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Updated: 11 दिसम्बर, 2019 03:14 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill 2019) लोकसभा (Lok Sabha) में पारित होने के बाद आखिरकार राज्यसभा (Rajya Sabha) में पहुंच गया है. लोकसभा में इस बिल के समर्थन में 311 वोट पड़े थे और इसके खिलाफ 80 वोट पड़े थे. लोकसभा में तो मोदी सरकार (Modi Government) ने बड़ी आसानी से एक ही दिन में इस बिल को पारित करवा लिया, लेकिन राज्यसभा में इस बिल को पारित करवाना चुनौती पूर्ण हो सकता है. इसकी कई वजहें हैं. एक तो लोकसभा में इस बिल के पारित होने के असम समेत उत्तर-पूर्व के कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन (Assam Protest) शुरू हो गए हैं और दूसरी ओर कुछ अपने ही विरोध में उतर आए हैं. यहां अपनों से मतलब जेडीयू (JDU) और शिवसेना (Shiv Sena) से है. जेडीयू के प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) और पवन वर्मा (Pawan Verma) इस बिल के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर शिवसेना ने कहा है कि वह राज्यसभा में इस बिल का समर्थन तभी करेगी, जब भाजपा और अमित शाह इस बिल को स्पष्ट करेंगे. यानी जितनी आसानी से अमित शाह ने लोकसभा में इस बिल को पास करवा लिया, राज्यसभा में सब उतना आसान नहीं है.

Citizenship Amendment Bill 2019 in Rajya Sabhaअमित शाह ने मजबूती से राज्यसभा में अपनी बात रखी है और उम्मीद की जा रही है कि वह ये बिल पास भी करवा लेंगे.

जेडीयू और शिवसेना से है डर !

सबसे पहले बात प्रशांत किशोर की. जेडीयू के उपाध्यक्ष और राजनीति रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर के कहा है कि ‘जदयू के द्वारा नागरिकता संशोधन बिल का समर्थन करना काफी निराशाजनक है. जदयू का इस मामले में समर्थन करना पार्टी के संविधान का भी उल्लंघन करता है और ये गांधी के विचारों के खिलाफ है.’

प्रशांत किशोर के बाद जेडीयू के प्रवक्ता पवन कुमार वर्मा ने भी एक ट्वीट कर के अपना विरोध जताते हुए कहा है कि ‘मैं नीतीश कुमार से अपील करता हूं कि राज्यसभा में नागरिकता संशोधन बिल पर समर्थन पर दोबारा विचार करें. ये बिल पूरी तरह से असंवैधानिक है और देश की एकता के खिलाफ है. ये बिल जदयू के मूल विचारों के भी खिलाफ हैं, गांधी जी इसका पूरी तरह से विरोध करते’.

लोकसभा में शिवसेना ने बिना किसी शर्त के ही नागरिकता संशोधन बिल को अपना समर्थन दे दिया, लेकिन राज्यसभा में ऐसा नहीं दिख रहा. शिवसेना अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा है कि नागरिकता संशोधन बिल में स्पष्टता के बगैर शिवसेना राज्यसभा में समर्थन नहीं करेगी.

शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने भी इस बिल के राज्यसभा पहुंचने से पहले ही ये बयान दिया कि लोकसभा में क्या हुआ, वह भूल जाइए. इस बयान के बाद ऐसा लग रहा है कि शिवसेना कभी भी अपना पाला बदल सकती है. भाजपा के लिए भी संजय राउत का बयान टेंशन देने वाला है.

अमित शाह राज्यसभा में बिल पास करा पाएंगे या नहीं?

लोकसभा में भाजपा के पास बहुमत था, लेकिन राज्यसभा में तस्वीर थोड़ी अलग है. यहां भाजपा के पास बहुमत नहीं है. ऐसे में अगर अमित शाह से कुछ सांसद भी नाराज हुए तो समझिए राज्यसभा में ये बिल पास नहीं हो पाएगा. इसमें सबसे बड़ा रोल अदा करेंगे शिवसेना और जेडीयू. चलिए जानते हैं राज्यसभा में कैसे जेडीयू और शिवसेना बदल सकते हैं पूरा गणित, लेकिन इसके लिए पहले ये समझना होगा राज्यसभा का गणित.

कौन मोदी सरकार के साथ और कौन विपक्ष में?

राज्यसभा में कुल 245 सीटें हैं, जिनमें से 5 खाली होने की वजह से फिलहाल 240 सदस्य हैं. यानी अगर मोदी सरकार को 121 वोट मिल गए, तो वह इस बिल को राज्यसभा में पारित करवा लेगी. मौजूदा समय में राज्यसभा में भाजपा के 83, बीजेडी के 7, एआईएडीएमके के 11, अकाली दल के 3, शिवसेना के 3, जेडीयू के 6, वाईएसआर कांग्रेस के 2, आरपीआई के 1, एलजेपी के 1 और 4 नॉमिनेटेड राज्य सभा सदस्य हैं. यानी कुल 121 सदस्य. यानी अगर सबने वोट कर दिया तो मोदी सरकार आसानी से राज्यसभा में भी इसे पारित करवा लेगी.

वहीं दूसरी ओर, विपक्ष के पास सिर्फ 100 सदस्य हैं. इसमें कांग्रेस के 46, टीएमसी के 13, समाजवादी पार्टी के 9, लेफ्ट के 6, डीएमके के 5 और आरजेडी, एनसीपी, बीएसपी के 4 सदस्य हैं. इसके अलावा टीडीपी के 2 सदस्य हैं, मुस्लिम लीग के 1, पीडीपी के 2, जेडीएस के 1, केरल कांग्रेस के 1 और टीआरएस के 6 सदस्य हैं. इस तरह विपक्ष के पास कुल 100 सदस्य हैं. यानी विपक्ष तो पहले से ही कमजोर है. ये बिल सिर्फ तभी पास हो सकता है जब मोदी सरकार का समर्थन करने वाले कुछ सांसद विरोध कर दें.

इनके अलावा राज्य सभा में 19 और सदस्य हैं, जो ना तो सत्ता पक्ष के साथ हैं ना ही विपक्ष में हैं. ये लोग राज्यसभा में नागरिकता संशोधन बिल पास करने में बड़ी भूमिका अदा करेंगे. इनमें 1 सदस्य असम गण परिषद का, 1 बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट का, 1 एडीएमके का, 1 नागा पीपल का, 1 पीएमके का और 1 सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के सदस्य हैं. इसके अलावा 6 राज्य सभी सदस्य निर्दलीय और अन्य में आते हैं.

अगर जेडीयू और शिवसेना ने राज्यसभा में बिल का समर्थन किया तो...

जैसा कि आपने ऊपर राज्यसभा का गणित देखा है. अगर जेडीयू और शिवसेना ने राज्यसभा में भी इस बिल का समर्थन किया तो बेशक भाजपा इस बिल को पारित करवाने में सफल हो जाएगी.

अगर जेडीयू और शिवसेना राज्यसभा में अनुपस्थित रहे तो...

दूसरी स्थिति ये हो सकती है कि जेडीयू और शिवसेना राज्सभा में अनुपस्थित रहे. इस स्थिति में सीधे-सीधे 9 सीटें कम हो जाएंगी, जिसमें शिवसेना की 3 सीटें हैं और जेडीयू 6 सीटें हैं. ऐसी स्थिति में भाजपा को 112 वोट मिलेंगे, हालांकि ये आंकड़ा भी विपक्ष से अधिक है. हां बाकी के 19 सांसद भाजपा को टेंशन दे सकते हैं, लेकिन इसकी उम्मीद काफी कम है.

अगर जेडीयू और शिवसेना ने राज्यसभा में बिल का विरोध किया तो...

तीसरी स्थिति ये हो सकती है कि जेडीयू और शिवसेना राज्यसभा में बिल का विरोध कर दे. ऐसे में सिर्फ पक्ष-विपक्ष की बात करें तो भाजपा को 112 वोट मिलेंगे, जबकि विपक्ष के 109 वोट हो जाएंगे. ये स्थिति भाजपा के लिए थोड़ी चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन फिर बाकी के 19 सदस्य अहम भूमिका अदा करेंगे. इस स्थिति में भी ये मुमकिन नहीं लग रहा कि ये सभी 19 भाजपा का विरोध कर दें. अगर इनमें से 9 मोदी सरकार के साथ हो गए और बाकी के 10 विपक्ष में हो गए, तो भी मोदी सरकार आसानी से ये बिल पास कर जाएगी.

अभी क्या है हाल?

मौजूदा स्थिति में एनडीए (106) के साथ 25 सांसद समर्थन में हैं यानी 131 वोट. वहीं दूसरी ओर यूपीए (62) के साथ 47 समर्थक हैं यानी उनके पास कुल 109 वोट हैं. इस तरह ये साफ है कि भाजपा बहुमत के आंकड़े (121) से काफी आगे है. खैर, असल तस्वीर तो तब सामने आएगी, जब इस पर वोटिंग होगी.

यानी अगर देखा जाए तो ये राज्यसभा में इस बिल के खिलाफ विपक्ष बोल तो सकता है, लेकिन बाकी के 19 सदस्य और जेडीयू-शिवसेना के साथ के बिना वह इस बिल को किसी हालत में नहीं रोक पाएंगे. हर हाल में राज्यसभा में इस बिल का पास होना तय ही है. जहां तक बाद जेडीयू-शिवसेना की है तो ये भी थोड़ा ना नुकुर भले ही करें, लेकिन आखिरकार साथ तो भाजपा का ही देंगे. जेडीयू विरोध में वोट नहीं करेगी, क्योंकि चंद महीनों बाद ही बिहार में चुनाव है और वहां एक बार फिर नीतीश कुमार को भाजपा के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ना है. वही दूसरी ओर शिवसेना इसका विरोध कैसे कर सकती है, जबकि ये बिल तो हिंदूवादी है, जो कि शिवसेना की कोर पॉलिटिक्स है.

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