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Updated: 26 मार्च, 2019 11:16 AM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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पिछले कुछ वर्षों के दौरान चुनाव प्रचार में राहुल गांधी का फोकस प्रमुख रूप से दो सेक्‍टर पर रहता था- एक फूड प्रोसेसिंग और मोबाइल. किसानों को लुभाने के लिए वे गांव-गांव में फूड-प्रोसेसिंग फैक्‍ट्री लगाने का वादा करते रहे हैं. और बेराेजगार युवाओं को लुभाने के लिए पूछते रहे हैं कि हम मेड इन चाइना वाला मोबाइल खरीदते हैं, आपके शहर में बना हुआ मोबाइल क्‍यों नहीं हो सकता?

मध्‍यप्रदेश, राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बन जाने के बाद से राहुल गांधी ने फूड प्रोसेसिंग वाले चुनावी जुमले अब पीछे छोड़ दिए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब किसानों के खाते में छह हजार रु. की योजना शुरू की, तो राहुल गांधी ने उसका तोड़ निकालने के लिए न्‍यूनतम आय गारंटी वाली स्‍कीम की घोषणा कर डाली. लोकसभा चुनाव जीतने के लिए पार्टियां जब नए-नए हथकंडे आजमा रही हैं, तो राहुल कैसे पीछे रहते. वे गरीबी को जड़ से मिटाने का दावा कर रहे हैं. हालांकि, वे यह भी कह रहे हैं कि ये स्कीम पूरी दुनिया में अभी तक किसी भी देश में नहीं है. न्यूनतम आय की गारंटी देने वाली स्कीम के तहत हर गरीब की न्यूनतम आय 12000 रुपए हो जाएगी. उन्होंने वादा किया है कि अगर कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीतकर सत्ता में आती है तो ये स्कीम देश में लागू कर दी जाएगी.

1971 के चुनाव में 'गरीबी हटाओ' का नारा तो राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी ने दिया था. लेकिन गरीबी हट नहीं पाई. न्यूनतम आय की गारंटी स्कीम की घोषणा करते हुए राहुल कहते हैं कि हम गरीबों को न्याय दिलाएंगे. अब तक गरीबों के साथ न्याय नहीं हुआ है और सारा पैसा अमीरों को बांट दिया गया है. वह मानते हैं कि अगर पैसा अमीरों में बांट जा सकता है तो उस पैसे को गरीबों में क्यों नहीं बांट सकते.

राहुल गांधी, लोकसभा चुनाव 2019, राजनीतिराहुल गांधी ने न्यूनतम आय की गारंटी देने वाली स्कीम शुरू करने का वादा किया है.

अब पहले स्कीम को समझ लीजिए

राहुल गांधी की न्यूनतम आय की गारंटी स्कीम के तहत 20 फीसदी सबसे गरीब परिवारों को हर साल 72,000 रुपए दिए जाएंगे. इसके तहत करीब 5 करोड़ परिवार या लगभग 25 करोड़ लोगों को सीधा फायदा मिलने का दावा किया जा रहा है. राहुल गांधी ने इस स्कीम के तहत 12,000 रुपए की सीमा तय की है. यानी सबसे गरीब 20 फीसदी परिवारों के लोगों की आय को न्यूनतम 12000 रुपए तक पहुंचाना. जैसे- अगर किसी की आय 6 हजार रुपए है तो बाकी का 6 हजार सरकार देगी, ताकि उसकी आय 12,000 रुपए पहुंच जाए. अगर किसी की आय शून्य है तो उसे पूरे 12000 रुपए सरकार की ओर से मिलेंगे.

आइए, इस योजना के कमजारे पहलुओं पर एक नजर डालते हैं:

1. परिवारों की आय का पता कैसे लगाएंगे?

अभी हमारे देश में परिवारों की आय का पता लगाने के लिए कोई सिस्‍टम नहीं है. देश के आधे से ज्‍यादा कामकाजी लोगों की आय का सरकारी लेखा-जोखा रखने का कोई सिस्‍टम नहीं है. असंगठित क्षेत्रों में मजदूरी किस पैमाने पर दी जा रही है, इसका भी अकाउंट प्राप्‍त करना कठिन है. यदि इसका प्रयास शुरू भी किया जाएगा, तो पूरे देश में इसका सिस्‍टम खड़ करने में वक्‍त लगेगा. और यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि सभी कर्मचारियों का वेतन सीधे बैंक में आए, ताकि वह बैंक अकाउंट न्‍यूनतम आय गारंटी योजना से लिंक किया जा सके. अधिकतर गरीब लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, जहां मेहनताना बैंक खातों में नहीं, बल्कि कैश में दिया जाता है, जिसका रिकॉर्ड नहीं रखा जा सकता. नोटबंदी के दौरान खुद राहुल ने भी असंगठित क्षेत्र में कैश में लेन-देन होने की बात कहते हुए मोदी सरकार पर खूब हमला बोला था, लेकिन अब वह खुद ये सब भूल गए हैं.

2. क्‍या कांग्रेस की योजना सभी तरह की सब्सिडी खत्‍म करने की है?

कांग्रेस की न्‍यूनतम आय गारंटी योजना की कुल लागत करीब 3.6 लाख करोड़ रुपए आंकी जा रही है. अर्थशास्त्रियों का मत है कि इतने पैसे का इंतजाम तभी हो सकता है, जबकि गरीबों के लिए दी जा रही बाकी तरह सब्सिडी खत्‍म कर दी जाए. जैसे कि फूड सब्सिडी, बिजली सब्सिडी, फ्यूल सब्सिडी आदि. यदि सरकार ये सा‍हस कर ले कि वह तमाम तरह की सब्सिडी खत्‍म कर देगी, तो बेशक न्‍यूनतम आय योजना कारगर साबित हो सकती है. लेकिन, फिर उसे इस योजना के सभी लाभार्थियों को बाजार कीमत की दर से खाद्यान्‍न, बिजली, ईंधन आदि खरीदने के लिए कहना होगा. जो कि बेहद अलोकप्रिय हो सकता है.

3. सरकार 12 हजार रु. महीने आमदनी देगी, तो उतने की नौकरी कौन करेगा?

राहुल गांधी इस स्कीम को मनरेगा का अगला चरण कह रहे हैं. उनका कहना है कि मनरेगा के जरिए करीब 14 करोड़ लोगों को गरीबी से निकाला गया है और अब न्यूनतम आय की गारंटी देकर 25 करोड़ लोगों को गरीबी से निकाला जाएगा. मनरेगा में तो किसी न किसी काम के बदले पैसे दिए जाते थे, लेकिन राहुल गांधी ने जिस स्‍कीम की सोमवार को घोषणा की, उसमें तो बिना किसी काम के ही लोगों को पैसे बांटने की बात कर रहे हैं. साथ ही उन्‍होंने यह भी कह दिया है कि यदि कोई व्‍यक्ति 2000 रु. की नौकरी कर रहा है, तो उसे 12000 की न्‍यूनतम आय तक पहुंचाने के लिए बाकी के 10 हजार रु. हमारी सरकार देगी. और कोई 10 हजार रु. की नौकरी कर रहा है, तो बाकी के दो हजार रु. सरकार देगी. अब जरा सोच कर देखिए, किसी भी हालत में अगर 12 हजार रुपए तक सरकार दे ही देगी तो इतने की नौकरी कौन करेगा? 12 हजार तो छोड़िए, 15 हजार की नौकरी भी शायद ही कोई गरीब करना पसंद करेगा, क्योंकि नौकरी में आने-जाने में भी पैसे खर्च होते हैं. यानी अब तक अगर कोई 4-5 हजार कमा भी रहा था तो वो अपना काम छोड़कर बैठ जाएगा और सरकार से मिल रही न्यूनतम आय का फायदा उठाएगा.

4. वित्‍तीय घाटा 60 फीसदी बढ़ जाएगा, पता है?

अगर हर गरीब परिवार को सालाना 72000 रुपए मिलेंगे तो ये खर्च सालाना 3.6 लाख करोड़ रुपए बैठता है. वित्‍त मंत्री अरुण जेटली कहते हैं कि फिलहाल भारत सरकार का वित्‍तीय घाटा 6.5 लाख करोड़ रुपए है. यदि राहुल गांधी की योजना का खर्च इसमें जोड़ दिया जाए, तो भारत की अर्थव्‍यवस्‍था का घाटा 60 फीसदी बढ़ जाएगा. क्‍या राहुल गांधी भारत सरकार की इस वित्‍तीय स्थिति से अवगत हैं? इतना पैसा कैसे और कहां से आएगा, ये भी राहुल गांधी को साफ करना चाहिए था. राहुल गांधी की स्कीम के लिए ये सारी चुनौतियां हैं, जो इस स्कीम को हकीकत से परे करती हैं.

5. स्कीम चल पड़ी तो क्या भारत गरीबी से मुक्त हो जाएगा? नहीं.

वर्ल्ड बैंक आंकड़ों के अनुसार 2012 तक भारत में करीब 21.2 फीसदी यानी लगभग 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी बिता रहे हैं. राहुल गांधी का दावा है कि उनकी स्कीम से करीब 25 करोड़ लोगों को फायदा होगा. चलिए मान लेते हैं कि उनका दावा सही हो जाता है, तो भी 2 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे होंगे. अगर इन्हें भी छोड़ दें तो एक सवाल ये उठता है कि आखिर कब तक सरकार से मिलने वाले पैसों से कोई शख्स अपनी गरीबी से लड़ेगा?

निष्‍कर्ष:

बचपन में एक बात हर किसी के मन में जरूर आई होगी कि आखिर कोई गरीब क्यों है. जब सरकार ही नोट छापती है तो इतने पैसे क्यों नहीं छाप देती कि सबको पैसे मिल जाएं और गरीबी दूर हो जाए. राहुल गांधी की ये स्कीम एक तरह से बच्चों के मन की उस ख्वाहिश को ही पूरा कर रही है. यहां नोट भले ही अधिक ना छापे जा रहे हों, लेकिन बांटे जरूर जा रहे हैं, वो भी बिना किसी मेहनत के. गरीबी दूर करने का राहुल गांधी ने वो तरीका निकाला है जो स्थायी नहीं है, ना ही लोगों की ख्वाहिश. आए दिन पीएम मोदी को रोजगार के नाम पर घेरने वाले राहुल गांधी को रोजगार देने की स्कीम शुरू करनी चाहिए थी. लोगों को काम की जरूरत है, ना कि खैरात की.

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