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Updated: 13 जून, 2019 06:33 PM
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भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अब देश के गृहमंत्री हैं, लेकिन अभी तक ये तय नहीं हो सका है कि भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी अब कौन संभालेगा. इसे ही लेकर गुरुवार को नई दिल्ली स्थित मुख्यालय में एक बैठक बुलाई गई थी, जिसमें इसे लेकर भी बात हुई कि अमित शाह की जगह अब कौन लेगा. खैर, अभी तक तो भाजपा ने इस राज से पर्दा नहीं उठाया है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही पार्टी अध्यक्ष के नाम पर भी फैसला हो जाएगा. जो भी अमित शाह की जगह लेगा, उसके कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ भी बहुत अधिक होगा, जिसे निभाने की काबीलियत भी जरूरी है. भाजपा लगातार वो काबिल कंधा ढूंढ रही है और मिलते ही उसके बारे में सबको बता भी देगी. वैसे सूत्रों की मानें तो इस साल के अंत तक अमित शाह ही अध्यक्ष बने रहेंगे, लेकिन नए अध्यक्ष की तलाश जारी रहेगी.

फिलहाल अमित शाह के बाद जेपी नड्डा के भाजपा अध्यक्ष बनने की अटकलें तेज हैं. वहीं भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव और ओपी माथुर भी अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार हैं. अमित शाह ने भाजपा अध्यक्ष के तौर पर पार्टी को खूब बढ़ाया. देश के अधिकतर हिस्सों को भगवा रंग में रंगने में अमित शाह की बड़ी भूमिका है. पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में शाह ने भाजपा की जमीन तैयार करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी. ऐसे में अब जो भी अमित शाह की कुर्सी पर बैठेगा, उसके कंधों पर बहुत सारी जिम्मेदारियों का बोझ होगा. नए अध्यक्ष को पार्टी को एक नए मुकाम पर पहुंचाने के लिए इन 5 चुनौतियों का सामना करना होगा.

अमित शाह, भाजपा, नरेंद्र मोदी, मोदी सरकारजो भी अमित शाह की जगह लेगा, उसके कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ भी बहुत अधिक होगा.

1- विधानसभा चुनाव

पश्चिम बंगाल

2016 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की थी. जहां एक ओर टीएमसी ने 211 सीटें जीतीं, वहीं दूसरी ओर भाजपा के हिस्से में सिर्फ 3 सीटें आई थीं. लेकिन अब सब कुछ बदल गया है. पिछले 3 सालों में भाजपा ने पश्चिम बंगाल में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए काफी काम किया है. ये अमित शाह और भाजपा की मेहनत का ही नतीजा है कि लोकसभा चुनावों में भाजपा ने कुल 42 सीटों में से 18 सीटें जीत ली हैं, जबकि 2014 में भाजपा को सिर्फ 2 सीटों पर संतोष करना पड़ा था. अब 2021 में पश्चिम बंगाल में फिर से विधानसभा चुनाव होंगे. नए अध्यक्ष के सामने ये चुनौती होगी कि जैसे अमित शाह ने पिछले 3 सालों में बंगाल के अंदर भाजपा की जमीन तैयार की, उसे वह और मजबूत करें और 2021 के विधानसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित करें.

जम्मू और कश्मीर

पिछले साल जून में जम्मू-कश्मीर की सरकार गिर गई थी, जब भाजपा ने पीडीपी से अपना समर्थन वापस ले लिया था. तब से लेकर अब तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है. क्षेत्रीय पार्टियां लगातार मांग कर रही हैं कि दोबारा चुनाव कराया जाए. अगर जम्मू-कश्मीर में भाजपा की मौजूदा स्थिति की बात करें तो जम्मू में तो भाजपा का दबदबा हो गया है, लेकिन कश्मीर में अभी भी भाजपा को जनता का साथ नहीं मिलता है. यहां तक कि पीडीपी ने भाजपा के साथ हाथ मिलाया था, इसलिए इस लोकसभा चुनाव में जनता ने पीडीपी को भी वोट नहीं दिया.

बिहार

मौजूदा समय में बिहार में जेडीयू और भाजपा के गठबंधन की सरकार है. 2015 के चुनाव में जेडीयू के नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और महागठबंधन के तहत जीत हासिल की थी. लेकिन बाद में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के नाता तोड़ लिया और भाजपा के साथ जुड़ गए. यहां ये जानना दिलचस्प है कि जेडीयू पहले भी एनडीए का ही हिस्सा थी, लेकिन बाद में अलग होकर लालू से मिल गई थी. अब 2020 में फिर से विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव में भी जेडीयू और भाजपा साथ ही मिलकर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन सवाल ये होगा कि बड़ा भाई कौन होगा. जेडीयू के कोशिश होगी कि वो बड़े भाई की भूमिका में रहे, जबकि नए भाजपा अध्यक्ष के कंधों पर जिम्मेदारी होगी कि बिहार में भाजपा का दबदबा जेडीयू से अधिक हो.

दिल्ली

2020 में दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव होंगे. यूं तो माना जा रहा है कि अमित शाह दिल्ली विधानसभा चुनाव तक अध्यक्ष पद पर रह सकते हैं, लेकिन अगर उन्हें पहले ही कोई मजबूत कंधा मिल गया तो दिल्ली की जिम्मेदारी भी नए अध्यक्ष को दी जा सकती है. लोकसभा चुनाव में तो भाजपा ने सफलतापूर्व राज्य की सातों सीटों पर जीत हासिल कर ली थी. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली. वैसे 2014 के लोकसभा चुनाव में भी ऐसा ही हुआ था, लेकिन जब विधानसभा चुनाव की बारी आई तो भाजपा को 70 में से सिर्फ 3 सीटें मिलीं. बाकी की 67 सीटों पर आम आदमी पार्टी जीती थी. इस बार भी सातों सीटें जीतकर भाजपा का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर है, लेकिन नए भाजपा अध्यक्ष को ये सुनिश्चित करना होगा कि 2015 के विधानसभा चुनाव जैसे हालात 2020 में ना बनें. बल्कि उन्हें कोशिश ये करनी होगी कि इस बार दिल्ली में भी भाजपा की सरकार बने.

2- सहयोगी पार्टियों को खुश रखना

अमित शाह की खास बात ये है कि वह एनडीए की सहयोगी पार्टियों को खुश रखते थे. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से अब तक उन्होंने ये भूमिका अच्छे से निभाई. हां, आंध्र प्रदेश में टीडीपी और जम्मू-कश्मीर में पीडीपी को खुश रखने में वह भी नाकामयाब साबित हुए. नीतीश कुमार और शिवसेना के साथ तो भाजपा का रिश्ता चला ही आ रहा है. आंध्र प्रदेश, बिहार, जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में नए भाजपा अध्यक्ष को अपनी सहयोगी पार्टियों को खुश रखते हुए भाजपा का दबदबा कायम रखने की दिशा में काम करना होगा. बिहार में नीतीश कुमार भाजपा पर दबाव डालेंगे, जबकि महाराष्ट्र में हमेशा की तरह शिवसेना अपना दबदबा कायम रखना चाहेगी. आने वाले चुनावों में नए भाजपा अध्यक्ष को शिवसेना और राम मंदिर के मुद्दे से होशियारी से निपटना होगा.

3- भाजपा का नया अमित शाह बनना

भाजपा के नए अध्यक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो ये होगी कि वह भाजपा का नया अमित शाह कैसे बने. अमित शाह ने पिछले 5 सालों में पार्टी को मजबूती देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसी का नतीजा है कि अब लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 543 सीटों में से 303 सीटें अकेले ही जीत ली हैं, जबकि एनडीए के हिस्से में कुल 352 सीटें आई हैं. नए भाजपा अध्यक्ष को पार्टी की इस मजबूती को बनाए रखना होगा और जिन क्षेत्रों में पार्टी कमजोर है, वहां भी इसे मजबूती प्रदान करने की दिशा में काम करना होगा.

4- दक्षिण भारत में भाजपा की पकड़ बनाना

इस लोकसभा चुनाव में जहां एक ओर पूरे देश में मोदी की सूनामी आई हुई थी, वहीं दक्षिण भारत के आध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और केरल में भाजपा की स्थिति काफी खराब रही. आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली. भाजपा ने जबरदस्त चुनाव प्रचार किया था और सबरीमाला मुद्दे पर भी अपनी आवाज जनता के हक में उठाई थी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. तेलंगाना में मुश्किल से भाजपा को 4 सीटें मिलीं. नए भाजपा अध्यक्ष में दक्षिण भारत पर फोकस बढ़ाना होगा, जो भाजपा के हाथ नहीं आ रहा है.

5- पार्टी के विवादित नेताओं पर नियंत्रण

भाजपा में ऐसे कई नेता हैं, जो आए दिन विवादित बयान देते रहते हैं. मेनका गांधी और अनंत कुमार हेगड़े जैसे नेताओं से तो भाजपा ने निपटने के लिए भारी भरकम जीत के बावजूद उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दी है. वहीं दूसरी ओर, पार्टी में गिरिराज सिंह, साध्वी प्रज्ञा और साक्षी महाराज जैसे नेता अभी भी नाक में दम करने का काम करेंगे. नए भाजपा के अध्यक्ष के सामने इन सब से निपटना भी एक चुनौती होगी.

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