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Updated: 11 फरवरी, 2019 06:54 PM
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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा अभी बीजेपी ने नहीं छोड़ा है. हो सकता है बीजेपी को लग रहा हो कि विश्व हिंदू परिषद का मंदिर अभियान स्थगित करना नुकसानदेह लगने लगा हो. ऊपर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी कह दिया है कि मंदिर चुनाव बाद ही बनाएंगे, सत्ता की राजनीतिक कमान चाहे जिस किसी के हाथ में हो - फर्क नहीं पड़ता.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह बार बार सभी राजनीतिक दलों से अपना स्टैंट साफ करने की चुनौती दे रहे हैं - लेकिन उनसे भी बड़ी शिव सेना ने दे डाली है जिसके दायरे में मोदी सरकार के साथ साथ तमाम हिंदू संगठन भी आ रहे हैं. वैसे अमित शाह सिर्फ चार दलों से ही सफाई क्यों मांग रहे हैं? माजरा क्या है?

कौन कहता है कि मंदिर निर्माण पर बात चुनाव बाद होगी?

अगर कोई ये समझ रहा है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण मुद्दा थम गया है तो ये उसकी भूल होगी. जिस किसी भी दल की राजनीति हिंदुत्व की दुकान से ही चलती हो, वो ऐसा हरगिज नहीं करेगा - और ना ही किसी सूरत में ऐसा होने देगा.

अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा न तो बीजेपी ने छोड़ा है और न ही शिवसेना ने. दोनों के स्टैंड में फर्क सिर्फ ये है कि बीजेपी विपक्षी एकजुटता में जुटी पार्टियों को ललकार रही है - और शिवसेना बीजेपी सरकार को चैलेंज कर रही है.

और वैसे भी परम धर्म संसद वाले स्वामी स्वरूपानंद की तारीख में तो अभी काफी वक्त है. 21 फरवरी से स्वामी स्वरूपानंद के लोग कारसेवा शुरू करेंगे - अभी तक तो उनकी ओर से मंदिर निर्माण पर यथास्थिति यही है.

ram templ supporterमंदिर निर्माण सभी दलों का स्टैंड जानने में बीजेपी की दिलचस्पी क्यों नहीं?

शिवसेना का तो कहना है कि अयोध्या में राम मंदिर 2019 के चुनाव से पहले ही बन जाना चाहिये. उद्धव ठाकरे ने 'सामना' में लिखा है, 'अयोध्या के राम मंदिर के बारे में मोदी सरकार टालमटोल कर रही है. ऐसा लग रहा है कि राम मंदिर के मामले को हिंदुत्ववादी संगठनों ने ही लटका कर रखा हुआ है.' वैसे शिवसेना की ये लाइन बीजेपी के साथ सीटों के बंटवारे तक ही कायम रहेगी या आगे भी बने रहने की कोई संभावना है?

मंदिर निर्माण पर बीजेपी सबका स्टैंड क्यों जानना चाहती?

30 साल पहले बीजेपी ने जून 1989 में पालमपुर प्रस्ताव पास किया था. इसी प्रस्ताव में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को शामिल किया गया था. बाद में जब एनडीए की सरकार बनने का मौका आया तो सहयोगी दलों के ऐतराज से बचने के लिए बीजेपी ने राम मंदिर के मुद्दे पर जोर कम कर लिया. हाल फिलहाल भी मंदिर मुद्दे पर बीजेपी नेताओं ने खूब शोर मचाया, खास कर संघ प्रमुख मोहन भागवत के कानून बनाने की मांग के बाद. अब जबकि वीएचपी और संघ ने ही हाथ पीछे खींच लिए हैं, बीजेपी अकेले दम पर मुद्दे को मार्केट में बनाये हुए है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जगह जगह कहते फिर रहे हैं कि रामजन्म भूमि पर जल्द से जल्द श्रीराम मंदिर बनाने के लिए बीजेपी कटिबद्ध है. अमित शाह न तो सुप्रीम कोर्ट का जिक्र करते हैं और न ही किसी और सरकार उपाय का जिससे मंदिर निर्माण सुनिश्चित हो.

अमित शाह विरोधी दलों को चैलेंज जरूर कर रहे हैं कि वो बतायें कि चाहते क्या हैं? वे अयोध्या में राम मंदिर चाहते हैं या नहीं?

दिलचस्प बात ये है कि अमित शाह जिन दलों का नाम लेकर चैलेंज कर रहे हैं उनमें सारे नहीं हैं. अमित शाह कांग्रेस से मंदिर निर्माण पर उसका स्टैंड सुनना चाहते हैं. अमित शाह तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी से भी उनके मन की बात जानना चाहते हैं. यहां तक कि समाजवादी पार्टी और बीएसपी के स्टैंड में भी अमित शाह की खास दिलचस्पी है.

आखिर अमित शाह चारों दलों के अलावा किसी से ये सवाल क्यों नहीं पूछते? क्या ये सवाल उन्हें बीजेडी नेता नवीन पटनायक से नहीं पूछना चाहिये? ओडिशा पर तो वैसे भी बीजेपी का प्यार इधर बीच कुछ ज्यादा ही उमड़ा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार ओडिशा का दौरा कर आये हैं.

अमित शाह टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव से ये सवाल क्यों नहीं पूछते? क्या बीजेपी अध्यक्ष का ये सवाल भी किसी खास रणनीति के तहत पूछा जा रहा है. गौर करने वाली बात ये है कि अभी तक बीजेपी और टीआरएस किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं. दोनों ही पार्टियों ने यूपीए और एनडीए दोनों से ही दूरी बनायी हुई है. इसी तरह वाईएसआर कांग्रेस नेता जगनमोहन रेड्डी भी तो हैं.

क्या बीजेपी को ऐसी कोई उम्मीद है कि ये सारे नेता कभी न कभी एनडीए का हिस्सा बनाये जा सकते हैं? या ऐसा कोई प्लान है कि चुनाव में सीटें कम आने की सूरत में ये सरकार बनाने में सहयोग कर सकते हैं?

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