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Updated: 19 जनवरी, 2021 07:49 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
  @masahid.abbas
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West Bengal Elections अब और रोचक होता जा रहा है. बंगाल के राजनीतिक दंगल में मुकाबला कांटे का होता दिखाई दे रहा है. कभी लेफ्ट और टीएमसी के बीच होने वाला ये सियासी युद्ध अब तब्दील हो गया है भाजपा और टीएमसी के बीच महायुद्ध में, कौन जीतेगा और कौन हारेगा इसका आकलन सियासी पंडित भी कर पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं. बंगाल की सियासत कभी यूं भी करवट ले बैठेगी इसका अंदाज़ा शायद ही किसी को न रहा हो. पश्चिम बंगाल की सियासी लड़ाई में टीएमसी, भाजपा, कांग्रेस और लेफ्ट की चर्चा होना स्वाभाविक है क्योंकि ये सारे राजनीतिक दल बंगाल की राजनीति में पहले से ही रहे हैं वह कमज़ोर रहे हों या फिर मज़बूत पर ये राजनीतिक दल बंगाल की राजनीति का हिस्सा रहे हैं. ये चुनाव महायुद्ध में इसलिए तब्दील हो गया क्योंकि इस चुनाव में अन्य राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों ने भी दस्तक दे डाली है. सबसे पहले इस चुनाव में उतरे हैं असदउद्दीन ओवैसी, उनकी पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने पश्चिम बंगाल की सियासी जंग में लड़ने का ऐलान पहले से ही कर रखा है और अब महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना ने भी इस चुनाव में कूदने का ऐलान कर दिया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता संजय राउत ने इसका ऐलान किया है और ऐलान करने के बाद आखिर में नारा लिखा है 'जय हिंद, जय बांग्ला.'

West Bengal, Mamata Banerjee, TMC, West Bengal Elections, Asaduddin Owaisi, AIMIM, Shivsenaओवैसी के बाद अब शिवसेना के बंगाल पहुंचने ने पूरे चुनाव को दिलचस्प बना दिया है

ये नारा ही अपने आप में एक बहुत बड़ा संकेत है कि शिवसेना अपनी पूरी ताकत के साथ इस. 'चुनाव में कूदने वाली है. पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में अब गिनती के दिन ही रह गए हैं, राज्य में अप्रैल-मई के महीने में चुनाव होना प्रस्तावित है. ऐसे में अन्य राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों के आऩे से कितना नफा नुकसान किसको होगा इसपर मंथन होने लगा है.शिवसेना ने पश्चिम बंगाल में साल 2016 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा था हालांकि उस चुनाव में शिवसेना ने 294 सीटों में से महज 18 सीट पर चुनाव लड़ा था लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई थी, इस बार शिवसेना 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है.

उधर ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी बंगाल में पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी में है. अब सवाल उठता है कि आखिर इन क्षेत्रीय पार्टी के चुनाव में आ जाने से किसे कितना फायदा और किसे कितना नुकसान हो रहा है.पश्चिम बंगाल का चुनाव इस बार भाजपा और टीएमसी के इर्दगिर्द ही घूमता दिखाई पड़ रहा है. पश्चिम बंगाल में विधानसभा की कुल 294 सीटें हैं, जिसमें साल 2016 के विधानसभा चुनाव में 211 सीटें टीएमसी के खाते में आयी थी, जबकि कांग्रेस के खाते में 44, लेफ्ट के खाते में 26 और भाजपा के खाते में महज 3 सीटें ही आ पाई थी.

वोट प्रतिशत की बात की जाए तो लगभग 46 प्रतिशत वोट टीएमसी ने हासिल किए थे, कांग्रेस ने 12 प्रतिशत, लेफ्ट ने 20 प्रतिशत और भाजपा ने 10.5 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. अब इस चुनाव में लेफ्ट और कांग्रेस की चर्चा तक नहीं हो रही है जबकि भाजपा और टीएमसी के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है. ऐसे में भाजपा राज्य में कितनी मज़बूत हुई है इस बात का अनुमान आसानी के साथ लगाया जा सकता है. पश्चिम बंगाल के चुनावी रण में ओवैसी के आ जाने से उनपर आरोप लग रहा है कि वह भाजपा की मदद करने को पहुंचे हैं.

खुद भाजपा के एक बड़े नेता साक्षी महाराज ने कहा है कि ओवैसी ने बिहार में भाजपा की मदद की थी अब वह उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में भी हमारी मदद करेंगें.जबकि ओवैसी इन आरोपों को सिरे से खारिज कर देते हैं और कहते हैं कि हमें कभी कांग्रेस की बी टीम कहा जाता है तो कभी भाजपा की बी टीम. हम किसी की टीम नहीं हैं हमें भी पूरे भारत में चुनाव लड़ने का हक है. ओवैसी की पार्टी पिछले कुछ सालों से देशभर में अपना विस्तार करते हुए दिखाई पड़ती है.

जबसे AIMIM की कमान असदउद्दीन ओवैसी के हाथों में आयी है तबसे ही वह हैदराबाद से निकलकर अन्य राज्यों में अपना पैर पसारना चाहते थे, उऩ्हें इसमें कामयाबी मिली और साल 2019 के महाराष्ट्र चुनाव में 2 सीट जीतकर अन्य राज्यों की विधानसभा में पार्टी ने अपना खाता खोला था, उसके बाद बिहार में भी पार्टी को कामयाबी मिली और पार्टी के 5 नेता विधायक चुन लिए गए.

अब ओवैसी की नज़र पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में है. उत्तर प्रदेश में वह पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन एक भी सीट पर जीत नहीं मिल पाई है इसबार के चुनाव में वह उत्तर प्रदेश औऱ पश्चिम बंगाल की विधानसभा में भी अपना खाता खोलने की जुगत मे हैं. AIMIM और शिवसेना दोनों ही पार्टियां पश्चिम बंगाल में शून्य है, लेकिन दोनों की बढ़ती लोकप्रियता वहां के चुनाव में वोटों का बिखराव तो करेंगी ही इतना तय है.

चुनाव में ओवैसी गैरभाजपाई वोटों पर निशाना साधेंगें तो शिवसेना कट्टर हिंदुत्व का चेहरा लेकर चुनावी मैदान में कूदेगी जिससे भाजपा को नुकसान हो सकता है. हालांकि शिवसेना के साथ समस्या ये भी है कि वह कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाराष्ट्र में सरकार में हैं, कांग्रेस पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी ये भी लगभग तय माना जा रहा है, ऐसे में कांग्रेस क्या शिवसेना को गठबंधन में शामिल करेगी ये एक बड़ा सवाल है.

हालांकि इसकी उम्मीद कम ही दिखाई पड़ती है क्योंकि शिवसेना बंगाल की 100 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है और कांग्रेस गठबंधन इतनी अधिक सीट शिवसेना को देने से रहे. बंगाल के चुनाव में ओवैसी और शिवसेना के कूदने से फर्क तो पड़ेगा लेकिन कितना ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा फिलहाल एक बात तय है चुनाव में रोमांच भरपूर होगा. अब देखना ये भी है कि ओवैसी की पार्टी भाजपा का कितना नफा कराती है और शिवसेना भाजपा का कितना नुकसान.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास @masahid.abbas

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं

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