• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

बीएसएफ जवान का बंगाल में एक दर्दभरा ट्रेन सफर

    • आईचौक
    • Updated: 15 अगस्त, 2018 03:29 PM
  • 02 दिसम्बर, 2016 03:43 PM
offline
सेना और सैनिकों के प्रति सम्‍मान किसी बहस का विषय नहीं है. लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी हो जाती हैं, जिसके कारण इस विषय पर बात करना जरूरी हो जाता है. पढि़ए एक बीएसएफ जवान की ये आपबीती...

कड़ी ट्रेनिंग और कई दिनों की मेहनत के साथ एक जवान बीएसएफ में भर्ती होता है. पाकिस्तान और बंगलादेश की सीमा पर तैनात ये भारतीय सिपाही हर मुश्किल का डटकर सामना करते हैं. तो क्या ये समाज किसी विशेष सम्‍मान के हकदार नहीं हैं. विशेष छोडि़ए, सामान्‍य सम्‍मान तो बनता ही है. खासतौर पर यह जानते हुए कि 2015 जनवरी से लेकर 2016 सितंबर तक 25 जवान देश के दुश्‍मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए हैं. लेकिन, यह वाकया इन तमाम धारणाओं और अपेक्षाओं को धता बता रहा है.

 सांकेतिक फोटो

पढि़ए, बीएसएफ जवान का ये पत्र-

मैं सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का एक जवान हूं. मैं आप सबको अपनी आपबीती बताना चाहता हूं. हालांकि, मुझे पता है कि इससे कुछ होगा नहीं, लेकिन फिर भी अपनी बात पर आता हूं. हमें फायरिंग करने के लिए मुरशीदाबाद (पश्चिम बंगाल) से हजारीबाग (झारखंड) जाना था. यूं तो हमें AC-3 टायर का टिकट मिलता है पर उस समय कन्फर्म रिजर्वेशन नहीं मिला. जब ट्रेन में चढ़े तो भीड़ के कारण कहीं जगह नहीं मिली. जिस भी सीट पर बैठने की सोचते वो सीट वाला अपने पैर लंबे कर लेता. हम किसी को कुछ बोल नहीं पा रहे थे क्योंकि हम वर्दी और हथियार के साथ थे. हमेशा की तरह हमारे कमांडर ने हमे ब्रीफ किया था कि किसी से जबरदस्ती नहीं करनी है. लंबा सफर था हम रातभर ड्यूटी करके जा रहे थे. इसी बीच वहां एक टीटी आया. हमने उससे कहा कि अगर कोई सीट मिल जाए तो हम एडजस्ट हो जाएंगे. उसने कहा कि कोई सीट नहीं है. हमने मान लिया, वर्दी पहने और हथियार हाथ में लिए हम टॉयलेट के पास जाकर खड़े हो गए. हमे शर्म आ रही थी किसी और की सीट पर बैठने पर. थोड़ी देर में उसी टीटी ने पैसे लेकर किसी सिविल व्यक्ति को सीट दे दी. उस दिन हमें पता चला कि देश में हमारी क्या इज्जत है. हमारी याद सिर्फ आपदा या किसी लड़ाई के समय आती है और उसके बाद भुला दिया जाता है. मैं कोई लेखक नहीं फौजी हूं, 10वीं तक पढ़ा...

कड़ी ट्रेनिंग और कई दिनों की मेहनत के साथ एक जवान बीएसएफ में भर्ती होता है. पाकिस्तान और बंगलादेश की सीमा पर तैनात ये भारतीय सिपाही हर मुश्किल का डटकर सामना करते हैं. तो क्या ये समाज किसी विशेष सम्‍मान के हकदार नहीं हैं. विशेष छोडि़ए, सामान्‍य सम्‍मान तो बनता ही है. खासतौर पर यह जानते हुए कि 2015 जनवरी से लेकर 2016 सितंबर तक 25 जवान देश के दुश्‍मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए हैं. लेकिन, यह वाकया इन तमाम धारणाओं और अपेक्षाओं को धता बता रहा है.

 सांकेतिक फोटो

पढि़ए, बीएसएफ जवान का ये पत्र-

मैं सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का एक जवान हूं. मैं आप सबको अपनी आपबीती बताना चाहता हूं. हालांकि, मुझे पता है कि इससे कुछ होगा नहीं, लेकिन फिर भी अपनी बात पर आता हूं. हमें फायरिंग करने के लिए मुरशीदाबाद (पश्चिम बंगाल) से हजारीबाग (झारखंड) जाना था. यूं तो हमें AC-3 टायर का टिकट मिलता है पर उस समय कन्फर्म रिजर्वेशन नहीं मिला. जब ट्रेन में चढ़े तो भीड़ के कारण कहीं जगह नहीं मिली. जिस भी सीट पर बैठने की सोचते वो सीट वाला अपने पैर लंबे कर लेता. हम किसी को कुछ बोल नहीं पा रहे थे क्योंकि हम वर्दी और हथियार के साथ थे. हमेशा की तरह हमारे कमांडर ने हमे ब्रीफ किया था कि किसी से जबरदस्ती नहीं करनी है. लंबा सफर था हम रातभर ड्यूटी करके जा रहे थे. इसी बीच वहां एक टीटी आया. हमने उससे कहा कि अगर कोई सीट मिल जाए तो हम एडजस्ट हो जाएंगे. उसने कहा कि कोई सीट नहीं है. हमने मान लिया, वर्दी पहने और हथियार हाथ में लिए हम टॉयलेट के पास जाकर खड़े हो गए. हमे शर्म आ रही थी किसी और की सीट पर बैठने पर. थोड़ी देर में उसी टीटी ने पैसे लेकर किसी सिविल व्यक्ति को सीट दे दी. उस दिन हमें पता चला कि देश में हमारी क्या इज्जत है. हमारी याद सिर्फ आपदा या किसी लड़ाई के समय आती है और उसके बाद भुला दिया जाता है. मैं कोई लेखक नहीं फौजी हूं, 10वीं तक पढ़ा हूं, लेकिन ये बात कई दिन से बताना चाहता था.

ये भी पढ़ें- पाकिस्तान का मुकाबला तो डटकर किया, लेकिन बीमारी मार रही जवानों को...

आईचौक के फेसबुक पेज पर बीएसएफ जवान का यह पत्र आया है. हालांकि, हम इसकी सत्‍यता की पुष्टि नहीं कर रहे हैं. लेकिन यह तो माना ही जा सकता है कि ऐसा वाकया होना कोई आश्‍चर्य नहीं है. ये घटना भले ही सारे जवानों के लिए ना हो, लेकिन फिर भी कई मामलों में ये घटना इस बात को सोचने पर मजबूर कर देगी कि आखिर इतनी मेहनत के बाद क्या इन जवानों के साथ ऐसा बर्ताव ठीक है? क्या इनकी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा नहीं किया जा सकता.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲