New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 18 नवम्बर, 2018 04:10 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
  • Total Shares

पिछले साल केरल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा बीच सड़क पर गौहत्या करने का आरोप लगा था. जिस पर खुद राहुल गांधी को सफाई दे रहे थे. लेकिन अब कांग्रेस अपनी छवि को सुधारने की कोशिश कर रही है. तभी तो मध्य प्रदेश चुनाव में अपना घोषणा पत्र जारी करते हुए कांग्रेस ने गाय को काफी अहमियत दी है. घोषणापत्र में वादा किया गया है कि हर पंचायत में गौशालाएं बनाई जाएंगी और गौमूत्र का कमर्शियल प्रोडक्शन भी शुरू किया जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं है कि पहली बार कांग्रेस ने गाय का सहारा लिया हो. गाय के मामले में कांग्रेस का एक उज्ज्वल इतिहास रहा है. इंदिरा गांधी के समय में भी कांग्रेस ने गाय के मुद्दे को भुनाया था.

वो 7 नवंबर 1966 का दिन था, जब करीब 1 लाख लोग संसद के परिसर में जमा हो गए. उनका नेतृत्व कर रहा था त्रिशूल ब्रांड वाला नागा साधुओं का एक समूह. उनकी सिर्फ एक ही मांग थी कि पूरे देश में गौहत्या पर रोक लगाई जाए. हिंदू राइट विंग के लोग पिछले दो सालों से ऐसे मूवमेंट की तैयारी कर रहे थे. दोपहर तक यह भीड़ संसद के अंदर घुस गई और हिंसा शुरू कर दी, खिड़की के शीशे तोड़े गए और गाड़ियों को भी नुकसान पहुंचाया गया. इसके बाद गौहत्या का ये मामला संसद में पहुंचा. 7 नवंबर का दिन भारतीय राजनीति में बेहद खास था और इस दिन हुआ ये मूवमेंट कांग्रेस पार्टी और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पॉलिटिकल करियर में एक नया मोड़ लेकर आया.

इंदिरा गांधी के समय में 'गाय'

कांग्रेस में गाय को हमेशा से ही एक अहम दर्जा दिया जाता रहा, लेकिन पार्टी के मुखिया जवाहरलाल नेहरू ने उसे खत्म कर दिया, क्योंकि उनकी छवि एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति की थी. हालांकि, 1966 के मूवमेंट ने गाय के बारे में कांग्रेस की सोच को बदल कर रख दिया. कांग्रेस में भी काफी लोग इस पक्ष में थे कि पूरे देश में गौहत्या को बैन कर देना चाहिए, लेकिन इंदिरा गांधी ने इस मामले पर तुरंत कोई फैसला लेने के बजाए, इसका बीच का रास्ता ढूंढ़ना शुरू किया. इतिहासकार Ian Copland ने अपने आर्टिकल 'History in Flux: Indira Gandhi and the ‘Great All-Party Campaign’ for the Protection of the Cow, 1966–8’ में लिखा है कि दिल्ली में मार्च से पहले कांग्रेस पार्लियामेंटरी पार्टी की एग्जिक्युटिव कमेटी के दक्षिणपंथी विचारधारा वाले बहुत से लोगों ने मिलकर पूरे देश में गौहत्या को बैन करने का एक प्रस्ताव पारित रख दिया. यह भी कहा कहा कि अगर इसे लागू करने के लिए भले ही संविधान की धारा 249 को हटाना पड़ेगा तो हटाया जाए.

गाय, कांग्रेस, राजनीति, इंदिरा गांधीइंदिरा गांधी ने बछड़े को दूध पिलाती गाय को अपना चुनाव चिन्ह बनाया था.

इसके बाद इंदिरा गांधी को एहसास हुआ कि अगर गाय के लिए बनाई गई पॉलिसी के खिलाफ कांग्रेस जाती है तो उन्हें फरवरी 1967 में होने वाले चुनावों में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. वहीं दूसरी ओर, वह यह भी नहीं चाहती थीं कि पूरे देश में गौहत्या को लेकर बैन लगे, क्योंकि यह पार्टी की धर्मनिरपेक्ष छवि के खिलाफ जाता और उनके पिता नेहरू गांधी की विचारधारा के भी खिलाफ होता. उन्होंने बीच का रास्ता ढूंढ़ना शुरू किया, जिससे गौरक्षकों को भी खुश रखा जा सके और पार्टी की छवि भी धर्मनिरपेक्ष बनी रहे.

Copland ने लिखा है कि इसके लिए उन्होंने दो स्तर पर गाय का मुद्दा सुलझाने की रणनीति बनाई. पहले तो उन्होंने 5 जनवरी 1967 में लोकसभा में कहा कि गौहत्या से काफी दुखी हैं. उन्होंने पशुपालन विशेषज्ञों और कुछ मंत्रियों की एक हाई-लेवल कमेटी बनाने की बात कही, जो इस बात की जांच करेंगे कि पूरे देश में गौहत्या को बैन करना मुमकिन है या नहीं. साथ ही उन्होंने उन राज्यों से बात की, जिन्होंने गौहत्या के खिलाफ बने कानूनों को लागू नहीं किया था. इसके अलावा, उन्होंने वादा किया कि एक हाई-लेवल कमेटी से संविधान के मौजूदा प्रावधानों के संदर्भ में यह पता करने की कोशिश की जाएगी कि क्या उनमें संशोधन संभव है. आखिरकार 1973 में इंदिरा गांधी द्वारा बनाई गई कमेटी ने रिपोर्ट दी कि पूरे देश में गौहत्या पर रोक लगाने की आवश्यकता नहीं है.

इंदिरा गांधी से पहले कांग्रेस की गाय पर राजनीति

कांग्रेस में गाय की बात करने वाले सबसे पुराने व्यक्ति बाल गंगाधर तिलक थे. इतिहासकार Anthony Parel ने अपने आर्टिकल ‘The political symbolism of the cow in India’ में लिखा है कि तिलक ने गाय के चिन्ह को शिवाजी समारोह का एक अहम हिस्सा बनाया और उसे लोकप्रिय भी किया. शिवाजी समारोह के अलावा तिलक ने गाय के निशान को अपने राजनीतिक कैंपेन में भी इस्तेमाल किया. उन्होंने लोगों से ये भी कहा कि गाय ने ही सबको जन्म दिया है और उसी के दूध से लोगों का भरण-पोषण होता है. गांधी मूवमेंट के दौरान भी कई मौकों पर उन्होंने गाय की बात कही. 1924 में उन्होंने 'गो सेवा संघ' का उद्घाटन किया और कहा कि गाय की रक्षा स्वराज से भी जरूरी है. 1942 में एक भाषण के दौरान तो उन्होंने ये भी कहा था कि अगर गाय मरती है तो हम भी मर जाएंगे.

गाय, कांग्रेस, राजनीति, इंदिरा गांधीइंदिरा गांधी के समय में भी कांग्रेस ने गाय के मुद्दे को भुनाया था.

जब देश आजाद हुआ तो फिर से कांग्रेस के सामने गाय का मुद्दा आया. उस समय कांग्रेस ही सत्ता में थी. हिंदू विचारधारा के कई नेताओं ने कांग्रेस से कहा कि गौहत्या पर बैन को भी संविधान में शामिल किया जाना चाहिए. हालांकि, नेहरू और अंबेडकर ने गौहत्या के मामले में राज्यों पर छोड़ने का फैसला किया. 1955 में भी जब एक प्राइवेट मेंबर बिल लोकसभा में लाया गया, जिसमें पूरे देश में गौहत्या पर बैन लगाने की मांग की गई, तो भी नेहरू ने उसे नकार दिया. लोकसभा में बिल को 92 में से सिर्फ 12 वोट मिले और उसे रिजेक्ट कर दिया गया.

जहां एक ओर इंदिरा गांधी गाय के विवाद का स्थायी समाधान नहीं दे सकीं, वहीं दूसरी ओर इसी की वजह से उनका पॉलिटिकल करियर भी मजबूत हुआ. उन्होंने राजनीति करने के दौरान हर तबके का ध्यान रखने की कोशिश की. 12 नवंबर 1969 में जब इंदिरा गांधी को पार्टी के निकाला गया तो कांग्रेस दो हिस्सों में बंट गई. इसके बाद इंदिरा गांधी ने अपना चुनाव चिन्ह ही 'बछड़े को दूध पिलाती गाय' रख लिया. दूध पीता बछड़ा गरीब तबके के लोगों को दिखाता था. इससे पहले कांग्रेस का चुनाव चिन्ह 'दो बैल' थे. जब 1977 में इंदिरा गांधी को दोबारा पार्टी से बाहर किया गया तो उन्होंने अपना चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा रख लिया, जो अब तक चल रहा है. जिस गाय ने इंदिरा गांधी का राजनीतिक करियर मजूबत कर दिया था अब उसी गाय पर कांग्रेस मध्य प्रदेश के चुनावों में दाव खेलने जा रही है. हालांकि, भाजपा लगातार केरल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा बीच सड़क की गई गौहत्या की बात करते हुए कांग्रेस और राहुल गांधी पर हमला करती रहती है. ये देखना दिलचस्प होगा कि इस बार मध्य प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस का गाय पर चला हुआ दाव कितना सफल होता है. कभी गाय को इतना अहम दर्जा देने वाली कांग्रेस राजनीति में कहां से कहां आ गई है कि अब उस पर गोहत्या के आरोप तक लग रहे हैं.

ये भी पढ़ें-

भारत को भारी पड़ती नेहरु की ऐतिहासिक भूलें

2019 लोकसभा चुनाव में हार-जीत महिला वोटर्स ही तय करेंगी !

मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के चुनावी माहौल में बदलता 'घोषणापत्र'

लेखक

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय