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Updated: 07 दिसम्बर, 2019 02:24 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक हैदराबाद (Hyderabad) चर्चा में है. वजह है उन आरोपियों का एनकाउंटर (Hyderabad Encounter), जिन्हें हैदराबाद की वेटनरी डॉक्टर के साथ गैंगरेप और मर्डर (Hyderabad Doctor Gangrape And Murder) के मामले में गिरफ्तार किया गया था. हैदराबाद पुलिस कमिश्नर वीसी सज्जनार के अनुसार एनकाउंटर का समय सुबह 3 से 6 के बीच का है. एनकाउंटर तब हुआ जब आरोपियों को क्राइम सीन दोहराने के लिए मौका ए वारदात पर लाया गया. बताया जा रहा है कि, आरोपियों ने न सिर्फ भागने की कोशिश की. बल्कि पुलिस पार्टी (Hyderabad Police) पर हमला भी किया. जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने गोलीबारी की जिसके चलते चारों आरोपी ढेर हुए. एनकाउंटर के बाद क्या राजनीतिक दल और उनसे जुड़े नेता और क्या आम आदमी. सभी पुलिस की शान में कसीदे पड़ रहे हैं. पुलिस की जमकर तरीक हो रही है. एनकाउंटर में शामिल पुलिसवालों पर फूल बरसाए जा रहे हैं. तड़के हुए इस एनकाउंटर के बाद एक वर्ग वो भी सामने आया है जिसका मानना है कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिए ऐसे एनकाउंटर ही सबसे मुफीद सजा हैं. वहीं एक वर्ग वो भी है जो बलात्कारियों के साथ खड़ा है और उनके मानवाधिकारों की दुहाई दे रहा है. ऐसे वर्ग का मानना है कि इस तरह से फैसला करके पुलिस ने सम्पूर्ण न्याय प्रक्रिया को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है. देश में जंगलराज की शुरुआत हो गई है. मानवाधिकार (Human Rights) की दुहाई देता ये पक्ष इस बात की वकालत करता नजर आ रहा है कि न्याय प्रक्रिया को बाय पास किया गया है.

हैदराबाद एनकाउंटर, हैदराबाद, पुलिस, कानून, रेप,Hyderabad Encounter      हैदराबाद में बलात्कार के आरोपियों के एनकाउंटर के बाद एक बार फिर मानवाधिकार की बातें शुरू हो गई हैं

मामला ट्रेंड में है और मामले में राजनीति बदस्तूर जारी है. सवालों के घेरे में पुलिस द्वारा लिया गया एक्शन है. एनकाउंटर के बाद सुप्रीम कोर्ट की वकील वृंदा ग्रोवर खुल कर पुलिस के विरोध में सामने आई हैं और पुलिस पर मुकदमा दर्ज करने की मांग की. वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि हैदराबाद एनकाउंटर करने वाली पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए. इसके साथ ही पूरे मामले की स्वतंत्र न्यायिक जांच कराई जानी चाहिए. महिला को इंसाफ दिए जाने के नाम पर किसी का भी एनकाउंटर किया जाना गलत है.

वहीं बात अगर राष्ट्रीय महिला आयोग की हो तो हैदराबाद में हुए इस एनकाउंटर के बाद आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने तर्क दिया है कि एनकाउंटर हमेशा सही नहीं होते. इस मामले में आरोपी पुलिस की बंदूक छीनकर भाग रहे थे. ऐसे में शायद पुलिस का फैसला ठीक है. इस मामले के बाद से ही हमारी मांग थी कि आरोपियों को फांसी की सजा मिलनी चाहिए. हम कानूनी प्रक्रिया के तहत इस मामले का जल्द फैसला चाहते थे. लोग एनकाउंटर से खुश हैं लेकिन हमारा संविधान है, कानूनी प्रक्रिया है.

बात दिशा रेप केस मामले में हैदराबाद पुलिस द्वारा किये गए एनकाउंटर से शुरूहुई है. मामले पर राजनीति तेज है. पुलिस वालों को दोषी ठहराया जा रहा है. उनके ऊपर मुकदमा दर्ज करने की बात की जा रही है. ये कोई पहली बार नहीं है जब एनकाउंटर्स सवालों के घेरे में आए हैं. आइये नजर डालें उन एनकाउंटर्स पर जिन्होंने पूर्व में सियासत को प्रभावित किया है  राजनेताओं को सियासत के लिए मसाला दिया.

1- इशरत जहां एनकाउंटर

बात 15 जून 2004 की है. अहमदाबाद में एक मुठभेड़ के दौरान पुलिस ने इशरत जहां और उसके तीन साथियों जावेद शेख, अमजद अली और जीशान जौहर को ढेर किया था. गुजरात पुलिस की मानें तो इशरत जहां के तार पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर से जुड़े थे. एनकाउंटर पर पुलिस का तर्क था कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी इन आतंकियों के निशाने पर थे. बाद में जब मामले ने जोर पकड़ा तो मानवाधिकार का मुद्दा उठाया गया और गुजरात हाईकोर्ट को इसमें दखल देना पड़ा.

गुजरात हाई कोर्ट द्वारा जांच के आदेश के बाद एसआईटी गठित हुई जिसने इस मुठभेड़ को फर्जी बताया. इसके बाद अदालत के आदेश पर सीबीआई ने मामले की जांच शुरू की. सीबीआई ने एक पुलिस अफसर को सरकारी गवाह बनाया, जिसने नौ साल के बाद 2013 में पहली चार्जशीट दाखिल की. सीबीआई ने भी इशरत मुठभेड़ को फर्जी बताया. चार्जशीट में एडीजीपी पीपी पांडे और डीआईजी वंजारा का नाम था.

सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का दावा किया था कि आईबी ने मुठभेड़ से पहले इशरत से पूछताछ की थी. इसके बाद चार लोगों को भून डाला गया था. मामला कितना पेचीदा था इसे हम राज्य के गृह सचिव के उन बयानों से भी समझ सकते हैं जो उन्होंने बार बार बदले. साथ ही तब गुजरात सरकार के पूर्व अंडर सेक्रेटरी आरवीएस मणि भी खूब चर्चा में आए थे.

मणि का कहना था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे को बदलने के लिए कहा गया था. साथ ही उन्हें  झूठे सबूत गढ़ने के लिए एसआईटी चीफ सतीश वर्मा ने सिगरेट से दागा था. आपको बताते चलें कि तब हुए इस मामले में देश के वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह और पीएम मोदी की खूब जमकर किरकिरी हुई थी.

2- सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर

बात देश के सबसे विवादास्पद एनकाउंटर्स की चल रही है. ऐसी स्थिति में 2005 में हुए सोहराबुद्दीन शेख का जिक्र करना स्वाभाविक हो जाता है. सोहराबुद्दीन शेख, अंडरवर्ल्ड से जुड़ा अपराधी था, जिसकी 26 नवंबर 2005 को पुलिस कस्टडी में मौत हुई. बताया जाता ही कि जब सोहराबुद्दीन शेख मारा गया तब वो अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद से महाराष्ट्र जा रहा था.

इस बीच गुजरात पुलिस की एटीएस शाखा ने बस को रुकवाया और सोहराब को उसकी बीवी के साथ उतार लिया. तीन दिन बाद शेख अहमदाबाद के बाहर एक कथित एनकाउंटर में मारा गया. शेख के भाई के हस्तक्षेप और मीडिया के दबाव के बाद मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई.

जांच के बाद कथित एनकाउंटर में संलिप्त गुजरात के कई पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई और कइयों को जेल की सजा हुई. यहां भी मानवाधिकार को मुद्दा बनाया गया और मामले पर राज्य सरकार की कैसी फजीहत हुई इसे हम देश के वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह की गिरफ्तारी से भी समझ सकते हैं.

चूंकि केंद्र में कांग्रेस थी इसलिए सीबीआई पर दबाव बनाया गया की जांच का दायरा सख्त से सख्त हो. तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम पावर ने अपनी तरफ से हर संभव कोशिश की कि किसी भी सूरत में अमित शाह को बख्शा न जाए. जांच का परिणाम ये निकला कि 25 जुलाई 2010 को सीबीआई द्वारा अमित शाह को गिरफ्तार किया गया और उन्हें 3 महीनों तक अहमदाबाद कि साबरमती जेल में रहना पड़ा.

3- तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर

2006 में हुए तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर पर भी खूब सवाल उठे थे. बताया जाता है कि तुलसीराम प्रजापति सोहराबुद्दीन शेख का एसोसिएट था. प्रजापति के मामले में दिलचस्प बात ये है कि इसे भी सोहराबुद्दीन शेख की ही तरह पुलिस कस्टडी में मारा गया. प्रजापति का एनकाउंटर क्यों हुआ इसकी भी वजह खासी रोचक

कहा जाता है कि तुलसीराम, सोहराबुद्दीन के मारे जाने का अकेला चश्मदीद था और सरकार, विशेषकर वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह को तकलीफ न हो और आगे की जांच में वो किसी मुसीबत में न आ जाएं इसलिए इसे मरवा दिया गया.

बाद में जब मामला चर्चा में आया और इसे लेकर पूरे सिस्टम की कलई खुली तो इस मामले की जांच कराई गई. ये मामला सरकार के लिए कसी नासूर साबित हुआ इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि 2006 के इस मामले की जांच 2011 में सीबीआई के जरिये शुरू की गई.

4- बटला हाउस एनकाउंटर

19 सितंबर 2008 को दिल्ली के जामियानगर में हुए बटला हाउस एनकाउंटर का शुमार देश की सबसे चर्चित घटनाओं में है. दिलचस्प बात ये है कि इस मामले में भी मानवाधिकार बड़ा मुद्दा बना और जमकर राजनीति हुई. बटला हाउस एनकाउंटर की कहानी उस वक़्त रची गई जब 13 सितम्बर 2008 को दिल्ली के करोल बाग़,कनाट प्लेस, इंडिया गेट और ग्रेटर कैलाश में सीरियल बम ब्लास्ट हुए. बात अगर उस ब्लास्ट की हो तब उस ब्लास्ट में  6 लोग मारे गए थे, जबकि 133 घायल हो गए थे.

दिल्ली पुलिस ने अपनी प्रारंभिक जांच में पाया कि बम ब्लास्ट के तार आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े हैं. ब्लास्ट के कुछ ही दिन बाद ही दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को सूचना मिली कि इंडियन मुजाहिद्दीन के पांच आतंकी बटला हाउस के एक मकान में मौजूद हैं. इसके बाद पुलिस टीम अलर्ट हो गई. सादी वर्दी में सभी पुलिस वाले जामिया नगर के बटला चौक आए और कुछ ही देर बाद आतंकियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ शुरू हुई.  इस  एनकाउंटर के दौरान दो संदिग्ध मारे गए. जबकि दो गिरफ्तार हुए.

घटना का जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के छात्रों और शिक्षकों की ओर से जबरदस्त तरीके से विरोध हुआ और इस घटना को लेकर कहा यही गया कि पुलिस ने अंधेरे में तीर चलाते हुए निर्दोष लोगों या ये कहें कि स्टूडेंट्स के खिलाफ एक्शन लिया. मामले पर खूब राजनीति हुई और छोटे बड़े कई ऐसे दल थे जिन्होंने घटना की सही जांच के लिए अपोनी आवाज बुलंद की. आपको बताते चलें कि 2009 में मानवाधिकार आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दे दी.

5- कनॉट प्लेस एनकाउंटर

बात अपनी कमियां छुपाने के लिए पुलिस द्वारा किये गए विवादित एनकाउंटर्स पर चल रही है तो हमारे लिए 31 मार्च 1997 को दिल्ली में घटी एक घटना का जिक्र करना बहुत जरूरी हो जाता है. 31 मार्च 1997 को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने कनॉट प्लेस इलाके में एक बड़े एनकाउंटर को अंजाम दिया था. एसीपी एसएस राठी के नेतृत्व में क्राइम टीम ने हरियाणा के कारोबारी प्रदीप गोयल और जगजीत सिंह को उत्तर प्रदेश का इनामी गैंगस्टर समझ कर गोली मार दी थी. एनकाउंटर में दोनों कारोबारी की मौत हो गई थी.

इस फर्जी एनकाउंटर पर भी खूब राजनीति हुई ही और मामला मानवाधिकार की वकालत करने वाले लोगों की जद में आया था. मामला कितना विवादस्पद था इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि इस मामले में 16 सालों तक सुनवाई चली थी. जिसके बाद अदालत ने आरोपी पुलिस और अन्य अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश जारी किए थे.

बहरहाल, बात हैदराबाद में दिशा के हत्यारों के एनकाउंटर के मद्देनजर है. एनकाउंटर सही है या गलत इसका फैसला वक़्त करेगा मगर जैसा पूर्व में देखा गया है कि इस एनकाउंटर ने अलग अलग दलों को राजनीति का मौका दे दिया है और जैसा हमारे राजनितिक दलों का रुख है ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि जैसे-जैसे दिन बढ़ेंगे इस मामले को भी खूब हैप दी जाएगी. इसपर भी खूब राजनीति होगी.   

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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