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Updated: 12 जुलाई, 2018 07:08 PM
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संपर्क फॉर समर्थन अभियान पर निकले अमित शाह यूपी के बाद झारखंड होते हुए बिहार पहुंचने वाले हैं. मुंबई में मातोश्री से पंजाब और पश्चिम बंगाल के खट्टे मीठे अनुभवों से गुजरते हुए ये अभियान अब बिहार की ओर बढ़ रहा है जहां बीजेपी को तीन साल में सबसे ज्यादा उतार चढ़ाव देखने को मिले हैं. खासकर ऐसे हालात में जब एनडीए में लौटने के बाद नीतीश कुमार दोबारा अलविदा कहने को आतुर दिख रहे हैं.

अमित शाह के झारखंड पहुंचने से पहले बाबूलाल मरांडी चार साल पहले बीजेपी द्वारा खरीदे गये अपने विधायकों को दिये गये पेमेंट की रसीद बांट रहे हैं - और अब अमित शाह के सामने रघुवरदास की गृहस्थी संवारने ही नहीं बचाने की भी चुनौती है. मरांडी का आरोप है कि उनकी पार्टी के विधायकों को बीजेपी ज्वाइन करने के लिए रिश्वत दी गयी.

अपने यूपी दौरे में अमित शाह ने केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के अपना दल के साथ जो अपनत्व दिखाया है - और अगली बार उन पर बीजेपी कुछ ज्यादा ही कृपा बरसाती हुई लग रही है, उससे एनडीए के बाकी साथियों को बहुत कुछ समझने की जरूरत है.

अनुप्रिया के प्रति असीम अनुकम्पा

अपना दल के ही एक विधायक का इल्जाम है कि अनुप्रिया जब अपनी मां की नहीं हुईं तो बीजेपी की क्या होंगी? सिर्फ बीजेपी ही नहीं वो कुर्मी समाज की भी नहीं हो सकती हैं. विश्वनाथगंज से अपना दल विधायक आरके वर्मा का आरोप है कि मंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद अनुप्रिया सिर्फ सौदेबाजी करती हैं और उसके सिवा कुछ नहीं करतीं.

modi, anupriya patelअनुप्रिया पर मेहबार बीजेपी...

विधायक आरके वर्मा के आरोप अपनी जगह हैं, अनुप्रिया के प्रति हाल फिलहाल बीजेपी की ओर से अनुकंपा बरसायी जा रही है, उससे साफ है कि अमित शाह को भी इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. बीजेपी और अपना दल का रिश्ता सहयोगी और साथी दल से हट कर सौदेबाजी मोड में भले ही पहुंच गया हो. लगता तो ऐसा है कि खुद की अहमियत साबित कर अनुप्रिया ने बीजेपी को हैपी-डील के लिए मजबूर कर दिया है.

करीब आधे घंटे की मुलाकात के बाद अमित शाह जब अनुप्रिया पटेल के घर से बाहर निकले, तो उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा 'यहां चाय पी है, जो काफी अच्छी लगी - और जहां तक राजनीति चर्चा का विषय है, तो ये बातें होती ही रहती हैं.'

मीडिया रिपोर्ट बता रही हैं कि आने वाले दिनों में अनुप्रिया पटेल पर बीजेपी की कृपा ज्यादा ही बरसने वाली है. मगर, ऐसा क्यों है?

यूपी के ओबीसी वोट पर बीजेपी की नजर

अव्वल वजह तो ये है कि बीजेपी समाजवादी पार्टी और बीएसपी के फ्यूचर गठबंधन से हद से ज्यादा परेशान है. गोरखपुर से लेकर कैराना तक उपचुनावों में मायावती और अखिलेश यादव की एकजुटता ने बीजेपी को काउंटर मेकैनिज्म खोजने के लिए मजबूर कर दिया है.

बीजेपी ने ओबीसी वोटों के लिए 2017 में केशव मौर्या को यूपी की कमान सौंपी थी. मौर्या की वजह से कोई फायदा हुआ या नहीं, लेकिन चुनाव में भारी जीत के चलते कहीं कोई सवाल नहीं उठा. मगर, मौर्या बीजेपी को अपनी ही सीट नहीं दिला पाये जो पहली बार उसके हाथ लगी थी.

ओबीसी वोटों खातिर ही, बीजेपी ने अनुप्रिया पटेल के अलावा ओम प्रकाश राजभर की पार्टी से गठबंधन किया. यूपी 40 फीसदी ओबीसी आबादी में 3.5 फीसदी कुर्मी वोट है. अनुप्रिया और राजभर की राजनीति इन्हीं के भरोसे चलती है. अगर यादव वोट से तुलना की जाये तो ये उसका आधा है.

om prakash rajbharओम प्रकाश राजभर को फटकने तक नहीं दे रहे अमित शाह

अपना दल का सबसे ज्यादा प्रभाव मिर्जापुर और वाराणसी के कई इलाकों में है. 2014 में बीजेपी ने अनुप्रिया पटेल की पार्टी को मिर्जापुर और प्रतापगढ़ की सीटें दी थी - और अपना दल ने दोनों सीटों पर जीत दर्ज की. मिर्जापुर से खुद अनुप्रिया सांसद हैं तो प्रतापगढ़ से हरिवंश सिंह.

विधानसभा में भी अपना दल के 9 विधायक हैं जबकि ओम प्रकाश राजभर के सिर्फ चार हैं. सुनने को मिल रहा है कि राजभर यूपी में अपने लिए लोक सभा 6 सीटें मांग रहे हैं. नहीं मिलने पर सभी सीटों पर अपने अलग उम्मीदवार उतारने के साथ ही बीजेपी को उन्हें एनडीए से अलग करने की भी चुनौती दे रहे हैं.

बड़ी मुश्किल ये है कि ओम प्रकाश राजभर चंदौली से भी अपना उम्मीदवार उतारना चाहते हैं जो मौजूदा यूपी बीजेपी अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडेय की है. समझने के लिए इतना भी काफी होगा कि एक तरफ अनुप्रिया पटेल से मिलने अमित शाह उनके घर तक गये, दूसरी तरफ ओमप्रकाश राजभर को पास तक फटकने नहीं दिया.

अब बीजेपी अनुप्रिया पटेल को दो से ज्यादा सीटें देने पर भी विचार कर रही है, ऐसा कुछ मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है.

NDA सहयोगियों के लिए बीजेपी का संदेश

2014 में भी बीजेपी ने अपना दल को जो कुछ दिया वो कई नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी की बावजूद दिया. मिर्जापुर ओमप्रकाश सिंह का गढ़ माना जाता रहा है. वही ओम प्रकाश सिंह जो बीजेपी अध्यक्ष भी रह चुके हैं और उनकी राजनीति के शीर्ष पर होने के दिनों में उनकी पत्नी सरोज सिंह वाराणसी की मेयर रह चुकी हैं. 2014 में चर्चा रही कि ओमप्रकाश सिंह अपने बेटे के लिए मिर्जापुर से टिकट चाहते थे, लेकिन उन्हें वैसे ही समझा दिया गया जैसे दिल्ली में डॉ. हर्षवर्धन को, किरण बेदी के लिए. अनुप्रिया के पति आशीष पटेल को बीजेपी ने एमएलसी भी बना ही दिया है - और फिलहाल वही अपना दल (एस) के अध्यक्ष भी हैं.

अमित शाह के बिहार दौरे से पहले नीतीश की पार्टी जेडीयू ने 2019 को लेकर बड़ा भाई और छोटा भाई की बहस चला रखी है. हालांकि, अब बीजेपी और जेडीयू के नेताओं और प्रवक्ताओं पर लोकसभा चुनाव में सीटों के बटवारे से जुड़ा बयान न देने को कहा गया है. बयानबाजी के क्रम में ही जेडीयू नेताओं ने तो बिहार की 40 में से 25 सीटें तक मांग रखी हैं, चेतावनी ये कि अगर बीजेपी नहीं मानती, तो जेडीयू सभी 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है.

लगता है अनुप्रिया और ओम प्रकाश राजभर के जरिये बीजेपी एनडीए के सारे सहयोगियों को खास संदेश देना चाहती है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का संदेश भी साफ लगता है - जिसका जातीय जनाधार होगा और जो संयमित होते हुए संजीदगी का परिचय देगा ऐसे सहयोगियों का पूरा ख्याल रखा जाएगा.

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