फडणवीस को और फजीहत से बचना है तो येदियुरप्पा की राह छोड़नी होगी
देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) अब तक तक बीएस येदियुरप्पा के ही रास्ते पर बढ़ते नजर आये हैं और ये उनकी छवि के लिए काफी नुकसानदेह है. अगर महाराष्ट्र में भी कर्नाटक (Karnataka) दोहराया गया तो कीमत भी फडणवीस को ही चुकानी पड़ेगी.
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जनवरी, 2019 में देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने नागपुर के मराठी सम्मेलन में ये कह कर तहलका मचा दिया था कि 2050 तक देश को महाराष्ट्र से कई प्रधानमंत्री मिल सकते हैं. नौसिखिये समझे जाने वाले देवेंद्र फडणवीस ने पांच साल तक गैर-मराठी मुख्यमंत्री रहते जिस तरह मराठा राजनीति (Maratha Politics) को हैंडल किया - उनमें भविष्य के प्रधानमंत्री की छवि देखी जाने लगी थी. नागपुर में बयान देकर फडणवीस इसे और हवा दे दी धी. महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आने के बाद से, खासकर हाल के तीन दिनों में, जो कुछ भी हुआ, देवेंद्र फडणवीस की छवि को गहरा धक्का लगा है और सवालों के जवाब नहीं सूझ रहे हैं. हालांकि, सिर्फ देवेंद्र फडणवीस को अकेले इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. हां, बीजेपी नेतृत्व के टीम वर्क में वो ऐसे हिस्सेदार रहे जो सबके सामने पहला चेहरा रहा.
आनन फानन में अचानक एक सुबह देवेंद्र फडणवीस शपथग्रहण कर जिस तरह मुख्यमंत्री बन बैठे, वो भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की कतार में खड़े देखे जाने लगे हैं - दोनों नेताओं में सिर्फ उम्र ही नहीं, कुछ बुनियादी फर्क हैं और अगर फडणवीस अपना भविष्य उज्ज्वल रखना चाहते हैं तो येदियुरप्पा की राह वाली राजनीति छोड़नी होगी.
सही वक्त भले आ जाये, जवाब तो नहीं मिलने वाला
सुप्रीम कोर्ट के बहुमत साबित करने वाले आदेश और अजित पवार के डिप्टी सीएम के पद से इस्तीफे के बाद जब प्रेस कांफ्रेंस के लिए देवेंद्र फडणवीस सामने आये तो चेहरे को पढ़ना मुश्किल नहीं था. सिर्फ फडणवीस ही नहीं, उनके अगल बगल हौसलाअफजाई के लिए बैठे लोगों के चेहरे भी यही बता रहे थे कि कैसे बाजी हाथ से निकल जाने के दर्द को छुपाने की हर कोई कोशिश कर रहा है.
तब तक के हर घटनाक्रम के लिए शिवसेना को कोसने के बाद जब बारी आयी तो साहिल जोशी के सवाल इंतजार ही कर रहे थे. आज तक के सवाल को देवेंद्र फडणवीस ने बड़े गौर से सुना - और शायद जवाब भी सोचा, लेकिन कुछ सूझा नहीं.
सवाल अजित पवार को लेकर फडणवीस के ही 'चक्की पिसिंग... एंड पिसिंग...' वाले बयान को लेकर था कि आखिर कैसे वो अजित पवार से सपोर्ट ले बैठे. फडणवीस समझाना भी यही चाह रहे थे कि अजित पवार के अकेले पड़ जाने के बाद उनके पास कोई चारा नहीं बचा है और वो राज्यपाल को इस्तीफा सौंप देंगे.
महाराष्ट्र में भी पूरे 'कर्नाटक' की तैयारी है क्या?
कुछ सेकेंड के पॉज के बावजूद फडणवीस सिर्फ इतना ही कह पाये कि सही वक्त आने पर वो सारे सवालों के जवाब देंगे. सही वक्त क्या होगा ये तो वही जानें. सही वक्त आएगा भी लेकिन तब भी वो कुछ सवालों के जवाब शायद ही दे पायें -
1. फडणवीस का दावा है कि वो खरीद-फरोख्त में यकीन नहीं रखते, अगर वाकई ऐसा था तो तो चुपके चुपके सरकार बनाने का दावा पेश क्यों किया गया? चुनाव नतीजे आने के बाद तो राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को दिवाली की बधाई देने भी पूरे गाजे-बाजे के साथ गये थे.
2. जब फडणवीस के इरादे इतने नेक थे तो सुबह ही सुबह छिपते छिपाते राजभवन पहुंच कर शपथ लेने की क्या जरूरत थी? ये तो सब तो सीक्रेट मिशन में ही होता है जिसकी बाद में एक औपचारिक घोषणा कर दी जाती है.
3. आखिर फडणवीस अपने साथी बीजेपी नेताओं का कैसे बचाव करेंगे - अगर सबके इरादे साफ थे तो आधी रात को राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश और भोर में सूर्योदय से पहले ही राष्ट्रपति शासन हटा लिये जाने की क्यों जरूरत पड़ गयी?
वैसे फडणवीस को भले ही किसी और वक्त का इंतजार हो, अमित शाह बीजेपी के बचाव में उतर आये हैं. एक इंटरव्यू में अमित शाह ने भी वही बातें दोहरायी हैं जो फडणवीस भी शिवसेना को लेकर कहते आये हैं. मसलन, उद्धव ठाकरे या आदित्य ठाकरे ने कभी विरोध नहीं जताया जब मंच पर उनकी मौजूदगी में फडणवीस को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया गया. शिवसेना भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही चुनाव जीती क्योंकि उसका एक भी उम्मीदवार ऐसा नहीं था जिसने मोदी का पोस्टर न लगाया हो.
जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी के बाद अमित शाह ने देवेंद्र फणवीस और अजित पवार को शपथ लेने के बाद ट्विटर पर बधाई दी थी, वैसे ही बचाव में भी अमित शाह आगे आ गये हैं. अमित शाह पूछने लगे हैं - 'मुख्यमंत्री पद का लालच देकर समर्थन लेना खरीद फरोख्त नहीं है क्या?'
अमित शाह कहते हैं, 'मैं शरद जी और सोनिया जी को कहता हूं कि एक बार बोलकर देखें की मुख्यमंत्री उनका होगा और फिर शिवसेना का समर्थन लें. लगभग 100 सीटों वाला गठबंधन 56 सीट वाली पार्टी को मुख्यमंत्री पद दे रहा है ये खरीद फरोख्त ही है.'
थोड़ा 'कर्नाटक' हुआ है - थोड़ा और बाकी है
महाराष्ट्र में अभी अभी वही सब हुआ है जो मई, 2018 में कर्नाटक में हुआ था. देवेंद फडणवीस ने भी तकरीबन उसी अंदाज में हड़बड़ी में शपथग्रहण किया जैसे बीएस येदियुरप्पा ने किया था. येदियुरप्पा ने नतीजे आने से पहले ही शपथ की घोषणा कर दी थी और ले भी लिये. फडणवीस पहले ना-ना करते रहे और एक सुबह अचानक शपथ ले बैठे. सुप्रीम कोर्ट से महाराष्ट्र के मामले में भी कर्नाटक जैसा ही आदेश आया जैसी की अपेक्षा रही. एक फर्क और है कि फडणवीस ने विधानसभा जाकर अपने भाषण के जरिये लोगों की सहानुभूति बटोरने की जगह सिर्फ एक प्रेस कांफ्रेंस कर इस्तीफा दे दिया.
लेकिन पिक्चर अभी बाकी लगती है. वजह भी कर्नाटक प्रकरण ही है. सवाल है कि जिस तरह सवा साल में येदियुरप्पा ने कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों को बाकी बनने के लिए प्रेरित कर एचडी कुमारस्वामी की सरकार गिरा दी और फिर एक दिन खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल कर ली - क्या देवेंद्र फडणवीस भी अब उसी मिशन में जुट जाएंगे.
जैसा दर्द देवेंद्र फडणवीस अभी सीने में दफन किये हुए हैं, जेडीएस नेता कुमारस्वामी तो उसे भुला भी नहीं पा रहे. जब भी कोई भावनात्मक मौका आता है उनका दर्द बाहर टपकने लगता है. मांड्या में अपने समर्थकों के बीच बात करते करते कुमारस्वामी एक बार फिर रोने लगे. हालांकि, कुमारस्वामी ने रोने की वजह मांड्या से अपने बेटे की हार बतायी - और लगे हाथ पूछ डाला कि समझ में नहीं आ रहा है कि राजनीति में किस पर यकीन किया जाये?
देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे के बाद कुमारस्वामी ने भी ट्विटर पर रिएक्ट किया जिसमें उनकी पीड़ा की झलक मिलती है. कुमारस्वामी ने ट्विटर पर लिखा - 'मुझे देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे का दुख है. वैसे मेरी सरकार गिराने में उन्होंने जैसा जतन किया था उससे तो मुझे इस पर खुश होना चाहिए था. वक्त हर किसी का बदलता है.'
Popular adage 'reap what you sow' aptly applies to Fadnavis. He has harvested the bounty he has sown. (BSY will soon land himself in a similar situation). BJP which is after lust for power, has paid a heavy price.
— H D Kumaraswamy (@hd_kumaraswamy) November 26, 2019
कुमारस्वामी कर्नाटक के बागी विधायकों के मुंबई के होटल में रखे जाने की याद दिला रहे थे - जब कांग्रेस के 14 और जेडीएस के 3 विधायकों को मुंबई पहुंचा दिया गया था. कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार ने तो होटल के सामने डेरा ही जमा लिया था कि दोस्तों से मिले बगैर नहीं लौटेंगे - लेकिन बाद में पुलिस पकड़कर कर्नाटक वापस भेज दिया. फडणवीस को कुमारस्वामी ने उसी वाकये की याद दिलाते हुए कहा है कि फिर ऐसा मौका आया तो येदियुरप्पा एहसान का बदला चुकाने के लिए मोर्चा पहले ही संभाल चुके हैं.
देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के लोगों को यही मैसेज देने की कोशिश की कि वो तोड़-फोड़ में विश्वास नहीं रखते - लेकिन क्या वाकई वो येदियुरप्पा जैसा कदम नहीं उठाएंगे. क्या देवेंद्र फडणवीस वाकई विपक्ष की सकारात्मक भूमिका निभाएंगे?
अमित शाह तो शिवसेना पर गठबंधन तोड़ने से आगे पूरे महागठबंधन पर खरीद-फरोख्त के इल्जाम लगाने लगे हैं - फिर क्या गारंटी है कि देवेंद्र फडणवीस आगे टीम वर्क का हिस्सा नहीं बनेंगे?
कर्नाटक के मामले में तब माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जबरन कब्जा करने का आइडिया भी येदियुरप्पा का ही रहा. बाद में भी जो कुछ हुआ जो 'ऑपरेशन लोटस' के रूप में कुख्यात है - लेकिन महाराष्ट्र में जिस तरह से बीजेपी नेतृत्व ने फटाफट बधाई दी और फिर बचाव में आ गया है, फडणवीस तो एक अनुशासित कार्यकर्ता जैसा ही व्यवहार कर रहे हैं. हो सकता है ये महत्वाकांक्षी फडणवीस के पर कतरने की कवायद ही हो, लेकिन कीमत भी तो फडणवीस को ही चुकानी पड़ेगी!
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जो समझते थे कि अब हमेशा 'मोदी-मोदी' होगा, ये खबर उनके लिए है !
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