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Updated: 19 जनवरी, 2022 10:49 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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योगी आदित्यनाथ को भी विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) लड़ाने के पीछे बीजेपी की अपनी रणनीति है. साइड इफेक्ट ये हो रहा है कि बीजेपी के राजनीतिक विरोधी भी चुनाव लड़ने को लेकर दबाव में आ गये हैं.

विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर दबावमुक्त अभी तक सिर्फ मायावती ही नजर आयी हैं. बीएसपी नेता मायावती ने संविधान का हवाला देकर पूछा है कि ऐसी जरूरत ही क्या है? बात भी सही है.

अब तो अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के भी विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना जतायी जाने लगी है. निश्चित तौर पर ऐसा ही दबाव प्रियंका गांधी वाड्रा भी महसूस कर रही होंगी. हालांकि, अभी तक प्रियंका गांधी की तरफ से कोई रिएक्शन या किसी कांग्रेस नेता का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.

अखिलेश यादव ने अपने विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कंफर्म तो नहीं की है, लेकिन इनकार भी नहीं किया है. जाहिर है, ऐसे में ये कयास लगाये जाने शुरू तो हो ही जाएंगे कि वो किस सीट से चुनाव लड़ेंगे - अगर अखिलेश यादव भी विधानसभा चुनाव लड़ते हैं तो ऐसा पहली बार होगा.

योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की ही तरह अखिलेश यादव भी अभी तक सिर्फ लोक सभा का चुनाव लड़ते रहे हैं - और मुख्यमंत्री बने रहने के लिए दोनों ने ही विधान परिषद का विकल्प चुन लिया था.

एक बात तो साफ है, हर राजनीतिक दल अभी से भीतर ही भीतर अगले आम चुनाव की तैयारी भी करने लगा है. कांग्रेस पर तो ये बात सबसे ज्यादा लागू होती है - और जिस तरह से कांग्रेस के उम्मीदवारों की पहली सूची आयी है, ये बात पक्के तौर पर समझी जा सकती है.

देखा जाये तो अमेठी और रायबरेली को लेकर जो डर प्रियंका गांधी वाड्रा को है, बीजेपी के खतरनाक इरादे को देखते हुए अखिलेश यादव को भी आजमगढ़ से लेकर मैनपुरी तक की फिक्र तो सता रही होगी.

अब अगर 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर अखिलेश यादव भी योगी आदित्यनाथ की राह पकड़ने का फैसला करते हैं तो चलेगा - वरना, अभी तो यूपी चुनाव के लिए ऐसी कोई खास जरूरत नहीं लगती.

अखिलेश यादव का इशारा क्या है?

अखिलेश यादव को एक ही दिन कई सवालों के जवाब देने पड़ रहे थे. बड़ा सवाल तो मुलायम सिंह की छोटी बहू अपर्णा यादव के बीजेपी ज्वाइन करने को लेकर रहा, लेकिन एक महत्वपूर्ण सवाल उनके विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर भी पूछा गया - लेकिन समाजवादी पार्टी नेता ने साफ साफ कुछ नहीं बताया. बल्कि, लोगों को अपने अपने तरीके से समझने और कयास लगाने के लिए छोड़ दिया.

आजमगढ़ के लोगों से पूछेंगे: अखिलेश यादव का कहना है कि अपने विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर वो कोई भी फैसला लेने से पहले आजमगढ़ की जनता से अनुमति लेना चाहेंगे, लेकिन ऐसा क्यों - पत्रकारों का सवाल था कि चुनाव लड़ने के लिए जनता की अनुमति की जरूरत क्यों है?

अखिलेश यादव कहते हैं, 'क्योंकि वहां के लोगों ने मुझे जिताया था.'

हालांकि, वो ये साफ नहीं कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव लड़ेंगे ही क्योंकि शर्त भी लागू है, 'मैं आजमगढ़ की जनता की अनुमति लेकर ही चुनाव लड़ूंगा, साथ में ये कंडीशन भी - अगर चुनाव लड़ा तो.'

akhilesh yadav, mulayam singhअखिलेश यादव का विधानसभा चुनाव लड़ना अभी से ज्यादा आगे फायदेमंद हो सकता है.

बात भी सही है. आजमगढ़ को लेकर समाजवादी पार्टी एक्सपेरिमेंट भी करती रही है. ज्यादा हुआ तो जोखिम भी उठाना पड़ सकता है, वैसे भी बीजेपी नेता अमित शाह एक बार तो आजमगढ़ में भी रैली कर रही आये हैं - और ये भी बता आये कि वहां जो कुछ हुआ योगी आदित्यनाथ सरकार में ही हुआ. पहले तो कुछ भी नहीं हुआ.

2014 के आम चुनाव में मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ के साथ साथ मैनपुरी से भी मैदान में उतरे थे. दोनों जगह से जीते, लेकिन आजमगढ़ से ही लोक सभा में प्रतिनिधित्व करने का फैसला किया. मैनपुरी से उपचुनाव में मुलायम परिवार के ही तेज प्रताप यादव चुनाव लड़े और जीते भी - और तब से लेकर 2017 तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार रही और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री रहे.

लेकिन फिर 2019 में मुलायम सिंह यादव ने आजमगढ़ की जगह मैनपुरी को अपना चुनाव क्षेत्र चुन लिया, फिर अखिलेश यादव ने उनकी सीट से संसद पहुंचने का फैसला किया - और अभी वही लोक सभा में आजमगढ़ का प्रतिनिधित्व करते हैं.

हो सकता है, अमित शाह के दौरे के बाद कोई दहशत भी हो - अगर अखिलेश यादव कोई भी फैसला करने से पहले इलाके के लोगों की राय लेना चाहते हैं तो ठीक ही है.

कौन सी विधानसभा सीट होगी: आजमगढ़ के लोगों से पूछ कर चुनाव लड़ने की अखिलेश यादव के बयान के बाद इलाके मे चर्चा भी शुरू हो गयी है - और खबर आ रही है कि लोगों में खुशी की लहर भी है. असल में आजमगढ़ के लोग ये मान कर चल रहे हैं कि पूछेंगे तो आजमगढ़ से चुनाव लड़ने को कहा जाएगा. कोई एक सीट भी बता दी जाएगी.

ऐसे में आजमगढ़ की गोपालपुर विधानसभा सीट को लेकर चर्चा शुरू हो गयी है. लोगों के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि वे कह रहे हैं कि अगर अखिलेश यादव आजमगढ़ से चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं तो वहां के साथ साथ पूर्वांचल का भी विकास होगा.

समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच भी गोपालपुर सीट को लेकर चर्चा होने लगी है. 1996 से अभी तक सिर्फ एक बार बीएसपी को छोड़ कर गोपालपुर सीट समाजवादी पार्टी के कब्जे में ही रही है. 2007 में जब मायावती ने सरकार बनायी थी, तब बीएसपी के हिस्से में गोपालपुर सीट भी चली गयी थी.

दो सीटों से चुनाव लड़ने की भी चर्चा: इस बीच ऐसी भी खबर आ रही है कि अखिलेश यादव दो सीटों से भी चुनाव में उतर सकते हैं - और इस चर्चा में आजमगढ़ के साथ साथ मैनपुरी का नाम लिया जा रहा है.

सूत्रों के हवाले से आयी इस खबर के पीछे दलील भी ठीक लग रही है. कहा जा रहा है कि आजमगढ़ से चुनाव लड़कर जहां अखिलेश यादव पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करेंगे, मैनपुरी से लड़ते हैं तो पार्टी के पारंपरिक गढ़ को भी मजबूत बनाया जा सकता है. ये वही थ्योरी है जो योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर से चुनाव लड़ने में लागू होती है.

आजमगढ़ और मैनपुरी के अलावा अखिलेश यादव के इटावा या कन्नौज से भी चुनाव लड़ने की संभावना जतायी जा रही है - और सैफई से भी. सैफई तो समाजवादी पार्टी का किला ही समझा जाता है.

लेकिन इसी दौरान अखिलेश यादव की एक बात अलग इशारे करती है - अखिलेश यादव की तरफ से ये भी बताया गया है कि वो जहां से भी चुनाव लड़ेंगे वहां मुख्यमंत्री योगी से पहले चुनाव होगा.

गोरखपुर में वोटिंग के आखिरी चरण से ठीक पहले 3 मार्च को मतदान होना है, जबकि आजमगढ़ में 7 मार्च को. अगर अखिलेश यादव की तरफ से कोई खास इशारा है तो, ऐसा लगता है जैसे वो आजमगढ़ के लोगों से किसी और जगह के लिए अनुमति लेना चाहते हैं!

2024 की फिक्र अभी से क्यों?

नवंबर, 2021 में जब अमित शाह आजमगढ़ पहुंचे थे तो निशाने पर पूरी तरह अखिलेश यादव ही थे. शाह समझा रहे थे कि कैसे समाजवादी पार्टी के शासन में आजमगढ़ को दुनिया भर में कट्टरवादी सोच और आतंकवाद का अड्डा समझा जा रहा था - लेकिन योगी शासन में ये सरस्वती का धाम बनने जा रहा है. असल में, अमित शाह ने तभी आजमगढ़ में स्टेट यूनिवर्सिटी की आधारशिला रखी थी.

अमित शाह के आजमगढ़ दौरे के कुछ दिन बाद ही रायबरेली से कांग्रेस विधायक अदिति सिंह और आजमगढ़ की विधायक वंदना सिंह ने बीजेपी ज्वाइन किया था - वैसे तो वंदना सिंह बीएसपी से बीजेपी में आयी हैं, लेकिन ऐसा करके बीजेपी ने आजमगढ़ की दो विधानसभाओं में अपनी पैठ तो बना ही ली है.

वंदना सिंह के जरिये बीजेपी ने दो विधानसभा क्षेत्रों में तो अपना सिक्का तो जमा ही लिया. 2017 में आजमगढ़ जिले की जिस एक सीट पर बीजेपी को कामयाबी मिली थी वो थी - फूलपुर पवई. बाकी बची नौ सीटों में से पांच समाजवादी पार्टी और 4 बीएसपी के हिस्से में रहीं. सगड़ी से विधायक वंदना सिंह के बीजेपी ज्वाइन कर लेने के बाद बीएसपी के पास तीन ही सीटें बची हैं. हालांकि, आजमगढ़ संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटों में से अभी तीन समाजवादी पार्टी के पास ही है.

आजमगढ़ पर बीजेपी की निगाह 2019 में भी लगी थी. आम चुनाव में बीजेपी ने अखिलेश यादव के मुकाबले में भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ को मैदान में उतारा था - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी निरहुआ के सपोर्ट में आजमगढ़ में रैली की थी, लेकिन बाजी बीजेपी के हाथ से फिसल गयी.

हो सकता है, विधानसभा के साथ साथ, अखिलेश यादव के दिमाग में अगले आम चुनाव के समीकरण भी हों - और उसी सोच के साथ वो आजमगढ़ के साथ साथ उन इलाकों पर भी विचार कर रहे हों जो अब तक समाजवादी पार्टी के गढ़ रहे हैं - और विधानसभा चुनाव लड़ने की एक वजह ये भी हो सकती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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