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Updated: 18 मई, 2021 04:32 PM
नवेद शिकोह
नवेद शिकोह
  @naved.shikoh
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मौत के मातम के दरम्यान यूपी के करीब पचहत्तर प्रतिशत भूभाग पर पंचायत चुनाव के नतीजे कमजोर दिखने वाली बसपा के किंग मेकर बनने का इशारा कर रहे हैं. प्रचंड जनाधार वाले यूपी में भाजपा के विजय रथ को यदि कोई खतरा हुआ तो बसपा का हाथी स्टेपनी के तौर पर मददगार साबित हो सकता है. पंचायत का ये चुनावी परिणाम नौ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों का भ्रूण जैसा लग रहा हैं. कल्पना कीजिए कि फाइनल नतीजा भी सेमीफाइनल जैसा हुआ तब भी भाजपा के पास दोबारा सत्ता हासिल करने का विकल्प दिख रहा है. ग्रामीण प्रधानता वाले यूपी के पंचायत चुनाव को मॉडल मान कर संभावित स्थितियों पर गौर फरमाइये- पंचायत चुनाव में निर्दलीय बड़ी ताकत बन कर उभरे हैं, लेकिन पंचायत चुनाव में तो ये होता है पर विधानसभा चुनाव में ऐसा संभव कभी नहीं होता. बमुश्किल पांच-सात से अधिक निर्दलीय कभी जीत कर नहीं आए. इसलिए तुलनात्मक समीक्षा में निर्दलीय विजेताओं को फिलहाल अलग कर दीजिए.

BJP, UP, Assembly Elections, Panchayat Polls, Yogi Adityanath, BSP, Mayawatiमाना यही जा रहा है कि यूपी में भाजपा के विजय रथ की स्टेपनी हो सकती है बसपा

बाक़ी राजनीतिक दलों के समर्थित विजेताओं पर ग़ौर कीजिए तो बहुमत किसी के दल के पास नहीं है. समाजवादी पार्टी नंबर वन पर है. भाजपा दूसरे नंबर पर है. दोनों में बड़ा अंतर नहीं है इसलिए ये भी कह सकते हैं कि ये दोनों दल लगभग बराबर की शक्तियां बनकर उभरी हैं और दोनों में टक्कर है. तीसरे नंबर पर बसपा है और कांग्रेस चौथे स्थान पर है. लोकदल ने सपा के साथ मिलकर अच्छा प्रदर्शन किया.

इसके अतिरिक्त आम आदमी पार्टी और कुछ अन्य छोटे दलों ने अपनी मौजूदगी का बखूबी एहसास कराया है. अब मान लीजिए कि पंचायत चुनाव की तरह भाजपा और सपा बराबर की शक्तिया बनकर उभरें और दोनों के पास सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं हुआ तो क्या होगा ? ऐसे हालात में तीसरे नंबर वाली बसपा ही किंगमेकर होगी। और अभी तक बसपा सुप्रीमों मयावती के बयानों और इरादों से तो यही लगता है कि वो सपा को लेकर तल्ख और भाजपा के साथ नर्म हैं.

बहन जी ने पिछले विधानसभा चुनाव मे ही सपा के साथ समझौता करके साथ में मिलकर चुनाव लड़ा था. ये प्रयोग तो असफल हुआ ही सपा और बसपा के साथ दोस्ती को भी मायावती ने ही खुट्टी कर ली थी. इसके बाद बसपा सुप्रीमों भाजपा के साथ फ्रेंडली व्यवहार और सहयोग के भाव दिखाती रही हैं. इधर कोरोना की दूसरी वेव में चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था, मौतों की आंधी, ऑक्सीजन की हाहाकार ने स्वाभाविक रूप से भाजपा के जनाधार पर असर छोड़ा होगा.

इसके अलावा किसानों की नाराजगी और तमाम पहलुओं से जुड़ी एंटीइनकमबेंसी भाजपा के जनाधार की धार को किसी हद तक कमज़ोर ज़रूर करेगी. ऐसे भाजपाई भी शायद ये आशा नहीं कर पा रहे होंगे कि पिछले चुनाव की तरह प्रचंड बहुमत से भाजना यूपी में सरकार बना सकेगी. बंगाल के विधानसभा और यूपी के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावी सेंपल संकेत दे रही है कि भाजपा के विजय रथ को कोरोना की बदहाली के पहाड़ ने रोक लिया है.

पश्चिम बंगाल के बाद उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में भी भाजपा कोई करिश्मा नहीं दिखा सकी. अयोध्या, मथुरा, काशी में भाजपा का हारना बहुत कुछ इशारा कर रहा है. लगभग तीन दशक से यूपी की जनता का नजरिया करवटें लेता रहा है. यहां की आवास धर्म जाति की भावुकता में फंसती भी खूब है और पश्चाताप भी बखूबी करती है. सरकारों के काम की ज़रा भी चूक को यूपी वाले बर्दाश्त नहीं करते हैं.

एक बार विश्वास टूटता है तो जनता सत्ता परिवर्तन का इरादा बना लेती है. यही कारण है कि यूपी में करीब तीन दशक से किसी पार्टी की सरकार रिपीट नहीं हुई. नौ-दस महीने की के वक्त के बाद मालूम हो जाएगा कि ये इतिहास टूटता है या जारी रहता है.

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नवेद शिकोह नवेद शिकोह @naved.shikoh

लेखक पत्रकार हैं

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