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Updated: 29 जनवरी, 2022 03:07 PM
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बॉलीवुड कुछ बनाए या ना बनाए आजकल स्पोर्ट्स ड्रामा खूब बना रहा है और बड़े स्केल पर बना रहा है. अभी कुछ ही दिन पहले बोनी कपूर और दिवंगत श्रीदेवी की बेटी जाह्नवी कपूर ने भी अपनी एक फिल्म मिस्टर एंड मिसेज माही का लुक साझा किया था. इसमें वह एक क्रिकेटर का किरदार निभा रही हैं. उनके अपोजिट राजकुमार राव हैं. जाह्नवी कपूर ने जो तस्वीरें साझा की थीं वह क्रिकेट प्रैक्टिस के दौरान की हैं. जाहिर है कि वह किरदार के लिए जमकर पसीना बहा रही हैं. प्रोजेक्ट धर्मा प्रोडक्शन का है. इसकी कहानी क्या है यह अभी साफ़ नहीं हो पाया है मगर फिल्म प्रशंसकों खासकर स्पोर्ट्स ड्रामा पसंद करने वालों के बीच सुर्खियां खूब बटोर रही है.

क्रिकेट के प्रति बॉलीवुड की दीवानगी छिपी बात नहीं है. अभी कुछ ही दिन पहले क्रिकेट विश्वकप में भारत की पहली जीत को लेकर बनी फिल्म 83 रिलीज हुई थी. रणवीर सिंह ने कपिल देव की भूमिका निभाई थी. समीक्षकों ने कबीर खान के निर्देशन में बनी फिल्म की जमकर तारीफ़ की. ये बात दूसरी है कि यह दर्शकों को बहुत पसंद नहीं आई. तापसी पन्नू स्टारर 'शाबास मिठू' जैसी फ़िल्म भी सच्ची कहानी पर बनी है और रिलीज के लिए कतार में है. कुछ फ़िल्में अनाउंस हुई हैं. वैसे महेंद्र सिंह धोनी की बायोपिक एमएस धोनी द अनटोल्ड स्टोरी के ब्लॉकबस्टर होने के बाद अब तक ना जाने कितनी फ़िल्में आ चुकी हैं.

mr-and-mrs-mahi-650_012822102707.jpgमिस्टर एंड मिसेज माही.

कई फ़िल्में बन चुकी और कई कतार में हैं

अगर इस वक्त बात करें तो शाबास मिठू के साथ-साथ एक और क्रिकेट ड्रामा जर्सी रिलीज के लिए तैयार है. शाबास मिठू भारतीय महिला टीम की कप्तान मिताली राज की कहानी है. जबकि जर्सी एक प्रेरक फिक्शनल स्टोरी है. इन फिल्मों के अलावा अभी हाल ही में एक और महिला क्रिकेटर झूलन गोस्वामी के जीवन पर फिल्म की अनाउंसमेंट हुई. अनुष्का शर्मा मुख्य भूमिका निभा रही हैं. नेटफ्लिक्स के लिए बन रही फिल्म का टाइटल है- Chakda Xpress. मतलब कुल चार फ़िल्में क्रिकेट पर आधारित हैं जो या तो बन चुकी हैं या फिर मेकिंग प्रोसेस में हैं. अब सवाल है कि बॉलीवुड का क्रिकेट ड्रामा पर इतना जोर क्यों है?

क्रिकेट को लेकर भारत में जिस तरह की दीवानगी दिखती है उसके बारे में किसी को भी बहुत कुछ बताने की जरूरत नहीं है. एक वजह तो बहुत सारे लोगों के बीच क्रिकेट का आकर्षण ही है. निर्माता इसमें निश्चित कारोबारी फायदा देखते हैं. क्रिकेट की कहानियां लोगों को हमेशा आकर्षित करती रही हैं. लेकिन बॉलीवुड में एक वक्त तक क्रिकेट की कहानियां बिकती नहीं थीं. बॉलीवुड फिल्मों के इतिहास को खंगाले तो कई उदाहरण सामने आ जाते हैं. देश में क्रिकेट का बुखार 1983 की विश्वकप जीत के बाद शुरू हुआ. पहली बार देवानंद और आमिर खान जैसे सितारों को लेकर बड़े स्केल पर बनी फिल्म 'अव्वल नंबर' दिखी थी. हालांकि 90 के दशक में आई यह फिल्म फ्लॉप थी. साल 2000 से पहले ऐसा नहीं दिखता जब बॉलीवुड क्रिकेट को लेकर बहुत गंभीर दिखा हो.

इन फिल्मों की कामयाबी की वजह से क्रिकेट के प्रति ललचाया बॉलीवुड

हालांकि 2002 में आशुतोष गोवारिकर के निर्देशन में आमिर खान स्टारर 'लगान' ने क्रिकेट की जादुई सफलता से लोगों को परिचित कराया. यह वो फिल्म है जिसने भारत से बाहर भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया. फिल्म ऑस्कर तक के लिए गई. लगान की जान तो क्रिकेट ही थी, लेकिन असल में स्वतंत्रता संग्राम के दौर को भी कहानी का हिस्सा बनाया गया जो इसे एक अलग ही स्वरूप प्रदान करती है. असल में लगान, चैन खुली की मैन खुली, एमएस धोनी द अनटोल्ड स्टोरी, पटियाला हाउस, काई पो चे और इकबाल जैसी फिल्मों ने क्रिकेट कहानियों की दिलचस्प कहानियां दिखाई. अपने फ्रंट पर ये फ़िल्में कामयाब भी साबित हुईं.

हालांकि पहले क्रिकेट ड्रामा एक अंतराल पर दिखती थीं लेकिन अब सिलसिलेवार नजर आ रही हैं. अगर इसके पीछे की वजह को देखें तो यह सिनेमा के बदलते दौर की निशानी हैं. असल में ऊपर जो फ़िल्में बताई गईं हैं उसमें धोनी की बायोपिक को छोड़ दिया अजाए तो दूसरी फिल्मों जो विशुद्ध क्रिकेट ड्रामा नहीं कही जा सकती हैं. यहां तक कि लगान भी एक स्केल में स्वतंत्रता संग्राम की ही कहानी नजर आती है. लेकिन इन्हीं फिल्मों को गौर करें तो कहानियों में क्रिकेट के साथ प्रयोग नजर आते हैं और फिल्मों की सफलता सबूत है कि लोगों ने इन्हें पसंद भी किया. बॉलीवुड की रूटीन फिल्मों के बीच ये कहानियां एक ताजे हवा के झोके की तरह दिखती हैं.

असल में ये फ़िल्में फैमिली ड्रामा हैं जिनमें क्रिकेट के तड़के के साथ मनोरंजन के दूसरे मसाले भी नजर आते हैं. कहानी में क्रिकेट होने की वजह से इन्हें एक बड़ा दर्शक वर्ग मिला जो इनकी कामयाबी का आधार साबित हुए. बॉलीवुड कामयाबी के इस फ़ॉर्मूले की ओर आगे बढ़ता नजर आ रहा है. बायोपिक फिल्मों के साथ जर्सी और मिस्टर एंड मिसेज माही की फिक्शनल कहानियां उसी कड़ी का हिस्सा हैं. फ़िल्में कामयाब रही तो यह सिलसिला और आगे बढ़ेगा.

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