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Updated: 30 मई, 2018 11:32 AM
अबयज़ खान
अबयज़ खान
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परम आदरणीय प्रधानमन्त्री जी

गुस्ताखी माफ हो हुजूर तो अपनी बात रखता हूं. साहेब मुझ नाचीज़ का नाम 'विकास' है. 6 बहनों के बीच इकलौता भाई हूं. घरवालों ने बड़ी मन्नतें की, मजारों से लेकर मन्दिरों तक मत्थे रगड़े, तब कहीं जाकर ऊपर वाले को दया आयी और गुप्ता जी का इकलौता लाडला बनाकर भेजा था. दादी ने देखते ही बोल दिया था, कोई ऐसा नाम रखो कि बच्चा बड़े होकर खूब तरक्की करे. बस बापू ने 'विकास' नाम रख दिया. घरवालों ने बड़े नाज़ नखरों से पाल पोसकर बड़ा किया है. लाडला हूं. जैसे तैसे करके हिन्दी में बीए भी पास कर लिया. नौकरी कोई नहीं मिली, मगर ऊपर वाले के आशीर्वाद से जिन्दगी बड़ी मस्त चल रही थी.

फिर ये कम्बख्त नेता आ गए. इन्होंने विकास का ऐसा रोना रोया है कि मेरी जिन्दगी नरक कर दी. ऊपर से ये विरोधियों ने और बोल दिया कि 'विकास' पागल हो गया है, बस इसके बाद से भगवान कसम खुदकुशी करने को जी चाहता है. सरकार से विकास हुआ नहीं और विरोधियों ने पागल साबित कर दिया. इसके बाद से मुहल्ले के लड़के भी पत्थर मार मार कर जा रहे हैं. मैं अपने गले में तख्ती डालकर घूम रहा हूं कि भईया मैं पागल नहीं हूं. मत्थे पे लिखवा लिया है. लेकिन कोई सुने तब ना. ऊपर से लोग मेरे मां-बाप को भी चिढ़ा-चिढ़ा कर जा रहे हैं कि भैया तुमसे भी ठीक से विकास नहीं हुआ.

अपना छोटा सा दर्द हो तो बताऊं भी साहब. यहां तो दिल रो रहा है. खानदान में इकलौता बीए पास हूं. मगर जब भी कहीं नौकरी मांगने जाता हूं, लोग नाम सुनते ही टरका देते हैं. बोलते हैं पागल को कौन नौकरी दे. पड़ोसी पास बैठने नहीं देते. रिश्तेदार बात नहीं करते. दोस्त नज़र बचाने लगते हैं. लड़कियां घास नहीं डालतीं. चौक में निकलता हूं तो लोग बच बचकर निकल जाते हैं. चाय की दुकान पर कोई चर्चा नहीं करना चाहता. अब आप ही बताओ सरकार! दिल्ली से लेकर गुजरात तक जो जंग चल रही है, उसमें मुझ गरीब को क्यूं पीस रहे हो? कसम से मुझे तो केजरीवाल समझ लिया है, जो भी आता है चक्की के पाट में पीसकर चला जाता है.

gujarat, vikasमुझ गरीब की मदद कीजिए साहब

दिल अन्दर तक छलनी हो गया है साहब. पिछले दिनों बड़ी हसरतें लेकर मेरे मां-बाप गुप्ता जी की बेटी से मेरा रिश्ता करने गये थे. मगर उन्होंने तो साफ मना कर दिया. बोल दिया न भैया, हमने सुना है आपका 'विकास' पागल हो गया है. हम अपनी बेटी आपके विकास के साथ न ब्याहेंगे. फिर उसके बाद जैसे तैसे घर वालों ने मुहल्ले की सबसे हसीं लड़की देखकर अपने हाथ पीले भी कर दिये थे. सोचा था विकास और प्रगति मिलकर दिन-दूनी रात चौगनी तरक्की करेंगे. मगर नरक हो इस नासपीटी सियासत का जिसके चक्कर में छोटे बाबू की प्रगति बिदक गयी. अपने बापू को उसने साफ बोल दिया कि बापू मैं इस पागल के साथ अपनी जिन्दगी न खराब करूंगी. बस दिल टूट गया है, उसी दिन से. अब वो प्रगति किसी और के विकास का 'मॉडल' बन गयी. और मैं आज भी अपनी गली के खड़ंजे पे धक्के खा रहा हूं.

ना नौकरी मिली ना छोकरी मिली. मगर ये 'पागल' का तमगा ज़रूर मिल गया साहब. ऊपर से ये टीवी और सोशल मीडिया ने कसम से और दिमाग खराब कर दिया है. जब भी खोलो बस एक ही आवाज़.. विकास.. विकास.. विकास. रोज़ टीवी की खिड़कियों में बैठकर कुछ लोगों का तो बस यही काम रह गया है, किसी भी तरह बस मुझे पागल साबित करना.

विकास पागल हो गया है. विकास का हिसाब दो. मुझको पागल साबित करके कुछ लोगों को कुर्सी ज़रूर मिल जायेगी साहेब. मगर मेरी आह उनको ज़रूर लगेगी. रैलियों में मेरे नाम का गरदा काटने वालों को जनता कभी माफ़ नहीं करेगी साहब. मेरे नाम की झोली फैलाकर जनता जनार्दन की चौखटों पे घूमने वालों से जनता एक दिन पूरा हिसाब वसूल करके रहेगी.

कसम से विकास कर कोई नहीं रहा है. मगर विकास को लेकर जो बतोलेबाज़ी हो रही है, उसने अपनी इज़्ज़त का फालूदा कर दिया है. अब आप मुझे बताओ मैं किस पर मानहानि का दावा करूं. घर से निकलना दूभर हो गया है. जिधर से निकलो लोग बस यही कहते हैं, वो देखो 'विकास' पागल हो गया है. देखो गुप्ता जी ठीक से विकास नहीं कर पाये, इसलिये लड़का जल्दी पागल हो गया है.

प्रधानमन्त्री जी आपसे एक ही गुहार है कि या तो मेरा नाम बदल दो या संविधान में कोई ऐसा संशोधन कर दो कि फिर कोई विकास का मज़ाक न बना पाये.

आपके जवाब की प्रतीक्षा मेंएक अभागा 'विकास'

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अबयज़ खान अबयज़ खान @abyaz.khan

लेखक पत्रकार हैं

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