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Updated: 25 अगस्त, 2015 02:44 PM
अंशुमान तिवारी
अंशुमान तिवारी
  @1anshumantiwari
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पिछला सप्ताहांत वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के लिए मामूली नहीं था. दरअसल सोमवार को दुनियाभर के शेयर बाजारों में आई भारी गिरावट की पटकथा पिछले हफ्ते के आखिरी दिनों में लिखी गई. बीते शुक्रवार को बाजारों में हुई भारी बिकवाली की शुरुआत चीन में आए अगस्त के कायसिन पीएमआई आंकड़ों से हुई. जुलाई के 47.8 के आंकड़ों की तुलना में अगस्त में यह आंकड़ा गिरकर 47.1 पर पहुंच गया और 50 के नीचे इस आंकड़े का साफ संकेत है कि चीन में मैन्यूफैक्चरिंग गतिविधियों में सिकुड़न देखने को मिल रही है. इसके बाद जब अमेरिकी बाजार का प्रमुख इंडेक्स डाओ जोन्स भी शुक्रवार के कारोबार में 530 अंक गिरकर 2011 के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया तब दुनियाभर की नजर चीन के केन्द्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (PBOC) पर टिक गई और वैश्विक बाजार में उम्मीदें बढ़ गई कि अपने शेयर मार्केट में जारी गिरावट को रोकने के लिए वह कठोर कदम उठाएगा. इसी दिन चीन का शंघाई कंपोजिट, जापान का निक्केई और यूरोपीय बाजारों में तीन फीसदी से अधिक गिरावट दर्ज हुई.

दुनियाभर में निवेशकों को न्यायोचित उम्मीद थी कि PBOC गिरते बाजार को संभालने के साथ-साथ सुस्त पड़े मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में तेजी लाने के लिए मॉनिटरी इंजिंग के कदम उठाएगा. बहरहाल पिछला सप्ताह बीत जाने तक चीन ने कोई कदम नहीं उठाया. इसके उलट, रविवार को चीन ने अपने विशाल पेंशन फंड को गिरते हुए शेयर बाजार में झोंक दिया. गौरतलब है कि चीन का पेशन फंड पूरे विश्व में इस तरह का सबसे बड़ा फंड है और यह लगभग देश के कुल सोशल सिक्योरिटी फंड का 90 फीसदी है. साल 2014 इस फंड का नेट एसेट 3.5 ट्रिलियन युआन (547 बिलियन डॉलर) था.

वैश्विक निवेशकों को चीन का यह कदम इसलिए कारगर नहीं लगा क्योंकि अभी चंद हफ्तों पहले ही चीन के बाजार में आई बड़ी गिरावट से लगभग चार ट्रिलियन डॉलर की पूंजी साफ हो गई थी. लिहाजा, अपने पेंशन फंड को शेयर बाजार में झोंकने और पिछले हफ्ते हुए युआन डिवैल्युएशन से साफ संकेत मिल रहा है कि चीन की पकड़ वित्तीय संकटों पर कमजोर पड़ रही है.

निवेशकों का मानना है कि चीन अपने बाजारों में जारी वित्तीय चुनौतियों में बुरी तरह उलझ गया है और इसके असर से वैश्विक बाजार भी खतरे की कगार पर खड़े हैं. लिहाजा, सोमवार को दुनियाभर के शेयर बाजारों में आई गिरावट का कारण रातो-रात बदला कोई आर्थिक समीकरण नहीं बल्कि उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में गहराया संकट था. जिससे अमेरिका और यूरोप जैसे बाजार भी अछूते नहीं रहे.

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट का कहना है कि वैश्विक बैंकों (खासतौर पर यूके, स्पेन और ग्रीस) का उभरते बाजारों में बड़ा निवेश और पिछले कुछ महीनों में इन्हें करेंसी डेप्रिसिएशन से भारी नुकसान उठाना पड़ा है. बैंक फॉर इंटरनैशनल सेटेलमेंट्स के मुताबिक मार्च तक इन बैंकों का उभरते बाजारों में लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर का निवेश रहा है.निवेशकों का यह डर सोमवार को हकीकत में बदल गया और नैसडैक फ्यूचर्स पर सर्किट टूटने के बाद कुछ देर तक कारोबार बंद करना पड़ा और इसके बाद चीन, भारत और यूरोपीय बाजारों में इतनी बड़ी गिरावट देखने को मिली.

उभरते शेयर बाजारों में आई यह गिरावट जब वैश्विक स्तर पर कमोडिटी कारोबार पर असर डालने लगे तो वैश्विक स्तर पर यह एक नए संकट की शुरुआत हो सकती है. ब्लूमबर्ग कमोडिटी इंडेक्स में शामिल 22 कच्चे माल की कीमतें अगस्त 1999 के निचले स्तर पर पहुंच गई क्योंकि ब्रेंट पर कच्चे तेल की कीमत साल 2009 के बाद पहली बार 45 डॉलर के नीचे चली गई. कमोडिटी बाजार में ऐसी गिरावट से वैश्विक स्तर पर आर्थिक रिकवरी विफल हो सकती है.

एक बार फिर पूरी दुनिया की नजर PBOC पर टिकी है और उम्मीद कर रही है कि वह अपनी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था और डूबते बाजार को संभालने के लिए जल्द मॉनिटरी इजिंग के कदम उठाएगा. हालांकि केन्द्रीय बैंक ने इससे पहले क्रेडिट ग्रोथ को बेलगाम होने से बचाने के लिए ऐसे कदम नहीं उठाए हैं. क्या अब PBOC अपने 4 ट्रिलियन डॉलर के कोष का इस्तेमाल करते हुए अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर लाने के लिए मॉनिटरी इजिंग का सहारा लेगा. जानकारों की मानें तो तो अब चीन के पास यह कदम उठाने के सिवाए कोई विकल्प नहीं बचा है.

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लेखक

अंशुमान तिवारी अंशुमान तिवारी @1anshumantiwari

लेखक इंडिया टुडे के संपादक हैं.

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