उपचुनाव नतीजों से बीजेपी पढ़े दीवार पर लिखी इबारत
2019 लोकसभा चुनाव के लिए देश भर में विपक्षी एकजुटता का जो चक्रव्यूह बुना जा रहा है क्या उसे भेदने के लिए मोदी-शाह की जोड़ी कोई ब्रह्मास्त्र ढूंढ पाएगी? यही यक्ष प्रश्न अब हर एक की जुबान पर है.
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क्या उपचुनाव के ये नतीजे देश की भावी राजनीति की दशा और दिशा तय करने जा रहे हैं? लोकसभा चुनाव अब एक साल ही दूर है. 2019 लोकसभा चुनाव के लिए देश भर में विपक्षी एकजुटता का जो चक्रव्यूह बुना जा रहा है क्या उसे भेदने के लिए मोदी-शाह की जोड़ी कोई ब्रह्मास्त्र ढूंढ पाएगी? यही यक्ष प्रश्न अब हर एक की जुबान पर है.
लोकसभा की 4 जिन सीटों के लिए 28 मई को उपचुनाव हुआ उनमें यूपी की कैराना, नगालैंड की इकलौती सीट, महाराष्ट्र की पालघर और गोंदिया-भंडारा सीटें शामिल हैं. इसी तरह जिन 10 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुआ उनमें यूपी की नूरपुर, उत्तराखंड की थराली, बिहार की जोकीहाट, झारखंड की सिल्ली और गोमिया, पंजाब की शाहकोट, पश्चिम बंगाल की महेश्तला, मेघालय की अंपाती, केरल की चेंगन्नुर और कर्नाटक की राजराजेश्वरी सीट शामिल हैं. महाराष्ट्र की पलसु-कडेगांव विधानसभा सीट कांग्रेस पहले ही निर्विरोध जीत चुकी थी. ये सीट कांग्रेस के विश्वजीत कदम ने जीती है. यहां बीजेपी ने यहां संग्राम सिंह देशमुख को उम्मीदवार बनाया था लेकिन आखिरी वक्त में उन्होंने अपना नाम वापस लिया.
कुल मिलाकर 11 राज्यों में ये उपचुनाव हुए. अब देखिए इन राज्यों में कौन-कौन सी पार्टी सत्तारूढ़ हैं. यूपी, उत्तराखंड, झारखंड में बीजेपी अकेले दम पर सत्ता में है. वहीं महाराष्ट्र, नगालैंड, मेघालय, बिहार में बीजेपी सहयोगियों के साथ सत्ता में है. विपक्षी खेमे में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, पंजाब में कांग्रेस और कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन और केरल में सीपीएम की अगुआई वाला लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट सत्ता में है.
जहां तक विपक्षी खेमे के कब्जे वाले राज्यों की बात की जाए तो पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, केरल में सीपीएम की अगुआई वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट, पंजाब और कर्नाटक में कांग्रेस को इस उपचुनाव में अपनी साख बनाए रखने में कामयाबी मिली है.
उपचुनाव वाले अधिकतर राज्यों में बीजेपी खुद या सहयोगियों के साथ सत्तारूढ़ है. बीजेपी या उसके सहयोगियों के लिए इस उपचुनाव में बस तीन राज्यों से ही कुछ अच्छी खबर आई. महाराष्ट्र से पालघर लोकसभा सीट पर बीजेपी उम्मीदवार ने निकटतम शिवसेना उम्मीदवार को 29,572 वोट से हराया. उत्तराखंड की थराली सीट बीजेपी ने महज 1811 वोट से जीती हैं. वहीं नगालैंड की इकलौती सीट पर बीजेपी के सहयोगी दल एनडीपीपी जीत के लिए डेढ़ लाख से ज्यादा वोट की निर्णायक बढ़त बना ली.
महाराष्ट्र की बात की जाए तो वहां जीत के बावजूद बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है. पालघर में शिवसेना और क्षेत्रीय पार्टी बहुजन विकास अगाडी के उम्मीदवारों ने बीजेपी को अच्छी टक्कर दी है. बीजेपी के राजेंद्र गावित ने शिवसेना के श्रीनिवासन चिंतामन वनागा को 29,572 वोट से हराया. लेकिन बहुजन विकास अगाड़ी उम्मीदवार बलराम सुकुर ने करीब सवा दो लाख वोट लेकर सबको हैरान किया. कांग्रेस उम्मीदवार को इस सीट पर महज 47,713 वोट ही मिल सके. हैरानी की बात है कि महाराष्ट्र सरकार और केंद्र में एनडीए में सहयोगी होने के बावजूद बीजेपी और शिवसेना ने एक दूसरे के खिलाफ पालघर उपचुनाव लड़ा. पालघर लोकसभा सीट उपचुनाव के नतीजे से साफ है कि अगर यहां भी गैर बीजेपी वोट एक जुट रहते तो बीजेपी को हार का ही मुंह देखना पड़ता. जहां तक गोंदिया-भंडारा लोकसभा सीट का सवाल है तो वहां एनसीपी और कांग्रेस को मिलकर चुनाव लड़ने का फायदा मिला. यहां एनसीपी उम्मीदवार मधुकर कुकाडे ने कांटे की लड़ाई में बीजेपी उम्मीदवार हेमंत पटेल को दो हजार से ज्यादा वोट से हराया.
बीजेपी को सबसे बड़ा झटका देश के सबसे बड़े सूबे यानी यूपी से मिला है. इस उपचुनाव में सबसे चर्चित चुनाव कैराना लोकसभा सीट का रहा. इस सीट पर राष्ट्रीय लोकदल की उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने बीजेपी उम्मीदवार मृगांका सिंह को 49,454 वोट से हराया. ये सीट बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन की वजह से खाली हुई थी. यहां बीजेपी ने हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को उम्मीदवार बनाया. आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन को समाजवादी पार्टी, बीएसपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने समर्थन दिया. क्षेत्र में इस चुनाव को ‘जिन्ना बनाम गन्ना’ की लड़ाई माना गया. सही मायने में ये चुनाव बीजेपी बनाम विपक्षी एकजुटता का भी एक तरीके से इम्तिहान था. इसी तरह यूपी की नूरपुर विधानसभा सीट पर भी विपक्ष ने बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन दिया. नूरपुर में समाजवादी पार्टी उम्मीदवार नईमुल हसन ने बीजेपी उम्मीदवार अवनि सिंह को 6211 वोट से हराया. कैराना और नूरपुर दोनों जगह ही बीजेपी की हार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए भी बड़ा झटका है. इससे पहले भी गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में बीजेपी को समाजवादी पार्टी-बीएसपी गठबंधन के हाथों शिकस्त का मुंह देखना पड़ा था.
झारखंड में बीजेपी की सरकार है. इस राज्य में दो विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए और दोनों पर ही विपक्षी झारखंड मुक्ति मोर्चा को जीत हासिल हुई है. ये बीजेपी और मुख्यमंत्री रघुबर दास दोनों के लिए ही चिंता की बात है. सिल्ली सीट पर जेएमएम उम्मीदवार सीमा देवी ने एजेएसयू उम्मीदवार सुदेश महतो को 13,510 वोट से हराया. झारखंड की गोमिया विधानसभा सीट पर जेएमएम की बबीता देवी ने एजेएसयू के लंबोदर महतो को 1341 वोट से मात दी.
बीजेपी के लिए बिहार से भी बुरी खबर है. यहां बीजेपी के साथ सरकार में सत्तारूढ़ जेडीयू को जोकीहाट सीट पर लालू प्रसाद के आरजेडी के सामने शिकस्त का मुंह देखना पड़ा है. यहां आरजेडी उम्मीदवार शाहनवाज आलम ने जेडीयू उम्मीदवार मुर्शीद आलम को 41,244 वोट के अंतर से हराया. इस उपचुनाव को आरजेडी के भारी अंतर से जीतने पर लालू के बेटे तेजस्वी यादव की नेतृत्व क्षमता पर भी मुहर लगी है. जाहिर है बिहार में आरजेडी के लिए बढ़ते रुझान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी नेतृत्व के माथे पर बल ला दिए होंगे. क्या बिहार में लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर राजनीतिक शक्तियों का नए सिरे से ध्रुवीकरण होगा? ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार अब कौन सा दांव खेलते हैं. बिहार में पिछला विधानसभा नीतीश ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ लड़ा और कामयाबी पाई. लेकिन फिर कार्यकाल के बीच में ही आरजेडी से पीछा छुड़ाने के लिए बीजेपी से हाथ मिला लिया. सत्ता के लिए नीतीश के इस म्युजिकल चेयर के गेम पर निशाना साधने में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
जोकीहाट सीट पर हार के लिए जेडीयू महासचिव के सी त्यागी ने ठीकरा पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती कीमतों पर फोड़ा है. त्यागी ने कहा कि इसी को लेकर लोगों के गुस्से का असर उपचुनाव में भी पड़ा. त्यागी के मुताबिक उपचुनाव के नतीजे एनडीए के लिए चिंता का विषय हैं.
अब करते हैं उपचुनाव वाले उन राज्यों की बात, जहां पर विपक्षी पार्टियां सत्तारूढ़ हैं. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की पकड़ अब भी बरकरार है. पंजाब की शाहकोट सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार ने अकाली दल उम्मीदवार को 38,802 वोट के अंतर से हराया. यहां सबसे बुरी गत आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार की हुई. उसे महज 1900 वोट ही मिल सके. क्या इसका ये मायने लगाए जाए कि पंजाब की जनता का अब केजरीवाल एंड पार्टी से मोहभंग हो गया है?
कर्नाटक की राजराजेश्वरी सीट पर कांग्रेस की जीत ग्रैंड ओल्ड पार्टी के लिए बड़ी राहत बन कर आई है. यहां कांग्रेस उम्मीदवार ने बीजेपी उम्मीदवार को 25,432 वोट से शिकस्त दी. हाल ही में इस राज्य में चुनाव संपन्न हुए है. यहां एक एक सीट मायने रखती है. अपने बूते पर कांग्रेस के लिए एक और अच्छी खबर मेघालय से आई है. यहां अंपाती विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार मियानी डी शिरा ने 3191 वोटों से जीत दर्ज की. मेघालय विधानसभा में अब कांग्रेस 21 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. ऐसे में कांग्रेस की तरफ से आने वाले दिनों में गवर्नर के सामने सरकार बनाने के लिए दावा पेश किया जाए तो कोई बड़ी बात नहीं.
पश्चिम बंगाल में दीदी यानी ममता बनर्जी को चुनौती देने वाला कोई आसपास भी नहीं दिखाई देता. इसका सबूत है महेश्तला विधानसभा सीट के लिए हुआ उपचुनाव. यहां टीएमसी के दुलाल दास ने निकटतम बीजेपी उम्मीदवार को 62,896 वोट के विशाल अंतर से हराया. सीपीएम इस सीट पर तीसरे नंबर पर रही.
इसी तरह केरल में भी सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट को चेंगन्नुर विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में कामयाबी मिली है. यहां सीपीएम उम्मीदवार ने निकटतम कांग्रेस उम्मीदवार को 7983 वोट से हराया. बीजेपी यहां तीसरे नंबर पर रही.
निष्कर्ष यही है कि बीजेपी की तुलना में जिन जिन राज्यों में विपक्षी पार्टियां सत्ता में हैं, वो अपना वर्चस्व बनाए रखने में कामयाब रही है. वहीं उत्तर प्रदेश समेत जिन राज्यों में बीजेपी या उसके सहयोगी दल सत्ता में हैं, वहां उन्हें एंटी इंकम्बेंसी और विपक्षी एकजुटता से सीधे तौर पर नुकसान होता दिख रहा है. लोकसभा चुनाव को एक साल ही बचा है. उससे पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चनाव होने हैं, जहां सभी जगह बीजेपी सत्तारूढ़ है. पहले कर्नाटक और अब इन उपचुनावों के नतीजों से जाहिर है विपक्षी खेमे में जोश बढ़ेगा. वहीं बीजेपी के थिंकटैंक की अब सबसे बड़ी चिंता विपक्षी एकजुटता की काट ढूंढना होगा.
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