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Updated: 18 अगस्त, 2020 10:08 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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राजस्थान कांग्रेस के केस का दिल्ली दरबार में ट्रायल शुरू हो चुका है. सचिन पायलट (Sachin Pilot) और राहुल गांधी की मुलाकात में जो शिकायतों के निपटारे के लिए जो तय हुआ था उस पर अमल भी शुरू हो गया है. कांग्रेस आलाकमान की तरफ से जो शुरुआती एक्शन हुआ है उसमें मैसेज बहुत साफ नजर आ रहा है. अब तक राजस्थान के प्रभारी महासचिव रहे अविनाश पांडे (Avinash Pande) को कांग्रेस नेतृत्व ने तत्काल प्रभाव से हटा दिया है. अविनाश पांडे की जगह दिल्ली कांग्रेस के नेता अजय माकन (Ajay Maken) को राजस्थान कांग्रेस का नया प्रभारी बनाया गया है. अजय माकन शुरुआती दौर से ही अशोक गहलोत और सचिन पायलट का झगड़ा सुलझाने में लगे हुए थे, ताकि कांग्रेस को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके.

सचिन पायलट की शिकायतों को लेकर कांग्रेस की जो तीन सदस्यों वाली कमेटी बनायी गयी है उसमें अविनाश पांडे के अलावा केसी वेणुगोपाल और अहमद पटेल को भी शामिल किया गया है. केसी वेणुगोपाल फिलहाल संगठन महासचिव हैं और अहमद पटेल कांग्रेस के कोषाध्यक्ष. अहमद पटेल लंबे अरसे तक सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार भी रहे हैं.

कांग्रेस में भी कमेटियों का वैसा ही हाल रहा है जैसा सरकारी कामों में देखने को मिलता है, लेकिन अविनाश पांडे को हटाया जाना तो यही इशारे कर रहा है कि सचिन पायलट के सामने देर जरूर है, लेकिन अंधेर नहीं है.

अविनाश पांडे से गलती कहां हुई

अच्छा तो ये होता कि अविनाश पांडे को राजस्थान में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार बचा लेने का श्रेय दिया जाता. तारीफ होती कि सचिन पायलट को अविनाश पांडे ने ज्योतिरादित्य सिंधिया बनने से रोक लिया. मुश्किलें बनी रहीं, लेकिन आखिर में अशोक गहलोत के राजस्थान विधानसभा में बहुमत साबित कर देने के बाद सत्ता की डोर कांग्रेस के हाथ में ही बनी रही. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ है. जो हुआ है वो अविनाश पांडे के खिलाफ जाता है.

अविनाश पांडे से प्रभार तब छीना जा सकता था अगर कांग्रेस पार्टी हाथ मलते रह जाती और बीजेपी की राजस्थान में सरकार बन जाती. दिग्विजय सिंह से ऐसे ही गोवा का प्रभार वापस ले लिया गया था जब चुनावों में ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद कांग्रेस हाथ मलती रह गयी और बीजेपी ने निर्दलीयों से जोड़ तोड़ करके सरकार बना लिया था.

सवाल ये है कि जब 'ऑल इज वेल' है तो अविनाश पांडे को हटाने की क्या जरूरत थी? आखिर सोनिया गांधी और राहुल गांधी को अविनाश पांडे की भूमिका में क्या कमी दिखी जो एक झटके में हटा दिया - और सचिन पायलट से वादे के मुताबिक बनी कमेटी में भी नहीं रखा. प्रभारी होने के नाते अविनाश पांडे से ज्यादा राजस्थान कांग्रेस के बारे में न तो अजय माकन जानते होंगे और न केसी वेणुगोपाल - और न ही रणदीप सिंह सुरजेवाला.

sachin pilot, avinash pandeअविनाश पांडे का हटाया जाना अशोक गहलोत के खिलाफ सचिन पायलट का पक्ष मजबूत करता है

अविनाश पांडे पर हुए एक्शन को समझने के लिए पीछे लौट कर उनके बयान और ट्वीट के जरिये चीजों को समझने की कोशिश की जा सकती है. जब सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और डिप्टी सीएम के पद से हटा दिया गया तो एक लाइन के ट्वीट में उनका रिएक्शन आया था - सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं.

सचिन पायलट के ट्वीट को अविनाश पांडे ने अपनी टिप्पणी के साथ रीट्वीट किया और बीजेपी के साथ मिल कर कांग्रेस के खिलाफ काम करने का सीधा इल्जाम लगाया.

फिर पत्रकारों के सवाल के जवाब में अविनाश पांडे ने कहा था कि सचिन पायलट अपनी गलतियों के लिए माफी मांग लें तो बात बन सकती है. लगे हाथ, अविनाश पांडे ने एक शर्त भी लागू कर दी - लेकिन हर चीज की एक सीमा होती है. मतलब, अगर तत्काल माफी नहीं मांगी तो उसकी वैलिडिटी खत्म मानी जाएगी.

अशोक गहलोत के आरोपों को खारिज करते हुए सचिन पायलट की तरफ से इंटरव्यू के जरिये बयान आया कि वो बीजेपी में शामिल नहीं हो रहे हैं. सचिन पायलट ने कहा कि वो कांग्रेस कार्यकर्ता हैं और पार्टी में रह कर ही जरूरी मुद्दे उठा रहे हैं.

सचिन पायलट के बयान को लेकर जब अविनाश पांडे से पीटीआई-भाषा ने सवाल किया तो जवाब मिला - 'भगवान उनको सद्बुद्धि दे. जिस पार्टी ने उनको पाला-पोसा और बड़ा किया वो उनसे एक जिम्मेदार नेता होने की अपेक्षा करती है. उनको यही मेरा संदेश है.'

साथ ही, अविनाश पांडे ने ये आरोप भी लगाया कि सचिन पायलट अशोक गहलोत की सरकार गिराने की साजिश में शामिल थे. लेकिन सचिन पायलट को ऐसी सद्बुद्धि देने वाले अविनाश पांडे अकेले तो थे नहीं, रणदीप सुरजेवाला ने भी तो कहा था कि सचिन पायलट को कांग्रेस पार्टी ने कम उम्र में ही काफी कुछ दे दिया है.

फिर सवाल उठता है कि अविनाश पांडे और रणदीप सुरजेवाला एक जैसी बातें कर रहे थे तो अकेले अविनाश पांडे पर एक्शन क्यों?

बेशक दोनों एक जैसी बातें कर रहे थे, लेकिन अविनाश पांडे मान कर चल रहे थे कि सचिन पायलट बीजेपी ज्वाइन करने जा रहे हैं और सरकार गिराने की साजिश में शामिल हैं. ये वही लाइन थी जिसे आगे बढ़ाते हुए अशोक गहलोत ने कहा था कि सचिन पायलट सरकार गिराने की साजिश में शामिल हैं.

मतलब, रणदीप सुरजेवाला और अविनाश पांडे के बयान में ये फर्क था कि वो अशोक गहलोत की ही भाषा बोल रहे थे. अब सवाल है कि अगर कांग्रेस में नीचे से लेकर ऊपर तक ये मान कर चला जा रहा था कि सचिन पायलट सरकार गिराने की साजिश में शामिल हैं और उसी हिसाब से अविनाश पांडे बयान दे रहे थे तो उनका दोष क्या है?

दोष है - अविनाश पांडे राजस्थान से जुड़ी चीजों को प्रभारी होने के नाते काफी करीब से देख रहे थे. प्रभारी महासचिव होने के नाते उनकी ड्यूटी थी कि राजस्थान कांग्रेस में चल रही गुटबाजी को खत्म न कर सकें तो कम तो करें ही. अगर कम भी न करें तो कम से कम किसी एक तरफ होकर पक्षपात तो न ही करें.

सचिन पायलट ने भी रणदीप सुरजेवाला की बातों का इसलिए बुरा नहीं माना होगा क्योंकि वो तो कांग्रेस पार्टी की तरफ से जो कहा जाता होगा मीडिया में आकर बयान देते होंगे. लेकिन सचिन पायलट ये कैसे बर्दाश्त करते कि जो इंसान हर बात से वाकिफ है वो एकतरफा क्यों बोल रहा है. सचिन पायलट को ये ठीक नहीं लगा कि अविनाश पांडे उनके खिलाफ अशोक गहलोत वाली ही भाषा बोलें. लिहाजा प्रियंका गांधी की मौजूदगी में सचिन पायलट ने अविनाश पांडे की शिकायत की होगी और उसी को लेकर कांग्रेस नेतृत्व ने पहला एक्शन अविनाश पांडे के खिलाफ ही लिया.

सवाल तो ये भी है कि जिस काम के लिए अशोक गहलोत को कोई कुछ नहीं बोल रहा है, उसी बात के लिए अविनाश पांडे के खिलाफ एक्शन क्यों?

सचिन पायलट को उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिये

सचिन पायलट अब एक ही बात दोहरा रहे हैं - जो रोड मैप तय हुआ है चीजें उस हिसाब से हों. राहुल गांधी के आश्वासन के मुताबिक सोनिया गांधी ने कमेटी तो बना ही दी है - और जाहिर है सचिन पायलट की मर्जी के हिसाब से उसमें अविनाश पांडे को नहीं रखा है. अहमद पटेल और केसी वेणुगोपाल लगातार सचिन पायलट के संपर्क में रहे. अहमद पटेल जहां सोनिया गांधी के भरोसेमंद हैं, वहीं केसी वेणुगोपाल को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है.

अविनाश पांडे के खिलाफ एक्शन से कई और भी बातें साफ होती जा रही हैं. जिस ऑडियो क्लिप के आधार पर राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने सचिन पायलट को नोटिस दिया था वो सबसे पहले तो राजद्रोह के मामले से ही पीछे हट गया. बाद में बोल दिया कि कोई केस ही नहीं बनता. अगर ये सब झूठा ही था तो सरकार गिराने की साजिश कहां रची गयी - किसने साजिश रची?

जो केस दर्ज होने पर अशोक गहलोत जोर जोर से बोले जा रहे थे कि सचिन पायलट भी सरकार गिराने की साजिश में शामिल हैं - और वो केस ही खत्म हो जाता है तो साजिश का सवाल ही कहां उठता है?

सचिन पायलट, सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मिल कर शुरू से ही यही बात तो बताना चाहते थे, लेकिन अशोक गहलोत के मायाजाल में फंसा कांग्रेस नेतृत्व कुछ भी सुनने को तैयार न था. फिर तो यही लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व अपनी गलती का दोष सचिन पायलट पर मढ़ रहा है.

सचिन पायलट की बातें मान लेने का मतलब अशोक गहलोत को दोषी मानना और ऐसा करने का मतलब तो यही हुआ कि कांग्रेस नेतृत्व ने दोनों पक्षों को सुने बगैर ही मान लिया कि अशोक गहलोत सही बोल रहे हैं और सचिन पायलट गलत हैं.

मुश्किल ये है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी अगर मान लें कि सचिन पायलट कहीं से भी दोषी नहीं है तो सारी तोहमत खुद लेनी पड़ेगी - और ये भी मैसेज जाएगा कि अशोक गहलोत के बहकावे में आकर कांग्रेस नेतृत्व ने एकतरफा फैसला लिया और सचिन पायलट पक्षपात के शिकार हुए.

अविनाश पांडे को हटा कर कांग्रेस नेतृत्व सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने एक तरीके से सचिन पायलट को ये मैसेज देने की कोशिश की है कि थोड़ी देर हो सकती है लेकिन दिल्ली दरबार में अंधेर नहीं होगी - इसलिए उम्मीद तो बिलकुल भी नहीं छोड़ने की जरूरत है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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