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Updated: 14 मार्च, 2021 01:42 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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सियासत और सिनेमा का संबंध बहुत गहरा होता है. दोनों में ही ग्लैमर है. पॉवर है. फैन फॉलोइंग है. इसलिए सियासत और सिनेमा के बीच बहुत महीन सीमा मानी जाती है. अक्सर सिनेमाई शख्सियत को सियासी गलियारे में सफलता का स्वाद चखते ही देखा गया है. कई बार कुछ सियासी हस्तियों ने भी सिनेमा में अपनी किस्मत आजमाई है, हालांकि उनको सफलता बहुत कम मिली है. बॉलीवुड के मुकाबले साउथ फिल्म इंडस्ट्री की सियासत में दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही रही है. साउथ में कई ऐसे फिल्मी सितारे हुए हैं, जिन्होंने सियासत में बड़ा नाम कमाया है. राजनीति में नया अध्याय जोड़ा है.

साउथ हो या नार्थ, जब भी कोई फिल्मी हस्ती सुपरस्टार बनकर चमकी, उसकी लोकप्रियता भुनाने के लिए सियासत का सहारा लिया गया. नॉर्थ इंडिया में अमिताभ बच्चन से लेकर साउथ इंडिया में एमजी रामचंद्रन और एनटी रामाराव तक, अपनी लोकप्रियता के सहारे सियासत में उतरे. लेकिन दोनों जगह का सियासी परिणाम अलग-अलग रहा है. नार्थ में जहां फिल्मी हस्तियों को सियासत रास नहीं आई, वहीं साउथ के नायकों ने राजनीति में बुलंदियों को छुआ और सूबे के सीएम की कुर्सी तक पहुंच गए. इस कड़ी में साउथ के महान कलाकार एमजी रामचंद्रन से लेकर जयललिता का नाम प्रमुख है.

3_650_031321102059.jpgबॉलीवुड के मुकाबले साउथ फिल्म इंडस्ट्री की सियासत में दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही रही है.

वर्तमान में साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत के सियासत से सन्यास के बाद एक्टर कमल हासन सबसे ज्यादा सुर्खियों में हैं. मक्कल नीधि मैयम नामक राजनीतिक दल के अध्यक्ष कमल हासन ने कोयंबटूर दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. उनके इस ऐलान के बाद चेन्नै में अलंदुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की अटकलों पर विराम लग गया है. रजनीकांत ने राजनीति में एंट्री का ऐलान कर तमिलनाडु की राजनीति को नया मोड़ दे दिया था. कमल हासन और थलाइवा के बीच राजनीतिक गठजोड़ भी हुआ, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने राजनीति से दूर रहना ही उचित समझा.

साउथ इंडिया में सिनेमा के कलाकारों की शोहरत का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उन्हें वहां भगवान की तरह पूजा जाता है. उनके फैंस लाखों की संख्या में होते हैं. यहां फिल्म किसी 'धर्म' और एक्टर किसी 'भगवान' की तरह पूजे जाते हैं. उनके मंदिर तक बनाए जाते हैं. रजनीकांत, कमल हासन, चिरंजीवी से लेकर प्रभास, महेश बाबू और यश तक, ऐसे एक्टर हैं, जिनकी दीवानगी लोगों के सिर चढ़कर बोलती है. जिस दिन इनकी फिल्में रिलीज होती हैं, लोग अपने कामकाज से छुट्टी ले लेते हैं. आइए साउथ के ऐसे कुछ सुपरस्टारों के बारे में बताते हैं, जिनकी सियासी पारी सुपरहिट रही है.

एमजी रामचंद्रन: सिनेमा से सूबे के सीएम तक का सफर

साउथ के सुपरस्टार एमजी रामचंद्रन ने सिनेमा की सरहदों को मापने के साथ ही साउथ इंडिया की पॉलिटिक्स को एक नया आयाम दिया है. साल 1936 में अपना फिल्मी करियर शुरू करने वाले एमजी रामचंद्रन तमिल फिल्मों के महानायक थे. उनके सियासी करियर की शुरूआत कांग्रेस के साथ हुई. साल 1953 में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम में शामिल हो गए. 1962 में पहली बार विधानपरिषद सदस्य बने और 1967 के चुनाव में वो विधानसभा पहुंचे. इसके बाद करुणानिधि से बगावत कर 1972 में उन्होंने आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी (अन्नाद्रमुक) बनाई. साल 1977 के चुनाव में उनकी पार्टी ने राज्य की 234 में से144 सीटें जीती. एमजी रामचंद्रन मुख्यमंत्री बने. साल 1987 में अपनी मौत तक सूबे के सीएम बने रहे.

एनटी रामाराव: तीन नेशनल अवॉर्ड, दो बार सीएम पद

एनटी रामाराव एक्टर, डायरेक्टर, एडिटर और फिल्ममेकर थे. उनको तीन बार नेशनल फिल्म अवॉर्ड मिला था. साल 1949 में अपना फिल्मी करियर शुरू करने वाले एनटी कुछ ही वक्त में आंध्र प्रदेश के सिने प्रेमियों के दिलों पर राज करने लगे. अपनी लोकप्रियता को भुनाते हुए उन्होंने 29 मार्च 1982 को अपनी पार्टी तेलगु देशम पार्टी बनाई. साल 1983 में हुए चुनाव में उनकी पार्टी ने राज्य की 284 में से 199 सीटें जीतीं. एनटी रामाराव की सरकार बनी. साल 1984 में फिर से चुनाव हुए, तो एनटी रामाराव सीएम बने. इसके बाद साल 1994 में एक बार फिर एनटी रामाराव ने जीत हासिल की और सीएम बने. लेकिन 9 महीने के बाद ही उनके दामाद एन. चंद्र बाबू नायडू ने उनकी कुर्सी छीन ली. साल 1996 में एनटी रामाराव की मौत हो गई.

जयललिता: भारतीय राजनीति का चमकता फिल्मी सितारा

दिवंगत जे जयललिता दक्षिण भारतीय राजनीति का वो चमकता सितारा, जो जब तक जिंदा रहा अपने करिश्माई व्यक्त्वि की चमक बिखेरता रहा. तमिलनाडु की राजनीति में अन्ना द्रमुक पार्टी में वह तीन बार मुख्यमंत्री की बागडोर संभाल चुकी हैं. साल 1963 में अंग्रेजी फिल्म से शुरुआत करने वाली जयललिता को एमजी रामचंद्रन राजनीति में लेकर आए थे. साल 1982 में जयललिता ने सियासी पारी का आगाज किया. साल 1991 से 1996, 2001 में, 2002 से 2006 तक और 2011 से 2014 तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं. 1982 में डीएमके में शामिल हुईं जयललिता 1983 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं. 1984 से 1989 तक वो राज्यसभा की सदस्य रहीं. 1989 में हुए उपचुनाव में विधानसभा में पहुंची. 5 दिसंबर 2016 को निधन हो गया.

चिरंजीवी: सिनेमा में सुपरहिट, सियासत में हुए फ्लॉप

टॉलिवुड के सबसे मशहूर अभिनेताओं में शुमार चिरंजीवी पूरे भारत में चर्चित माने जाते हैं. इनके प्रशंसकों की इनके प्रति दीवानगी देखने लायक होती है. यही वजह है कि जब चिरंजीवी ने फिल्मों को छोड़ राजनीति का रुख किया तो वहां भी लोगों ने उन्हें सिर आंखों पर बैठा लिया. तेलुगु और हिन्दी फिल्मों के अभिनेता चिरंजीवी का वास्तविक नाम है, कोणिदेल शिव शंकर वर प्रसाद. फिल्मी पारी खेलने के बाद चिरंजीवी ने अपना रुख राजनीति की ओर कर लिया. लेकिन सिनेमा की तरह सफलता का स्वाद सियासत में नहीं चख पाए हैं. साल 2008 में चिरंजीवी ने प्रजा राज्यम पार्टी नामक राजनीतिक दल की स्थापना की थी. साल 2009 में हुए विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी को 18 सीटों मिली, लेकिन साल 2011 में उनकी पार्टी का आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस में औपचारिक विलय हो गया. उम्मीद जगाई जा रही है कि चिरंजीवी दोबारा फिल्मों का रुख करेंगे.

विजयकांत: तमिल सिनेमा से सियासत तक का सफर

विजयकांत का असली नाम विजयराज आलगस्वामी है. तमिल सिनेमा के इस मशहूर एक्टर ने साल 1979 में अपना फिल्मी करियर शुरू किया था. राजनीति में आने से पहले विजयकांत एक सफल फिल्म अभिनेता, निर्माता और निर्देशक थे. करीब 20 फिल्मों में केवल पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका निभाने वाले विजयराज साल 2011 से 2016 तक तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष के नेता थे. उन्होंने साल 2005 में देसिया मुरपोक्कू द्रविड़ कज़गम नामक राजनीतिक दल (डीएमडीके) की स्थापना की थी. वह ऋषिवंदम निर्वाचन क्षेत्र से दो बार विधानसभा सदस्य भी रह चुके हैं. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान उनकी पार्टी ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था. साल 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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