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Updated: 25 दिसम्बर, 2018 09:11 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस पर उन्हीं के द्वारा शुरू किए गए ब्रिज को मोदी सरकार ने देश को समर्पित किया. इस 4.9 किलोमीटर के बोगीबील ब्रिज ने ना सिर्फ असम और अरुणाचल की दूरी कम कर दी है, बल्कि चीन की चुनौती से निपटने के लिहाज से भी ये ब्रिज काफी अहम है. ये ब्रिज असम के डिब्रूगढ़ में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण तट को धेमाजी जिले से जोड़ता है, जो अरुणाचल प्रदेश का सीमावर्ती जिला है. अरुणाचल का सिलापत्थर भी इस ब्रिज से सटा हुआ है. अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे चीन के साथ अक्सर ही किसी न किसी बात को लेकर भारत से विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है. ऐसे में मोदी सरकार ने भारतीय सेना को और अधिक ताकतवर बनाने के लिए इस ब्रिज का सहारा दे दिया है.

असम के बीचोबीच से बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी करीब 700 किलोमीटर में फैले इस राज्य को दो हिस्सों में बांट देती है. इस ब्रिज से ना सिर्फ असम में एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाना आसान हो गया है, बल्कि अगर सेना को अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के बीच किसी आपातकालीन स्थिति में आवाजाही करनी पड़े, तो भी ये ब्रिज काफी मददगार साबित होगा. अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड दोनों ही जगहों पर सेना की तैनाती है और दोनों ही जगह चीन से घुसपैठ का खतरा बना रहता है.

बोगीबील ब्रिज, भारतीय सेना, चीन, नरेंद्र मोदीइस 4.9 किलोमीटर के बोगीबील ब्रिज ने असम और अरुणाचल की दूरी कम कर दी है.

टैंक दौड़ सकते हैं, फाइटर जेट तक उतर सकते हैं!

बोगीबील ब्रिज सेना के लिहाज से बेहद अहम इसलिए है, क्योंकि इस पर भारी भरकम टैंक चल सकते हैं और जरूरत पड़ने पर फाइटर जेट को भी इस पर उतारा जा सकता है. यानी मोदी सरकार ने ये ब्रिज बनाते समय इस बात का खास ध्यान रखा है कि इस ब्रिज का इस्तेमाल सिर्फ जनता की आवाजाही के नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी हो सके. इस ब्रिज की मदद से सीमा पर तैनात सुरक्षा बलों तक खाने-पीने, हथियार और अन्य जरूरी सामान को पहुंचाना भी आसान हो जाएगा.

इस ब्रिज पर भारी भरकम टैंक चल सकते हैं और जरूरत पड़ने पर फाइटर जेट को भी इस पर उतारा जा सकता है.इस ब्रिज पर भारी भरकम टैंक चल सकते हैं और जरूरत पड़ने पर फाइटर जेट को भी इस पर उतारा जा सकता है.

1962 से सबक लेने में लगे 56 साल

अरुणाचल प्रदेश से सटी भारत-चीन सीमा अक्सर ही दोनों देशों के बीच विवाद की वजह बनती रही है. 1962 में भी चीनी सेना ने भारत की सीमा में घुसपैठ की थी. उनसे लोहा लेने में भारतीय सेना को खासी मशक्कत करनी पड़ी थी, क्योंकि हमारे पास सेना तक हथियार पहुंचाने के लिए एक अच्छी सड़क भी नहीं थी. 1962 से सबक लेते हुए पहले तो 1963 में सरायघाट रेल रोड ब्रिज बनाया फिर 1998 में कोलिया भोमोरा सेतु और नारानारायन सेतु बनाया गया. बह्मपुत्र पर ये तीन ब्रिज बनने के बावजूद असम के एक बड़े हिस्से में रेल और रोड सुविधा नहीं थी.

धेमाजी और लखीमपुर जिलों तक जाने के लिए डिब्रूगढ़ से किसी भी कारगो (सामान ढुलाई) को पूरा चक्कर लगाते हुए 600 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी. यहां आपको बताते चलें कि धेमाजी और लखीमपुर अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती जिले हैं, ऐसे में देश की सुरक्षा के लिहाज से ये दोनों ही जिले बेहद अहम हैं. अब देश का सबसे लंबा रेल-रोड ब्रिज बनकर तैयार हो गया है, जिसने धेमाजी को बह्मपुत्र के दक्षिण तट से जोड़ दिया है.

ब्रिज के बारे में ये भी जान लें

- यह डबल डेकर ब्रिज है, जिसमें नीचे दो रेल लाइनें हैं और ऊपर तीन लेन की सड़क है.

- 4.94 किलोमीटर लंबा ये ब्रिज देश का सबसे बड़ा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल रोड ब्रिज है.

- इस ब्रिज को बनाने में करीब 4857 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं.

- इसे यूरोपीय मानकों के आधार पर इसे बनाया गया है. इसमें इस्तेमाल सामग्री जंगरोधी है और ये ब्रिज कम से कम 120 सालों तक एकदम सुरक्षित रह सकता है.

- पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने 1997 में इस प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया था.

- 2002 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस ब्रिज पर काम शुरू किया गया था.

- 42 डबल डी वेल फाउंडेशन के खंभों की वजह से ब्रिज भयानक बाढ़ और बड़े भूकंप के झटकों को भी आसानी से सहन कर सकता है.

- इसकी वजह से पूर्वी असम से अरुणाचल प्रदेश के बीच सफर करने में लगने वाला वक्त घटकर सिर्फ 4 घंटे का रह जाएगा.

पिछले सालों में ये देखा गया है कि चीन की ओर से सीमावर्ती इलाकों में रेल और रोड लिंक तेजी से बनाए गए हैं, जबकि भारत की ओर से ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा था. भले ही अभी हम सीमावर्ती इलाकों में पर्याप्त रेल और रोड लिंक नहीं बना पाए हों, लेकिन चीन को किसी आपातकालीन स्थिति में मुंहतोड़ जवाब देने की स्थिति में तो आ ही चुके हैं. बोगीबील ब्रिज न सिर्फ सेना को ताकत देगा, बल्कि व्यापार के लिए आवाजाही भी आसान बनाएगा. इस तरह देश की सुरक्षा तो मजबूत हुई ही है, साथ ही इन इलाकों का विकास और लोगों की आर्थिक स्थिति भी इस ब्रिज की मदद से धीरे-धीरे मजबूत होगी.

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