभाल रहे कमलनाथ की मुख्य चुनौती कांग्रेस पार्टी के सभी गुटों को एक साथ लेकर चलने की होगी. चूंकी प्रदेश में लोकसभा के 29 सीटें हैं और चार महीने बाद ही लोकसभा का चुनाव हो सकता है ऐसे में सभी गुटों को एक साथ करके ज़्यादा से ज़्यादा सीटें जीतकर अपनी पहली परीक्षा पास करना कमलनाथ की चुनौती होगा.

2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रदेश की 29 सीटों में से मात्र दो सीटें ही मिली थीं. लेकिन जिस हिसाब से कांग्रेस ने यहां अभी के विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया उसके अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में दस सीटों के इज़ाफ़े के साथ 12  सीटों पर कब्ज़ा कर सकती है. ऐसे में कमलनाथ को न सिर्फ इस प्रदर्शन को बरकरार रखने की चुनौती होगी बल्कि इससे ज़्यादा सीटें जीतने का भी दबाव होगा.

यानी, मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए यह ताज चुनौतियों से भरपूर होगा जहां कमलनाथ को इससे पार पाने के लिए कठिन परिश्रम करना होगा.

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लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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