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Updated: 03 फरवरी, 2019 12:27 PM
आशीष वशिष्ठ
आशीष वशिष्ठ
  @drashishv
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हरियाणा की जींद विधानसभा सीट पर पहली बार ‘कमल’ खिला है. किसी जमाने में कांग्रेस की गढ़ माने जाने वाली जींद सीट पर भाजपा की जीत कांग्रेस की ‘नींद’उड़ाने वाली खबर है. हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों में कमल को उखड़ाने के बाद हरियाणा की एकमात्र सीट पर हार कांग्रेस के उत्साह को रिवर्स गियर में ले जाएगी. लोकसभा चुनाव के बाद अक्टूबर में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में हिन्दी पट्टी की एक सीट पर कांग्रेस की हार और भाजपा की जीत बड़े सियासी उल्टफेर का बड़ा संकेत मानी जा सकती है. सुरजेवाला केवल हारे ही नहीं, बल्कि वो तीसरे नम्बर पर ही रहे. किसी जमाने में जींद जिला हरियाणा की राजनीति और सीएम दोनों को तय करता था. ऐसे में जींद में कांग्रेस का तीसरे स्थान पर रहना, केवल हार की ओर इशारा ही नहीं करता, बल्कि आप इसे भविष्य का संकेत भी समझ सकते हैं.

भाजपा, कांग्रेस, हरियाणा, जींद, उपचुनाव   जींद में पार्टी की जीत से भाजपा में एक नई उर्जा का संचार हुआ है

इस एक सीट की अहमियत इस बात से भी समझी जा सकती है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी किचेन कैबिनेट के सदस्य रणदीप सिंह सुरजेवाला को चुनावी अखाड़े में उतारा था. जींद में सुरजेवाला को मैदान में उतारकर  राहुल गांधी हरियाणा की जाट बेल्ट के रूख और सियासी तापमान को मापना चाह रहे थे.कांग्रेस थिंक टैंक इसे आगामी आम और विधानसभा चुनाव का ‘लिटमेस टेस्ट’भी मान रहा था. ऐसे में कांग्रेस के दिग्गज नेता का तीसरे स्थान पर रहना, कांग्रेस की नींद उड़ाने से कम नहीं हैं.

इस चुनाव में कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंकने का काम किया था. बावजूद इसके नवगठित जननायक जनता पार्टी (जजपा) का दूसरा स्थान पर रहना, यह साबित करता है कि हरियाणा की ‘जाट बेल्ट’में कांग्रेस की पोजीशन ठीक नहीं है. और कमल खिलने के लिये जाट लैण्ड का सियासी तापमान बिल्कुल अनुकूल है. चैटाला परिवार के सदस्य दिग्विजय चैटाला नयी नवेली जननायक जनता पार्टी के बैनर तले पहली बार चुनाव मैदान में उतरे थे. कांग्रेस के बड़े नेता सुरजेवाला का तीसरे स्थान पर रहना सारी कहानी खुद-ब-खुद बयां करता है.

कांग्रेस ने कैथल से विधायक रणदीप सिंह सुरजेवाला को जींद में प्रत्याशी बनाकर मुकाबला त्रिकोणीय करने की कोशिश की थी. लेकिन सुरजेवाला राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर राजनीतिक विरोधियों पर जितने ज्यादा तीखे और हमलावर साबित होते हैं, उतने जौहर वो जींद के मैदान में नहीं दिखा पाये. रणदीप का बचपन और शिक्षा-दीक्षा जींद जिले के नरवाना में ही हुई है. ऐसे में सुरजेवाला को अपने ही घर में बुरी हार का मुंह देखना पड़ा है. अक्टूबर 2014 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में जींद नेशनल लोकदल के खाते में गयी थी. इनेलो विधायक हरिचंद मिड्ढा के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव कराया गया है.

भाजपा, कांग्रेस, हरियाणा, जींद, उपचुनाव    माना जा रहा है कि इस जीत का असर भाजपा कार्यकर्ताओं के रवैये पर भी देखने को मिलेगा

हरिचंद के पुत्र कृष्ण मिड्ढा को बीजेपी ने टिकट दी थी. मिड्ढा ने यह चुनाव जीतकर जींद की सीट पर पहली बार कमल खिलाने का काम किया है. इतिहास के पन्ने पलटे तो हरियाणा के चुनावी इतिहास में जींद विधानसभा में एक दर्जन बार चुनाव हुए हैं. जिनमें पांच बार कांग्रेस, चार बार लोकदल-इनेलो ने जीत का परचम लहराया. एक-एक बार हरियाणा विकास पार्टी, एनसीओ और निर्दलीय विधायक ने जीत हासिल की.

कांग्रेस नेता मांगेराम गुप्ता ने सर्वाधिक चार बार जीत का झंडा गाड़ा है. 2009 के विधानसभ चुनाव में इनेलो नेता हरिचंद मिड्ढा ने मांगे राम गुप्ता को पटखनी दी थी. 2014 में मिड्ढा ने इनेलो से भाजपा में आए सुरेंद्र बरवाला को 2257 वोट के अंतर से हराया था. वोट बैंक और जात-पात की राजनीति के लिहाज से भी जींद का समीकरण हरियाणा की राजनीति को समझने की समझ पैदा करता है. जींद में तकरीबन 48 हजार जाट वोटर हैं। ब्राह्मण, पंजाबी और वैश्य वोटरों की संख्या 14 से 15 हजार के बीच है. 1972 में कांग्रेस के चैधरी दल सिंह विधायक के बाद 2014 में जाट नेता हरिचंद मिड्ढा ही ऐसे जाट नेता थे जो यहां विजय दर्ज करवा पाया था.

1972 के बाद जितने भी विधायक बने, उनमें से अधिकतर वैश्य और पंजाबी समुदाय के थे. इस बार हालात बदले हुये थे. मुकाबला सीधे तौर पर तीन जाट नेताओं के बीच था. ऐसे में भाजपा का यहां से जीतना हरियाणा की सियासी हवा और रूख को समझने का इशारा करता है. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर पर सवार होकर भाजपा ने हरियाणा वासियों का दिल जीत लिया था. हजकां से गठबंधन करने वाली भाजपा की झोली में सात सीटें आई थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पूरा जोर लगाकर बस अपने बेटे दीपेंद्र को ही जिता पाए थे.

इन चुनावों में पहली बार बीजेपी को सर्वाधिक करीब 34 फीसदी की वोट शेयरिंग मिली थी. वर्ष 1999 के आम चुनाव में पार्टी ने इनेलो से गठबंधन करके 29.21 फीसदी वोट हासिल करते हुये सभी 10 सीटों पर विजय हासिल की थी. उस समय नरेंद्र मोदी हरियाणा के प्रभारी हुआ करते थे. वर्तमान हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल आगामी अक्टूबर को पूरा हो जाएगा. ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव की रेलम-पेल शुरू हो जाएगी. 2014 के विधानसभा चुनाव में सूबे की कुल 90 में से 47 सीटें भाजपा ने जीती थी. उसका वोट शेयरिंग 33.24 फीसदी रहा था.

इनेलो और कांग्रेस को क्रमशः 19 और 15 सीटें हासिल हुई थीं. इनेलो का वोट प्रतिशत 24.11 और कांग्रेस को 20.58 फीसदी रहा था. अब हालात बदले हुये हैं। इनेलो दो फाड़ हो चुकी है. प्रदेश कांग्रेस में आपसी खींचतान और गुटबाजी के साथ नेतृत्व को लेकर झगड़ा और उठापटक का शीत युद्ध जारी है. आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा से नाराज बताये जा रहे जाट समुदाय की नाराजगी भी जींद जीत के साथ खत्म होती लग रही है.

तीन राज्यों की कांग्रेस की जीत के ऊपर जींद की सीट की हार कहीं मायनों में भारी और कांग्रेस की नींद उड़ा देने वाली है.जींद में सुरजेवाला जैसे बड़े नेता को मैदान में उतारकर राहुल ने जो ‘राजनीतिक परीक्षण’ किया था, उसके नतीजों से वो सबक सीखेंगे या आने वाले समय में भी परीक्षण करते रहेंगे ये तो आने वाला वक्त बताएगा. फिलवक्त तीन राज्यों में हार की चोट खायी भाजपाा के लिये जीत की जींद किसी ‘मरहम’ से कम नहीं है.

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