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Updated: 30 सितम्बर, 2015 08:02 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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एक साल में कुछ भी नहीं बदला. या, कहें कुछ बदलने की उम्मीद जगा कर फिर वहीं पहुंच गए जहां से कहानी शुरू हुई थी. भारत और पाकिस्तान का रिश्ता वैसा ही है जैसा साल भर पहले था, जैसा पांच साल पहले था, जैसा दस साल पहले था - या उससे भी पहले...

सितंबर 2014

संयुक्त राष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले भाषण से ऐन पहले पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ ने कश्मीर का मुद्दा उठाया और वहां जनमत संग्रह कराने की मांग उठाई. उस दिन शुक्रवार था. अगले दिन शनिवार को मोदी की बारी थी. मोदी ने साफ कर दिया, "इस मंच पर मुद्दे उठाना हल निकालने का कोई तरीका नहीं है."

मई 2014 में शरीफ और मोदी की मुलाकात हुई थी. मोदी ने शपथग्रहण के मौके पर सार्क देशों के नेताओं को बुलाया तो शरीफ भी दिल्ली आए. दोनों नेताओं की अलग से मुलाकात भी हुई. मोदी के डिप्लोमैटिक इनिशिएटिव और शरीफ की गर्मजोशी से दोनों मुल्कों के रिश्तों में बेहतरी की उम्मीद सी जग पड़ी थी.

शरीफ को आगाह करने के साथ ही मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में ही साफ भी कर दिया था, "मैं पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण माहौल में आतंकवाद के साये के बिना गंभीर द्विपक्षीय वार्ता में संलग्न होने के लिए तैयार हूं - ताकि हमारी मित्रता और सहयोग को प्रोत्साहन मिल सके."

सितंबर 2015

जिस तरह साल 2014 में भारत और पाकिस्तान के बीच सचिव स्तर की बातचीत रद्द कर दी गई - उसी तरह इस साल दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की भी बातचीत कैंसल हो गई.

रद्द हुईं दोनों बातचीत के अंतराल में मोदी और शरीफ में कई बार संपर्क हुआ. जून के महीने में जहां मोदी ने फोन पर शरीफ से बात की वहीं जुलाई में रूस के उफा में दोनों नेता हंसते मुस्कराते हाथ मिलाते मिले - और साथ में फोटो भी खिंचाए.

जुलाई से सिंतबर का महीना आते आते फिर से रिलेशनशिप स्टेटस तमाम तब्दीलियों से गुजरने के बावजूद डिफॉल्ट मोड में रिसेट हो गई.

इस बार मोदी और शरीफ एक ही होटल - वाल्डोर्फ एस्टोरिया में ठहरे. लेकिन आमने सामने तभी हुए जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की ओर से बुलाये गये शिखर सम्मेलन के दौरान कॉन्फ्रेंस हॉल में दाखिल हुए. पहले मोदी पहुंचे - और उसके बाद शरीफ. शरीफ ने मोदी को देख कर हाथ हिलाया - और फिर मोदी भी, दूर से ही, उसी अंदाज में मुखातिब हुए.

दोनों ने कुछ देर तक हाथ हिलाया - और मुस्कुराए - लेकिन हाथ मिलाने या साथ फोटो खिंचाने की नौबत नहीं आने दी.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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