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Updated: 05 जून, 2019 02:05 PM
प्रभाष कुमार दत्ता
प्रभाष कुमार दत्ता
  @PrabhashKDutta
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Public interest litigations यानी PIL कई मामलों में राजनीतिक पार्टियों के लिए खतरनाक साबित हुई हैं तो कई में ये राजनीति में किसी पार्टी का फायदा भी करवा सकती हैं. दिल्ली हाईकोर्ट में भी ऐसी ही PIL दाखिल की गई है. पिछले हफ्ते दिल्ली हाईकोर्ट में आई 3 PIL भाजपा के काम आ सकती हैं. ये अर्जियां मदरसा, यूनिफॉर्म सिविल कोड के बनने और टू-चाइल्ड पॉलिसी को सख्त तौर पर लागू करने को लेकर हैं. नरेंद्र मोदी के दूसरी बार शपथ लेते समय यानी 30 मई को ही ये पीआईएल दिल्ली हाईकोर्ट में सुनी जा रही थी. ये अहम इसलिए है क्योंकि ये तीनों ही भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे के इर्द-गिर्द घूमती हैं. इन तीनों मामलों में दिल्ली हाईकोर्ट ने न सिर्फ सरकार की राय मांगी है बल्कि उन संबंधित संस्थाओं से भी संपर्क करने की बात कही है जो इस मुद्दे पर अपना पक्ष साफ तौर पर रख पाएं और मामले पर रौशनी डाल पाएं.

1. पहली PIL: मदरसों पर लगाम

मदरसे कई भाजपा लीडर्स के टार्गेट पर रहे हैं. उसमें से एक अहम लीडर हैं साक्षी महाराज. उन्होंने तो मदरसों को एक बार आतंकवाद की जन्मभूमि भी बता दिया था. महाराष्ट्र में 2014 में जब भाजपा सरकार आई तो कई मदरसों को मान्यता रद्द कर दी गई थी.

हाल ही में उत्तर प्रदेश के शिया बोर्ड चीफ वसीम रिज्वी (जिन्हें भाजपा का समर्थक माना जाता है.) ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर कहा है कि राज्य में मदरसों को बंद कर दिया जाए. भाजपा ने खुद कभी मदरसों को बंद करने को लेकर साफ तौर पर कुछ नहीं कहा, लेकिन गाहे-बगाहे ये जरूर सामने आया है कि भाजपा मदरसों के लिए कड़े नियम बनाने की हितैशी रही है. साथ ही, ये भी कि इस्लामिक पढ़ाई के साथ-साथ उन मदरसों पर मॉर्डन पढ़ाई को भी शामिल किया जाए.

 भाजपा के एजेंडे में मदरसों के लिए नई नियमावली हमेशा रही है. भाजपा के एजेंडे में मदरसों के लिए नई नियमावली हमेशा रही है.

अब दिल्ली हाई कोर्ट में जो PIL आई है वो इसी मुद्दे पर रौशनी डालती है कि मदरसों, मकतबों और गुरुकुलों को लेकर कुछ कड़े नियम बनाए जाएं. ये अर्जी RTI एक्टिविस्ट सुनील सारौगी और कांग्रेस एमएलए अखरुज्जामन ने लगाई है.

उनका कहना है कि इन संस्थानों में जो धार्मिक सिलेबस दिया गया है वो अभी भी 18वीं सदी के हिसाब से ही है जहां कुरान के आधार पर पढ़ाई तो होती है और साथ ही सिर्फ उर्दू और फारसी भाषा सिखाई जाती है.

PIL में ये बताया गया है कि ऐसे 30 हज़ार और शैक्षणिक संस्थान हैं जो देश में मौजूद हैं. इनमें करीब 15 लाख छात्र पढ़ते हैं. अकेले दिल्ली में ही 3.6 लाख छात्र 3000 मदसरों में पढ़ रहे हैं. इस केस की सुनवाई 8 जुलाई को होनी है और 29 मई को HRD मिनिस्ट्री को नोटिस भेजा गया है. कोर्ट सरकार का जवाब चाहता है ताकि पहले मामले की गंभीरता को समझा जा सके.

2. दूसरी PIL: दो बच्चे वाली पॉलिसी

जनसंख्या और विकास डिक्लेरेशन पर हुई एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में भारत ने भी हिस्सेदारी की थी और दस्तावेज साइन किए थे. ये 1994 की बात है. इस डिक्लेरेशन में बच्चों की संख्या और अंतर को तय करने के लिए जोड़ों के प्रजनन अधिकारों का समर्थन किया गया था.

यही कारण है कि केंद्र सरकार यहां तक कि वो भी जो भाजपा सरकार द्वारा चलाई गई थीं उन्होंने two-child policy को लागू नहीं किया. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान राष्ट्रीय जनसंख्या पॉलिसी बनाई तो गई थी पर कभी लागू नहीं हो पाई.

टू-चाइल्ड पॉलिसी को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय से लागू करने की बात की जा रही है.टू-चाइल्ड पॉलिसी को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय से लागू करने की बात की जा रही है.

कई भाजपा सांसदों ने इस पॉलिसी को लागू करने की मांग की है. भाजपा के राघव लखनपाल शर्मा ने 2017 में लोकसभा के शीत सत्र के दौरान भी ये बात उठाई थी और वो National Population Policy of 2000 में संशोधन की मांग कर रहे थे. ऐसा इसलिए ताकि टू-चाइल्ड पॉलिसी को पूरी तरह से लागू किया जा सके. एक और भाजपा लीडर प्रहलाद पटेल जो हाल ही में दोबारा लोकसभा सांसद बने हैं वो भी 2016 में ऐसा ही बिल पेश कर चुके हैं.

इस बिल को 'जनसंख्या कंट्रोल बिल 2016' कहा गया था जिसमें लिखा था कि कोई भी इंसान दो से ज्यादा जीवित बच्चों को पैदा नहीं करेगा. ये इस एक्ट के शुरू होने से 1 साल के बाद लागू किया जाएगा. इस बिल को कोई वोट नहीं मिला.

ऐसे कई भाजपा लीडर्स हैं जो मुसलमानों को जनसंख्या बढ़ाने का जिम्मेदार मानते हैं उसमें से एक साक्षी महाराज भी रहे हैं. उनका कहना था कि हिंदू महिलाओं को चार-पांच बच्चे पैदा करने चाहिए जब तक जनसंख्या कंट्रोल कानून लागू नहीं हो जाता. हाल ही में योग-गुरू बाबा रामदेव ने कहा है कि ऐसा नियम बनना चाहिए कि जिन लोगों के दो से ज्यादा बच्चे हों उनके वोटिंग राइट्स छीन लिए जाएं. ये पॉलिसी अगले 50 साल तक चले. बाबा रामदेव को भी भाजपा की विचारधारा का समर्थक माना जाता है.

अब जो PIL दाखिल की गई है वो अश्विनी उपाध्याय द्वारा आई है. ये भी एक भाजपा लीडर हैं जो चाहते हैं कि टू-चाइल्ड पॉलिसी को सरकारी नौकरी, सब्सिडी और अन्य सुविधाओं के लिए अनिवार्य कर दिया जाए. उनका कहना है कि भारत की असली आबादी 152 करोड़ है क्योंकि 20 करोड़ लोगों ने आधार कार्ड नहीं बनवाया.

Justice Venkatchaliah commission द्वारा दिए गए सुधावों को ध्यान में रखते हुए इस केस को आगे बढ़ाया गया है. वाजपेयी सरकार में National Commission to Review the Working of the Constitution (NCRWC) के तहत जस्टिस वैंकटचालिया कमीशन बनाई थी जिसने टू-चाइल्ड पॉलिसी पर जोर दिया था. 29 मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से मश्वहरा मांगा था.

3. तीसरी PIL: यूनिफॉर्म सिविल कोड

समान नागरिक संहिता या Uniform civil code भाजपा के तीन मूल एजेंडे में से एक रहा है. इसमें बाकी दो थे कश्मीर में से धारा 370 हटाना और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना. यूनिफॉर्म सिविल कोड संविधान की राज्य नीति के निर्देश सिद्धांतों में निर्धारित है. जहां आपराधिक मामलों में एक समान क्रिमिनल कोड है वहीं घरेलू मामले, शादी ब्याह, विरासत के मामले में कई बार धार्मिक समुदायों के आधार पर निर्णय लिया जाता है. 31 मई को जब मोदी अपने दूसरे कार्यकाल की शपथ ले चुके थे तब भाजपा लीडर अश्विनी उपाध्याय ने ये PIL दाखिल की. इसके बाद केंद्र सरकार और लॉ कमीशन को नोटिस भी जारी किया गया.

भाजपा के मूल एजेंडे में से एक यूनिफॉर्म सिविल कोड रहा है.भाजपा के मूल एजेंडे में से एक यूनिफॉर्म सिविल कोड रहा है.

इसमें एक अलग मुस्लिम पर्सनल लॉ का विरोध किया गया है जिसमें कहा गया है कि तुर्की और मिस्र जैसे कई इस्लामिक देशों ने ऐसा किया है. अपने तर्क का समर्थन करने के लिए 1995 के सरला मुद्गल मामले में सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन का हवाला दिया है.

उस समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पर्सनल लॉ को यूनिफॉर्म सिविल कोड के द्वारा खत्म किया जा सकता है.

हालांकि, ऐसी PIL पहले भी कई बार दाखिल की गई थीं, न्यायालयों ने सरकार को नीति बनाने या एक कानून बनाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने से पहले रोका भी है, लेकिन फिलहाल ये तीनों ही PIL भाजपा के कैंपेन और राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा ही हैं.

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प्रभाष कुमार दत्ता प्रभाष कुमार दत्ता @prabhashkdutta

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्टेंट एडीटर हैं.

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