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Updated: 29 अक्टूबर, 2019 06:10 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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कर्नाटक के सियासी नाटक के बाद महाराष्ट्र में सत्ता सुख भोगने के लिए ड्रामे की शुरुआत हो चुकी है. महाराष्ट्र में भाजपा शिव सेना के गठबंधन की गांठ सबसे मुश्किल दौर में आ गई है. ये दौर कितना मुश्किल और दोनों ही दलों में तल्खियां किस हद तक हैं इसे हम महाराष्ट्र में भाजपा सांसद संजय काकड़े के उस बयान से भी समझ सकते हैं जिसमें उन्होंने दावा किया है कि शिव सेना के 45 नवनिर्वाचित विधायक किसी भी क्षण भाजपा के पाले में आकर उसे सरकार बनाने में मदद कर सकते हैं. ध्यान रहे कि काकड़े का ये बयान उस वक़्त आया है जब महाराष्ट्र के अंतर्गत भाजपा और शिवसेना सरकार बनाने के लिए 50-50 के मकड़ जाल में उलझे हैं. एक टीवी चैनल से बात करते हुए जो दावे राज्य सभा सांसद काकड़े ने पेश किये हैं वो ये बताने के लिए काफी हैं कि जैसे-जैसे दिन बीतेंगे भाजपा और शिव सेना के बीच की कड़वाहट बढ़ेगी. ज्ञात हो कि हाल ही में संपन्न हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 105 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली भाजपा और 56 सीटों पर विजेता बनी शिव सेना में इस बात को लेकर संघर्ष हो रहा है कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा और सत्ता की मलाई किसकी कटोरी में आएगी.

शिवसेना-बीजेपी गठबंधन,शिवसेना, भाजपा, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव ने साफ़ कर दिया है कि महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा के बीच दरार पड़ चुकी है

बात अगर महाराष्ट्र की हो तो किसी और मुद्दे पर विस्तृत चर्चा करने से पहले हमारे लिए महाराष्ट्र की सियासत पर एक नजर डालना बहुत जरूरी हो जाता है. बात 1995 की है. महाराष्ट्र की राजनीति के अंतर्गत अगर हम इस समय पर गौर करें तो मिलता है कि बाल ठाकरे के जिंदा होने के कारण ये शिवसेना का स्वर्णिम काल था.  बाल ठाकरे के प्रभाव के कारण सरकार को लेकर जो पदों का बंटवारा हुआ उससे फायदा भाजपा को तो मिला ही. शिवसेना ने भी सत्ता की चाशनी में डूबी मलाई खाई. पदों के बंटवारे का लाभ शिवसेना को भी खूब मिला.

1995 तक महाराष्ट्र में शिवसेना की स्थिति अच्छी थी. लेकिन पार्टी के बुरे दिनों की शुरुआत हुई 2014 में. देश भर में मोदी लहर छाई थी और इसका सीधा असर हमें महाराष्ट्र में भी देखने को मिला. 2014 में महाराष्ट्र में भाजपा ने बाजी मारी और शिव सेना को कोसों दूर कर दिया. इसी तरह अगर हम 2019 के लोक सभा चुनाव पर नजर डालें तो मिलता है कि इस चुनाव के दौरान भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत ने एक बार फिर शिवसेना को सकते में डाल दिया.

भले ही इस विधान सभा चुनाव के बाद शिवसेना ये कह रही हो कि पहले 2.5 साल सत्ता सुख वो भोगेगी मगर पार्टी के लिए ये कहीं से भी आसान नहीं है. सवाल होगा क्यों? तो इसका जवाब है महाराष्ट्र में शिवसेना को मिला जनादेश साथ ही सीटों की वो संख्या जिसपर शिवसेना ने चुनाव लड़ा. महाराष्ट्र का सियासी घमासान देखकर हमारे लिए ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि सूबे में शिवसेना अपनी हैसियत से ज्यादा की मांग कर रही है. साथ ही जिस तरह की मांग शिवसेना भाजपा से कर रही है उन्हें देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि आज शिव सेना, भाजपा से जो भी मांगें मनवाने का प्रयास कर रही है वो पूर्णतः नाजायज हैं.

बहरहाल हमारा विषय महाराष्ट्र में भाजपा, शिव सेना के गठबंधन की गांठ का सबसे मुश्किल दौर से गुजरना है तो आइये उन तमाम कारणों पर नजर डालते हैं जो इस बात की पुष्टि कर दे रहे हैं कि अगर महाराष्ट्र में भाजपा डाल डाल है तो वहीं शिवसेना पात पात है.

दोनों ही दलों की नजर निर्दलियों पर

जैसा कि हम बता चुके हैं कि महाराष्ट्र में भाजपा के हिस्से में 105 सीटें आई हैं तो वहीं शिवसेना को 56 सीटों पर जीत मिली हैं. ऐसे में दोनों ही दलों ने निर्दलियों को रिझाने की शुरुआत कर दी है. भाजपा जानती है कि यदि वो निर्दलियों को मानाने में कामयाब हो जाती है तो संख्या बल के कारण वो शिवसेना को कहीं पीछे छोड़ देगी. उस स्थिति में शायद ही शिवसेना कोई बड़ी डिमांड रख पाए.

वहीं बात अगर शिवसेना की हो तो अगर ये निर्दलीय उसके पाले में आ जाते हैं तो इसका सीधा फायदा पार्टी को मिलेगा जिसके दमपर वो आने वाले वक़्त में भाजपा को बड़ी चुनौती दे सकती है. निर्दलियों को लेकर जो सबसे दिलचस्प बात सामने आ रही है वो ये कि 5 में से 3 निर्दलियों ने शिवसेना के मुकाबले भाजपा पर ऐतबार करना मुनासिब समझा है.

NCP की भी रहेगी एक बड़ी भूमिका

बात अगर 2014 के चुनावों की हो तो शिवसेना और भाजपा दोनों की राहों में रोड़ा डालने का काम एनसीपी ने किया था मगर बात जब 2019 के इस विधानसभा चुनावों की हो तो इस बार एनसीपी ने ये साफ़ कर दिया है कि वो न तो भाजपा के साथ है और न हो वो शिवसेना के पाले में जाएगी.

यानी जो रुख इस बार एनसीपी का महाराष्ट्र में है वो ये साफ़ बता रहा है कि यदि इस बार एनसीपी खेल बना नहीं रही है तो वो बिगाड़ेगी भी नहीं. महाराष्ट्र में जो सत्ता की कवायद चल रही है उसके बाद एक बड़ा सवाल ये भी बना हुआ है कि क्या शिवसेना के लिए संकट मोचक की भूमिका में आ सकती है एनसीपी ?

कहा जा रहा है कि फिलहाल महाराष्ट्र की सत्ता की चाबी एनसीपी के हाथों में है.अभी के जैसे हालत हैं शरद पवार बीजेपी या शिवसेना में जिसके साथ खड़े हो जाएं, सत्ता का सिंहासन उसका है. वहीं एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने यह कहकर शिवसेना के अरमानों पर पानी फेर दिया कि उनकी पार्टी के सामने महाराष्ट्र में सरकार गठन करने का विकल्प नहीं है, लिहाजा वे जनादेश के मुताबिक विपक्ष में बैठेंगे.

शिवसेना का समर्थन करने के सवाल पर पवार ने कहा, 'हमारे पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है. लोगों ने हमें विपक्ष में बैठने का आदेश दिया है. हम जनादेश को स्वीकार करते हैं.' शरद पवार के साथ-साथ एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने भी साफ किया कि वह शिवसेना के साथ जाने के बजाय विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे.'

देवेंद्र फडणवीस का दो टूक होकर कहना कि मुख्यमंत्री वही बनेंगे

चुनाव परिणाम आने के फ़ौरन बाद  देवेंद्र फडणवीस ने एक बड़ा बयान देकर पूरे मामले को और अधिक पेचीदा कर दिया है. फडणवीस ने कहा है कि भाजपा ने कभी भी शिवसेना से 50-50 का वादा नहीं किया था. इसके साथ ही उन्होंने बोला कि महाराष्ट्र में सरकार भाजपा के नेतृत्व में ही बनेगी और राज्य में पांच साल मुख्यमंत्री मैं ही रहूंगा, इसमें कोई भ्रम नहीं है. देवेंद्र फडणवीस की इन बातों से साफ़ हो गया है कि वो किसी भी तरह का कोई समझौता करने को तैयार नहीं हैं. उनका बयान ये बताने के लिए काफी है कि अब भाजपा और शिवसेना के गठबंधन में गांठ पड़ चुकी है.

सामना में दिखी शिव सेना की तल्खी

दोनों ही सहयोगी दलों के बीच कुर्सी ने किस हद तक दूरी बढ़ा दी है इसे हम उस संपादकीय से भी समझ सकते हैं जो बीते दिनों सामना और दोपहर का सामना में छपा है. शिवसेना ने लिखा है कि इतना सन्‍नाटा क्‍यूं है भाई... इस साल दिवाली पर पटाखों का धूम धड़ाका सुनाई नहीं दे रहा है. हर जगह 30 से 40 फीसद बिक्री डाउन है. देश की अर्थव्‍यवस्‍था संकट के दौर से गुजर रही है.

संपादकीय में शिवसेना ने लिखा है कि सरकार कहती है कि किसानों की आय दोगुनी करेंगे. बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लागत जितनी भी आमदनी नहीं हुई. किसानों की तैयार फसल खराब हो गई है जिससे उनकी माली हालत खराब है. लेकिन कोई भी किसानों की सुध नहीं ले रहा है. ध्यान रहे कि शिवसेना का यह बयान उस समय सामने आया है जब दोनों ही दल महाराष्‍ट्र में सरकार बनाने को लेकर जद्दोजहद कर रहे हैं.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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