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Updated: 13 फरवरी, 2019 04:44 PM
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राजस्थान में बीजेपी सरकार के दौरान हुआ बड़ा लैंड घोटाला, कैसे वाड्रा बीकानेर लैंड डील मामला बन गया? यह दिलचस्प कहानी है. सरकारी जमीनों का करोड़ों का घोटाला बीजेपी सरकार के दौरान हुआ और जांच वाड्रा के महज 2 से 3 करोड़ ज्यादा मुनाफा कमाने की हो रही है. सियासत का यह अजीब खेल है. इसमें दोषी पीड़ित की जांच करवा रहे हैं. बीकानेर लैंड डील मामले को समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि पूरा माजरा क्या है. क्या जिस तरह से सरकारी सूत्रों के अनुसार मीडिया में सलेक्टिव लीक किया जा रहा है वहीं बीकानेर लैंड घोटाला है या ये फिर कुछ और है.

दरअसल, 1982 -83 के दौरान बीकानेर इलाके में सेना के लिए महाजन फायरिंग रेंज के लिए जमीन अधिकृत हुई थी. उस वक्त किसानों को मुआवजा मिला था. लेकिन उसमें एक क्लॉज यह भी जोड़ दिया गया था कि किसानों को दूसरी जगह पर सरकारी बंजर भूमि दी जा सकती है. 2008 की वसुंधरा राजे के कार्यकाल के दौरान सरकारी कर्मचारियों ने और कुछ बीजेपी नेताओं ने मिलकर एक बड़ी साजिश रची. जिसमें सरकारी जमीनों का फर्जी किसानो के नाम फर्जी आवंटन किया गया. विधानसभा चुनाव के दौरान दिसंबर के दूसरे सप्ताह में कांग्रेस की सरकार के सत्ता संभालने से पहले 11 दिसम्बर 2008 को फर्जी मालिक योगेश अग्रवाल के नाम जमाबंदी खोली गई. अब सोचिए मुफ्त में फर्जियों को जमीन मिली है तो वह आगे किसको और कितने में बेचना चाहेंगे. ऐसे मैं वाड्रा के सस्ती जमीन खरीदने के आरोप में कितना दम है और फिर कांग्रेस सरकार के इंसाइडर इंफॉर्मेशन की बदौलत जमीन खरीदने के आरोपों में कितना दम है.

रोबर्ट वाड्रा, प्रियंका गांधी, कांग्रेस, भाजपा, नरेंद्र मोदी      चुनाव से पहले जिस तरह वाड्रा पर शिकंजा कसा गया है इसे मोदी सरकार का बड़ा सियासी प्लान माना जा रहा है

अब इन फर्जी मालिकों को जल्दी से जल्दी आगे किसी को जमीन बेचनी थी. बीकानेर के आसपास के लोगों को अगर जमीन बेची जाती तो मामला खुल सकता था. लिहाजा बीकानेर के दलाल जय प्रकाश बागड़वा ने दिल्ली और गुड़गांव में जमीन बेचने के सिलसिले में घूमना शुरू कर दिया. ऐसे में उसने स्काई लाइट प्राइवेट हॉस्पिटल से जुड़े जमीन के कारोबारी महेश नागर से संपर्क किया. महेश नागर को उसने फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी बना कर दी और महेश नागर ने उस पावर आफ एटर्नी की बदौलत रॉबर्ट वाड्रा और उनकी मां मुरीन की डायरेक्टरशिप वाली कंपनी स्काईलाइट प्राइवेट हॉस्पिटल को बेच दी.

कहा गया कि वाड्रा की कंपनी ने ये सौदा 72 लाख में किया था. वो लोग जो जमीन खरीदते हैं वह जानते हैं कि किसान कभी भी पूरा पैसा एक नंबर में नहीं लेता है. लिहाजा यह तय कर लेना कि जितना पैसा चेक के जरिए दिया गया है, उतने में ही जमीन खरीदी गई होगी यह बहुत समझदारी की बात नहीं होगी. और वैसे भी वह फर्जी किसान थे. लिहाजा पूरा पैसा चेक में नहीं लिया होगा. यानी चेक में जो ₹72 लाख दिख रहे हैं उससे ज्यादा की जमीने खरीदी गई होगी.  2010 में अलग-अलग पार्ट में 275 बीघा जमीन वाड्रा की कंपनी को बेची गई.

गौर करने वाली बात ये है कि बीजेपी सरकार के दौरान 1422 बीघा जमीन बीकानेर में फर्जी ढंग से फर्जी लोगों को आवंटित हुई थी. लेकिन उसमें से महज 275 बीघा जमीन वाड्रा की कंपनी ने खरीदी थी. वाड्रा की कंपनी ने जमीन तो खरीद ली लेकिन 2010 में जमीन खरीदने के बाद 2012 में इसे लेकर बवाल मच गया. कहा जाता है कि वाड्रा की कंपनी ने इस जमीन को करीब पांच करोड़ रुपए में एलजिनी फिनलिज प्राइवेट लिमिटेड को बेच दी. अब जिन्होंने भी 2008 से 2010 के बीच कोई जमीन या फ्लैट खरीदा होगा या फिर जमीन के कारोबार से कोई रिश्ता रखा होगा वह जानते होंगे कि इस दौरान जमीनों के भाव आराम से 2 गुना से लेकर 200 गुना तक बढे थे. उस दौर को याद करते हुए आज भी लोग कहते हैं कि उस दौरान जमीनों के मामले में करिश्मा हुआ था. जिसका इंतजार उन्हें आज भी है.

दूसरी बात यह है कि जिन लोगों को मुफ्त में जमीन मिली थी उन्हें किसी भी तरह से बेच कर निकलना था. जो भी पैसे मिल रहे थे वह मुफ्त के थे. लिहाजा ओने पौने दाम में किसी न किसी को टिकाना था. फर्जी लोगों ने वाड्रा की कंपनी को बलि का बकरा बना दिया और वाड्रा की कंपनी फिनलीज प्राइवेट लिमिटेड को जमीन बेच दी. अगर वास्तविक मूल्य के बारे में देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि 2 से 3 करोड़ से ज्यादा का मुनाफा वाड्रा को हुआ है. सस्ती जमीन खरीदने के आरोपों में दम नहीं है. क्योंकि जिनकी जमीन थी वो उनकी जमीन थी ही नहीं, उनके पास मुफ्त आई थी. लिहाजा वो तो किसी भी भाव बेचने के लिए तैयार थे. जब कोई बेचने वाला ही नहीं है तो जमीन सस्ती कैसे हुई.

4 साल तक राजस्थान पुलिस मामले की जांच करती रही. बीकानेर की कलेक्टर आरती डोगरा ने राजस्थान की वसुंधरा सरकार के निर्देश पर जांच की. कुछ भी नहीं मिला तो विधानसभा चुनावों से ठीक 1 साल पहले 22 अगस्त 2017 को पता चला इस मामले की जांच सीबीआई को दे दी गई है.17 अगस्त 2017 को सीबीआई ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करके जांच शुरू कर दी. करीब 2 साल की जांच के बाद कुछ नहीं मिला तो अब वही फाइल ईडी को पकड़ा दी गई है. ईडी अब इस मामले पर जांच कर रही है कि आपने जमीनों की खरीद करने से पहले पूरी जांच क्यों नहीं की?  सवाल उठाता है कि कौन सा ऐसा खरीदार होगा जो  बेचने वाले के पास जाकर उसकी कंपनियों की जांच करेगा? कौन सा ऐसा बेचने वाला है जो खरीदार की कंपनियों की जांच रखता है.

लेकिन उससे भी बड़ी बात है कि पिछले 5 सालों में 2 से ₹300 के मुनाफा कमाने की जांच को लेकर राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार ने करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं. यानी महज दो-तीन करोड़ रुपए के ज्यादा मुनाफा कमाने की आशंका पर केंद्र और राज्य की सरकार ने उससे ज्यादा रुपए उसकी जांच में खर्च कर दिए. कैसे जांच में नतीजा निकलता हुआ नहीं दिख रहा है. प्रियंका गांधी अपने पति वाड्रा के साथ खड़ी हो कर दिखाने की कोशिश करती दिख रहीं है कि देखो हमें कितना प्रताड़ित किया जा रहा है और उनकी 75 साल की सास को भी किस तरह से पूछताछ के नाम पर परेशान किया जा रहा है.

यानी वाड्रा विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं और जनता में इसका असर भी दिख रहा है. दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी को 2013- 14 की रैलियों में मिली हुई तालियों की गूंज फिर से याद आने लगी है,जब वह महज दामाद जी कहकर पुकारते थे और रैली में एक साथ भीड़ लहरों की मानिंद हूटिंग करते हुए उठती थी. एक साथ तालियां बजनी शुरू हो जाती थी.

इस बार 2019 के लोकसभा चुनाव में इसकी कमी नरेंद्र मोदी को खल रही है. लिहाजा सियासी जांच का सफर शुरू हो गया है. चुनाव से ठीक पहले हो रही जांच को लेकर मोदी भक्त भी कहने लगे हैं कि लोग कहा करते थे कि मोदी कार्रवाई नहीं करता है और कार्रवाई कर रहा है तो चोर परेशान नजर आ रहे हैं. कौन चोर निकलेगा और कौन साधू, जनता को ना कभी यह पता चल पाया है और ना आगे पता चल पाएगा. यह सब सियासत की माया है. यह सियासत का दुपट्टा है किसी के आंसू से तर नहीं होता.

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