मुंबई में उर्मिला के मुकाबले आजमगढ़ में दमदार हैं निरहुआ!
खबर है कि इंडस्ट्री के दो बड़े नाम उर्मिला मातोंडकर और दिनेश लाल यादव निरहुआ राजनीति में आए हैं . उर्मिला ने जहां कांग्रेस ज्वाइन की है तो वहीं दिनेश लाल यादव ने भाजपा का दामन संभाला है माना जा रहा है कि भाजपा इन्हें आजमगढ़ से अखिलेश यदाव के खिलाफ उतार सकती है.
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बॉलीवुड के अलावा भोजपुरी इंडस्ट्री चर्चा में है. कारण है आगामी लोकसभा चुनाव. एक्ट्रेस उर्मिला मातोंडकर को जहां कांग्रेस का साथ पसंद आया है. तो वहीं दिनेश लाल यादव निरहुआ भाजपा का दामन पकड़ पर अपने राजनीतिक भविष्य की शुरुआत करने जा रहे हैं. ज्ञात हो कि उर्मिला ने पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, कांग्रेस की मुंबई इकाई के अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा और पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ली. बताया जा रहा है कि पार्टी ज्वाइन करने से पहले उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की थी.
उर्मिला का कांग्रेस में आना पार्टी के लिए कितना फायदेमंद रहेगा इसका फैसला वक़्त करेगा
उर्मिला के कांग्रेस में आने के फैसले को पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाथों हाथ लिया है और फेसबुक पर लिखा, 'उर्मिला मातोंडकर जी का कांग्रेस में स्वागत है. मेरी शुभकामनाएं उनके साथ है.'
उर्मिला के पार्टी में आने के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि वो मुंबई उत्तर लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ सकती हैं. हालांकि पार्टी की ओर से फिलहाल इस खबर की कोई पुष्टि नहीं की है.
पार्टी ज्वाइन करने के बाद उर्मिला का कहना है कि, वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं. उर्मिला का मानना है कि आज आज अभिव्यक्ति की आजादी पर सवाल खड़े हो गए हैं. बेरोजगारी काफी बढ़ गई है.' वहीं जब उर्मिला से राहुल गांधी के नेतृत्व के बारे में सवाल हुआ तो इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि, 'देश को सबको साथ ले कर चलने वाला नेता चाहिए, ऐसा नेता जो भेदभाव नहीं करता हो. राहुल देश के एकमात्र नेता हैं जो सबको साथ लेकर चल सकते है.'
उर्मिला राजनीति में कितनी दूर जाएंगी और कितने दिन उन्हें कांग्रेस का साथ पसंद आएगा इसका जवाब वक्त की गर्त में छुपा है वहीं उर्मिला के विपरीत एक के बाद एक हिट फ़िल्में देने वाले भोजपुरी इंडस्ट्री के स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ के भाजपा में आने को एक महत्वपूर्ण खबर माना जा रहा है. आपको बताते चलें कि एक्टर रवि किशन और दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ ने लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की. माना जा रहा है कि पार्टी निरहुआ को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से टिकट दे सकती है.
दिनेश लाल यादव निरहुआ ने भी भाजपा ज्वाइन कर ली है खबर है कि वो आजमगढ़ से चुनाव लड़ेंगे
अब क्योंकि निरहुआ एक अच्छी फैन फॉलोइंग रखते हैं. साथ ही उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिहाज से आजमगढ़ एक महत्वपूर्ण सीट है. तो आइये एक नजर डालते हैं उन कारणों पर जो बताएंगे कि कैसे कांग्रेस, सपा बसपा और भाजपा सभी के लिए ये सीट संजीवनी की तरह है.
गौरतलब है कि मोदी लहर को उखाड़ फेंकने के लिए सपा बसपा के बीच हुए गठबंधन के बाद अखिलेश यादव आजमगढ़ से मैदान में हैं. बात अगर वर्तमान की हो तो मुलायम सिंह आजमगढ़ से सांसद हैं. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में इन्होंने अपने प्रतिद्वंदी और भाजपा उम्मीदवार रमाकांत यादव को कोई 63,000 मतों के अंतर से हराया था. वहीं बसपा के कैंडिडेट शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली तीसरे स्थान पर रहे थे.
2014 में हुए इस चुनाव में मुलायम को जहां 35.43 प्रतिशत वोट मिले थे तो वहीं रमाकांत को 28.25 और गुड्डू जमाली को 27.75 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे. दिलचस्प बात ये है कि तब के उस चुनाव में यदि सपा और बसपा के साझा मत प्रतिशत को देखें तो इन दोनों ही दलों को कुल मतों का 63 प्रतिशत मत प्राप्त हुआ था.
माना जा रहा है कि निरहुआ के आजमगढ़ आने से अखिलेश को कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा
यदि निरहुआ आजमगढ़ से चुनाव लड़ते हैं. तो ऐसा बिल्कुल नहीं है कि उन्हें उनकी लोकप्रियता के चलते पार्टी टिकट देने के बारे में विचार कर रही है. यहां के जातिगत समीकरण कुछ ऐसे हैं कि एक सोची समझी राजनीति के तहत भाजपा ने निरहुआ पर दाव खेला है. बात अगर आबादी के लिहाज से हो तो यहां हमेशा ही मुस्लिमों और यादवों का बोलबाला रहा है. साथ ही जाटव जो आजमगढ़ की कुल दलित आबादी का 56 प्रतिशत हैं मायावती के खास माने जाते हैं. कहा जा सकता है कि भाजपा निरहुआ को आजमगढ़ से उतार के उन वोटरों को आकर्षित करने का काम कर रही है जिनके लिए चुनाव में नेता चुनने का आधार जाति होता है.
आजमगढ़ लोकसभा सीट के बारे में एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि, अब तक यादवों और मुसलमानों के अलावा इस सीट पर और किसी ने चुनाव नहीं जीता है. तो कहीं न कहीं भाजपा ने दिनेश लाल यादव को यहां से उतारने का प्लान बनाकर सपा बसपा के उस वोटबैंक पर भी सेंधमारी करने का प्रयास किया है जिन्होंने यहां निर्णायक भूमिका निभाई है.
बहरहाल, दिनेश लला यादव आजमगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं या नहीं इसका फैसला वक़्त करेगा. मगर जिस तरह अभी से भाजपा ने यहां हवा बना ली है, साफ है कि अखिलेश यादव के लिए ये चुनाव इतना भी आसन नहीं होगा जितना उन्होंने समझा है. बाक़ी देखना ये भी दिलचस्प रहेगा कैसे अखिलेश अपने पिता की विरासत को बचाते हैं और दिनेश लाल यादव भाजपा को एक नई उम्मीद देते हैं.
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